tag:blogger.com,1999:blog-54363101880287370452024-02-07T09:04:35.950-08:00Ncert Solution In Hindincert notes in hindi, class 12 notes all subject, class 10 notes all subject, class 11 notes all subject, class 9 notes all subject, Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.comBlogger47125tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-76816485910128490522021-11-06T07:30:00.004-07:002021-11-13T03:07:46.843-08:00Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction (मानव प्रजनन)<p>नमस्कार दोस्तों ! <b>NCERT Solution In Hindi</b> ब्लॉग में आपका एक बार फिर से स्वागत है आज के इस आर्टिकल में हम <b>Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction</b> हिंदी में प्रस्तुत किये हैं। आशा करते हैं कि यह आर्टिकल आपको पसंद आएगा और यदि आप 12 biology chapter 3 human reproduction notes pdf download करना चाहते हैं। तो आर्टिकल की लास्ट में लिंक दिया गया है। उस पर क्लिक करके पीडीएफ डाउनलोड कर सकते हैं तो आइए शुरू करते हैं।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhsIC41TtqjUNznJUQt6w-Xad5za9GCnOcRkcZdEeteVgknzKLycK8XG03JAy_NbjFZB9Z9gWVqkJZaS8F3VlsXsFTSVt5G61vK8O7s-Zrtpz2i3m15-hII1u9VnL1C-l1LB3ZqKthJGXtcN4CE2Y9qD4QSLqcxOVAdCG74BAl1en2Zg5xoJI54x8g=s640" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="360" data-original-width="640" height="180" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhsIC41TtqjUNznJUQt6w-Xad5za9GCnOcRkcZdEeteVgknzKLycK8XG03JAy_NbjFZB9Z9gWVqkJZaS8F3VlsXsFTSVt5G61vK8O7s-Zrtpz2i3m15-hII1u9VnL1C-l1LB3ZqKthJGXtcN4CE2Y9qD4QSLqcxOVAdCG74BAl1en2Zg5xoJI54x8g=s320" width="320" /></a></div><p style="text-align: left;"><br /></p><h2 style="text-align: left;">12 biology chapter 3 के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु </h2><p>( क ) मानव <u>लैंगिक</u> उत्पत्ति वाला है , </p><p>( ख ) मानव <u>सजीवप्रजक</u> हैं , </p><p>( ग ) मानव में <u>आन्तरिक निषेचन</u> होता है , </p><p>( घ ) नर एवं मादा युग्मक <u>अगुणित</u> होते हैं , </p><p>( ङ ) युग्मनज <u>द्विगुणित</u> होता है , </p><p>( च ) एक परिपक्व पुटक से अण्डाणु ( ओवम ) के मोचित होने की प्रक्रिया को <u>अण्डोत्सर्ग ( ovulation )</u> कहते हैं , </p><p>( छ ) अण्डोत्सर्ग ( ओव्यूलेशन ) <u>ल्यूटीनाइजिंग ( LH )</u> नामक हॉर्मोन द्वारा प्रेरित ( induced ) होता है , </p><p>( ज ) नर एवं स्त्री के युग्मक के संलयन ( फ्यूजन ) को <u>निषेचन</u> कहते हैं , </p><p>( झ ) निषेचन <u>तुम्बिका ( ampulla ) </u>तथा <u>संकीर्णपथ ( isthumus ) के सन्धिस्थल अर्थात् ( फैलोपियन नलिका- fallopian tube )</u> में सम्पन्न होता है , </p><p>( ञ ) युग्मनज विभक्त होकर <u>ब्लास्टोसिस्ट</u> की रचना करता है जो गर्भाशय में अन्तरोपित ( implanted ) होता है , </p><p>( ट ) भ्रूण और गर्भाशय के बीच संवहनी सम्पर्क बनाने वाली संरचना को <u>अपरा ( placenta )</u> कहते हैं।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">पुरूष जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ । </h2><p>उत्तर : </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6ewwK9T_EGomfn9VHPdomIe-xqYo3QBiw-w76ir3HGOaQYw559gg3xu6lgFjqgQfrXDkcsUxZ4HtGKJTTZFWod_aa-IfUH1C6FE7xhvH4Rwwomou4I-wU-pTHQjZ4LAhimZwdqrpEBh0/s640/Male+reproductive+system.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="पुरूष जनन तन्त्र का एक नामांकित आरेख बनाएँ ।" border="0" data-original-height="396" data-original-width="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6ewwK9T_EGomfn9VHPdomIe-xqYo3QBiw-w76ir3HGOaQYw559gg3xu6lgFjqgQfrXDkcsUxZ4HtGKJTTZFWod_aa-IfUH1C6FE7xhvH4Rwwomou4I-wU-pTHQjZ4LAhimZwdqrpEBh0/s16000/Male+reproductive+system.webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">स्त्री जनन तन्त्र का नामांकित आरेख बनाएँ । </h2><p>उत्तर: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXi98oseYeZ_TQX8-vJjxYHxHDMUevd-1b_DX0EyHykbBroT6grx7qTaFHkZfJT_x3AADbOoneIAZvNSEfTuGDiNn2nem6ast3UhG1ftNfkaaMdXuW9qDLJ9htoifVh-KXdYapyOCvsks/s480/Female+reproductive+system.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Female reproductive system" border="0" data-original-height="291" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjXi98oseYeZ_TQX8-vJjxYHxHDMUevd-1b_DX0EyHykbBroT6grx7qTaFHkZfJT_x3AADbOoneIAZvNSEfTuGDiNn2nem6ast3UhG1ftNfkaaMdXuW9qDLJ9htoifVh-KXdYapyOCvsks/s16000/Female+reproductive+system.webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">वृषण तथा अण्डाशय के बारे में प्रत्येक के दो - दो प्रमुख कार्यों का वर्णन करें । </h2><p>उत्तर : </p><h3 style="text-align: left;"><b><span style="color: #3d85c6;">वृषण के कार्य ( Functions of Testis ) </span></b></h3><p>( 1 ) वृषण में जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन ( spermatogenesis ) द्वारा शुक्राणुओं ( sperms ) का निर्माण होता है । </p><p>( 2 ) वृषण की सर्टोली कोशिकाएँ ( Sertoli cells ) शुक्रजन कोशिकाओं तथा शुक्राणुओं का पोषण करती हैं । </p><p>( 3 ) वृषण की अन्तराली कोशिकाओं से एन्ड्रोजन ( androgens ) ( टेस्टोस्टेरॉन ) हॉमोन्स सावित होते हैं , ये द्वितीयक लैंगिक लक्षणों ( secondary sexual characters ) के विकास को प्रेरित करते हैं । </p><h2 style="text-align: left;">अण्डाशय के कार्य ( Functions of ovary ) </h2><p>( 1 ) अण्डाशय की जनन कोशिकाओं से अण्डजनन द्वारा अण्डाणुओं ( ova ) का निर्माण होता है । </p><p>( 2 ) अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका ( Graafian follicle ) से एस्ट्रोजन हॉर्मोन ( estrogen hormone ) सावित होता है , यह स्त्रियों के द्वितीयक लैंगिक लक्षणों को प्रेरित करता है । </p><p>( 3 ) अण्डाशय में बनी संरचना कॉर्पस ल्यूटियम ( corpus luteum ) से स्रावित प्रोजेस्टेरॉन ( progesterone ) हॉमोन गर्भाशय में निषेचित अण्डाणु को स्थापित करने में सहायक होता है ।</p><h2 style="text-align: left;">शुक्रजनक नलिका की संरचना का वर्णन करें । </h2><p>उत्तर : शुक्रजनक नलिका ( Seminiferous tubules ) - वृषण का निर्माण अनेक पालियों से होता है जिनमें से प्रत्येक में एक से तीन शुक्रजनक नलिकाएँ ( seminiferous tubules ) पायी जाती हैं । </p><p>शुक्रजनक नलिकाओं के बाहर संयोजी ऊतक में स्थान पर अन्तराली कोशिकाओं ( interstitial cells ) के समूह स्थित होते हैं । इन्हें लेडिग कोशिकाएँ ( Leydig's cells ) भी कहते हैं । </p><p>इनसे स्रावित नर हॉर्मोन्स ( testosterone ) के कारण द्वितीयक लैगिक लक्षण विकसित होते हैं प्रत्येक शुक्रजनक नलिका पतली एवं कुण्डलित होती है । इसकी भीतरी पर्त को जनन एपिथीलियम ( germinal epithelium ) कहते हैं । </p><p>जनन एपिथीलियम का निर्माण मुख्य रूप से जनन कोशिकाओं ( germ cells ) से होता है , इनके मध्य स्थान - स्थान पर सर्टोली कोशिकाएँ ( Sertoli cells or nurse cells ) पायी जाती है । जनन कोशिकाओं से शुक्रजनन द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है । शुक्राणु सटोली कोशिकाओं से पोषक पदार्थ एवं ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9bxBX-BKChdiFmhZ2sikZ-5fRjI7yxPuUxtioxzN8lBQ3VtrWvhVj_fFOxKgZTQ1hxeBtbfoJ0X6iI8Q7MRbYpKXhfQgZ_YJjYwbn9t0XKS6HhApOIoSygY0aZBzKR85-sIisfJRV1x4/s480/Spermatic+tube+structure.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Spermatic tube structure" border="0" data-original-height="197" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9bxBX-BKChdiFmhZ2sikZ-5fRjI7yxPuUxtioxzN8lBQ3VtrWvhVj_fFOxKgZTQ1hxeBtbfoJ0X6iI8Q7MRbYpKXhfQgZ_YJjYwbn9t0XKS6HhApOIoSygY0aZBzKR85-sIisfJRV1x4/s16000/Spermatic+tube+structure.webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">शुक्रजनन क्या है ? संक्षेप में शुक्रजनन की प्रक्रिया का वर्णन करें । </h2><p>उत्तर : <b>शुक्रजनन ( Spermatogenesis )</b> - वृषण में शुक्राणुओं का निर्माण शुक्रजनन द्वारा होता है । शुक्राणुओं का निर्माण किशोरावस्था के समय प्रारम्भ हो जाता है । यह प्रक्रिया लैंगिक हॉर्मोन्स ( GnRH , LH , FSH तथा एन्ड्रोजन्स ) द्वारा प्रभावित होती है । </p><p>शुक्रजनन प्रक्रिया को निम्नलिखित तीन चरणों में बाँटा जा सकता है ( </p><p><b>( क ) गुणन प्रावस्था ( Multiplication phase ) </b>- शुक्रजनक नलिकाओं की जनन एपिथीलियम की कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुजन कोशिका ( spermatogonia ) का निर्माण होता है । ये कोशिकाएँ द्विगुणित होती हैं । </p><p><b>( ख ) वृद्धि प्रावस्था ( Growth phase )</b> शुक्राणुजन कोशिकाओं में पोषक पदार्थों के संचित होने से कोशिकाओं के आकार में वृद्धि होती है । इन कोशिकाओं को प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट्स ( primary spermatocytes ) कहते हैं । </p><p><b>( ग ) परिपक्वन प्रावस्था ( Maturation phase )</b> — प्राथमिक स्पमेंटोसाइट्स में अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiotic division ) होता है । अर्द्धसूत्री प्रथम विभाजन के फलस्वरूप द्वितीयक स्पर्मेटोसाइट्स secondary spermatocytes ) या द्वितीयक शुक्राणु कोशिकाएँ बनती हैं । ये अगुणित होती है द्वितीयक स्पमेंटोसाइट्स द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप अगुणित शुक्राणु पूर्व कोशिका या स्पर्मेटिड्स ( spermatids ) बनाती हैं । इस प्रकार एक प्राथमिक स्पमेंटोसाइट से चार स्पर्मेटिड्स बनते हैं । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNH2w6De-dsvDg2OdIcUkL5f-4UrW8RyouV4V2IA24Lc17B8sKhkG0SidQOhyphenhyphenP0rCsw_Q1HOanAwMqvPlLmuMgfq5NchlfhVRW8Tj2YDypMeCMzv6zAEE8ca07dURePMY5igDJ9rYd_Pk/s482/What+is+spermatogenesis++Briefly+describe+the+process+of+spermatogenesis..webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="What is spermatogenesis Briefly describe the process of spermatogenesis." border="0" data-original-height="482" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiNH2w6De-dsvDg2OdIcUkL5f-4UrW8RyouV4V2IA24Lc17B8sKhkG0SidQOhyphenhyphenP0rCsw_Q1HOanAwMqvPlLmuMgfq5NchlfhVRW8Tj2YDypMeCMzv6zAEE8ca07dURePMY5igDJ9rYd_Pk/s16000/What+is+spermatogenesis++Briefly+describe+the+process+of+spermatogenesis..webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><p><b>शुक्रकायान्तरण या शुक्राणुजनन ( spermiogenesis ) </b>द्वारा अचल ( non - notile ) स्पमेंटिड से चल ( motile ) शुक्राणु बनता है । चल शुक्राणु सौली कोशिकाओं में अन्तःस्थापित हो जाते हैं । समय - समय पर शुक्राणु मुक्त होकर शुक्रवाहिनी में पहुंचते रहते हैं । शुक्राणुओं का सटोली कोशिकाओं से शुक्रजनन नलिका की गुहा में मुक्त होना स्पर्मिएशन ( spermiation ) कहलाता है ।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">शुक्रजनन की के नियमन में हॉर्मोनों के नाम बताएँ । </h2><p>उत्तर : शुक्रजनन प्रक्रिया के नियमन में निम्नलिखित हॉर्मोन्स सक्रिय भूमिका निभाते हैं </p><p>( i ) गोनैडोट्रॉपिन रिलीजिंग हॉर्मोन ( Gonadotropin releasing hormone )</p><p>( ii ) पीत पिण्डकर हॉर्मोन ( Luteinizing hormone )</p><p>( iii ) पुटकोद्दीपक हॉर्मोन ( Follicle stimulating hormone )</p><p>( iv ) एण्ड्रोजन्स ( Androgens ) ।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">शुक्राणुजनन एवं वीर्यसेचन ( स्परमिएशन ) की परिभाषा लिखिए । </h2><p>उत्तर : <b>शुक्राणुजनन ( Spermiogenesis ) </b>- गोल अचल स्पर्मेटिड्स ( spermatids ) के चल शुक्राणुओं ( motile sperms ) में बदलने की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन या शुक्राणु - कायान्तरण ( spermiogenesis ) कहते हैं । </p><p><b>वीर्यसेचन ( Spermiation ) शुक्राणु </b>- कायान्तरण के पश्चात् मुक्त शुक्राणुओं के शीर्ष सर्टोली कोशिकाओं ( sertoli cells ) में अन्त : स्थापित ( embedded ) हो जाते हैं । शुक्रजनक नलिकाओं के स्तर से शुक्राणुओं के उनकी गुहा ( lumen ) में मोचित ( released ) होने की प्रक्रिया को वीर्यसेचन ( spermiation ) कहते हैं । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">शुक्राणु का एक नामांकित आरेख बनाएँ । </h2><p>उत्तर: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMLNL7b3WTGCM3qoTbVqpD8diW4hkEZlSabDbUSU3UnCIwKzwKCEQETAiGKaAOVS0Otmdpf_EbiLVE5DZj5jB5xr4k-Gp1Q6_Mt3_7QhRA9gY4TEmeb2bGRd-2VUFXuLTH1OzSsC5YGYk/s666/Draw+a+nominative+diagram+of+the+sperm..webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Draw a nominative diagram of the sperm." border="0" data-original-height="666" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgMLNL7b3WTGCM3qoTbVqpD8diW4hkEZlSabDbUSU3UnCIwKzwKCEQETAiGKaAOVS0Otmdpf_EbiLVE5DZj5jB5xr4k-Gp1Q6_Mt3_7QhRA9gY4TEmeb2bGRd-2VUFXuLTH1OzSsC5YGYk/s16000/Draw+a+nominative+diagram+of+the+sperm..webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">शुक्रीय प्रद्रव्य ( सेमिनल प्लाज्मा ) के प्रमुख संघटक क्या हैं ? </h2><p>उत्तर : शुक्रीय प्रद्रव्य ( seminal plasma ) में फ्रक्टोस , प्रोस्टाग्लैंडिन्स , कैल्सियम तथा एन्जाइम होते हैं । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">पुरुष की सहायक नलिकाओं एवं ग्रन्थियों के प्रमुख कार्य क्या है ? </h2><p>उत्तर : <b>सहायक नलिकाएँ ( Accessory ducts ) </b>- सहायक नलिकाओं का कार्य वृषण में बने शुक्राणुओं का शरीर से बाहर तक स्थानान्तरण ( युग्मक स्थानान्तरण ) है । इनका वृषण से बाहर तक का पथ निम्न रहता है </p><p>वासा इफरेन्शिया - एपीडिडिमिस , वासा डिफरेन्शिया - यूरेशा - स्खलन नलिका </p><p><b>पुरुष की सहायक जनन ग्रन्थियाँ ( accessory reproductive glands )</b> जनन प्रक्रिया में सहायक होती हैं -</p><p>( i ) <b>शुक्राशय ( serminal vesicle ) -</b> से सावित चिपचिपा तरल शुक्रीय प्रद्रव्य ( seminal plasma ) का मुख्य भाग बनाता है । शुक्रीय प्रद्रव्य तथा शुक्राणु परस्पर मिलकर वीर्य बनाते हैं । </p><p>( ii ) <b>पुरःस्थ ग्रन्थि ( Prostate gland )</b> - यह अन्थि मूत्रमार्ग के अघर भाग के चारों ओर स्थित होती है । इससे सावित तरल शुक्राणुओं को सक्रिय बनाए रखता है और मूत्रमार्ग की अम्लीयता को समाप्त करता है । </p><p>( iii ) <b>बल्बोयूरेथ्रल या काउपर्स ग्रन्थि ( Bulbourethral or Cowper's gland ) </b>- यह एक जोड़ी होती है । ये मूत्रमार्ग के पावों में स्थित होती हैं। इन ग्रन्थियों से मैथुन से पूर्व एक क्षारीय एवं चिकने द्रव का सावण होता है। यह मूत्रमार्ग की अम्लीयता को समाप्त करके इसे चिकना बनाकर मैथुन में सहायता करता है।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">अण्डजनन क्या है ? अण्डजनन की प्रक्रिया का संक्षिप्त व्याख्या करें।</h2><p>उत्तर : <b>अण्डजनन ( Oogenesis )</b> - अण्डाशय में द्विगुणित अण्ड मात कोशिकाओं से अगुणित अण्ड का निर्माण अण्डजनन कहलाता है । अण्डजनन का प्रारम्भ तभी हो जाता है जब स्त्री अपनी माँ के गर्भ में होती है , लेकिन प्रक्रिया किशोरावस्था तक निलम्बित अवस्था में रहती है । </p><p>यह अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका ( Graafian follicle ) में होने वाली प्रक्रिया है। इसके द्वारा अण्डाणु ( ovum ) का निर्माण होता है । अण्डजनन पीयूष ग्रन्थि से सावित पुटिका प्रेरक हॉर्मोन ( FSH ) तथा LH के नियन्त्रण में होता है । स्त्री में हॉमोन के प्रभाव से प्रतिमाह एक ग्राफियन पुटिका परिपक्व होती है । </p><p><b>अण्डजनन प्रक्रिया</b> को निम्नलिखित तीन चरणों में बाँटा जा सकता है -</p><p>( क ) <b>गुणन प्रावस्था ( Multiplication phase ) </b>- यह प्रावस्था जन्म से पहले अर्थात् भ्रूण अवस्था में ही पूर्ण हो जाती है । अण्डाशय के निर्माण के समय ही प्राथमिक जनन कोशिकाएँ अण्डाशयी पुटिकाओं ( ovarian follicles ) के रूप में एकत्र हो जाती हैं । इनमें से एक कोशिका अण्डाणु मातृ कोशिका ( egg mother celly के रूप में विभेदित हो जाती है । शिशु जन्म के समय ही सारी अण्डाशयी पुटिकाएँ उपस्थित होती है । </p><p>( ख ) <b>वृद्धि प्रावस्था ( Growth phase )</b> - यह प्रावस्था बहुत लम्बी होती है । भ्रूण अवस्था में ही यह प्रारम्भ हो जाती है और लैंगिक परिपक्वन के पश्चात् जब तक उस पुटिका विशेष के परिपक्व होने की अवस्था नहीं आती , तब तक यह वृद्धि प्रावस्था में बनी रहती है । अण्डाणु मातृ कोशिका अण्डाणुजन कोशिका या ऊगोनियम ( oogonium ) में विभेदित होकर वृद्धि प्रावस्था में प्रवेश कर जाती है । यह काफी मात्रा में पोषक पदार्थ संचित करती है तथा सामान्य कोशिका से आकार में कई सौ गुना बढ़ जाती है । इसी अवस्था में यह ग्राफियन पुटिका के परिपक्व होने तक रहती है । अब इसे पूर्व अण्डाणु कोशिका या प्राथमिक ऊसाइट ( primary oocyte ) कहते है । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZdly_FkNlWokMyL7dPEa4SwX0H2xuiVRnDZGsAY2MOVTXbYlA3yqS3hZu5G3UkYE76KKGjni7RSTWoIQNZicpDVO502c4LYq4xIJmIxEuPAC2pB1ZmQDo_DpGCU-vvRLsiNsX2uRBRDg/s516/Scavenging+process.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Scavenging process" border="0" data-original-height="516" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZdly_FkNlWokMyL7dPEa4SwX0H2xuiVRnDZGsAY2MOVTXbYlA3yqS3hZu5G3UkYE76KKGjni7RSTWoIQNZicpDVO502c4LYq4xIJmIxEuPAC2pB1ZmQDo_DpGCU-vvRLsiNsX2uRBRDg/s16000/Scavenging+process.webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><p>( ग ) <b>परिपक्वन प्रावस्था ( Maturation phase )</b> - जब ग्राफियन पुटिका परिपक्व होती है , तब उसमें उपस्थित प्राथमिक ऊसाइट में प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। यह विभाजन असमान होता है और केवल गुणसूत्रों की संख्या आधी करने के लिए होता है । प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन के पश्चात् एक अगुणित द्वितीयक ऊसाइट या द्वितीयक अण्डाणु कोशिका ( secondary oocyte ) तथा एक अगुणित लोपिका या ध्रुवीय पिण्ड ( polar body ) बनती है । इसी अवस्था में ग्राफियन पुटिका फटकर अण्डाशय से द्वितीयक अण्डाणु कोशिका को मुक्त करती है । </p><p>अण्डाणु में द्वितीय अर्द्धसूत्री विभाजन शुक्राणु के अण्डाणु में प्रवेश के पश्चात् होता है । इसके फलस्वरूप अण्डाणु ( ovum ) तथा द्वितीय अगुणित लोपिका ( ध्रुवीय पिण्ड ) का निर्माण होता है । अण्डजनन निरन्तर अन्तराल पर होने वाली एक लम्बी व जटिल प्रक्रिया होती है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">अण्डाशय के अनुप्रस्थ काट ( T.S. ) का एक नामांकित आरेख बनाएँ । </h2><p>उत्तर : </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyWGtf3ffCq6diaKSe4XzO_IQJ2vICRYZrxEq0JrjjdLYlmdXvrgVCumT3Mp155pgcI2CTSWrrf36g8lX2Awx8v2E0mznD0_FUy_346zkC7lRAFbReRIIPNMFb-qTtx2bbO3JgZJZ06fI/s480/Cross+section+of+ovary+%2528T.S.%2529.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Cross section of ovary (T.S.)" border="0" data-original-height="407" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgyWGtf3ffCq6diaKSe4XzO_IQJ2vICRYZrxEq0JrjjdLYlmdXvrgVCumT3Mp155pgcI2CTSWrrf36g8lX2Awx8v2E0mznD0_FUy_346zkC7lRAFbReRIIPNMFb-qTtx2bbO3JgZJZ06fI/s16000/Cross+section+of+ovary+%2528T.S.%2529.webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">परिपक्व ग्राफी पुटक का नामांकित चित्र बनाइये</h2><p>उत्तर: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvGnbJJpoU9lcxSf5e6yUVK76nT6wxDv7zk1clPhqdYpOa57-wrV9xDk0uwgXEoH_vtzZUMZ372Z0BVR4MjaqNWcFskyPDITjT2o28QoFzrGAcJfXfhjjvERDPJbLhO36fzhOgkklpoOk/s480/%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B5+%25E0%25A4%2597%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AB%25E0%25A5%2580+%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%259F%25E0%25A4%2595.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Mature graphy follicle" border="0" data-original-height="316" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvGnbJJpoU9lcxSf5e6yUVK76nT6wxDv7zk1clPhqdYpOa57-wrV9xDk0uwgXEoH_vtzZUMZ372Z0BVR4MjaqNWcFskyPDITjT2o28QoFzrGAcJfXfhjjvERDPJbLhO36fzhOgkklpoOk/s16000/%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BF%25E0%25A4%25AA%25E0%25A4%2595%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B5+%25E0%25A4%2597%25E0%25A5%258D%25E0%25A4%25B0%25E0%25A4%25BE%25E0%25A4%25AB%25E0%25A5%2580+%25E0%25A4%25AA%25E0%25A5%2581%25E0%25A4%259F%25E0%25A4%2595.webp" title="Class 12 biology notes chapter 3 human reproduction" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 15. निम्नलिखित के कार्य बताएँ। ( क ) पीत पिण्ड ( कॉर्पस ल्यूटियम ) ( ख ) गर्भाशय अन्तःस्तर ( एण्डोमेट्रियम ) ( ग ) अग्रपिण्डक ( एक्रोसोम ) ( घ ) शुक्राणु पुच्छ ( स्पर्म टेल ) ( ङ ) झालर ( फ्रिम्ब्री ) </h2><p>उत्तर : </p><p>( क ) <b>पीत पिण्ड ( कॉर्पस ल्यूटियम- Corpus luteum ) के कार्य</b> - यह ग्राफियन पुटिका से अण्डोत्सर्ग के पश्चात् फॉलिकुलर कोशिकाओं और रक्त थक्के से बनी पीले रंग की प्रन्थिल संरचना है , इससे प्रोजेस्टेरॉन , एस्ट्रोजन्स , रिलैक्सिन आदि हॉमोन्स नावित होते हैं । प्रोजेस्टेरॉन हॉमोन भ्रूण के आरोपण सगर्भता ( pregnancy ) तथा अपरा ( placenta ) के निर्माण में सहायता करता है । </p><p>( ख ) <b>गर्भाशय अन्तःस्तर ( एण्डोमेट्रियम- Endometrium ) के कार्य</b>- गर्भाशयी अन्त : स्तर भ्रूण के ब्लास्टोसिस्ट अवस्था में रोपण , अपरा ( placenta ) निर्माण व सगर्भता बनाए रखने हेतु आवश्यक होता है । </p><p>( ग ) <b>अग्रपिण्डक ( एक्रोसोम- Acrosome ) के कार्य </b>- शुक्राणु के शीर्ष ( head ) पर गॉल्जीकाय से बनी टोपी सदृश संरचना अग्रपिण्डक ( acrosome ) होती है । इससे मुक्त होने वाले स्पर्म लासिन्स जैसे हाइल्यूरोनिडेज ( hyaluronidase ) एन्जाइम अण्डाणु के रक्षात्मक आवरण का अपघटन ( lysis ) कर देते हैं । इसके फलस्वरूप शुक्राणु अण्डाणु में प्रवेश कर जाता है । </p><p>( घ ) <b>शुक्राणु पुच्छ ( स्पर्म टेल- Sperm tail ) के कार्य </b>- शुक्राणु पुच्छ शुक्राणु को निषेचन करने के लिए अण्ड तक पहुँचने हेतु आवश्यक गतिशीलता प्रदान करती है । </p><p>( ङ ) <b>झालर ( फिम्बी- Fimbriae ) के कार्य </b>- अण्डवाहिनी ( oviduct ) का प्रारम्भिक फनल सदृश चौड़ा भाग जो अण्डाशय के सम्पर्क में होता है, मुखिका ( ostium ) कहलाता है । यह झालरदार तथा रोमाभि ( fimbriated and ciliated ) होता है । इसकी अंगुली सदृश रचनाओं को फिम्बी कहते हैं । ये अण्डाणुओं को ग्रहण करने में सहायक होती हैं । </p><h2 style="text-align: left;">आर्तव चक्र क्या है ? आर्तव चक्र ( मेन्सदुअल साइकिल ) का कौन - से हॉर्मोन नियमन करते हैं ? </h2><p>उत्तर : <b>आर्तव चक्र ( Menstrual cycle )</b> - मादा प्राइमेटों के अण्डाशय , सहायक नलिकाओं व हॉर्मोनल स्तर में होने वाले जनन चक्रिक परिवर्तनों को आर्तव चक्र ( मेन्सटुअल साइकिल ) कहते हैं । स्त्रियों में ये परिवर्तन माह में एक बार दोहराए जाते हैं । अत : इसे <b>माहवारी चक्र या आर्तन चक्र </b>कहते हैं । प्रथम ऋतुस्त्राव / रजोधर्म ( मेन्सटुएशन ) का प्रारम्भ यौवनारम्भ से होता है जिसे <b>रजोदर्शन ( मेना- menarche ) </b>कहते हैं । </p><p>स्त्रियों में यह आर्तव चक्र प्राय : 26-28 दिन की अवधि के पश्चात् दोहराया जाता है। ऋतुस्राव में अनिषेचित अण्डाणु कुछ रक्त व गर्भाशयी अन्तःस्तर की खण्डित कोशिकाओं के साथ योनि मार्ग से बाहर आता है। इसमें ऋतुस्त्राव ( menstruation ) की अवस्था के बाद पुटिकीय या फॉलिकुलर अवस्था होती है जिसमें गर्भाशय के अन्तःस्तर की टूट - फूट की मरम्मत व नयी वृद्धि होती है तथा पुटिकीय विकास होता है। </p><p>अगली अवस्था 14 वें दिन अण्डोत्सर्ग की होती है जिसके बाद पीत अवस्था ( duleal phase ) या स्रावी अवस्था आती है जिसमें प्रोजेस्टेरॉन के प्रभाव से गर्भाशयी भित्ति का विकास होता है तथा यह अपेक्षित गर्भधारण हेतु तैयार होती है। </p><p>अण्डोत्सर्ग के बाद पुटिका कॉस ल्यूटियम बना देती है। निषेचन के अभाव में पुनः ऋतुस्त्राव अवस्था दोहराई जाती है। </p><p><b>आर्तव चक्र का नियमन ( Regulation of Menstural Cycle ) -</b> यह पीयूष ग्रन्थि तथा अण्डाशयी हॉर्मोन्स द्वारा नियमित होता है । एल ० एच ० तथा एफ ० एस ० एच ० ( Luteinizing Hormone & Follicle Stimulating Hormone ) ग्राफियन पुटिकाओं की वृद्धि , अण्डजनन तथा एस्ट्रोजन्स ( estrogens ) के स्रावण को प्रेरित करते हैं । एल ० एच ० का स्रावण आर्तव चक्र के मध्य ( लगभग 14 वें दिन ) अपने उच्चतम स्तर पर होता है । इसे एल ० एच ० सर्ज ( L.H. Surge ) कहते हैं । </p><p>यह ग्राफियन पुटिका के फटने को प्रेरित करता है , यानि अण्डोत्सर्ग हो जाता है। अण्डोत्सर्ग के पश्चात् अण्डाणु फैलोपियन नलिका में आता है जहाँ पर इसका निषेचन होता है। निषेचन के बाद सगर्भता प्रारम्भ होती है । अगर अण्डाणु का निषेचन नहीं हो पाता तो कॉर्पस ल्यूटियम विलुप्त होने लगता है। </p><p>प्रोजेस्टेरॉन व एस्ट्रोजन की कमी से गर्भाशय की भित्ति का खण्डन प्रारम्भ हो जाता है और रक्तस्राव शुरू हो जाता है। रक्तस्त्राव के साथ अनिषेचित अण्डाणु भी बाहर आ जाता है। इसी को <b>ऋतुस्राव</b> कहते हैं । 4-5 दिन तक रक्तस्राव होता रहता है। इसके पश्चात् लगभग 9 दिन में गर्भाशय की भित्ति की मरम्मत हो जाती है । </p><h2 style="text-align: left;">प्रसव ( पारट्यूरिशन ) क्या है ? प्रसव को प्रेरित करने में कौन - से हॉर्मोन शामिल होते हैं ?</h2><p>उत्तर : गर्भावधि के पूर्ण होने पर गर्भाशय की पेशियों में तीव्र संकुचनों ( vigorous contraction ) के कारण नवजात शिशु ( foetus ) गर्भाशय से बाहर आ जाता है , इसे प्रसव ( parturition ) या शिशु जन्म कहा जाता है। </p><p>प्रसव के संकेत पूर्ण विकसित भ्रूण ( foetus ) तथा अपरा ( placenta ) से उत्पन्न होते हैं जो पीयूष ग्रन्थि से ऑक्सीटोसिन ( oxytocin ) हॉमोन के स्रावण को तीव्र करते हैं। </p><p>ऑक्सीटोसिन या पिटोसिन ( pitocin ) प्रसव पीड़ा उत्पन्न करके प्रसव सम्पन्न कराता है। अण्डाशय द्वारा नावित रिलेक्सिन ( relaxin ) हॉर्मोन प्यूबिक सिम्फाइसिस को ढीला कर श्रोणि क्षेत्र को चौड़ा कर देता है जिससे प्रसव आसान हो जाता है । </p><h2 style="text-align: left;">हमारे समाज में लड़कियाँ जन्म देने का दोष महिलाओं को दिया जाता है। बताएं कि यह क्यों सही नहीं है ? </h2><p>उत्तर : मानव में 23 जोड़ी गुणसूत्र पाए जाते हैं । इनमें से 22 जोड़ी गुणसूत्र समजात होते हैं , 23 वाँ जोड़ी गुणसूत्र स्त्रियों में XX तथा पुरुष में XY होता है । </p><p>युग्मकजनन द्वारा स्त्रियों के अण्डाशय में उत्पादित सभी अण्डाणु 22 + X गुणसूत्र वाले होते हैं , जबकि पुरुष के वृषण में उत्पादित 50 % शुक्राणु 22 + X गुणसूत्र वाले तथा 50 % शुक्राणु 22 + Y गुणसूत्र वाले होते हैं। इस कारण स्त्रियों को समयुग्मकी तथा पुरुषों को विषमयुग्मकी कहा जाता है। </p><p>निषेचन के समय यदि 22 + x शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है , तब मादा सन्तान उत्पन्न होगी, क्योंकि इसकी जीन संरचना 44 + xx होगी। </p><p>यदि अण्डाणु का समेकन 22 + Y शुक्राणु के साथ होता है , तब नर सन्तान उत्पन्न होगी, क्योंकि इसकी जीन संरचना 44 + XY होगी। </p><p>उपर्युक्त कथन से स्पष्ट है कि लिंग निर्धारण में स्त्रियों की कोई भूमिका नहीं होती। ये समयुग्मकी होती हैं, क्योंकि अण्डाशय में केवल एक ही प्रकार के अण्ड उत्पादित होते हैं। </p><h2 style="text-align: left;">एक माह में मानव अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित होते हैं ? यदि माता ने समरूप जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया हो तो आप क्या सोचते हैं कि कितने अण्डे मोचित हुए होंगे ? क्या आपका उत्तर बदलेगा यदि जन्मे हुए जुड़वाँ बच्चे द्विअण्डज यमज थे ? </h2><p>उत्तर : मानव ( स्त्रियों ) में प्रत्येक आर्तव चक्र के फलस्वरूप प्रतिमाह एक अण्ड ( ovum ) ही मोचित होता है । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZE9fBd9rOrVo_R5aFe6aBR-4ON3dqbo9O6-WlXYtRqpBKVLeYf5PLd7wvWE5nsSl2E4ajwhGVYqAeBLdt9ZuZRJ3O3Yv2eNCqrgO4xFUxdqIDHWsQfqHExrmwNbSIJkMeTAHdYIc3XSI/s480/How+many+eggs+are+released+from+human+ovaries+in+a+month.webp" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="How many eggs are released from human ovaries in a month" border="0" data-original-height="327" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZE9fBd9rOrVo_R5aFe6aBR-4ON3dqbo9O6-WlXYtRqpBKVLeYf5PLd7wvWE5nsSl2E4ajwhGVYqAeBLdt9ZuZRJ3O3Yv2eNCqrgO4xFUxdqIDHWsQfqHExrmwNbSIJkMeTAHdYIc3XSI/s16000/How+many+eggs+are+released+from+human+ovaries+in+a+month.webp" /></a></div><p></p><p><b>समरूप जुड़वाँ ( identical twins ) </b>का जन्म एक निषेचित युग्मनज ( zygote ) से ही होता है । </p><p>प्रथम विभाजन के फलस्वरूप बनी कोरकखण्ड ( ब्लास्टोमीयर्स- blastomeres ) एक - दूसरे से पृथक् होकर समरूप जुड़वां का विकास करती है । </p><p><b>द्विअण्डज यमज ( fraternal twins )</b> का विकास अलग - अलग निषेचित युग्मनज से होता है । इनकी जीन संरचना भी भिन्न होती है । </p><p>इसका तात्पर्य है कि जितने द्विअण्डज यमज होते हैं , उतने ही अण्डाणुओं का निषेचन भिन्न - भिन्न शुक्राणुओं से होता है । </p><h2 style="text-align: left;">आप क्या सोचते हैं कि कुतिया जिसने 6 बच्चों को जन्म दिया है , के अण्डाशय से कितने अण्डे मोचित हुए थे ? </h2><p>उत्तर : अण्डाशय से 6 अण्डे मोचित हुए थे । अनेक छोटे स्तनधारियों में एक बार में अनेक अण्डे मोचित होते हैं जिनके अलग - अलग शुक्राणुओं द्वारा निषेचन से अलग - अलग संतति बनती है ।</p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या 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Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-49026866076906514572021-11-06T07:00:00.002-07:002021-11-13T03:07:46.999-08:00Class 12 Biology notes chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (फूलों के पौधों में यौन प्रजनन)<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><b>Class 12 Biology notes chapter 2</b> : इस आर्टिकल में हम mp board class 12th biology ncert solution chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants ( पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन ) प्रस्तुत कर रहे हैं। यह आर्टिकल 12वीं जीव विज्ञान के छात्र छात्राओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgfRMD6VU46__P4QM7jblE4QcZzsJiThYSlP_3QoIlG2Fy7v0FJ2PSjdBk65mk4prWzyxosybCZZwRP590XGiNk6W5x4ZvX0q8JWDFds-JEtnn7J3SBoHXmeclIv_ScBnJob7ciPraAggjrEHeReyMj5wNXJ6LmfleUuiDZviE7Wtd7hx61fWDEYr0=s460" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 12 Biology notes chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (फूलों के पौधों में यौन प्रजनन)" border="0" data-original-height="274" data-original-width="460" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgfRMD6VU46__P4QM7jblE4QcZzsJiThYSlP_3QoIlG2Fy7v0FJ2PSjdBk65mk4prWzyxosybCZZwRP590XGiNk6W5x4ZvX0q8JWDFds-JEtnn7J3SBoHXmeclIv_ScBnJob7ciPraAggjrEHeReyMj5wNXJ6LmfleUuiDZviE7Wtd7hx61fWDEYr0=s16000" title="Class 12 Biology notes chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (फूलों के पौधों में यौन प्रजनन)" /></a></div><p style="clear: both; text-align: left;"><br /></p><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ , जहाँ पर नर एवं मादा युग्मकोद्भिद का विकास होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> : नर युग्मकोद्भिद अर्थात् परागकण का विकास पुंकेसर के परागकोश में तथा मादा युग्मकोद्भिद अर्थात् भ्रूणकोष का विकास बीजाण्ड ( गुरुबीजाणुधानी ) जो कि अण्डाशय में स्थित होता है , में होता है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 2. लघुबीजाणुयानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर स्पष्ट करें । इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है ? इन दोनों घटनाओं के अन्त में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताएँ ।</h2><p><b>उत्तर</b> : <b>लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी में अन्तर </b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgi6_5iWycukcKoNfUOTAGa4vXwOkDKKnw3cFYV1K8DH6IdCuDbWCpd5uSn8QkxtFOvA1nRGwhGQgb1BHInKvmjg7yZ_-mGt6Fh9ZlFppKFuVOGjVRJRZ-22ylYXnn5Tzgp47RwDFK_pIQ/s2048/IMG_20210125_154834.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन ( Sexual Reproduction in Flowering Plants )" border="0" data-original-height="1049" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgi6_5iWycukcKoNfUOTAGa4vXwOkDKKnw3cFYV1K8DH6IdCuDbWCpd5uSn8QkxtFOvA1nRGwhGQgb1BHInKvmjg7yZ_-mGt6Fh9ZlFppKFuVOGjVRJRZ-22ylYXnn5Tzgp47RwDFK_pIQ/s16000/IMG_20210125_154834.jpg" /></a></div><p></p><p>लघु तथा गुरुबीजाणुजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है । लघु तथा गुरुबीजाणुजनन के फलस्वरूप अन्त में नर तथा भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद विकसित होते हैं । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें परागकण , बीजाणुजन ऊतक , लघुबीजाणु चतुष्क , पराग मात कोशिका या लघुबीजाणुमात कोशिका , नर युग्मक । </h2><p><b>उत्तर</b> : सही विकासीय क्रम निम्नवत् है ( i ) बीजाणुजन ऊतक , ( ii ) पराग या लघुबीजाणु मात कोशिका , ( iii ) लघुबीजाणु चतुष्क , ( iv ) परागकण , ( लघुबीजाणु ) , ( v ) नर युग्मक</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 4. एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ ।</h2><p><b>उत्तर</b> : </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQDuvrimq0t2DjFYYE9c8-s__XdE-VzfmYtkcIF28h8sDL1pyVTn-ZTrnoNzALkHlhlgQ4UDr-WWP6XuzKKvib6-6rIp_j3eOuCwO7Zk6I3-G0hXMRHx7Z59e9T1IC71lfsVAKJd_z-W0/s2048/IMG_20210125_154939.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ ।" border="0" data-original-height="1122" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjQDuvrimq0t2DjFYYE9c8-s__XdE-VzfmYtkcIF28h8sDL1pyVTn-ZTrnoNzALkHlhlgQ4UDr-WWP6XuzKKvib6-6rIp_j3eOuCwO7Zk6I3-G0hXMRHx7Z59e9T1IC71lfsVAKJd_z-W0/s16000/IMG_20210125_154939.jpg" title="एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ ।" /></a></div><br /><p></p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 5. आप मादा युग्मकोद्भिद के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं ? </h2><p><b>उत्तर</b> : मादा युग्मकोद्भिद का एकबीजाणुज विकास ( Monosporic development of female gametophyte ) - अधिकांश आवृतबीजी पादपों में मादा युग्मकोद्भिद का विकास एक गुरुबीजाणु से होता है । एक ही गुरुबीजाणु से विकसित होने के कारण इसे एकबीजाणुक ( monosporic ) कहा जाता है । इसे सबसे पहले पॉलीगोनम पौधे में देखा गया था अतः इसे पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष भी कहा जाता है । बीजाण्ड के बीजाण्डकाय ( nucellus ) में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका ( megaspore mother cell ) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार गुरुबीजाणु ( megaspore ) बनाती है । इनमें से तीन गुरुबीजाणु नष्ट हो जाते हैं । आधारीय क्रियाशील गुरुबीजाणु वृद्धि एवं विभाजन द्वारा भ्रूणकोष ( embryo sae ) बनाता है । इसे मादा युग्मकोद्भिद भी कहते हैं । यह 8 केन्द्रकीय व 7 कोशिकीय संरचना है । </p><h2><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 6. एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद के 7 - कोशीय , 8 - न्यूक्लिएट ( केन्द्रक ) प्रकृति की व्याख्या कीजिए । </h2><p><b>उत्तर</b> : आवृतबीजी मादा युग्मकोशिद ( भ्रूणकोष ) की संरचना [ Structure of angiospermic female gametophyte ( Embryo Sac ) ] - अधिकांश आवृतबीजी पादपों का मादा युग्मकोद्भिद ( भ्रूणकोष ) 7 - कोशिकीय तथा 8 - केन्द्रकीय होता है । क्रियाशील गुरुबीजाणु का केन्द्रक समसूत्री विभाजन द्वारा दो संतति केन्द्रक बनाता है । ये विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं । विपरीत ध्रुवों पर स्थित केन्द्रक पुनः दो बार समसूत्री विभाजन द्वारा 8 - केन्द्रकीय संरचना बनाते हैं । यह विभाजन वास्तव में मुक्त केन्द्रकीय होता है , क्योंकि विभाजन के तुरन्त पश्चात् कोशिका भित्ति नहीं बनती । 8 - केन्द्रकीय संरचना में बीजाण्डद्वार की ओर एक अण्ड कोशिका ( egg cell ) तथा दो सहायक कोशिकाएं ( synergids ) मिलकर अण्ड उपकरण ( egg apparatus ) बनाती हैं । निभाग की ओर तीन कोशिकाएँ प्रतिमुख ( antipodals ) कहलाती हैं । वृहद भ्रूणकोष में शेष बचे दो केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक ( polar nuclei ) कहलाते हैं । दोनों ध्रुवीय केन्द्रक परस्पर मिलकर द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक ( secondary nucleus ) बनाते हैं । इस प्रकार परिपक्व भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद 8 - केन्द्रकीय तथा 7 - कोशिकीय संरचना होती है ।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEht-Q32PlsO97cMU5p8mizgxFaiVFicXAzLXna7XYUmOGCz8TL6hwXvK7bhkv1S85yo59OiReim9FCZ69eR4SWYgETllBqGx6dfZYgV7fHHtAolHipIlXNN8eDUBiX4nVrvouN0lxWA78k/s1562/IMG_20210125_155044.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद के 7 - कोशीय , 8 - न्यूक्लिएट ( केन्द्रक ) प्रकृति की व्याख्या कीजिए ।" border="0" data-original-height="1023" data-original-width="1562" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEht-Q32PlsO97cMU5p8mizgxFaiVFicXAzLXna7XYUmOGCz8TL6hwXvK7bhkv1S85yo59OiReim9FCZ69eR4SWYgETllBqGx6dfZYgV7fHHtAolHipIlXNN8eDUBiX4nVrvouN0lxWA78k/s16000/IMG_20210125_155044.jpg" title="एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद के 7 - कोशीय , 8 - न्यूक्लिएट ( केन्द्रक ) प्रकृति की व्याख्या कीजिए ।" /></a></div><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 7. उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें । </h2><p><b>उत्तर</b> : कुछ पादपों में दो प्रकार के पुष्प पाए जाते हैं </p><p><b>( i ) उन्मील परागणी पुष्प ( Chasrmogamous flowers ) </b>- ये सामान्य पुष्यों के समान होते हैं , इनके परागकोश ( anther ) एवं वर्तिकान ( stigma ) अनावृत ( exposed ) होते हैं । इनमें सामान्य पुष्पों की तरह परागण होता है । </p><p><b>( ii ) अनुन्मील्य परागणी पुष्प ( Cleistogamous flowers )</b> - ये पुष्प सदैव बन्द रहते हैं । इन पुष्पों में परागकोश एवं वर्तिकार एक - दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं । इनमें सदैव स्वपरागण होता है , क्योंकि वर्तिकाम को अन्य पुष्पों से परागकण ग्रहण करने का अवसर प्राप्त नहीं होता । अनुन्मील्य पुष्पों में बीज निर्माण प्रक्रिया सुनिश्चित होती है । </p><p>उदाहरण - वायोला ( Viola ) , ऑक्सैलिस ( Oxatis ) , कनकौआ ( कोमेलीना- Commelina )</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjms-Y8MPv12ygHUlbEWpsqIgcpzIp8fue32XmznMYLA7j5RmDVQW1rmWd-OQjL-l2RljHDDd0edvDtOWumpT3ehdB7lSoVbOBosCB1sO0rHjZR8Mx7XKAyc_j6gR5QWKQImcH0ls4DCc/s1413/IMG_20210125_155110.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें ।" border="0" data-original-height="1140" data-original-width="1413" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhjms-Y8MPv12ygHUlbEWpsqIgcpzIp8fue32XmznMYLA7j5RmDVQW1rmWd-OQjL-l2RljHDDd0edvDtOWumpT3ehdB7lSoVbOBosCB1sO0rHjZR8Mx7XKAyc_j6gR5QWKQImcH0ls4DCc/s16000/IMG_20210125_155110.jpg" title="उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें ।" /></a></div><p><br /></p><h2><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 8. पुष्यों द्वारा स्व - परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें । </h2><p><b>उत्तर</b> : पुष्पीय पादपों में अनेक ऐसी युक्तियाँ पायी जाती हैं जो स्वपरागण को रोकने में सहायक होती हैं और पर - परागण को प्रेरित करती है । स्वपरागण को रोकने के लिए पुष्पीय पादपों में निम्नलिखित युक्तियाँ पायी जाती हैं </p><p>( i ) एकलिंगता ( Unisexuality or Dicliny ) एकलिंगी पुष्पों में नर तथा मादा जननांग अलग - अलग पुष्पों में पाए जाते हैं । जब नर तथा मादा पुष्प पृथक् - पृथक् पौधों पर लगते हैं तो पौधे एकलिंगाश्रयी ( dioecious ) कहलाते हैं ; जैसे - पपीता , भाँग आदि । इनमें स्वपरागण नहीं होता । </p><p>( ii ) स्वबन्थ्यता ( Self - sterility or Incompatibility ) - इसमें एक पुष्प के परागकण जब उसी पुष्प या उसी पौधे के अन्य पुष्पों पर पहुंचते हैं तो परागकणों का अंकुरण अथवा पराग नलिका वृद्धि नहीं होता । इसे स्वबन्ध्यता ( self - sterility ) कहते हैं ; जैसे - तम्बाकू , आलू , झूमकलता आदि में । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 9. स्व - अयोग्यता क्या है ? स्व - अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व - परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है ? </h2><p><b>उत्तर</b> : स्वअयोग्यता ( Incompatiblity ) - परागण द्वारा परागकोश से परागकण वर्तिकान पर पहुंचते हैं , लेकिन परागण द्वारा यह सुनिश्चित नहीं होता कि एक जाति विशेष के परागकण उसी जाति विशेष के पुष्प के वर्तिकान पर पहुंचेंगे । प्रायः विभिन्न प्रकार के परागकण वर्तिकान पर पहुँचते हैं । स्त्रीकेसर में सही प्रकार के परागकणों को पहचानने की क्षमता होती है । सही प्रकार अर्थात उसी प्रजाति के परागकणों को स्त्रीकेसर स्वीकार कर लेता है और परागण - पश्च घटना ( post - pollination process ) को प्रोत्साहित करता है जिसके फलस्वरूप निषेचन होता है । भिन्न प्रजाति के परागकणों के स्त्रीकेसर पर पहुँचने पर परागकणों का अंकुरण नहीं होता । यदि परागकणों का अंकुरण हो जाता है तो पराग नलिका वर्तिका में प्रवेश नहीं कर पाती अर्थात् स्त्रीकेसर परागकण को अस्वीकार कर देता है । एक स्त्रीकेसर द्वारा परागकण को पहचानने की सक्षमता उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति द्वारा अनुपालित होती है जो परागकणों और स्त्रीकेसर के बीच निरन्तर संवाद का परिणाम है । यह संवाद परागकण एवं स्त्रीकेसर के मध्य रसायनों की परस्पर क्रिया के कारण होता है । अनेक द्विलिंगी पुष्पों में स्वबन्ध्यता या स्वअयोग्यता का गुण होता है । अत : जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प या उसी पौधे के अन्य पुष्पों के वर्तिकान पर पहुंचते हैं तो परागकणों का अंकुरण नहीं होता अतः निषेचन की अनुपस्थिति में इससे इन पौधों में बीज निर्माण नहीं होता । </p><h2><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 10.बैगिंग ( थोरावस्त्रावरण ) या थैली लगाना तकनीक क्या है ? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ? </h2><p><b>उत्तर</b> : बैगिंग ( बोरावस्त्रावरण Bagging ) --- बैगिंग या बोरावस्त्र तकनीक का उपयोग कृत्रिम संकरण ( artificial hybridization ) में किया जाता है । इस तकनीक द्वारा द्विलिंगी पुष्पों में पराग के प्रस्फुटन से पूर्व पुष्प कलिका अवस्था से चिमटी की सहायता से परागकोश ( anthers ) को निकाल दिया जाता है । इस प्रक्रिया को विपुंसन ( emasculation ) कहते हैं । विपुंसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की बटर पेपर से बनी थैलियों से ढक दिया जाता है , इससे अवांछित परागकण वर्तिकान पर नहीं पहुंचते । इस प्रक्रिया को बैगिंग ( बोरावस्त्रावरण ) कहते हैं । जब वस्त्रावृत पुष्प ( bagged flower ) का वर्तिकाग्र परिपक्व हो जाता है , तब कृत्रिम रूप से संगृहीत वांछित परागकणों को वर्तिकार पर छिटक कर पुष्प को पुन : थैली से ढक दिया जाता है । इसके फलस्वरूप परागकण अंकुरित होकर स्त्रीकेसर के बीजाण्ड में स्थित अण्ड कोशिका का निषेचन करते हैं । निषेचन के फलस्वरूप बीज और फल विकसित होता है । इस तकनीक से फसल की उन्नत किस्में ( improved varieties ) विकसित की जाती हैं । ये अधिक उत्पादन करने वाली , रोग प्रतिरोधी एवं कीट प्रतिरोधी प्रजातियाँ होती हैं । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 11.त्रिसंलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है ? त्रि - संलयन में सम्मिलित न्यूक्लीआई का नाम बताएँ । </h2><p><b>उत्तर</b> : त्रिसंलयन – पराग नलिका दो केन्द्रकों को भ्रूणकोष में मुक्त करती है । भ्रूणकोष में एक नर युग्मक अण्ड कोशिका ( egg cell or female gamete ) से मिलकर युग्मनज ( zygote ) बनाता है । इसे सत्य निषेचन या संयुग्मन ( syngamy ) कहते हैं । दूसरा नर युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक rnucleus ) या दो अगुणित ध्रुवीय केन्द्रकों ( polar nuclei ) से मिलकर त्रिगुणित ( triploid ) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक ( primary endospermic nucleus ) बना लेता है । यह भ्रूणकोष में सम्पन्न होता है । इस क्रिया को निसंलयन ( triple fusion ) कहते हैं । त्रिसंलयन में सम्मिलित केन्द्रक हैं -1 नर युग्मक +2 ध्रुवीय केन्द्रका आवृतबीजी पौधों में संयुग्मन ( syngamy ) तथा त्रिसंलयन ( triple fusion ) को सम्मिलित रूप से विनिषेचन ( double fertilization ) कहते हैं । युग्मनज से भ्रूण और प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से भ्रूणपोष ( endosperm ) का विकास होता है । </p><h2><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 12. एक निषेचित बीजाण्ड में युग्मनज की कुछ समय की प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं ? </h2><p><b>उत्तर</b> : निषेचित बीजाण्ड के भ्रूणकोष में द्विगुणित युग्मनज ( aygote ) तथा त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक ( primary endospermic nucleus ) को छोड़कर अन्य कोशिकाएँ विघटित हो जाती हैं । निषेचन के तुरन्त बाद युग्मनज का विभाजन प्रारम्भ नहीं होता । प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से एक निश्चित सीमा तक भ्रूणपोष के विकसित हो जाने के पश्चात् भ्रूण का विकास प्रारम्भ होता है । यह एक प्रकार का अनुकूलन है , ताकि विकासशील भ्रूण को सुनिश्चित पोषण प्राप्त हो सके । त्रिगुणित भ्रूणपोष की कोशिकाओं में भ्रूण के लिए उपयोगी खाद्य पदार्थ संचित रहते हैं । अत : बीजाण्ड में युग्मनज को कुछ समय की प्रसुप्ति भ्रूणपोष को विकास की पर्याप्त अवधि व अवसर प्रदान करती है । साथ ही भ्रूण को पोषण सुनिश्चित कराती है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 13. इनमें विभेद करें ( क ) बीजपत्राधार और बीजपत्रोपरिक ( ख ) प्रांकुर चोल और मूलांकुर चोल ( ग ) अध्यावरण तथा बीजचोल ( घ ) परिश्रूणपोष एवं फलभित्ति । ( घ ) परिभ्रूणपोष एवं फलभित्ति में अन्तर </h2><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2VvSGry8twesXVuWQ3cd608ujLpoBl7cxMUg6kjePofMqNnQGLVG5ZR4PWuHgCKhwewilteezUIKsJ5QcWiEsxNoR4QXrMrJXMVTJCyhxgLogCt0Xu5QO6jIxHkTIbblxDH4wUYwtvV0/s2048/IMG_20210125_155211.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें ।" border="0" data-original-height="1865" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2VvSGry8twesXVuWQ3cd608ujLpoBl7cxMUg6kjePofMqNnQGLVG5ZR4PWuHgCKhwewilteezUIKsJ5QcWiEsxNoR4QXrMrJXMVTJCyhxgLogCt0Xu5QO6jIxHkTIbblxDH4wUYwtvV0/s16000/IMG_20210125_155211.jpg" title="उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें ।" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 14. एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं ? पुष्प का कौन - सा भाग फल की रचना करता है ? </h2><p><b>उत्तर</b> : पुष्प के अण्डाशय से विकसित होने वाले फल सत्य फल ( true fruits ) कहलाते हैं । कभी - कभी फल के निर्माण में अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भाग भी भाग लेते हैं तो ऐसे फलों को आभासी फल ( false fruits ) कहते हैं । सेब एक आभासी फल है , इसके बनने में अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्पासन ( thalamus ) भाग लेता है । </p><h2><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 15. विपुंसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ? </h2><p><b>उत्तर</b> : विपुंसन ( Emasculation ) - द्विलिंगी पुष्पों में पराग प्रस्फुटन से पूर्व पुष्प कलिका से चिमटी की सहायता से परागकोश को पृथक् करना विपुंसन ( emasculation ) कहलाता है । पादप प्रजनक ( plant breeder ) इस तकनीक का उपयोग कृत्रिम संकरण ( artificial hybridization ) के लिए करता है । विपुंसन तथा बोरावस्त्र तकनीक ( बैगिंग- Bagging ) द्वारा फसलों की उन्नत किस्में विकसित की जाती हैं । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 16. यदि कोई व्यक्ति वृद्धिकारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकफलन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेकफलन के लिए कौन - सा फल चुनते हैं और क्यों ? </h2><p><b>उत्तर</b> : निषेचन के फलस्वरूप बीजयुक्त फल बनते हैं । अनेक प्रजातियों में बिना निषेचन के फल बन जाते हैं । ये फल बीजरहित होते हैं ; जैसे — केला , अंगूर आदि । इन फलों को अनिषेकफलनी फल ( parthenocarpic fruits ) तथा इस प्रक्रिया को अनिषेकफलन ( parthenocarpy ) कहते हैं । </p><p>वृद्धिकारकों की उचित सान्द्रता के विलयन को पुष्पों के ऊपर छिड़कने से बीजरहित फल प्राप्त किए जा सकते हैं । अनिषेकफलन द्वारा सन्तरा , नीबू , अमरूद , पपीता , तरबूज आदि का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है इसके फलस्वरूप इनसे अधिक मात्रा में पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं । यह प्रक्रिया फल की गुणवत्ता बढ़ा देती है । जिन फलों में बीज ही प्रमुख खाद्य भाग बनाते हैं ( जैसे - अनार ) उनमें अनिषेकफलन हानिकारक रहता है । </p><h2><span style="color: red;">Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन</span></h2><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 17. परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या करें । </h2><p><b>उत्तर</b> : लघुबीजाणुधानी की बाह्य तीन पर्ते लघुबीजाणुधानी को सुरक्षा प्रदान करती हैं और स्फुटन में सहायता करती हैं । सबसे भीतरी टेपीटम पर्त की कोशिकाएँ विकासशील परागकणों को पोषण प्रदान करती हैं । यह परागकणों को स्पोरोपोलेनिन युक्त बाह्यभित्ति ( exine ) बनाने में मदद करता है । परागकण को भित्ति पर यह तेलयुक्त पदार्थ लगाता है । कीट परागित पुष्पों में परागकण की पोलेन किट का निर्माण टेपीटम से होता है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 18. असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्त्व है ? </h2><p><b>उत्तर</b> : असंगजनन ( Apomixis ) - यह एक प्रकार का अलैंगिक जनम है जो लैंगिक जनन की नकल करता है । इसमें बीज निर्माण बिना निषेचन के होता है । कुछ पौधों के जीवन - चक्र में युग्मक संलयन ( syngamy ) अथवा अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis ) नहीं होता तथा इनकी अनुपस्थिति में नए पौधे का निर्माण हो जाता है । इस प्रक्रिया को असंगजनन ( apomixis ) कहते हैं । इसकी खोज विकलर ( Winkler , 1908 ) ने की । यह प्राय : अनिषेकबीजता ( agamospermy ) के कारण होता है ; जैसे - घास कुल व सूरजमुखी कुल के पौधों में । </p><p>संकर ( hybrid ) किस्मों से फसलों की उत्पादकता बहुत अधिक बढ़ गई है । संकर बीजों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन्हें प्रत्येक फसल के लिए तैयार करना होता है । यदि संकर किस्म के संगृहीत बीज को बुआई करके प्राप्त किया जाता है तो लैंगिक जनन से उपजी विभिन्नताओं के कारण उसकी पादप संतति संकर बीज की विशिष्टता को यथावत् बनाए नहीं रख पाती । यदि संकर बीज असंगजनन द्वारा तैयार किए जाते हैं तो संकर संतति मूल विशिष्टता को फसल - दर - फसल प्रदर्शित करती रहेगी और प्रतिवर्ष संकर बीजों को प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहेगी । अतः कृषि और बागवानी के लिए असंगजनन लाभप्रद है ।</p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “<a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html"><b>NCERT Solution</b> 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प्रस्तुत कर रहे हैं। यह आर्टिकल 12वीं जीव विज्ञान के छात्र छात्राओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEi6Dv2BSn__F7jdwFglGJF8dEv_Iduz6NXltm77ii3U1W9t8gEbtr2U04L0Jop547snC1rustWMejalLJvyt6u996LDaABX9ZUg328q7XEY-EyahbgyJrZ4XZGDY7lTvYY3A9DXZi1i8456Jnl-wR5fpZ77NlZbgAHEN46lQj5qiYTwk7Lk1utEtTU=s1620" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 12 Biology notes chapter 1 Reproduction of organisms (जीवों का प्रजनन)" border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1620" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEi6Dv2BSn__F7jdwFglGJF8dEv_Iduz6NXltm77ii3U1W9t8gEbtr2U04L0Jop547snC1rustWMejalLJvyt6u996LDaABX9ZUg328q7XEY-EyahbgyJrZ4XZGDY7lTvYY3A9DXZi1i8456Jnl-wR5fpZ77NlZbgAHEN46lQj5qiYTwk7Lk1utEtTU=s16000" title="Class 12 Biology notes chapter 1 Reproduction of organisms (जीवों का प्रजनन)" /></a></div><br /><p style="clear: both; text-align: left;"><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है ? </h3><p><b>उत्तर</b> : कोई भी जीव अमर ( immortal ) नहीं होता उसकी एक निश्चित जीवन - अवधि होती है । जीव मरते है लेकिन प्रजाति को निरन्तरता बनी रहती है । प्रजनन प्रजाति की निरन्तरता सुनिश्चित करता है । यह मृत्यु के रूप में हुई जीव - हानि को गौण ( secondary ) बना देता है । दूसरे , प्रजनन से उत्पन्न हुई विभिन्नताएँ जीव को बदले पर्यावरण में सफल जीवनयापन हेतु सक्षम बनने के अवसर देती हैं । ( अर्थात् ये जीवों के विकास में सहायक है ) । </p><h2 style="text-align: left;">NCERT Solutions for Class 12 Biology chapter 1</h2><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. जनन की अच्छी विधि कौन - सी है और क्यों ? </h3><p><b>उत्तर</b> : जीवों में सामान्यतया जनन दो प्रकार से होता है </p><p>( i ) अलैंगिक जनन ( asexual reproduction ) </p><p>( ii ) लैंगिक जनन ( sexual reproduction ) </p><p>जीवों में जनन के लिए लैंगिक जनन विधि को अच्छा माना जाता है , इस विधि में विपरीत लिंग ( sex ) वाले दो जनक ( parents ) भाग लेते हैं । इनमें नर तथा मादा युग्मकों का संयुग्मन ( fusion ) होता है । संयुग्मन के फलस्वरूप बने युग्माणु या युग्मनज ( zygote ) से नए जीव का विकास होता है । युग्मक तथा युग्मनज निर्माण के समय गुणसूत्रों की जीन संरचना में भिन्नता आ जाने के कारण संतति पूर्ण रूप से अपने जनक के समान नहीं होती । संतति में उत्पन्न होने वाली भिन्नताएँ ( variations ) जैव विकास का आधार होती है । ये भिन्नताएं जीष को बदले पर्यावरण में भी सफल जीवनयापन के अवसर प्रदान करती हैं तथा संकर ओज प्रदान करती हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई संतति को क्लोन क्यों कहा गया है ? </h3><p><b>उत्तर</b> : इस विधि में केवल समसूत्री विभाजन ( mitosis ) शामिल होता है अत : इसके द्वारा उत्पन्न संतति एक - दूसरे के समरूप एवं पूर्णरूप से अपने जनक के समान होती है । आकारिकीय ( morphological ) तथा आनुवंशिक ( genetically ) रूप से समान जीवों को <b>क्लोक ( clone )</b> कहते हैं । अत : अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति को क्लोन कहा जाता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं , क्यों ? क्या यह कथन हर समय सही होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> : लैंगिक जनन ( सेxual reproduction ) में विपरीत लिंग वाले तथा भिन्न आनुवंशिक संगठन वाले जीवों की आवश्यकता होती है । लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति अपने जनकों के अथवा आपस में भी समरूप ( identical ) नहीं होती , इनमें विभिन्नताएं ( variations ) पायी जाती हैं । यह विभिन्नता युग्मक निर्माण के समय होने वाले अर्द्धसूत्री विभाजन में जीन विनिमय ( erossing over ) , गुणसूत्रों का पृथक्करण तथा युग्मकों के यादृच्छिक संलयन ( random fusion ) के कारण उत्पन्न होती है । ये विभिन्नताएँ जीव को बदले पर्यावरण में सफल उत्तरजीविता की सम्भावनाएं प्रदान करती हैं । लैगिक जनन प्राय : अच्छे अवसर ही प्राप्त कराता है । हानिकारक लक्षण धीरे - धीरे समष्टि से विलुप्त हो जाते हैं , लेकिन पर्यावरण की भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है । लक्षणों का चुना जाना ( अच्छा होना या न होना ) पर्यावरण पर भी निर्भर करता है । कुल मिलाकर लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 5. अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति लैंगिक जनन द्वारा बनी संतति से किस प्रकार भिन्न है ? </h3><p><b>उत्तर</b> : ( 1 ) अलैगिक जनन द्वारा बनी संतति एक - दूसरे के और अपने जनक के समरूप ( identical ) होती है । इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति एक - दूसरे से और अपने जनकों के समरूप नहीं होती ।</p><p>( ii ) अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक - दूसरे के समरूप या क्लोन होती है । इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक - दूसरे के समरूप नहीं होती , इनमें विभिन्नताएँ पायी जाती हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 6. अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित कीजिए । कायिक जनन को प्रारूपिक अलैंगिक जनन क्यों माना गया है ? </h3><div><b>उत्तर</b>: </div><div><div style="text-align: center;"><b>अलैंगिक तथा लैंगिक जनन में अंतर</b></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWSsO-h8OA0bDjzJxkfL7ff9eWUkpTlLfnm5tfj6gon0QPrujCiwPvsiy2mVdo4ocgt_qlaKMlPOwcG5vIjSa0v3vI_0HhnXPVLz6qpg0VN85NTcPE7ZfDMN98YGfXPJOGk2hLi7iO5Bw/s2077/IMG_20210122_173736.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित कीजिए । कायिक जनन को प्रारूपिक अलैंगिक जनन क्यों माना गया है ?" border="0" data-original-height="1027" data-original-width="2077" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjWSsO-h8OA0bDjzJxkfL7ff9eWUkpTlLfnm5tfj6gon0QPrujCiwPvsiy2mVdo4ocgt_qlaKMlPOwcG5vIjSa0v3vI_0HhnXPVLz6qpg0VN85NTcPE7ZfDMN98YGfXPJOGk2hLi7iO5Bw/s16000/IMG_20210122_173736.jpg" title="अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित कीजिए । कायिक जनन को प्रारूपिक अलैंगिक जनन क्यों माना गया है ?" /></a></div><br /></div><p>कायिक जनन में पौधे का कोई कायिक भाग ( vegetative part ) पौधे से पृथक् होकर संतति पादप का निर्माण करता है इन संरचनाओं को <b>कायिक प्रवर्ध ( प्रोपेग्यूल )</b> कहते हैं । इन संरचनाओं के निर्माण में दो जनक भाग नहीं लेते ; साथ ही कायिक जनन से बनी संतति आकारिकी व आनुवंशिक गुणों में अपने जनकों के समान या क्लोन होती है तथा इसमें युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन नहीं होता । अत : कायिक जनन अलैंगिक जनन ही माना जाता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 7. कायिक प्रवर्धन से क्या समझते हैं ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए । </h3><p><b>उत्तर : कायिक प्रवर्धन ( Vegetative Propagation )</b> - यह अलैंगिक जनन का एक प्रकार होता है , जिसमें सन्तति निर्माण पौधों के कायिक भागों या वर्षी भागों ( vegetative parts ) से होता है अत : यह <b>कायिक जनन</b> कहलाता है । प्राकृतिक कायिक जनन ( प्रवर्धन ) पौधों की जड़ , स्तम्भ अथवा पत्तियों से हो सकता है । आलू के स्वस्थ कन्द ( tuber ) में उपस्थित छोटे - छोटे गड्ढों में कलिकाएँ पायी जाती हैं । आलू को बोने पर अपस्थानिक कलिकाएँ विकसित होकर नए पौधे बनाती हैं । अदरक का भूमिगत तना प्रकन्द ( rhizome ) कहलाता है प्रकन्द की पर्वसन्धियों पर स्थित अपस्थानिक कलिकाएं विकसित होकर नया पौधा बना देती हैं ।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTaGthAFKCdHfuAl1FL3jEoh6va5F0xLUYnYE21kjr33EGIVgJCi1tfmMGUpC1_JVur9kXGdXNa7ewaTIu64U9VUB1P4zCFE1WrDM-A_Q0I0JnCX1mh7sxgrN9Xv_MzJy2Prfu3MdPA2E/s1652/IMG_20210122_174105.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="कायिक प्रवर्धन से क्या समझते हैं ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए ।" border="0" data-original-height="620" data-original-width="1652" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiTaGthAFKCdHfuAl1FL3jEoh6va5F0xLUYnYE21kjr33EGIVgJCi1tfmMGUpC1_JVur9kXGdXNa7ewaTIu64U9VUB1P4zCFE1WrDM-A_Q0I0JnCX1mh7sxgrN9Xv_MzJy2Prfu3MdPA2E/s16000/IMG_20210122_174105.jpg" title="कायिक प्रवर्धन से क्या समझते हैं ? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए ।" /></a></div><p></p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 8. व्याख्या कीजिए ( क ) किशोर चरण , ( ख ) प्रजनक चरण , ( ग ) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था । </h3><p><b>उत्तर </b>: <b><u>( क ) किशोरचरण ( Juvenile phase )</u></b> - सभी जीवधारी लैंगिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व एक निश्चित वर्धी अवस्था से होकर गुजरते हैं , इसके पश्चात् ही वे लैंगिक जनन कर सकते हैं । इस अवस्था को प्राणियों में किशोर चरण या अवस्था तथा पौधों में कायिक अवस्था ( vegetative phase ) कहते हैं । इसकी अवधि विभिन्न जीवों में भिन्न - भिन्न होती है । </p><p><b><u>( ख ) प्रजनक चरण ( Reproductive phase ) </u></b>- किशोरावस्था अथवा कायिक प्रावस्था के समाप्त होने पर प्रजनक चरण अथवा जनन प्रावस्था प्रारम्भ होती है । पौधों में इस अवस्था में पुष्पन ( flowering ) प्रारम्भ हो जाता है । मनुष्य में यौवनारम्भ ( puberty ) से इसका प्रारम्भ होने लगता है जिसमें अनेक शारीरिक एवं आकारिकीय परिवर्तन आ जाते हैं । इस चरण में जीव , संतति उत्पन्न करने योग्य हो जाता है । यह अवस्था विभिन्न जीवों में अलग - अलग होती है अर्थात् किशोर चरण व जीर्णावस्था के बीच की अवस्था ही प्रजनन अवस्था होती है । स्तनियों में मदचक्र या ऋतुचक्र के प्रारम्भ से मेनोपॉज तक प्रजनक चरण कहलाता है । </p><p><b><u>( ग ) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था ( Senescent phase )</u></b> - यह जीवन - चक्र की अन्तिम अवस्था अथवा तीसरी अवस्था होती है । प्रजनन आयु की समाप्ति को जीर्णता चरण या जीर्णावस्था की प्रारम्भिक अवस्था माना जा सकता है । इस चरण में प्रजनन क्षमता के साथ - साथ उपापचय क्रियाएँ मन्द होने लगती हैं , ऊतकों का क्षय होने लगता है । शरीर के अंग धीरे - धीरे कार्य करना बन्द कर देते हैं और अन्तत : जीव की मृत्यु हो जाती है । इसे <b>वृद्धावस्था</b> भी कहते हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 9. अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैंगिक प्रजनन को अपनाया है , क्यों ? </h3><p><b>उत्तर</b> : <b><u>लैंगिक जनन ( Sexual reproduction )</u></b> अलैंगिक जनन की तुलना में जटिल , विस्तृत तथा धीमी प्रक्रिया होती है । यह अधिक ऊर्जा व संसाधनों की भी मांग करता है लेकिन फिर भी जटिल पादपों व जन्तुओं ने इसी को अपनाया है । संतति परस्पर तथा अपने जनकों के समरूप ( identical ) नहीं होती , इनमें विभिन्नताएँ ( variations ) पायी जाती हैं । विभिन्नताओं के कारण जीवधारी स्वयं को अपने वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं । विभिन्नताओं के कारण जीवों की जीवन शक्ति ( vigour and vitality ) की वृद्धि होती है । विभिन्नताओं के कारण ही जैव विकास होता है । लैंगिक जनन जीवधारियों को प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने में सहायक होता है । यही कारण है बड़े जीवधारियों ने शारीरिक जटिलता के साथ - साथ लैंगिक जनन को अपनाया है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 10. व्याख्या करके बताएँ कि अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मकजनन सदैव अन्तर - सम्बन्धित ( अन्तर्बद्ध ) होते हैं । </h3><p><b>उत्तर</b> : लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis ) तथा युग्मकजनन ( gametogenesis ) प्रक्रियाएँ होती हैं । सामान्यतया लैंगिक जनन करने वाले जीव द्विगुणित ( diploid ) होते हैं । इनमें युग्मक निर्माण अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा होता है । युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है , अर्थात् युग्मक अगुणित ( haploid ) होते हैं । अतः युग्मकजनन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन क्रियाएँ अन्तरसम्बन्धित ( अन्तर्बद्ध ) होती है । निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित युग्मक संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्मनज ( diploid zygote ) बनाता है । द्विगुणित युग्माणु से भ्रूणीय परिवर्धन द्वारा नए जीव का विकास होता है । अर्द्धसूत्री विभाजन , किसी प्रजाति में गुणसूत्र संख्या लैंगिक जनन के दौरान स्थिर बनाए रखने में मदद करता है । अगुणित जीवों में युग्मक निर्माण सूत्री विभाजन द्वारा तथा जाइगोटिक अर्द्धसूत्री विभाजन होता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 11. प्रत्येक पुष्यीय पादप के भाग को पहचानिए तथा लिखिए कि वह अगुणित ( n ) है या द्विगुणित ( 2n ) । ( क ) अण्डाशय ( ख ) परागकोश ( ग ) अण्डा या डिम्ब ( घ ) परागकण ( ङ ) नर युग्मक ( च ) युग्मनजा </h3><p><b>उत्तर</b> : पुष्पीय भाग-</p><p>( क ) अण्डाशय ( Ovary ) द्विगुणित ( 2n ) </p><p>( ख ) परागकोश ( Anther ) - द्विगुणित ( 2n ) </p><p>( ग ) अण्डा या डिम्ब ( Ova ) अगुणित ( n ) </p><p>( घ ) परागकण ( Pollen grain ) - अगुणित ( n ) </p><p>( ङ ) नर युग्मक ( Male gamete ) - अगुणित ( n ) </p><p>( च ) युग्मनज ( Zygote ) - द्विगुणित ( 2n ) </p><p>[ युग्मनज ( zygote ) शुक्राणु तथा अण्ड के मिलने से बनी द्विगुणित संरचना ( 2n ) होती है । ) </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 12. बाह्य निषेचन की व्याख्या कीजिए । इसके नुकसान बताइए । </h3><p><b>उत्तर</b> : <b><u>बाह्य निषेचन ( External Fertilization )</u></b> - जीव शरीर से बाहर जलीय माध्यम में होने वाला निषेचन बाहा निषेचन कहलाता है । अधिकांश शैवालों , मछलियों में और उभयचर प्राणियों में शुक्राणु ( नर युग्मक ) तथा अण्ड ( मादा युग्मक ) का संलयन शरीर से बाहर जल में होता है , इसे बाह्य निषेचन ( external fertilization ) कहते हैं ।</p><p><b><u>आन्तरिक निषेचन ( Internal Fertilization ) </u></b>- अधिकांश प्राणियों और पादपों में युग्मक संलयन या निषेचन मादा जीव शरीर के अन्दर सम्पन्न होता है ; जैसे - स्तनी , पक्षी , सरीसृपों तथा पुष्पी पौधों आदि में । </p><h4 style="text-align: left;">बाह्य निषेचन से हानियाँ ( Disadvantages of External Fertilization ) - </h4><p>( i ) जीवधारियों को अत्यधिक संख्या में युग्मकों का निर्माण करना होता है जिससे निषेचन के अवसर बढ़ जाएँ अर्थात् इनमें युग्मक संलयन के अवसर कम होते हैं । ऊर्जा व संसाधनों का अपव्यय होता है । </p><p>( ii ) संतति शिकारियों द्वारा शिकार होने की स्थिति से गुजरती है , इसके फलस्वरूप इनकी उत्तरजीविता जोखिमपूर्ण होती है अर्थात् सन्तानें कम संख्या में जीवित रह पाती हैं , अर्थात् निषेचन सुनिश्चित नहीं होता । </p><p>( iii ) बाह्य पर्यावरण में युग्मक व निषेचन से बना युग्मनज माध्यम की प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे उच्च ताप , प्रतिकूल रसायन दाब आदि से प्रभावित होते हैं । </p><p>( iv ) युग्मकों की सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं होता । अधिकांश युग्मक जलधारा में व्यर्थ बह जाते हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 13. जूस्पोर ( अलैंगिक चलबीजाणु ) तथा युग्मनज के बीच विभेद कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> : </p><p style="text-align: center;"><b>जूस्पोर ( चलबीजाणु ) तथा युग्मनज में विभेद </b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyVYhlvXZeiFX9qFLogOPCaVJ7Z6axKZXg65J9gbMB62e07MrFiOeEZ3jVmekw4vTW2G7GpRuIn5l4dMpIGlRY83toDDZNt-ZrKiRWkUulgDQvo9gWqI1cEsm1Q-lhLrChJwqE2oQYn7c/s2021/IMG_20210122_175331.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="जूस्पोर ( चलबीजाणु ) तथा युग्मनज में विभेद" border="0" data-original-height="1006" data-original-width="2021" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiyVYhlvXZeiFX9qFLogOPCaVJ7Z6axKZXg65J9gbMB62e07MrFiOeEZ3jVmekw4vTW2G7GpRuIn5l4dMpIGlRY83toDDZNt-ZrKiRWkUulgDQvo9gWqI1cEsm1Q-lhLrChJwqE2oQYn7c/s16000/IMG_20210122_175331.jpg" title="जूस्पोर ( चलबीजाणु ) तथा युग्मनज में विभेद" /></a></div><br /><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 14. युग्मकजनम एवं भ्रूणोद्भव के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> : </p><p><b>युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव में अन्तर ( Difference between Gametogenesis and Embryogenesis )</b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhnoeXEyCjcDVnZ1k8Iyo-IpfVzXHbuYFQAL-VMv5QwGqb-I4knXyRGILpx1q6kRxSQyPI3UxKlREWk9zhyphenhyphenJ_Ufs5sR38iDbLmeFgY_VWG0vqlJSRdhiYxIyRUce3aozQcHVe8J5tpmH80/s2025/IMG_20210122_175403.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव में अन्तर ( Difference between Gametogenesis and Embryogenesis )" border="0" data-original-height="776" data-original-width="2025" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhnoeXEyCjcDVnZ1k8Iyo-IpfVzXHbuYFQAL-VMv5QwGqb-I4knXyRGILpx1q6kRxSQyPI3UxKlREWk9zhyphenhyphenJ_Ufs5sR38iDbLmeFgY_VWG0vqlJSRdhiYxIyRUce3aozQcHVe8J5tpmH80/s16000/IMG_20210122_175403.jpg" title="युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव में अन्तर ( Difference between Gametogenesis and Embryogenesis )" /></a></b></div><p></p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 15. एक पुष्य में निवेचन - पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> : <u><b>पुष्प में निषेधन - पश्च परिवर्तन ( Post fertilization changes in a flower )</b></u> - निषेचन के फलस्वरूप बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फलावरण ( pericarp ) का निर्माण होता है । बाह्य दलपत्र ( sepals ) , दलपत्र ( petals ) तथा पुंकेसर सूखकर गिर जाते हैं । युग्मनज ( zygote ) विभाजन व विभेदन द्वारा भ्रूण ( embryo ) में बदल जाता है । अण्डाशय की भिति - फलभित्ति बनाती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 16. एक द्विलिंगी पुष्प क्या है ? अपने आस - पास से पाँच द्विलिंगी पुष्यों को एकत्र कीजिए और अपने शिक्षक की सहायता से इनके सामान्य ( स्थानीय ) एवं वैज्ञानिक नाम पता कीजिए । </h3><p><b>उत्तर :</b> <b><u>द्विलिंगी पुष्प ( Bisexual flower )</u></b> - जब पुष्प में नर जननांग पुमंग ( androecium ) तथा मादा जननांग जायांग ( gynoecium ) दोनों उपस्थित होते हैं तो पुष्प द्विलिंगी ( bisexual ) कहलाता है । सामान्यतया समीपवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाले द्विलिंगी पुष्प निम्नवत् है ; जैसे --</p><p>( i ) सरसों - बेसिका कैम्पेस्ट्रिस ( Brassica campestris ) </p><p>( ii ) मूली - रैफेनस सैटाइवस ( Raphanus sativus ) </p><p>( iii ) मटर - पाइसम सैटाइवम ( Pisum sativum ) </p><p>( iv ) सेम - डॉलीकोस लबलब ( Dotichos lablab ) </p><p>( v ) अमलतास - केसिया फिस्टुला ( Cassia fistula ) </p><p>( vi ) गुड़हल - हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस ( Hibiscus rosa sinensis ) </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 17. किसी भी कुकुरबिट पादप के कुछ पुष्यों की जाँच कीजिए और पुंकेसरी व स्त्रीकेसरी पुष्पों को पहचानने की कोशिश कीजिए । क्या आप अन्य एकलिंगी पौधों के नाम जानते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> : कुकरबिटेसी कुल के पादप अर्थात् कुकरबिट लौकी , कडू , खीरा , करेला , ककड़ी आदि हैं । कुकुरबिट पुष्प एकलिंगी होते हैं । नर पुष्प में अण्डप ( carpel ) अनुपस्थित होता है । मादा पुष्प में पुंकेसर ( stamens ) अनुपस्थित होता है । नर पुष्प <b>पुंकेसरी ( staminate ) </b>तथा मादा पुष्प <b>स्त्रीकेसरी ( pistillate )</b> कहलाते हैं । </p><p>पौधे प्राय : उभयलिंगाश्रयी ( monoecious ) होते हैं । नर व मादा पुष्प एक ही पौधे पर पाए जाते हैं । </p><p>पुंकेसर सिनएंड्रस ( Synandrous ) अवस्था प्रदर्शित करते है अर्थात् सभी पुंकेसरों के पुतन्तु व परागकोश आपस में जुड़े होते हैं । जायांग त्रिअण्डपी होता है , इसमें भित्तीय बीजाण्डन्यास पाया जाता है । अण्डाशय ऊर्ध्ववर्ती होता है । </p><p>K<span style="font-size: xx-small;">5</span> C<span style="font-size: xx-small;">5</span> A<span style="font-size: xx-small;">(5)</span> G<span style="font-size: xx-small;">0</span></p><p>K<span style="font-size: xx-small;">5</span> C<span style="font-size: xx-small;">5</span> A<span style="font-size: xx-small;">0</span> <u>G</u><span style="font-size: xx-small;">3</span></p><p><b>अन्य एकलिंगी पुष्प वाले पौधे-- </b></p><p>( i ) मक्का - जिआ मेज ( Zea mays ) एकलिंगी किन्तु उभयलिंगाश्रयी </p><p>( ii ) पपीता - कैरिका पपाया ( Carica papaya ) एकलिंगाश्रयी । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 18. अण्डप्रजक प्राणियों की सन्तानों का उत्तरजीवन ( सरवाइवल ) सजीवप्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमयुक्त क्यों होता है ? व्याख्या कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> : अण्डप्रजक प्राणियों का जीवन सजीवप्रजक प्राणियों अर्थात् शिशु को जन्म देने वाले प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमपूर्ण होता है क्योंकि मछली व उभयचर प्राणि अनिषेचित अण्डे देते हैं । युग्मक संलयन जल में होता है । युग्मकों को न सिर्फ परभक्षियों के शिकार होने का खतरा होता है अपितु यह प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे उच्च ताप , प्रतिकूल pH , दाब , रसायन आदि से भी प्रभावित होते हैं । अनेक युग्मक तीव्र जलधारा में बह जाते हैं । </p><p>सरीसृप व पक्षी वर्ग के जन्तु निषेचित अण्डे देते हैं जो कैल्सियम कार्बोनेट के खोल से ढके होते हैं । लेकिन इन अण्डों में भी विकसित हो रहा भ्रूण विपरीत पर्यावरणीय परिस्थितियों व परभक्षियों का आसानी से शिकार हो सकता है । सजीवप्रजक प्राणियों में निषेचन व भ्रूण का विकास मादा जन्तु के शरीर के अन्दर होता है । </p><p>अतः भ्रूण की सुरक्षा सुनिश्चित होती है । साथ ही भ्रूण को मादा से पर्याप्त पोषण भी मिलता रहता है । अण्डे की सुरक्षा हर समय सुनिश्चित नहीं की जा सकती क्योंकि अण्डप्रजक प्राणियों को भोजन की तलाश में अण्डों से काफी दूर जाना पड़ सकता है । इसके विपरीत सजीवप्रजक प्राणियों का भ्रूण मादा के गर्भ में पलने के कारण हर समय सुरक्षित रहता है ।</p><p><br /></p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको 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href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEio0E6wMyACnL61QJ75aFXGFaIiJtbBeowR5g1G_6Cm77vnUBEmsVfc6mbmbi8q6ZUxm-LOnkqBFP4b6X8m5HMb-37LtUvKMzvq1uJTBC0QLR6xxCLjSOa4Z723yCSowA0ZrVWwnxLOJN2ZTYwf0Z4K-_1dLxDCe8B0dWHWE-Pg8Ote2sl1x4fr0Mk=s2048" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 9 science notes chapter 7 Diversity in Living Organisms (जीवित जीवों में विविधता)" border="0" data-original-height="1781" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEio0E6wMyACnL61QJ75aFXGFaIiJtbBeowR5g1G_6Cm77vnUBEmsVfc6mbmbi8q6ZUxm-LOnkqBFP4b6X8m5HMb-37LtUvKMzvq1uJTBC0QLR6xxCLjSOa4Z723yCSowA0ZrVWwnxLOJN2ZTYwf0Z4K-_1dLxDCe8B0dWHWE-Pg8Ote2sl1x4fr0Mk=s16000" title="Class 9 science notes chapter 7 Diversity in Living Organisms (जीवित जीवों में विविधता)" /></a></div><br /><p style="clear: both; text-align: left;"><br /></p><p></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">अध्याय 7 जीवों में विविधता [ Diversity in Living Organisms ] </span>महत्त्वपूर्ण तथ्य </h2><p></p><ul style="text-align: left;"><li>संसार में पाये जाने वाले विभिन्न जीवों के बीच पायी जाने वाली विभिन्नता ही <b>जीवों की विविधता</b> कहलाती है । </li><li>विभिन्न जीवों को उनकी समानताओं एवं विभिन्नताओं के आधार पर छोटे - बड़े समूहों में बाँटना उनका <b>वर्गीकरण</b> कहलाता है । </li><li>वर्गीकरण का उद्देश्य अध्ययन को सरल बनाना तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्धों को स्पष्ट करना है । </li><li>शरीर की बनावट के दौरान जो लक्षण पहले दिखाई देते हैं उन्हें <b>मूल लक्षण</b> कहते हैं ।</li><li>सन् 1859 में चार्ल्स डार्विन ने अपनी पुस्तक ' <b>दि ओरिजिन ऑफ स्पीशीज </b>' में <b>जैव विकास की अवधारणा</b> दी ।</li><li>व्हीटेकर ने <b>वर्गीकरण की पाँच जगत प्रणाली </b>प्रस्तुत की जिसमें संसार में पाये जाने वाले जीवों को पाँच जगतों - मोनेरा , प्रोटिस्टा , फंजाई , प्लांटी तथा एनीमेलिया में बाँटा गया है ।</li><li>जीवों के विभिन्न समूहों को उनके गुणों तथा विकास के आधार पर एक निश्चित शृंखला में व्यवस्थित करना , <b>पदानुक्रम ( Hierarchy ) </b>कहलाता है । ' वर्गीकरण की आधारभूत इकाई जाति ( स्पीशीज ) है । </li><li>कैरोलस लीनियस ( कार्ल वॉन लिने ) ने अपनी पुस्तक ' <b>सिस्टेमा नेचुरी</b> ' में जीवों के आधुनिक वर्गीकरण की नींव डाली । इन्होंने जीवों के <b>नामकरण की द्विनाम पद्धति</b> भी दी , जिसमें जीवों का नाम दो शब्दों से मिलकर बना होता है । इसमें पहला शब्द वंश एवं दूसरा जाति को निरूपित करता है । </li><li><b>मोनेरा</b> के अन्तर्गत सभी प्रोकैरियोटिक जीवों को रखा गया ; जैसे - जीवाणु , नील - हरित शैवाल , माइकोप्लाज्मा आदि । </li><li><b>प्रोटिस्टा</b> के अन्तर्गत एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों को रखा गया ; जैसे - अमीबा , पैरामीशियम आदि । </li><li><b>फंजाई</b> के अन्तर्गत ऐसे विषमपोषी यूकैरियोटिक जीवों को रखा गया जिनकी कोशिका भित्ति काइटिन या फंगल सेल्यूलोज की बनी थी । जैसे - यीस्ट , मशरूम आदि । </li><li><b>प्लांटी</b> के अन्तर्गत बहुकोशिकीय , स्वपोषी , यूकैरियोटिक जीवों को रखा गया ; जैसे - विभिन्न हरे पौधे । </li><li><b>एनीमेलिया</b> के अन्तर्गत बिना कोशिका भित्ति वाले , बहुकोशिकीय , विषमपोषी , यूकैरियोटिक जीवों को रखा गया ; जैसे विभिन्न जन्तु । जन पौधों को पाँच वर्गों - थैलोफाइटा , ब्रायोफाइटा , टेरिडोफाइटा , जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म में बाँटा गया । </li><li><b>ब्रायोफाइटा</b> को पादप वर्ग का <b>उभयचर </b>कहा जाता है । </li><li>ऐसे पौधे जिनमें जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा इनमें बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती , <b>क्रिस्टोगैम</b> कहलाते हैं । जैसे - थैलोफाइटा , ब्रायोफाइटा और टेरिडोफाइटा वर्ग के पौधे । </li><li>ऐसे पौधे जिनमें जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रक्रिया के बाद बीज उत्पन्न करते हैं , <b>फैनरोगैम</b> कहलाते हैं । जैसे - जिम्नोस्पर्म एवं एन्जियोस्पर्म । </li><li><b>जिम्नोस्पर्म</b> नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे हैं जबकि एन्जियोस्पर्म में बीज फल के अन्दर बन्द होते हैं । </li><li><b>एन्जियोस्पर्म</b> पौधे बीजपत्रों की संख्या के आधार पर दो प्रकार - एकबीजपत्री तथा द्विबीजपत्री होते हैं । </li><li><b>जन्तुओं को दस संघों में बाँटा </b>गया है - पोरीफेरा , सीलेण्ट्रेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनीलिडा , आर्थोपोडा , मोलस्का , इकाइनोडर्मेटा , प्रोटोकॉर्डेटा तथा वर्टीब्रेटा । </li></ul><p></p><h2 style="text-align: left;">Class 9 science chapter 7 Diversity in Living Organisms solution in hindi</h2><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या एक देसी गाय जर्सी गाय जैसी दिखती है। </h3><p><b>उत्तर</b> - नहीं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या सभी देसी गायें एक जैसी दिखती हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - नहीं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या हम देसी गायें के झुण्ड से जर्सी गाय को पहचान सकते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - हाँ । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न - पहचानने का हमारा आधार क्या होगा ? </h4><p><b>उत्तर</b> - देशी गाय का शरीर हल्का व छरहरा होता है । इसका टाँट ऊँचा एवं अयन कसा हुआ होता है । जबकि जर्सी गाय का शरीर भारी व ढीला होता है । इसका टाँट सपाट तथा अयन बड़ा एवं लटका हुआ होता है । </p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न - चने , मटर , गेहूँ ,मक्का, इमली मे से कौन सी जड़ें मूसला हैं और कौन सी रेशेदार ? </h4><p><b>उत्तर</b> - चने , मटर एवं इमली में मूसला जड़ें हैं तथा गेहूँ एवं मक्का में रेशेदार । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - किन पत्तियों में समानान्तर अथवा जालिकावत् शिरा विन्यास होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - गेहूँ एवं मक्का की पत्तियों में समानान्तर शिरा विन्यास है जबकि चना , मटर एवं इमली की पत्तियों में जालिकावत् शिरा विन्यास ।</p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न - चने , मटर , गेहूँ ,मक्का, इमली के पौधों के फूलों में कितनी पंखुड़ियाँ हैं ? </h4><p><b>उत्तर</b>- चना , मटर एवं इमली के प्रत्येक फूल में 5-5 पंखुड़ियाँ हैं जबकि गेहूँ एवं मक्का के फूल में लोडीक्यूल्स रूप में दो - दो पंखुड़ियाँ हैं । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न - एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री पौधों के दो लक्षण लिखिए।</h4><p><b>उत्तर-</b> ( 1 ) एकबीजपत्री पौधों की पत्तियाँ समद्विपाश्विक प्रकार की होती हैं जबकि द्विबीजपत्री पौधों की पृष्ठधारी प्रकार की । </p><p>( 2 ) सामान्यतः एकबीजपत्री पौधों की पत्तियों की ऊपरी एवं निचली दोनों सतहों पर स्टोमेटा उपस्थित होते हैं जबकि द्विबीजपत्री पौधों की केवल निचली सतह पर स्टोमेटा पाये जाते हैं ।</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न - किन्हीं पाँच जन्तुओं और पौधों के वैज्ञानिक नाम का पता लगाइए । क्या इनके वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता है ? </h4><p><b>उत्तर - </b></p><p><b>जन्तु </b></p><p>1. मेढ़क - राना टिग्रिना </p><p>2. बाघ - पैन्थेरा टाइग्रिस </p><p>3. मोर - पैवो क्रिस्टेटस </p><p>4. शुतुरमुर्ग - स्टुथियो कैमेलस </p><p>5. हाथी - एलिफस मैक्सीमस </p><p><b>पौधे</b> </p><p>1. गेहूँ - ट्रिटिकम एस्टाइवम </p><p>2. मक्का - जीआ मेज </p><p>3. सरसों - बॅसिका कैम्पेस्ट्रिस </p><p>4. मटर - पाइसम सैटाइवम </p><p>5. मूली - रेफेनस सैटाइवस </p><p>वैज्ञानिक नामों और सामान्य नामों में कोई समानता नहीं है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . हम जीवधारियों का वर्गीकरण क्यों करते हैं ।</h3><p><b>उत्तर</b> - अध्ययन को सरल बनाने तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए जीवधारियों का वर्गीकरण करते हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . अपने चारों ओर फैले जीव रूपों की विभिन्नता के तीन उदाहरण दें ?</h3><p><b>उत्तर</b> - चिड़िया , छिपकली एवं चूहा । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जीवों के वर्गीकरण के लिए सर्वाधिक मूलभूत लक्षण क्या हो सकता है ? ( a उनका निवास स्थान , ( b उनकी कोशिका संरचना । </h3><p><b>उत्तर</b>- ( b ) उनकी कोशिका संरचना । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए किस मूल लक्षण को आधार बनाया गया है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - जीवों के प्रारम्भिक विभाजन के लिए कोशिका की प्रकृति ( कोशिकीय संरचना एवं कार्य ) को आधार माना गया है । ऐसी कोशिकाएँ जिनमें झिल्ली युक्त केन्द्रक एवं कोशिकांग पाये जाते हैं , उसे यूकैरियोटिक कोशिका तथा जिसमें इनका अभाव होता है , <b>प्रोकैरियोटिक कोशिका</b> कहते हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . किस आधार पर जन्तुओं एवं वनस्पतियों को एक - दूसरे से भिन्न वर्ग में रखा जाता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - प्रकाश - संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बनाने की क्षमता रखने वाले जीवों को वनस्पति वर्ग में तथा अन्य जीवों से अपना भोजन ग्रहण करने वाले जीवों को जन्तु वर्ग में रखा गया है । इसके अतिरिक्त गमन की सामर्थ्य पौधों एवं जन्तुओं को एक - दूसरे से विभेदित करती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . आदिम जीव किन्हें कहते हैं ? ये तथाकथित उन्नत जीवों से किस प्रकार भिन्न हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - ऐसे जीव जिनकी शारीरिक संरचना साधारण होती है तथा उसमें प्राचीन काल से लेकर आज तक कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है , आदिम जीव कहलाते हैं । जबकि उन्नत जीवों की शारीरिक संरचना जटिल होती है तथा इनमें अपने वातावरण के अनुसार अनेक परिवर्तन हो चुके होते हैं । उदाहरण के लिए अमीबा की संरचना केंचुए की तुलना में आदिम होती है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . क्या उन्नत जीव और जटिल जीव एक होते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b>- हाँ , यह सत्य है कि उन्नत जीवों की शारीरिक संरचना जटिल होती है । चूँकि विकास के दौरान जीवों में जटिलता की सम्भावना बनी रहती है अत : समय के साथ उन्नत जीवों को जटिल जीव कहा जा सकता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न- मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण मापदण्ड क्या हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - मोनेरा अथवा प्रोटिस्टा जैसे जीवों के वर्गीकरण का मापदण्ड उनमें संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांगों की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति है । मोनेरा के सदस्यों में संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांगों का अभाव होता है । ये प्रोकैरियोट्स कहलाते हैं ; जैसे - जीवाणु , नील - हरित शैवाल आदि । जबकि प्रोटिस्टा के सदस्यों में संगठित केन्द्रक एवं झिल्ली युक्त कोशिकांग पाये जाते हैं । ये यूकैरियोटिक संरचना प्रदर्शित करते हैं ; जैसे - डाइएटम , प्रोटोजोआ आदि । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . प्रकाश - संश्लेषण करने वाले एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव को आप किस जगत् में रखेंगे ? </h3><p><b>उत्तर</b> - प्रकाश - संश्लेषण करने वाले एककोशिक यूकैरियोटी जीव को जगत् प्रोटिस्टा में रखा गया है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में किस समूह में सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम जीवों को और किस समूह में सबसे ज्यादा संख्या में जीवों को रखा जायेगा ? </h3><p><b>उत्तर</b> - वर्गीकरण के विभिन्न पदानुक्रमों में जाति के अन्तर्गत सर्वाधिक समान लक्षण वाले सबसे कम संख्या में जीवों को रखा गया है जबकि जगत् के अन्तर्गत सबसे अधिक संख्या में । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . सरलतम पौधों को किस वर्ग में रखा गया है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - पौधों के वर्ग थैलोफाइटा में सरलतम पौधों को रखा गया है । ये पौधे जड़ , तना तथा पत्तियों में विभेदित नहीं होते हैं ।</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . टेरिडोफाइट और फैनरोगैम में क्या अन्तर है ।</h3><p><b>उत्तर</b> - टेरिडोफाइट्स में नग्न भ्रूण पाये जाते हैं जो स्पोर्स कहलाते हैं । इन पौधों में जननांग अप्रत्यक्ष होते हैं तथा बीज उत्पन्न करने की क्षमता नहीं होती जबकि फैनरोगैम्स में जनन ऊतक पूर्ण विकसित एवं विभेदित होते हैं तथा जनन प्रक्रिया के पश्चात् बीज उत्पन्न होते हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जिम्नोस्पर्म और एन्जियोस्पर्म एक - दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - जिम्नोस्पर्स नग्न बीज उत्पन्न करने वाले पौधे हैं । इनमें पुष्प उत्पन्न नहीं होते हैं जबकि एन्जियोस्पर्स में बीज फल के अन्दर बन्द रहते हैं । बीजों का विकास अण्डाशय के अन्दर होता है जो बाद में फल बन जाता है । इन पौधों में पुष्प भी उत्पन्न होते हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . पोरीफेरा और सीलेण्ट्रेटा वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है ? </h3><p><b>उत्तर</b>- पोरीफेरा वर्ग के जन्तु छिद्रयुक्त , अचल जीव हैं जो किसी आधार से चिपके रहते हैं । इनमें कोशिकीय स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है जबकि सीलेण्ट्रेटा वर्ग के जन्तु एकाकी तथा समूह दोनों में ही पाये जाते हैं । इनका शारीरिक संगठन ऊतकीय स्तर का होता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . एनीलिडा जन्तु आर्थोपोडा के जन्तुओं से किस प्रकार भिन्न हैं ?</h3><p><b>उत्तर</b>- ( 1 ) एनीलिडा के जन्तुओं का शरीर अनेक समान खण्डों में बँटा होता है जबकि आर्थोपोडा के जन्तुओं का शरीर पाये जाते हैं । शरीर पर प्रायः काइटिन का बना कठोर कंकाल ।</p><p>( 2 ) एनीलिडा के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तन्त्र बन्द पाया जाता है । प्रकार का होता है । अर्थात् रक्त बन्द नलियों में बहता है जबकि आर्थोपोडा के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तन्त्र खुला प्रकार का होता है अर्थात् रक्त देहगुहा में भरा रहता है। </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जल - स्थलचर और सरीसृपों में क्या अन्तर है ? </h3><p><b>उत्तर</b>- ( 1 ) जल - स्थलचर जल तथा स्थल दोनों पर रहने के लिए अनुकूलित होते हैं । परन्तु अण्डे देने के लिए जल की आवश्यकता होती है जबकि सरीसृप सामान्यतः स्थल पर रहते हैं लेकिन जल में भी रह सकते हैं , लेकिन इन्हें अपने अण्डे स्थल पर आकर ही देने होते हैं । </p><p>( 2 ) जल - स्थलचरों की त्वचा पर शल्क नहीं पाये जाते । इस पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं जबकि सरीसृपों का शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है । </p><p>( 3 ) जल स्थलचरों में श्वसन क्लोम या त्वचा या फेफड़ों द्वारा होता है जबकि सरीसृपों में श्वसन फेफड़ों द्वारा होता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . पक्षी वर्ग और स्तनी वर्ग के जन्तुओं में क्या अन्तर है ? </h3><p><b>उत्तर</b>- ( 1 ) पक्षी वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं जो उड़ने में सहायक हैं जबकि स्तनी वर्ग के जन्तुओं में अग्रपाद हाथों या पैरों के रूप में होते हैं तथा वस्तुओं को पकड़ने या दौड़ने में सहायक हैं । </p><p>( 2 ) पक्षी वर्ग के जन्तुओं का शरीर परों से ढका होता है जबकि स्तनी वर्ग के जन्तुओं के शरीर पर बाल पाये जाते हैं ।</p><p>( 3 ) पक्षी वर्ग के जन्तु अण्डे देते हैं जबकि स्तनी वर्ग के जन्तु शिशुओं को जन्म देते हैं । हालांकि कुछ स्तनी ; जैसे - इकिड्ना एवं प्लेटिपस अण्डे भी देते हैं । </p><p>( 4 ) स्तनी वर्ग के जन्तुओं में बाह्य कर्ण तथा दुग्ध ग्रन्थियाँ भी पायी जाती हैं जबकि इन संरचनाओं का पक्षी वर्ग के जन्तुओं अभाव होता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जीवों के वर्गीकरण से क्या लाभ है ।</h3><p><b>उत्तर</b>- ( 1 ) जीवों के वर्गीकरण से उनका अध्ययन सरल बनता है तथा विभिन्न जीवों के मौलिक सम्बन्ध सरलता से स्पष्ट हो जाते हैं । </p><p>( 2 ) वर्गीकरण जीवों की विविधता को स्पष्ट करने में सहायक है ।</p><p>( 3 ) वर्गीकरण द्वारा किसी समूह विशेष का अध्ययन करने पर उस समूह के सभी जीवों के सामान्य लक्षणों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है । </p><p>( 4 ) इसके द्वारा ही जैव विकास को समझने में सहायता मिलती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों में से आप किस लक्षण का चयन करेंगे ? </h3><p><b>उत्तर</b> - वर्गीकरण में पदानुक्रम निर्धारण के लिए दो लक्षणों से हम आधारभूत लक्षण का चयन करेंगे । उदाहरण के लिए पौधे जन्तुओं से गमन , क्लोरोप्लास्ट तथा कोशिका भित्ति की अनुपस्थिति के कारण भिन्न हैं । लेकिन इनमें से केवल गमन ही आधारभूत लक्षण माना जायेगा जो पौधों तथा जन्तुओं को आसानी से विभेदित कर सकता है । ऐसा इस कारण है कि पौधों में गमन के अभाव में अनेक संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं , जैसे सुरक्षा हेतु कोशिका भित्ति की उपस्थिति तथा भोजन निर्माण हेतु क्लोरोप्लास्ट की उपस्थिति । अत : ये सभी लक्षण गमन की पूर्ति के लिए ही बने हैं । इसलिए गमन ही आधारभूत लक्षण है । अत इसका चयन पदानुक्रम निर्धारण के लिए उचित है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जीवों के पाँच जगत् में वर्गीकरण के आधार की व्याख्या कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> - हीटेकर ने पाँच जगत् वर्गीकरण प्रतिपादित किया । उनके द्वारा प्रतिपादित पाँच जगत् हैं - मोनेरा , प्रोटिस्टा , फंजाई , प्लांटी तथा एनीमेलिया । उनके ये समूह कोशिकीय संरचना , पोषण के स्रोत और तरीके तथा शारीरिक संगठन के आधार पर बनाये गये ।</p><p>( 1 ) सबसे पहले उन्होंने संगठित केन्द्रक तथा झिल्लीयुक्त कोशिकांगों के आधार पर जीवों को दो भागों में बाँटा - प्रोकैरियोट्स तथा यूकैरियोट्स । यह विभाजन जगत् मोनेरा का आधार बना जिसके अन्तर्गत सभी प्रोकैरियोटस को रखा गया है । </p><p>( 2 ) इसके बाद यूकैरियोट्स को एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय के आधार पर बाँटा गया । एककोशिकीय यूकैरियोट्स को प्रोटिस्टा के अन्तर्गत रखा गया तथा बहुकोशिकीय यूकैरियोट्स के अन्तर्गत फंजाई , प्लांटी तथा एनीमेलिया को सम्मिलित किया । </p><p>( 3 ) अब इनमें से एनीमेलिया को कोशिका भित्ति की अनुपस्थति के कारण पृथक् कर लिया गया । </p><p>( 4 ) शेष बचे फंजाई एवं प्लांटी को पोषण विधि के आधार पर अलग कर दिया गया । फंजाई में विषमपोषी पोषण पाया जाता है जबकि प्लांटी में स्वपोषी पोषण । इस प्रकार पाँच जगत् वर्गीकरण की आधारशिला रखी गई.</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . पादप जगत् के प्रमुख वर्ग कौन - से हैं ? इस वर्गीकरण का क्या आधार है ? </h3><p>उत्तर- पादप जगत् के प्रमुख वर्ग हैं - थैलोफाइटा , ब्रायोफाइटा , टेरिडोफाइटा , जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म । इस वर्गीकरण में प्रथम स्तर का वर्गीकरण इस तथ्य पर आधारित है कि पादप शरीर के मुख्य घटक पूर्णरूपेण विकसित तथा विभेदित हैं अथवा नहीं । वर्गीकरण के अगले स्तर में पादप शरीर में जल और अन्य पदार्थों को संवहन करने वाले विशेष ऊतकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति है । तत्पश्चात् यह देखा गया कि पौधों में बीज धारण की क्षमता है या नहीं । यदि बीज धारण की क्षमता है तो क्या बीज फल के अन्दर विकसित हुए हैं या नहीं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - पौधों के वर्गीकरण का आधार है ।</p><p>( 1 ) विभेदित / अविभेदित पादप शरीर । </p><p>( 2 ) संवहनी ऊतकों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति । </p><p>( 3 ) बीजों की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति । </p><p>( 4 ) नग्न बीज अथवा फल के अन्दर बन्द बीज । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है ?" border="0" data-original-height="1305" data-original-width="845" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEharHg0xncRaUgMGPsk5cDzyWvog-kAfn8h6qr01oAUmYEPrQAeq8YT9ojVoIXOLFoqtSeOZ7_DiMbOofLwxgynGnMrzIJo3bXrvfSPB0QRUCq_iG3ks-SbY2LHdTSmseJ4_wJTZNAUgiQ/s16000/IMG_20210101_110805.jpg" title="जन्तुओं और पौधों के वर्गीकरण के आधारों में मूल अन्तर क्या है ?" /></div><p>नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है ( 1 ) कोशिकीय / ऊतक स्तर का शरीर गठन , ( 2 ) देहगुहा की उपस्थिति / अनुपस्थिति , ( 3 ) शरीर की सममिति का प्रकार , नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है । ( 4 ) देहगुहा के विकास के प्रकार , ( 5 ) वास्तविक देहगुहा के प्रकार । उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन - कॉडेटा को संघों - पोरीफेरा , सीलेण्ट्रेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनीलिडा , आर्थोपोडा . मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है ( 1 ) कोशिकीय / ऊतक स्तर का शरीर गठन , ( 2 ) देहगुहा की उपस्थिति / अनुपस्थिति , ( 3 ) शरीर की सममिति का प्रकार , नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है । ( 4 ) देहगुहा के विकास के प्रकार , ( 5 ) वास्तविक देहगुहा के प्रकार । उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन - कॉडेटा को संघों - पोरीफेरा , सीलेण्ट्रेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनीलिडा , आर्थोपोडा . मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है ।" border="0" data-original-height="1016" data-original-width="1923" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEidL3nSusNnUiiijRGWxigKKBTkLeB0gwjUyo1YUga2n3zq76u3ysXNBVeN8XUxx2lTHKOD6lOMZ7WzpvG_4iCVC4m7Ydhuth0rhnDWyh8bEe0_BUR0sOc-v3POHag-f1UlC2M7UKZBuB8/s16000/IMG_20210101_111313.jpg" title="नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है ( 1 ) कोशिकीय / ऊतक स्तर का शरीर गठन , ( 2 ) देहगुहा की उपस्थिति / अनुपस्थिति , ( 3 ) शरीर की सममिति का प्रकार , नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है । ( 4 ) देहगुहा के विकास के प्रकार , ( 5 ) वास्तविक देहगुहा के प्रकार । उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन - कॉडेटा को संघों - पोरीफेरा , सीलेण्ट्रेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनीलिडा , आर्थोपोडा . मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है ।" /></div><p></p><p> कॉर्डेटा के सभी सदस्यों में नोटोकॉर्ड पायी जाती है । कुछ जन्तुओं जैसे बैलेनोग्लोसस , एम्फिऑक्सस एवं हर्डमानिया में नोटोकार्ड या तो अनुपस्थित होती है या पूरी लम्बाई में नहीं होती , इस कारण इन जन्तुओं को एक पृथक् उपसंघ - प्रोटोकॉर्डेटा में रखा गया है तथा शेष सभी जन्तु जिनमें पूर्ण विकसित नोटोकार्ड होती है , उप - संघ - कशेरुकी के अन्तर्गत रखे गये हैं । उपवर्ग कशेरुकी को पाँच वर्गों - मत्स्य , जल - स्थलचर , सरीसृप , पक्षी तथा स्तनधारी में विभाजित किया गया है ।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है ( 1 ) कोशिकीय / ऊतक स्तर का शरीर गठन , ( 2 ) देहगुहा की उपस्थिति / अनुपस्थिति , ( 3 ) शरीर की सममिति का प्रकार , नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है । ( 4 ) देहगुहा के विकास के प्रकार , ( 5 ) वास्तविक देहगुहा के प्रकार । उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन - कॉडेटा को संघों - पोरीफेरा , सीलेण्ट्रेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनीलिडा , आर्थोपोडा . मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है ।" border="0" data-original-height="913" data-original-width="1973" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgi9SVHRFgn97P0OqIytdhVdKs4PTzS5xvT1jcohknYAqAUyXr1re4ZvZG-049biwuEH1cRdyf3pVUZ-STZXj2E4QxjCGyYNOKOPFwERj-ps7b4j0Dbsxu9Np37Xn7HmGgFwapqfhfNHA/s16000/IMG_20210101_111534.jpg" title="नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है ( 1 ) कोशिकीय / ऊतक स्तर का शरीर गठन , ( 2 ) देहगुहा की उपस्थिति / अनुपस्थिति , ( 3 ) शरीर की सममिति का प्रकार , नॉन - कार्डेटा में नोटोकार्ड अनुपस्थित होती है । इनको निम्न लक्षणों के आधार पर पुन : उपवर्गों में बाँटा गया है । ( 4 ) देहगुहा के विकास के प्रकार , ( 5 ) वास्तविक देहगुहा के प्रकार । उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर नॉन - कॉडेटा को संघों - पोरीफेरा , सीलेण्ट्रेटा , प्लेटीहेल्मिन्थीज , निमेटोडा , एनीलिडा , आर्थोपोडा . मोलस्का तथा इकाइनोडर्मेटा में बाँटा गया है ।" /></div><h3 style="text-align: left;">प्रश्न . वर्टीब्रेटा ( कशेरुक प्राणी ) को विभिन्न वर्गों में बाँटने के आधार की व्याख्या कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> - वर्टीब्रेटा को पाँच वर्गों - मत्स्य , जल - स्थल चर , सरीसृप , पक्षी तथा स्तनधारी में बाँटा गया है । </p><p>( 1 ) <b>वर्ग - मत्स्य</b> - इस वर्ग में जीवों का शरीर धारारेखीय होता है । श्वसन क्लोम द्वारा होता है । ये असमतापी जीव हैं जिनका हृदय द्विकक्षीय होता है । जैसे - विभिन्न प्रकार की मछलियाँ । </p><p>( 2 ) <b>वर्ग - जल</b> - स्थलचर - ये जीव जल एवं स्थल दोनों रहने के लिए अनुकूलित होते हैं । त्वचा चिकनी होती है जिस पर श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं । इनका हृदय कक्षीय होता है । अण्डे देने के लिए जल आवश्यक होता है ।</p><p>( 3 ) <b>वर्ग - सरीसृप</b> - इनका शरीर शल्कों द्वारा ढका होता है । इनका हृदय सामान्यत : त्रिकक्षीय ( मगरमच्छ का चार कक्षीय ) होता है । सामान्यतः स्थल पर रहते हैं लेकिन जल में भी रह सकते हैं । किन्तु अण्डे स्थल पर ही देते हैं । उदा . - छिपकली , सर्प , कछुए आदि । </p><p>( 4 ) <b>वर्ग - पक्षी</b> - इनका शरीर परों से ढका होता है । अग्रपाद पंखों में रूपान्तरित होते हैं । हृदय चार कक्षीय होता है । उदा . - विभिन्न पक्षी ; जैसे - कबूतर , मैना आदि । </p><p>( 5 ) <b>वर्ग - स्तनी</b> - शरीर पर बाल पाये जाते हैं । शिशुओं को जन्म देते हैं । इकिड्ना तथा प्लेटिपस अण्डे देते हैं । बाह्य कर्ण होते हैं । नवजात के पोषण हेतु स्तन ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं । हृदय चार कक्षीय होता है । उदा . - गाय , बकरी , मनुष्य आदि ।</p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “<a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html"><b>NCERT Solution</b> <b>Variousinfo</b></a>” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में <b>Bookmark (Ctrl + D) </b>करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी <b><span style="color: red;">Subscribe</span></b> करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे <b><span style="color: #3d85c6;">whatsapp , Facebook</span> या <span style="color: #3d85c6;">Twitter</span></b> जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद ! </p><p><br /></p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-9239546262404003772021-11-03T20:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:47.834-08:00Class 9th science notes chapter 6 Tissue solution<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifUAAaURugoRJ51UPdHcsacUUNgkirljGf28oRNkMlLaH2D8D0psSucNV14A1K86GSjR9WCAvAnZm_RfsUzFWbd_FCJIEjXrFBK_Gx9PZPrxqAH42ZqU1B0BHrC0WhsOHFK34WyaEsJTk/s2048/PicsArt_12-29-08.05.43.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ncert solution Class 9 Science Chapter 6 Question answer in Hindi Class 9 Science Chapter 6 Extra Questions and Answers NCERT Class 9 Science Chapter 6 PDF download , CH 6 Science Class 9 Notes PDF Q Class 9 Chapter 5 the Tissues Class 9 Worksheet with Answers 9th class Science chapter 6 , NCERT Solutions for Class 9 Science Chapter 6 in hindi solution" border="0" data-original-height="1798" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEifUAAaURugoRJ51UPdHcsacUUNgkirljGf28oRNkMlLaH2D8D0psSucNV14A1K86GSjR9WCAvAnZm_RfsUzFWbd_FCJIEjXrFBK_Gx9PZPrxqAH42ZqU1B0BHrC0WhsOHFK34WyaEsJTk/s16000/PicsArt_12-29-08.05.43.jpg" title="Ncert solution Class 9 Science Chapter 6 Question answer in Hindi Class 9 Science Chapter 6 Extra Questions and Answers NCERT Class 9 Science Chapter 6 PDF download , CH 6 Science Class 9 Notes PDF Q Class 9 Chapter 5 the Tissues Class 9 Worksheet with Answers 9th class Science chapter 6 , NCERT Solutions for Class 9 Science Chapter 6 in hindi solution" /></a></b></div><b><br />Class 9 science chapter 6 Tissue solution in hindi:</b> <b>अध्याय 6 ऊतक [ Tissues ] NCERT </b>से लिया गया है। इस पोस्ट में ऊत्तकों से संबंधित जानकारी दी गई है जो कक्षा 9 वी के विद्यार्थी के लिए परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है । साथ ही <b>Sarkari Naukari</b> की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए भी महत्वपूर्ण है। <p></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT अध्याय 6 ऊतक [ Tissues ] महत्त्वपूर्ण तथ्य </span></h2><p></p><ul style="text-align: left;"><li>कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसकी उत्पत्ति , संरचना एवं कार्य समान हों , <b>ऊतक</b> कहलाता है।</li><li>पादप एवं जन्तु ऊतकों में स्पष्ट अन्तर पाया जाता है । पौधों के अधिकांश ऊतक मृत होते हैं परन्तु ये जीवित ऊतकों की भाँति ही यांत्रिक शक्ति प्रदान करते हैं । इसके विपरीत जन्तुओं के अधिकांश ऊतक जीवित ऊतक होते हैं । </li><li><b>पादप ऊतक</b> दो प्रकार के होते हैं - विभज्योतक तथा स्थायी ऊतक । </li><li><b>विभज्योतक</b> में ही विभाजन की क्षमता होती है । इसके विभाजन द्वारा पौधे की वृद्धि होती है । </li><li><b>स्थायी ऊतकों</b> में विभाजन की क्षमता नहीं होती । ये ऊतक विभज्योतक से ही बनते हैं । इन्हें सरल एवं जटिल ऊतक में बाँटा गया है ।</li><li><b>सरल ऊतकों</b> में पैरेन्काइमा , कॉलेन्काइमा तथा स्क्लेरेन्काइमा जबकि जटिल ऊतक में जाइलम एवं फ्लोएम आते हैं ।</li><li><b>जाइलम एवं फ्लोएम </b>को संवहन ऊतक भी कहते हैं क्योंकि ये विभिन्न पदार्थों का संवहन करते हैं । </li><li>कार्य के आधार पर जन्तु ऊतकों को निम्न प्रकारों में बाँटा गया है - एपिथीलियमी ऊतक , संयोजी ऊतक , पेशीय ऊतक तथा तंत्रिका ऊतक । </li><li>त्वचा , मुँह , आहारनली , रक्त वाहिनी नली का अस्तर , फेफड़ों की कूपिका , वृक्कीय नली आदि सभी एपिथीलियमी ऊतक से बने होते हैं ।</li><li>रक्त , अस्थि तथा उपास्थि संयोजी ऊतक के अन्तर्गत आते हैं । </li><li>दो अस्थियों को आपस में जोड़ने वाले संयोजी ऊतक ' <b>स्नायु ' ( ligament ) </b>कहलाते हैं । इसी प्रकार अस्थियों को माँसपेशियों से जोड़ने वाले संयोजी ऊतक को <b>कंडरा ( tendon ) </b>कहते हैं ।</li><li>पेशीय ऊतक में तीन प्रकार की पेशियाँ पायी जाती हैं- ( i ) रेखित पेशी , ( ii ) अरेखित पेशी , तथा ( iii ) हृदयक पेशी । जन्तुओं में चलन एवं गति पेशीय ऊतक के कारण ही होती है । </li><li>रेखित पेशियों को ऐच्छिक पेशियाँ भी कहते हैं क्योंकि ये हमारी इच्छा के अनुसार कार्य करती हैं , जबकि अरेखित पेशियों पर हमारी इच्छा शक्ति का नियन्त्रण नहीं होता , अत : उन्हें <b>अनैच्छिक पेशियाँ</b> भी कहते हैं । </li><li>तन्त्रिका ऊतक की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई <b>न्यूरॉन</b> कहलाती है । यह ऊतक शरीर के सभी अंगों के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करता है । </li></ul><p></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">NCERT SOLUTION CLASS 9TH SCIENCE QUESTION ANSWER IN HINDI</span></h2><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या सभी कोशिकाओं की संरचनाएँ समान हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - नहीं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - कितने प्रकार की कोशिकाओं को देखा जा सकता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - सामान्यत : तीन प्रकार की कोशिकाएँ दिखाई देती हैं- ( i ) पैरेन्काइमा , ( ii ) कॉलेन्काइमा , तथा ( ii ) स्क्लेरेन्काइमा </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या हम उन कारणों पर विचार कर सकते हैं कि कोशिकाओं के इतने प्रकार क्यों हैं ?</h3><p><b>उत्तर</b> - <b>पेरेन्काइमा कोशिकाएँ</b> - ये अण्डाकार या गोलाकार , पतली भित्ति वाली जीवित कोशिकाएँ हैं जो पौधों के मुलायम हिस्सों में पायी जाती हैं । दो कोशिकाओं के मध्य अन्तर कोशिकीय अवकाश होता है । इनका मुख्य कार्य भोजन संचय है । </p><p><b>कॉलेन्काइमा कोशिकाएँ</b> - ये भी जीवित कोशिकाएँ हैं जो अनियमित रूप से कोनों पर मोटी होती हैं । कोनों पर मोटी होने के कारण इनके अन्तरकोशिकीय अवकाश बहुत कम हो जाते हैं । ये पौधे को लचीला बनाती हैं । </p><p><b>स्क्लेरेन्काइमा कोशिकाएँ </b>- ये कोशिकाएँ मृत होती हैं ये लम्बी एवं पतली होती हैं लेकिन कोशिकाओं की भित्ति लिग्निन के जमा होने के कारण मोटी होती है । ये तने के संवहन बण्डल के पास के ऊतकों में पायी जाती हैं । ये पौधे के अंगों को दृढ़ता एवं कठोरता प्रदान करती हैं तथा उसे यांत्रिक सहारा देती है ।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;"> ( C ) पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर • प्रश्न श्रृंखला # 01 ( पृष्ठ संख्या 77 )</span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. ऊतक क्या है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसकी उत्पत्ति , संरचना एवं कार्य समान हों , ऊतक कहलाता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. बहुकोशिकीय जीवों में ऊतकों का क्या उपयोग है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - ऊतकों द्वारा अंग एवं अंगतन्त्रों का निर्माण होता है । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न शृंखला # 02 ( पृष्ठ संख्या 81 ) </span></b></p><p><b>प्रश्न 1.</b> प्रकाश - संश्लेषण के लिए किस गैस की आवश्यकता होती है ?</p><p><b>उत्तर</b> - प्रकाश - संश्लेषण के लिए कार्बन डाइ - ऑक्साइड गैस की आवश्यकता होती है।</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. पौधों में वाष्पोत्सर्जन के कार्यों का उल्लेख कीजिए।</h3><p><b>उत्तर</b> - पौधों में वाष्पोत्सर्जन के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं। </p><p>( 1 ) इसके द्वारा पौधों का तापमान नियन्त्रित रहता है । </p><p>( 2 ) यह पौधों के जल अवशोषण की क्रिया को प्रभावित </p><p>( 3 ) इसके द्वारा पौधों को खनिज लवणों के अवशोषण एवं | रसारोहण में सहायता मिलती है । </p><p>( 4 ) वाष्पोत्सर्जन से फलों में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती है । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न शृंखला # 03 ( पृष्ठ संख्या 83 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. सरल ऊतकों के कितने प्रकार हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - सरल ऊतकों के तीन प्रकार हैं- ( i ) पैरेन्काइमा , ii ) कॉलेन्काइमा , तथा ( iii ) स्क्लेरेन्काइमा । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक कहाँ पाया जाता है।</h3><p><b>उत्तर</b> - प्ररोह का शीर्षस्थ विभज्योतक जड़ों एवं तनों के वृद्धि वाले भाग में विद्यमान रहता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. नारियल का रेशा किस ऊतक का बना होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - नारियल का रेशा स्क्लेरेन्काइमा ऊतक का बना होता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. फ्लोएम के संघटक कौन - कौन से हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b>- फ्लोएम के चार संघटक हैं- ( i ) चालनी नलिका , ( ii ) सखी कोशिकाएँ , ( iii ) फ्लोएम पैरेन्काइमा , तथा ( iv ) फ्लोएम रेशे । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न श्रृंखला # 04 ( पृष्ठ संख्या 87 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. उस ऊतक का नाम बताएँ जो हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है । </h3><p><b>उत्तर</b> - पेशीय ऊतक हमारे शरीर में गति के लिए उत्तरदायी है।</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. न्यूरॉन देखने में कैसा लगता है </h3><p><b>उत्तर</b>- न्यूरॉन तन्त्रिका तन्त्र की संरचनात्मक क्रियात्मक इकाई है । इसमें प्रमुख रूप से दो भाग होते हैं - कोशिकाकाय तथा कोशिका प्रवर्ध । कोशिकाकाय , न्यूरॉन का प्रमुख भाग होता है जिसमें कोशिकाद्रव्य से घिरा हुआ एक गोल केन्द्रक पाया जाता है । कोशिकाकाय से एक या एक से अधिक छोटे - बड़े कोशिकीय प्रवर्ध निकलते हैं । ये भी दो प्रकार के होते हैं - डेन्ट्राइट्स ( बहुत सारे छोटी शाखा वाले प्रवर्ध ) तथा एक्सॉन ( प्रायः एक लम्बा प्रवर्ध ) ।</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. हृदय पेशी के तीन लक्षणों को बताएँ । </h3><p><b>उत्तर</b> - हृदय पेशी के लक्षण- </p><p>( 1 ) इन पेशियों में रेखित एवं अरेखित दोनों प्रकार की पेशियों के गुण पाये जाते हैं । </p><p>( 2 ) दो हृदय पेशियों के जुड़ने के स्थान पर अन्तर्विष्ट पट्टियाँ पायी जाती हैं । </p><p>( 3 ) इन पेशियों की कोशिकाएँ शाखान्वित होती हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. एरिओलर ऊतक के क्या कार्य हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b>- एरिओलर ऊतक अंगों के भीतर की खाली जगह को भरता है , आन्तरिक अंगों को सहारा देता है तथा ऊतकों की मरम्मत में सहायक है । </p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">पाठान्त प्रश्नोत्तर </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. ऊतक को परिभाषित करें । </h3><p><b>उत्तर </b>- कोशिकाओं का ऐसा समूह जिसकी उत्पत्ति संरचना एवं कार्य समान हों , ऊतक कहलाता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. कितने प्रकार के तत्व मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं ? इनके नाम बताइए । </h3><p><b>उत्तर</b> - निम्नलिखित चार प्रकार के तत्व मिलकर जाइलम ऊतक का निर्माण करते हैं- ( i ) जाइलम ट्रेकीड्स ( वाहिनिकाएँ ) , ( ii ) जाइलम वाहिका , ( iii ) जाइलम पैरेन्काइमा , तथा ( iv ) जाइलम फाइबर । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. पौधों में सरल ऊतक जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - पौधों में सरल ऊतकों में एक ही प्रकार की कोशिकाएँ मिलकर किसी कार्य को सम्पन्न करती हैं जबकि जटिल ऊतक में दो से अधिक प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं तथा सभी मिलकर सामूहिक रूप से एक कार्य करती हैं । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="पौधों में सरल ऊतक जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं ?" border="0" data-original-height="610" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhpfdkTc8j__hZDd2hTKUTSDh0vbFPwIp8i89nE-Ba7kYinjJUpMXOlkVplfubEcrAYRWGRAnTYliJLXuqjgEIbMJfyccyFQfxDqo7rHE3sn84BR557qZixJgzy7PY_GghnTIMysgO35PY/s16000/IMG_20201228_123708.jpg" title="पौधों में सरल ऊतक जटिल ऊतक से किस प्रकार भिन्न होते हैं ?" /></div><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. कोशिका भित्ति के आधार पर पैरेन्काइमा , कॉलेन्काइमा और स्क्लेरेन्काइमा के बीच भेद स्पष्ट करें । </h3><p>उत्तर : </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzp99hX6UBDxHZwwNgsmV5VuHaQNcEH-U_g_tf7t4fp3IgiT7N-yJMOcQ0oElAW8YsbvW-90lQK0VBz8LUHIrXW98WQRfGI54sA6m0K2Sn57s4Omx9EqBCFfTPRhEm_3Hi6lhI48gLn_4/s1080/IMG_20201228_123719.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="कोशिका भित्ति के आधार पर पैरेन्काइमा , कॉलेन्काइमा और स्क्लेरेन्काइमा के बीच भेद स्पष्ट करें ।" border="0" data-original-height="501" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhzp99hX6UBDxHZwwNgsmV5VuHaQNcEH-U_g_tf7t4fp3IgiT7N-yJMOcQ0oElAW8YsbvW-90lQK0VBz8LUHIrXW98WQRfGI54sA6m0K2Sn57s4Omx9EqBCFfTPRhEm_3Hi6lhI48gLn_4/s16000/IMG_20201228_123719.jpg" title="कोशिका भित्ति के आधार पर पैरेन्काइमा , कॉलेन्काइमा और स्क्लेरेन्काइमा के बीच भेद स्पष्ट करें ।" /></a></div><br /><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 5. रन्न के क्या कार्य हैं ?</h3><p><b>उत्तर</b>- ( 1 ) वायुमण्डल से गैसों का आदान - प्रदान रन्ध्रों द्वारा होता है । ( 2 ) वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी रन्ध्रों द्वारा होती है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 6. तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें । </h3><div>उत्तर:</div><p style="text-align: left;"></p><div style="text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhu36uPo-InB9lFknDZhR4bZR2xEhB0mAxyjVKckowQmX26TNm1MVak351nrKjybKwHkVVcsAfDKMrezpdYnfLpXNcIU_-94DrknVLSqf8JCVS-IcbpsvnT4mdV_SXljGPyg68pifFIWws/s700/IMG_20201228_142136.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें ।" border="0" data-original-height="346" data-original-width="700" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhu36uPo-InB9lFknDZhR4bZR2xEhB0mAxyjVKckowQmX26TNm1MVak351nrKjybKwHkVVcsAfDKMrezpdYnfLpXNcIU_-94DrknVLSqf8JCVS-IcbpsvnT4mdV_SXljGPyg68pifFIWws/s16000/IMG_20201228_142136.jpg" title="तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें ।" /></a></div><div style="text-align: center;"><br /></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmk0E1IsPN_gfr78xpTomVcnMR412PgcKgZlOYOOmkW6cAfstVlypnbQVQmftCAkZr1X5o6pP1MR-865AmSTtH8Qg899jFSrvLi00ZQOjlP_guINTuFOJm63OhcviBs_Tl_2J8Kg4OC7A/s798/IMG_20201228_142232.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें ।" border="0" data-original-height="505" data-original-width="798" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhmk0E1IsPN_gfr78xpTomVcnMR412PgcKgZlOYOOmkW6cAfstVlypnbQVQmftCAkZr1X5o6pP1MR-865AmSTtH8Qg899jFSrvLi00ZQOjlP_guINTuFOJm63OhcviBs_Tl_2J8Kg4OC7A/s16000/IMG_20201228_142232.jpg" title="तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें ।" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqKcJsyY0VLpJTaKja7XZrp_8k-JMAnjzI8XpVL_kNblA0xI6rqeM_57OPQaSS8Q0f0iSlIDsipFVzniojnatZraDArEcLpZOSl-JkruA7ZD9wfeBiHTsNyflwm8agxELOx-zjHovh1gU/s710/IMG_20201228_142335.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें ।" border="0" data-original-height="710" data-original-width="692" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqKcJsyY0VLpJTaKja7XZrp_8k-JMAnjzI8XpVL_kNblA0xI6rqeM_57OPQaSS8Q0f0iSlIDsipFVzniojnatZraDArEcLpZOSl-JkruA7ZD9wfeBiHTsNyflwm8agxELOx-zjHovh1gU/s16000/IMG_20201228_142335.jpg" title="तीनों प्रकार के पेशीय रेशों में चित्र बनाकर अन्तर स्पष्ट करें ।" /></a></div><p></p><p style="text-align: left;"><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 7. कार्डियक ( हृदयक ) पेशी का विशेष कार्य क्या है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - ये पेशियाँ प्राणी के सम्पूर्ण जीवनकाल तक सक्रिय बनी रहती हैं । इनमें क्रमिक संकुचन लगातार होता रहता है परन्तु थकान नहीं होती जिसके कारण हृदय जीवनपर्यन्त धड़कता रहता है ।</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 8. रेखित , अरेखित तथा कार्डियक ( हृदयक ) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए । </h3><p>उत्तर 1. </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2nR6980KmOU9ykJesF0tM5p47TXWH4H4HBf9rY7N6qvSeIw_BkK2ZvB-GAqzp64f-7cvsk0K6_xG-dO6t9a8wh7vANIyJnClY8sfKXMDWk2iQgBPwNNOv7SPDzN-Vgnm0el2heEzgSW0/s1127/IMG_20201228_142914.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="रेखित , अरेखित तथा कार्डियक ( हृदयक ) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए ।" border="0" data-original-height="1127" data-original-width="876" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh2nR6980KmOU9ykJesF0tM5p47TXWH4H4HBf9rY7N6qvSeIw_BkK2ZvB-GAqzp64f-7cvsk0K6_xG-dO6t9a8wh7vANIyJnClY8sfKXMDWk2iQgBPwNNOv7SPDzN-Vgnm0el2heEzgSW0/s16000/IMG_20201228_142914.jpg" title="रेखित , अरेखित तथा कार्डियक ( हृदयक ) पेशियों में शरीर में स्थित कार्य और स्थान के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए ।" /></a></div><br /><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 9 . न्यूरॉन की संरचना का चित्र बनाइए।</h3><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgJKD0JQAIJcE8FDShnlR8yG0zvEHTtFVGV0BCMWVtAUbYLbtQcyTnMWHRcWIQzSNW2x7TJJzuEZqth-JE2FHo_TCJTChsvXKrDksNGhhL6jOAL3aO8EVZEeHKFFMjSWmM8XCGvqISYwA/s1080/IMG_20201228_115029.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="न्यूरॉन की संरचना का चित्र बनाइए।" border="0" data-original-height="403" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjgJKD0JQAIJcE8FDShnlR8yG0zvEHTtFVGV0BCMWVtAUbYLbtQcyTnMWHRcWIQzSNW2x7TJJzuEZqth-JE2FHo_TCJTChsvXKrDksNGhhL6jOAL3aO8EVZEeHKFFMjSWmM8XCGvqISYwA/s16000/IMG_20201228_115029.jpg" title="न्यूरॉन की संरचना का चित्र बनाइए।" /></a></div><br /><p></p><p>प्रश्न 10. निम्नलिखित के नाम लिखिए ( a ) ऊतक जो मुँह के भीतरी अस्तर का निर्माण करता है । ( b ) ऊतक जो मनुष्य में पेशियों को अस्थि से जोड़ता है ( c ) ऊतक जो पौधों में भोजन का संवहन करता है । ( d ) ऊतक जो हमारे शरीर में वसा का संचय करता है । ( e ) तरल अधात्री सहित संयोजी ऊतक । (f) मस्तिष्क में स्थित ऊतक</p><p><b>उत्तर</b>- : ( a ) सरल शल्की एपिथेलियम ( b ) कांडरा ( c ) फ्लोएम ( d ) एडिपोस टिश्यू ( वसामय उत्तक ) ( e ) रक्त ( f ) तंत्रिका उत्तक</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 11. निम्नलिखित में ऊतक के प्रकार की पहचान करें त्वचा , पौधे का वल्क , अस्थि , वृक्कीय नलिका अस्तर , </h3><p><b>उत्तर</b>: ( i ) त्वचा - स्तरित शल्की एपिथेलियम </p><p>( ii ) पौधे का वल्क - कॉर्क रक्षित उत्तक </p><p>( ii ) अस्थि - संयोजी उत्तक </p><p>( iv ) वृक्कीय नलिका अस्तर - घनाकार एपिथेलियम </p><p>( v ) संवहन बण्डल - जटिल उत्तक ( जाइलेम और फ्लोएम )</p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 12. पैरेन्काइमा ऊतक किसे क्षेत्र में स्थित होते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - जड़ एवं तने के भोजन संग्रह करने वाले भागों में पैरेन्काइमा ऊतक पाया जाता है । इसके अतिरिक्त पौधों के ऐसे अंग जो प्रकाश - संश्लेषण में सहायक हैं तथा जल में तैरने वाले पौधों के विभिन्न भागों में भी पैरेन्काइमा ऊतक पाया जाता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 13. पौधों में एपिडर्मिस की क्या भूमिका है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - एपिडर्मिस पौधों का रक्षात्मक स्तर है । यह जल हानि के विरुद्ध , यान्त्रिक आघात तथा परजीवी कवक के प्रवेश से पौधों की रक्षा करती है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 14. छाल ( कॉक ) किस प्रकार सुरक्षा ऊतक के रूप में कार्य करता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - छाल एक बहु परतों वाला मृत कोशिकाओं का आवरण होता है जिसमें अन्त : कोशिकीय स्थानों का अभाव होता है तथा इसकी भित्ति पर सुबेरिन नामक रसायन का आवरण होता है । यह छाल को हवा एवं पानी के लिए तो अभेद्य बनाता ही है , साथ - ही - साथ विभिन्न परजीवी एवं कवकों के प्रवेश को भी निषेध करता है । इस प्रकार यह एक सुरक्षा ऊतक के रूप कार्य करता है । </p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “<a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html"><b>NCERT Solution</b> <b>Variousinfo</b></a>” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में <b>Bookmark (Ctrl + D) </b>करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी <b><span style="color: red;">Subscribe</span></b> करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे <b><span style="color: #3d85c6;">whatsapp , Facebook</span> या <span style="color: #3d85c6;">Twitter</span></b> जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद ! </p><p><br /></p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-81924394930796038522021-11-03T20:00:00.003-07:002021-11-13T03:07:47.988-08:00Class 9th science notes chapter 5 The Fundamental Unit of Life (जीवन की मौलिक इकाई)<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><b>Class 9 Science Chapter 5 solution in Hindi</b> अध्याय 5 <b>जीवन की मौलिक इकाई [ The Fundamental Unit of Life ]</b> - इस आर्टिकल में हमने <b>जीवन की मौलिक इकाई [ The Fundamental Unit of Life ]</b> से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां संक्षिप्त में उपलब्ध कराने की कोशिश की है। यह संग्रह परीक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। और साथ ही इससे आपकी सामान्य ज्ञान में पकड़ भी बनती जाएगी।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEi96FNKme8LVgWreizZiKIsaqMLR2XSwBLoX6GMxMDDcGoSxWW8ZOR39xEHpsxEe5iGuTGbu8Tf6FT-0yRlqtPVcj0NMt847NAnk6yhJIMaoU9dT87tSwizmOLr1zVN7goHe49yGMYEo1BJPTXBXCOtLKNZ6aoev69gS15_Sm-_ufrPIMwsXaJWlvk=s2048" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 9th science notes chapter 5 The Fundamental Unit of Life (जीवन की मौलिक इकाई)" border="0" data-original-height="1683" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEi96FNKme8LVgWreizZiKIsaqMLR2XSwBLoX6GMxMDDcGoSxWW8ZOR39xEHpsxEe5iGuTGbu8Tf6FT-0yRlqtPVcj0NMt847NAnk6yhJIMaoU9dT87tSwizmOLr1zVN7goHe49yGMYEo1BJPTXBXCOtLKNZ6aoev69gS15_Sm-_ufrPIMwsXaJWlvk=s16000" title="Class 9th science notes chapter 5 The Fundamental Unit of Life (जीवन की मौलिक इकाई)" /></a></div><p style="text-align: left;"><br /></p><p></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;"> </span>A ) <span style="color: white;"><b style="background-color: transparent; text-align: left;">जीवन की मौलिक इकाई अध्याय के</b><span style="background-color: transparent; text-align: left;"> महत्त्वपूर्ण तथ्य </span></span></h2><p></p><ul style="text-align: left;"><li><b>कोशिका की खोज</b> 1665 में रॉबर्ट हुक ने वृक्ष की छाल से प्राप्त कॉर्क में की थी । </li><li><b>जीवित कोशिका की खोज</b> ल्यूवेनहाँक ने 1674 में की थी । </li><li>रॉबर्ट ब्राउन ने 1831 में कोशिका में <b>केन्द्रक की खोज</b> की थी । </li><li>जे . ई . पुरकिन्जे ने कोशिका में स्थित तरल जैविक पदार्थ को <b>जीवद्रव्य</b> नाम दिया । </li><li>एम . स्लीडन एवं टी . श्वान ने <b>कोशिका सिद्धान्त</b> प्रतिपादित किया । </li><li><b>कोशिका</b> जीवन की मूलभूत संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है । </li><li>ऐसे जीव जो केवल एक कोशिका के बने होते हैं , <b>एककोशिक जीव कहलाते हैं</b> । इसके विपरीत बहुकोशिक जीवों की रचना अनेक कोशिकाओं में होती है । </li><li><b>कोशिका का संगठन</b> प्लाज्मा झिल्ली , केन्द्रक तथा कोशिकाद्रव्य द्वारा होता है । </li><li><b>प्लाज्मा झिल्ली </b>कोशिका की सबसे बाहरी परत है जो लिपिड तथा प्रोटीन की बनी होती है । यह वर्णात्मक पारगम्य होती है । यह पदार्थों की गति को कोशिका के भीतर तथा बाहरी वातावरण से नियमित करती है । </li><li><b>पादप कोशिकाओं में प्लाज्मा झिल्ली</b> के बाहर की ओर कोशिका भित्ति पायी जाती है । </li><li><b>कोशिका भित्ति</b> सेल्यूलोज की बनी होती है । यह पौधे को संरचनात्मक दृढ़ता प्रदान करती है ।</li><li>प्राय : प्रत्येक कोशिका में एक दोहरी परत द्वारा घिरा <b>केन्द्रक</b> होता है । यह कोशिका की जीवन प्रक्रियाओं को निर्देशित करता है । </li><li>केन्द्रक के अन्दर ही <b>क्रोमोसोम्स</b> पाये जाते हैं । </li><li><b>क्रोमोसोम्स</b> द्वारा आनुवंशिक गुण माता - पिता से सन्तानों में जीन्स के माध्यम से पहुंचते हैं । </li><li>ऐसी कोशिकाएँ , जिनमें केन्द्रकीय क्षेत्र सुस्पष्ट हो अर्थात् चारों ओर से केन्द्रकीय झिल्ली से घिरा हो , <b>यूकैरियोटिक कोशिकाएँ</b> कहलाती हैं । </li><li>ऐसी कोशिकाएँ , जिनमें केन्द्रकीय क्षेत्र बहुत कम स्पष्ट होता है अर्थात् इनमें केन्द्रक झिल्ली नहीं होती , <b>प्रोकैरियोटिक कोशिकाएँ</b> कहलाती हैं । </li><li><b>प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं</b> में कोई भी झिल्ली युक्त अंगक नहीं होता , केवल छोटे राइबोसोम अंगक के रूप में पाये जाते हैं । </li><li><b>यूकैरियोटिक कोशिकाओं</b> के कोशिकाद्रव्य में अनेक झिल्ली युक्त का अंगक ; जैसे - अंतर्द्रव्यी जालिका , गॉल्जी उपकरण , लाइसोसोम , माइटोकॉण्ड्रिया , प्लास्टिड आदि पाये जाते हैं । </li><li><b>अंतर्द्रव्यी जालिका </b>दो प्रकार की होती है - खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका तथा चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका । </li><li><b>खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका</b> की सतह पर राइबोसोम पाये जाते हैं जो प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं जबकि <b>चिकनी अन्तर्द्रव्यी जालिका</b> वसा अथवा लिपिड अणुओं के बनाने में सहायता करती है ।</li><li><b>गॉल्जीकाय झिल्ली</b> युक्त पुटिकाओं का स्तम्भ है । यह कोशिका में बने पदार्थों का संचयन , रूपान्तरण एवं पैकेजिंग करता है । </li><li><b>लाइसोसोम</b> को ' <b>आत्मघाती थैली</b> ' कहते हैं । इनमें पाचक एन्जाइम्स पाये जाते हैं । </li><li><b>माइटोकॉण्ड्यिा</b> को <b>कोशिका का बिजलीघर</b> कहते हैं क्योंकि ये विभिन्न जैविक क्रियाओं को चलाने के लिए ऊर्जा ATP ( ऐडिनोसिन ट्राइफॉस्फेट ) के रूप में प्रदान करते हैं । </li><li><b>प्लास्टिड पादप </b>कोशिकाओं में पाये जाते हैं । ये प्रमुख रूप से दो प्रकार के होते हैं - क्रोमोप्लास्ट तथा ल्यूकोप्लास्ट ।</li><li><b>ल्यूकोप्लास्ट का कार्य </b>भोज्य पदार्थों का संचय करना है । ऐसे क्रोमोप्लास्ट जो हरे रंग के होते हैं , क्लोरोप्लास्ट कहलाते हैं ये प्रकाश - संश्लेषण करते हैं । </li><li>माइटोकॉण्ड्रिया तथा क्लोरोप्लास्ट दोनों में अपना स्वयं का DNA एवं राइबोसोम्स होते हैं । </li><li>पादप कोशिकाओं में एक बड़ी रसधानी होती है । यह कोशिका की स्फीति को बनाए रखती है तथा अपशिष्ट पदार्थों सहित अनेक महत्वपूर्ण पदार्थों का संचय स्थल है । </li></ul><div><br /></div><p></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">क्रियाकलाप 5.2 ( पृष्ठ संख्या 65 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या सभी कोशिकाएँ आकार तथा आकृति की दृष्टि से एक जैसी दिखाई देती हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - किसी अंग विशेष की सभी कोशिकाएँ आकार तथा आकृति में एक जैसी दिखती हैं परन्तु विभिन्न अंगों में इनका आकार तथा आकृति भिन्न - भिन्न होती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या सभी कोशिकाओं की संरचना एक जैसी दिखाई देती है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - हाँ , सभी कोशिकाओं की मूलभूत संरचना एक जैसी दिखाई देती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - क्या पादप के विभिन्न भागों में पायी जाने वाली कोशिकाओं में कोई अन्तर है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - नहीं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न - हमें कोशिकाओं में क्या समानताएँ दिखाई देती हैं ।</h3><p>उत्तर - सभी कोशिकाओं में कोशिका भित्ति , केन्द्रक तथा जीवद्रव्य पाया जाता है । इसके अतिरिक्त सभी में एक ही प्रकार कोशिकांग पाये जाते हैं । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">( C ) पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर प्रश्न शृंखला # 01 ( पृष्ठ संख्या 66 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. कोशिका की खोज किसने और कैसे की ? </h3><p><b>उत्तर</b> - कोशिका की खोज 1665 में रॉबर्ट हुक ने वृक्ष की छाल से प्राप्त कॉर्क में स्वनिर्मित सूक्ष्मदर्शी द्वारा की । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. कोशिका को जीवन की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई क्यों कहते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - प्रत्येक कोशिका एक स्वायत्त इकाई के रूप में कार्य करती है तथा जीवन की सभी मूलभूत क्रियाओं को स्वतन्त्र रूप से संचालित करती है । इसी कारण इसे जीवन की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई कहते हैं । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">• प्रश्न शृंखला # 02 ( पृष्ठ संख्या 68 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1.CO , तथा पानी जैसे पदार्थ कोशिका में कैसे अन्दर तथा बाहर जाते हैं ? इस पर चर्चा करें ।</h3><p><b>उत्तर</b>: कोशिका में CO , तथा पानी जैसे पदार्थ विसरण तथा परासरण द्वारा कोशिका के अन्दर तथा बाहर जाते हैं । जब किसी कोशिका में CO , की सान्द्रता बाह्य वातावरण से अधिक हो जाती तो उसी समय उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की ओर विसरण द्वारा CO , कोशिका के बाहर निकल जाती है । किसी कोशिका में पानी की कमी होने पर या उसे तनु विलयन में रखने पर जल के अणु बाह्य माध्यम से कोशिका के भीतर परासरण द्वारा चले जाते हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. प्लाज्मा झिल्ली को वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली क्यों कहते हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - प्लाज्मा झिल्ली कुछ पदार्थों को अन्दर अथवा बाहर आने - जाने देती है तथा अन्य पदार्थों की गति को रोकती है । इसलिए इसे वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली कहते हैं । </p><p><br /></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red; font-size: large;"><b>प्रश्न श्रृंखला # 03 ( पृष्ठ संख्या 70 ) </b></span></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. प्रोकैरियोटी तथा यूकैरियोटी कोशिकाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> -</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEmShOqnDnYR8hq-0I0NZQiPSX2dU2gnyPo2hBvev2FrFESCtcsDCNj3YVEJy8cLirG_psA7mB5oy4wcqwY6NouAB2jagWPf1UYGTAf9yubGxzBP_rbEFrpSdKr9YLNCOcgfeay3GXDu4/s1080/IMG_20201226_101024.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="प्रोकैरियोटी तथा यूकैरियोटी कोशिकाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।" border="0" data-original-height="550" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEmShOqnDnYR8hq-0I0NZQiPSX2dU2gnyPo2hBvev2FrFESCtcsDCNj3YVEJy8cLirG_psA7mB5oy4wcqwY6NouAB2jagWPf1UYGTAf9yubGxzBP_rbEFrpSdKr9YLNCOcgfeay3GXDu4/s16000/IMG_20201226_101024.jpg" title="प्रोकैरियोटी तथा यूकैरियोटी कोशिकाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।" /></a></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><br /></div><p></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न श्रृंखला # 04 ( पृष्ठ संख्या 73 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. क्या आप दो ऐसे अंगकों का नाम बता सकते हैं जिनमें अपना आनुवंशिक पदार्थ होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - माइटोकॉण्ड्रिया तथा प्लास्टिड्स ऐसे कोशिका अंगक हैं जिनमें अपना आनुवंशिक पदार्थ होता है ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. यदि किसी कोशिका का संगठन किसी भौतिक अथवा रासायनिक प्रभाव के कारण नष्ट हो जाता है , तो | क्या होगा ? </h3><p><b>उत्तर</b> - कोशिका नष्ट हो जायेगी । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यों कहते हैं </h3><p><b>उत्तर</b>- लाइसोसोम में पाचक एन्जाइम्स पाये जाते हैं कोशिकीय उपापचय में व्यवधान के कारण जब कोशिका क्षतिग्रस्त या मृत हो जाती है तो उसके लाइसोसोम फट जाते हैं तथा उसके पाचक एन्जाइम्स अपनी ही कोशिका का पाचन कर देते हैं इसलिए इन्हें ' आत्मघाती थैली ' कहते हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. कोशिका के अन्दर प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> : खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका पर पाये जाने वाले राइबोसोम में प्रोटीन का संश्लेषण होता है ।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">( D ) पाठान्त प्रश्नोत्तर </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. पादप कोशिका तथा जन्तु कोशिका में तुलना कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> -</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijcVq8sJDJoKMAY6OJ0bx1GtA8vwp4DF6DmDlF02lf5yCkzE0e5sY1X2VXgSct-JKz-rZjpTHPkd9PXmvcHb-207bRil-pHFEI06u4oNaIDEqU1XZ1_NtPPdPOblU3Fd8JvVqHpMgh1yU/s1080/IMG_20201226_101008.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="पादप कोशिका तथा जन्तु कोशिका में तुलना कीजिए ।" border="0" data-original-height="370" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijcVq8sJDJoKMAY6OJ0bx1GtA8vwp4DF6DmDlF02lf5yCkzE0e5sY1X2VXgSct-JKz-rZjpTHPkd9PXmvcHb-207bRil-pHFEI06u4oNaIDEqU1XZ1_NtPPdPOblU3Fd8JvVqHpMgh1yU/s16000/IMG_20201226_101008.jpg" title="पादप कोशिका तथा जन्तु कोशिका में तुलना कीजिए ।" /></a></div><br /><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. प्रोकैरियोटी कोशिकाएँ यूकैरियोटी कोशिकाओं से किस प्रकार भिन्न होती हैं ?</h3><p> <b>उत्तर</b>- </p><p>प्रश्न शृंखला 03 के अन्तर्गत प्रश्न 1 का उत्तर देखें । कहने का अर्थ है कि इस प्रश्न के उत्तर के रूप में प्रोकैरियोटी कोशिकाएँ यूकैरियोटी कोशिकाओं में अंतर लिखना है। जो हम ऊपर बता चुके हैं।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. यदि प्लाज्मा झिल्ली फट जाए अथवा टूट जाए तो क्या होगा ?</h3><p><b>उत्तर</b> - प्लाज्मा झिल्ली बाह्य वातावरण से गैसों तथा अन्य पदार्थों को विसरण द्वारा कोशिका में पहुँचाती है । इसके फट जान अथवा टूट जाने पर इन पदार्थों में परिवहन का नियमन नहीं हो पायेगा तथा कोशिका का कोशिकाद्रव्य बाह्य वातावरण के सोधे सम्पर्क में आ जायेगा जिससे कोशिका की मृत्यु हो जायेगी । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. यदि गॉल्जी उपकरण न हो तो कोशिका के जीवन में क्या होगा ? </h3><p><b>उत्तर</b>- गॉल्जी उपकरण कोशिका में बने पदार्थों का संचय , रूपान्तरण तथा पैकेजिंग का कार्य करते हैं । इनके उपस्थित न पर ये क्रियाएँ नहीं हो पायेंगी । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 5. कोशिका का कौन - सा अंगक बिजलीघर है और क्यों ? </h3><p><b>उत्तर</b>- माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का बिजलीघर कहते हैं क्योंकि ये विभिन्न जैविक क्रियाओं को चलाने के लिए ऊर्जा ATP ( ऐडिनोसिन ट्राइफॉस्फेट ) के रूप में प्रदान करते हैं । ATP कोशिका की ऊर्जा है जिसका उपयोग कोशिका नये रासायनिक यौगिकों को बनाने तथा यान्त्रिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए करती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 6. कोशिका झिल्ली को बनाने वाले लिपिड तथा प्रोटीन का संश्लेषण कहाँ होता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - कोशिका झिल्ली को बनाने वाले . लिपिड का संश्लेषण चिकनी अंतर्द्रव्यी जालिका द्वारा तथा प्रोटीन का संश्लेषण खुरदरी अंतर्द्रव्यी जालिका पर उपस्थित राइबोसोम्स में होता है </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 7. अमीबा अपना भोजन कैसे प्राप्त करता है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - अमीबा एककोशिकीय जीव है । इसके जीवन की सभी क्रियाएँ एक कोशिका द्वारा ही पूरी होती हैं । जब यह किसी भोज्य पदार्थ के सम्पर्क में आता है तो उसकी प्लाज्मा झिल्ली उस भोज्य पदार्थ को चारों ओर से घेर लेती है और धीरे - धीरे अपने भीतर ले लेती है । इस क्रिया को एण्डोसाइटोसिस कहते हैं । इस प्रकार एक खाद्य रिक्तिका बन जाती है । इसका पाचन लाइसोसोम द्वारा होता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 8. परासरण क्या है ? </h3><p><b>उत्तर</b>- परासरण ऐसी क्रिया है जिसमें अर्द्धपारगम्य झिल्ली प्लाज्मा झिल्ली ) द्वारा अलग किये गये भिन्न सान्द्रता वाले दो विलयनों जल अथवा किसी दूसरे विलायक के अणुओं का विसरण कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर होता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 9. निम्नलिखित परासरण प्रयोग करें छिले हुए आधे - आधे आलू के चार टुकड़े लो , इन चारों को खोखला करो जिससे कि आलू के कप बन जाएँ । इनमें से एक कप को उबले आलू में बनाना है । आलू के प्रत्येक कप को जल वाले बर्तन में रखो । अब </h3><p><b>( a ) कप ' A ' को खाली रखो ,</b></p><p><b>( b ) कप ' B ' में एक चम्मच चीनी डालो , </b></p><p><b>( c ) कप ' C ' में एक चम्मच नमक डालो , तथा </b></p><p><b>( d ) उबल आलू से बनाए गए कप ' D ' में एक चम्मच चीनी डालो । </b></p><p>आलू के इन चारों कपों को दो घण्टे तक रखने के के पश्चात् उनका अवलोकन करो तथा <b>निम्न प्रश्नों के उत्तर दो </b></p><p>( i ) ' B ' तथा ' C ' के खाली भाग में जल क्यों एकत्र हो गया ? इसका वर्णन करो । </p><p>( ii ) ' A ' आलू इस प्रयोग के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है ? </p><p>( ii ) ' A ' तथा ' D ' आलू के खाली भाग में जल एकत्र क्यों नहीं हुआ ? इसका वर्णन करो । </p><p><br /></p><p><b>उत्तर- </b></p><p>( i ) ' B ' तथा ' C ' के खाली भाग में जल एकत्र हो गया क्योंकि उनके खाली भाग में चीनी एवं नमक होने के कारण बाहरी वातावरण से उसकी सान्द्रता अधिक हो गई , जिससे जल परासरण द्वारा उनके भीतर गया । </p><p>( ii ) ' A ' आलू इस प्रयोग के लिए नियन्त्रित सेट - अप का कार्य कर रहा है । </p><p>( iii ) ' A ' आलू में पानी एकत्र नहीं हुआ क्योंकि वह भीतर से खाली था । उसने इस प्रयोग में एक नियन्त्रित सेट - अप की तरह कार्य किया ।</p><p>' D ' आलू के खाली भाग में भी जल नहीं एकत्र हुआ क्योंकि आलू को उबालने से उसकी प्लाज्मा झिल्ली नष्ट हो गयी जबकि परासरण के लिए अर्द्धपारगम्य झिल्ली का होना आवश्यक है , अतः यहाँ परासरण की क्रिया नहीं हुई । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 10. कायिक वृद्धि एवं मरम्मत हेतु किस प्रकार के कोशिका विभाजन की आवश्यकता होती है तथा इसका औचित्य बताइए ? </h3><p><b>उत्तर</b> - कायिक वृद्धि एवं मरम्मत हेतु समसूत्री विभाजन की आवश्यकता होती है । इस विभाजन का औचित्य जीवों के आकार वृद्धि , विभिन्न टूट - फूट की मरम्मत करना , घावों को भरना तथा केन्द्रक - कोशिकाद्रव्य अनुपात को सन्तुलित बनाए रखना है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 11. युग्मकों के बनने के लिए किस प्रकार का कोशिका विभाजन होता है ? इस विभाजन का महत्व बताइए । </h3><p><b>उत्तर</b> - युग्मकों के बनने के लिए अर्धसूत्री कोशिका विभाजन होता है । इस कोशिका विभाजन द्वारा गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका की आधी हो जाती है जो नई पीढ़ी में युग्मक संलयन द्वारा पुनः मातृ कोशिका के समान हो जाती है । इस प्रकार ये पीढ़ी - दर - पीढ़ी स्थिर बनी रहती है । इस कोशिका विभाजन द्वारा नये संयोजन बनते हैं ।</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">अतिरिक्त लघु - उत्तरीय प्रश्न : </span></b></p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 1 - कोशिका किसे कहते है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - शरीर की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को कोशिका कहते हैं । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 2 - कोशिका की खोज किसने और कैसे की ? </h4><p><b>उत्तर</b> - कोशिका का सबसे पहले पता राबट हुक ने 1665 में लगाया था । उसने कोशिका को पतली काट में अनगढ़ सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 3 - CO , तथा पानी जैसे पदार्थ कोशिका के अंदर और बाहर कैसे आते हैं ? </h4><p><b>उत्तर</b> - विसरण प्रक्रिया द्वारा । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 4- अमीबा अपना भोजन कैसे ग्रहण करता हैं ? </h4><p><b>उत्तर</b> - एन्डोसाइटोसिस प्रक्रिया द्वारा । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 5- एन्डोसाइटोसिस क्या हैं ? </h4><p><b>उत्तर</b> - एक कोशिकीय जीवों में कोशिका झिल्ली के लचीलेपन के कारण जीव बाह्य पर्यावरण से अपना भोजन ग्रहण करते हैं और कोशिका झिल्ली पुनः अपने पूर्व अवस्था में आ जाता हैं । इसके बाद कोशिका पदार्थ ग्रहण कर पचा जाता हैं । इस प्रक्रिया को एन्डोसाइटोसिस कहते हैं । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 6- प्लाज्मा झिल्ली को वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली क्यों कहते है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - प्लाज्मा झिल्ली कुछ पदार्थों को अंदर अथवा बाहर जाने देती हैं । यह अन्य पदार्थों की गति को भी रोकती है । प्लाज्मा झिल्ली को वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली कहते है । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 7- परासरण क्या है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - जल के अणुओ की गति जब वर्णात्मक पारगम्य झिल्ली द्वारा हो तो उसे परासरण कहते हैं । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 8- सेल्युलोज क्या है ? सेल्युलोज कहाँ पाया जाता है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - सेल्युलोज एक बहुत जटिल पदार्थ है । जो पौधो में पाया जाता है । पादप कोशिका भिति मुख्यतः सेल्युलोज की बनी होती है । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 9 - जीवद्रव्य कुंचन किसे कहते है </h4><p><b>उत्तर</b> - जब किसी पादप कोशिका में परासरण द्वारा पानी की हानि होती है तो कोशिका झिल्ली सहित आंतरिक पदार्थ संकुचित हो जाते है । इस घटना को जीबद्रव्य कुंचन कहते है । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 10- DNA का पुरा नाम लिखो । </h4><p><b>उत्तर</b> - DNA का पुरा नाम डिऑक्सी राइबों न्यूक्लीक एसिड है । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 11- ATP क्या है ? ATP का पूरा नाम लिखें । </h4><p><b>उत्तर</b> - ATP का पूरा नाम ऐडिनोसिन ट्राइफॉस्फेट है । यह एक प्रकार का कोशिका का ऊर्जा है । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 12- कोशिका के किस अंगक में आनुवांशिक गुण होता है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - क्रोमोसोम में । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 13- ऐसे दो अंगकों का नाम बताइए जिनमें अपना आनुवांशिक पदार्थ होता है ? </h4><p><b>उत्तर</b> 1. माइटोकॉड्रिया ( जन्तुओं में ) 2. प्लैस्टिड ( पादपों में ) </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 14- लाइसोसोम को आत्मघाती थैली क्यो कहते है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - कोशिकीय चयापचय में व्यवधान के कारण जब कोशिका क्षतिग्रस्त या मृत हो जाती हैं , तो लाइसोसोम फट जाते हैं और एंजाइम अपनी ही कोशिका को पाचित कर देते हैं इसलिए लाइसोसोम को आत्मघाती थैली कहते हैं । </p><h4 style="text-align: left;">प्रश्न 15- कोशिका के अंदर प्रोटिन का संश्लेषण कहाँ होता है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - माइटोकॉन्ड्रिया में ।</p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “<a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html"><b>NCERT Solution</b> <b>Variousinfo</b></a>” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में <b>Bookmark (Ctrl + D) </b>करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी <b><span style="color: red;">Subscribe</span></b> करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे <b><span style="color: #3d85c6;">whatsapp , Facebook</span> या <span style="color: #3d85c6;">Twitter</span></b> जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद ! </p><p><br /></p></div></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-50125819406419535192021-11-03T19:30:00.004-07:002021-11-13T03:07:48.144-08:00Class 9th science notes chapter 4 Structure of The Atom (परमाणु की संरचना)<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><b>Class 9 Science Chapter 4 solution in Hindi</b> अध्याय 4 परमाणु की संरचना [ <b>Structure of The Atom</b> ] - इस आर्टिकल में हमने अध्याय 4 परमाणु की संरचना से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियां संक्षिप्त में उपलब्ध कराने की कोशिश की है।</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgpQFezMunWG9sbXQrvAB8cG23zAkh5VMc2F6AOWIlSX9_TXEuyFAa8AbZcrbc0BCda8YzB4W6P9UIkxBMc8uqPuZF49yotiGTagJd7WOJ-JmzS1j7buWz2ZXeb0NSkD8cSy8sSm4z4fSN_biwrAQW--olXKG_4LWpq7QMTGUjNmixHabKvF2DA9Os=s1916" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 9th science notes chapter 4 Structure of The Atom (परमाणु की संरचना)" border="0" data-original-height="1689" data-original-width="1916" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgpQFezMunWG9sbXQrvAB8cG23zAkh5VMc2F6AOWIlSX9_TXEuyFAa8AbZcrbc0BCda8YzB4W6P9UIkxBMc8uqPuZF49yotiGTagJd7WOJ-JmzS1j7buWz2ZXeb0NSkD8cSy8sSm4z4fSN_biwrAQW--olXKG_4LWpq7QMTGUjNmixHabKvF2DA9Os=s16000" title="Class 9th science notes chapter 4 Structure of The Atom (परमाणु की संरचना)" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><p></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-size: large;"><span style="text-align: left;">अध्याय 4 परमाणु की संरचना के </span>महत्त्वपूर्ण तथ्य </span></h2><p></p><ul style="text-align: left;"><li><b>इलेक्ट्रॉन की खोज</b> जे . टॉमसन ने की । </li><li><b>प्रोटॉन की खोज </b>ई . गोल्डस्टीन ने की । </li><li><b>जे . जे . टॉमसन</b> ने यह प्रस्तावित किया था कि इलेक्ट्रॉन धनात्मक गोले में फँसे होते हैं । </li><li><b>रदरफोर्ड</b> के अल्फा कणों के प्रकीर्णन प्रयोग ने <b>परमाणु केन्द्रक की खोज की</b> । </li><li><b>रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल</b> ने प्रस्तावित किया कि परमाणु के अंदर बहुत छोटा केन्द्रक होता है और इलेक्ट्रॉन केन्द्रक के चारों ओर घूमते हैं । परमाणु की स्थिरता की इस मॉडल से व्याख्या नहीं की जा सकी है । </li><li><b>नील बोर</b> द्वारा दिया गया परमाणु का मॉडल अधिक सफल था । उन्होंने प्रस्तावित किया कि इलेक्ट्रॉन केन्द्रक के चारों ओर निश्चित ऊर्जा के साथ अलग - अलग कक्षाओं में वितरित हैं । अगर परमाणु की सबसे बाहरी कक्षाएँ भर जाती हैं , तो परमाणु स्थिर होगा और कम क्रियाशील होगा । </li><li><b>जे . चैडविक</b> ने परमाणु अन्दर न्यूट्रॉन की उपस्थिति को खोजा । इस प्रकार परमाणु तीन अवपरमाणुक कण हैं - इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन और न्यूट्रॉन । इलेक्ट्रॉन ऋण आवेशित होते हैं , प्रोटॉन धनावेशित होते हैं और न्यूट्रॉन अनावेशित होते हैं । इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के 1/2000 गुणा होता है । प्रोटॉन और न्यूट्रॉन में प्रत्येक का द्रव्यमान एक इकाई लिया जाता है । </li><li><b>परमाणु के कक्षों</b> को K , L , M , N ........ नाम दिया गया है । </li><li><b>संयोजकता</b> परमाणु की संयोजन शक्ति है । </li><li>एक तत्व की परमाणु संख्या केन्द्रक में विद्यमान प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है । </li><li><b>परमाणु की द्रव्यमान संख्या</b> केन्द्रक में विद्यमान न्यूक्लियानों की संख्या के बराबर होती है । </li><li><b>समस्थानिक</b> एक ही तत्व के परमाणु हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या भिन्न - भिन्न होती है । </li><li><b>समभारिक</b> वे परमाणु हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या समान लेकिन परमाणु संख्या भिन्न - भिन्न होती है । </li><li>तत्वों को उनके प्रोटॉनों की संख्या के आधार पर परिभाषित किया जा सकता है ।</li></ul><p></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">( B ) क्रियाकलाप क्रियाकलाप 4.1 ( पृष्ठ संख्या 52 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न A. सूखे बालों पर कंघी कीजिए । क्या कंघी कागज छोटे - छोटे टुकड़ों को आकर्षित करती है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - सूखे बालों पर कंघी करने पर कंघी पर ऋणावेश उत्पन्न हो जाता है क्योंकि बालों से इलेक्ट्रॉन कंघी में स्थानान्तरित जाते हैं । जब कंघी को कागज के छोटे - छोटे टुकड़ों के पास लाया जाता है तो कागज ( जो पहले अनावेशित था ) पर कंघी के पास वाले सिरे पर धनात्मक आवेश उत्पन्न हो जाता है । कागज के दूसरे सिरे पर ऋणात्मक आवेश उत्पन्न होता है । चूँकि विपरीत आवेश एक - दूसरे को आकर्षित करते हैं अत : कागज के टुकड़े कंघी की ओर आकर्षित हो जाते हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न B. काँच की एक छड़ को सिल्क के कपड़े पर रगड़िए और इस छड़ को हवा से भरे गुब्बारे के पास लाइए । क्या होता है , ध्यान से देखिए । </h3><p><b>उत्तर</b> - काँच की छड़ को सिल्क से रगड़ने पर इसमें धनात्मक आवेश उत्पन्न हो जाता है व सिल्क के कपड़े पर ऋणात्मक आवेश उत्पन्न होता है । जब काँच की छड़ को हवा से भरे गुब्बारे के पास लाया जाता है तो यह गुब्बारे को आकर्षित करती है क्योंकि गुब्बारा ऋणावेशित हो जाता है । </p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">( C ) पाठान्तर्गत प्रश्नोत्तर • प्रश्न श्रृंखला # 01 ( पृष्ठ संख्या 53 )</span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1.केनाल किरणें क्या हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - केनाल किरणें धनावेशित विकिरण होती हैं । इनके द्वारा अंततः दूसरे अवपरमाणुक तत्वों की खोज हुई । धनावेशित कणों का आवेश इलेक्ट्रॉनों के आवेश के बराबर किन्तु विपरीत होता है । इनका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा लगभग 2000 गुणा अधिक होता है । इनको प्रोटॉन कहते हैं । <b>केनाल किरणों की खोज </b>ई . गोल्डस्टीन ने 1886 में की । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. यदि किसी परमाणु में एक इलेक्ट्रॉन और एक प्रोटॉन है , तो इसमें कोई आवेश होगा या नहीं ? </h3><p><b>उत्तर</b> - नहीं , परमाणु पर कोई आवेश नहीं होगा क्योंकि प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन के आवेश संतुलित होंगे । इलेक्ट्रॉन व प्रोटॉन का आवेश एक - दूसरे के बराबर किन्तु विपरीत होता है । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न शृंखला # 02 ( पृष्ठ संख्या 56 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. परमाणु उदासीन है , इस तथ्य को टॉमसन के मॉडल के आधार पर स्पष्ट कीजिए । </h3><p><b>उत्तर - टॉमसन के परमाणु मॉडल के आधार पर-</b></p><p>( i ) परमाणु धनावेशित गोले का बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें फँसे होते हैं । </p><p>( ii ) ऋणात्मक और धनात्मक आवेश परिमाण में समान होते हैं । इसलिए परमाणु वैद्युतीय रूप से उदासीन होते हैं । अत : टॉमसन का मॉडल परमाणु के उदासीन होने की व्याख्या करता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार , परमाणु के नाभिक में कौन - सा अवपरमाणुक कण विद्यमान है ? </h3><p><b>उत्तर</b> - रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार , परमाणु के नाभिक में धनावेशित अवपरमाणुक कण विद्यमान है ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. तीन कक्षाओं वाले बोर के परमाणु मॉडल का चित्र बनाइये।</h3><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhecVmOGkNR03ANQ0Nt9lzFMi8nq_E7W6vE_WD68OmwI9wDPUQ-kAzA6ycJjhriJaOGUjr9U5UmHikicpg8zGGFRIGrcfod14c7oGMTOrJuwmiL3dUv47h9B0xJfVLFYIZaq-BXYruLsl0/s975/IMG_20201225_140231.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="तीन कक्षाओं वाले बोर के परमाणु मॉडल का चित्र बनाइये।" border="0" data-original-height="433" data-original-width="975" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhecVmOGkNR03ANQ0Nt9lzFMi8nq_E7W6vE_WD68OmwI9wDPUQ-kAzA6ycJjhriJaOGUjr9U5UmHikicpg8zGGFRIGrcfod14c7oGMTOrJuwmiL3dUv47h9B0xJfVLFYIZaq-BXYruLsl0/s16000/IMG_20201225_140231.jpg" title="तीन कक्षाओं वाले बोर के परमाणु मॉडल का चित्र बनाइये।" /></a></div><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. क्या अल्फा कणों का प्रकीर्णन प्रयोग सोने के अतिरिक्त दूसरी धातु की पन्नी से सम्भव होगा ? </h3><p><b>उत्तर</b> - यदि अल्फा कणों का प्रकीर्णन प्रयोग सोने के अतिरिक्त किसी दूसरी धातु की पन्नी से किया जायेगा तो प्रयोग सफल नहीं होगा व सटीक निष्कर्ष नहीं निकलेगा । अन्य धातु की परत इतनी पतली नहीं होती । मोटी परत वाली पन्नी लेने पर अधिक अल्फा कण विक्षेपित होंगे व परमाणु में धनावेशित भाग की स्थिति का निश्चित रूप से अनुमान लगाना कठिन होगा । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न श्रृंखला # 03 ( पृष्ठ संख्या 56 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. परमाणु के तीन अवपरमाणुक कणों के नाम लिखें।</h3><p><b>उत्तर</b> - परमाणु के तीन अवपरमाणुक कण हैं- इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. हीलियम परमाणु का परमाणु द्रव्यमान 4u है और इसके नाभिक में दो प्रोटॉन होते हैं । इसमें कितने न्यूट्रॉन होंगे ? </h3><p><b>उत्तर</b> - परमाणु का द्रव्यमान नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के द्रव्यमान के योग के बराबर होता है । </p><p>हीलियम परमाणु का परमाणु द्रव्यमान = 4u </p><p>हीलियम के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन = 2 </p><p>अत : इसमें उपस्थित न्यूट्रॉन का द्रव्यमान = 4u/2 = 2u </p><p>इसमें उपस्थित न्यूट्रॉन = 2</p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न शृंखला # 04 ( पृष्ठ संख्या 57 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. कार्बन और सोडियम के परमाणुओं के लिए इलेक्ट्रॉन - वितरण लिखिए । </h3><p><b>उत्तर</b> - कार्बन परमाणु में कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या 6 है </p><p><b>कार्बन परमाणु में इलेक्ट्रॉन वितरण- </b></p><p>पहला K कोश = 2 इलेक्ट्रॉन </p><p>दूसरा L कोश = 4 इलेक्ट्रॉन </p><p>या कार्बन परमाणु में इलेक्ट्रॉन वितरण 2 , 4 है । </p><p><br /></p><p><b>सोडियम परमाणु में कुल इलेक्ट्रॉन 11 हैं । </b></p><p>सोडियम परमाणु में इलेक्ट्रॉन वितरण-</p><p>प्रथम K कोश = 2 इलेक्ट्रॉन </p><p>दूसरा L कोश = 8 इलेक्ट्रॉन </p><p>तीसरा M कोश = 1 इलेक्ट्रॉन </p><p>अत : सोडियम में इलेक्ट्रॉन वितरण 2,8 , 1 है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. अगर किसी परमाणु का K और L कोश भरा है , तो परमाणु में इलेक्टॉनों की संख्या क्या होगी ? </h3><p>उत्तर- </p><p>K कक्ष के लिए अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या = <span face=""Lucida Sans Unicode", "Lucida Grande", sans-serif" style="font-size: 18px;">2×1² = 2</span></p><p>L कक्ष के लिए यह संख्या = 2 × (2)^<sup>2</sup> = 8 </p><p>अत : परमाणु में 10 इलेक्ट्रॉन होंगे । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न श्रृंखला # 05 ( पृष्ठ संख्या 58 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. क्लोरीन , सल्फर और मैग्नीशियम की परमाणु संख्या से आप इनकी संयोजकता कैसे प्राप्त करेंगे ? </h3><p><b>उत्तर</b>- यदि किसी परमाणु के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 4 या उससे कम है , तो उस तत्व की संयोजकता बाह्यतम कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होगी यदि परमाणु के बाह्यतम कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या 4 से अधिक है तो उसकी संयोजकता , बाह्यतम कक्ष में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या को 8 में से घटाकर प्राप्त किया जाता है ।</p><p><b>क्लोरीन की परमाणु संख्या = 17 </b></p><p>क्लोरीन में इलेक्ट्रॉनों की का वितरण = 2,8,7 </p><p>अत : क्लोरीन की संयोजकता = 8-7 = 1 </p><p><br /></p><p><b>सल्फर की परमाणु संख्या = 16 </b></p><p>सल्फर में इलेक्ट्रॉनों का वितरण = 2,8,6 </p><p>अत : सल्फर की संयोजकता = 8-6 = 2 </p><p><br /></p><p><b>मैग्नीशियम की परमाणु संख्या = 12 </b></p><p>मैग्नीशियम में इलेक्ट्रॉनों का वितरण = 2,8,2 </p><p>अत : मैग्नीशियम की संयोजकता = 2 </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न श्रृंखला # 06 ( पृष्ठ संख्या 59 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. यदि किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या 8 है और प्रोटॉनों की संख्या भी 8 है तब , ( a ) परमाणु की परमाणुक संख्या क्या है ? ( b ) परमाणु का क्या आवेश है ? </h3><p>उत्तर- ( a ) परमाणु की परमाणुक संख्या उसमें उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या के बराबर होती है । अत : परमाणु की परमाणुक संख्या 8 है।</p><p> ( b ) चूँकि इलेक्ट्रॉनों व प्रोटॉनों की संख्या बराबर अतः परमाणु का आवेश शून्य होगा या परमाणु अनावेशित होगा । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. ऑक्सीजन और सल्फर - परमाणु की द्रव्यमान संख्या ज्ञात कीजिए । </h3><p>हल :</p><p><b>ऑक्सीजन की द्रव्यमान संख्या </b>= प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या = 8 + 8 = 16 </p><p><b>सल्फर की द्रव्यमान संख्या</b> = प्रोटॉनों की संख्या + न्यूट्रॉनों की संख्या = 16 + 16 = 32 </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: large;">प्रश्न श्रृंखला 07 ( पृष्ठ संख्या 60 ) </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. चिह्न H , D और T के लिए प्रत्येक में पाए जाने वाले तीन अवपरमाणुक कणों को सारणीबद्ध कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="चिह्न H , D और T के लिए प्रत्येक में पाए जाने वाले तीन अवपरमाणुक कणों को सारणीबद्ध कीजिए ।" border="0" data-original-height="186" data-original-width="905" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgAnZTXZjfhpoECaw_OWj4Mhe-DgVSNIz6xdKFhM6Q-mZX0kQsekP3Z-YAwqijwu8PhLN-i51WcSyoClBFk-vGYg0Yqls0E7MXtLM07aqrDedDlQMl0ZdMGBSjeGDVbom1vqOadgnGGFa0/s16000/IMG_20201225_141310.jpg" title="चिह्न H , D और T के लिए प्रत्येक में पाए जाने वाले तीन अवपरमाणुक कणों को सारणीबद्ध कीजिए ।" /></div><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. समस्थानिक और समभारिक के किसी एक युग्म का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए । </h3><p><b>उत्तर</b> -</p><p>कार्बन के दो समस्थानिकों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1TufiO7fxGpWk3gldnFnsjPgRTD5E8tfsLgmI3UcRja53EjDOKDPcE6DKlOgKpG06FImaXHP_lhN1Qec63ig4EnA8WH9LyDzdDs3n-nqvjwg508DMSmyLYzPMZCNpAMENL984rTJNvQo/s1080/IMG_20201225_141532.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="समस्थानिक और समभारिक के किसी एक युग्म का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए ।" border="0" data-original-height="680" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1TufiO7fxGpWk3gldnFnsjPgRTD5E8tfsLgmI3UcRja53EjDOKDPcE6DKlOgKpG06FImaXHP_lhN1Qec63ig4EnA8WH9LyDzdDs3n-nqvjwg508DMSmyLYzPMZCNpAMENL984rTJNvQo/s16000/IMG_20201225_141532.jpg" title="समस्थानिक और समभारिक के किसी एक युग्म का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए ।" /></a></div><p><b><span style="color: red; font-size: x-large;">( D ) पाठान्त प्रश्नोत्तर </span></b></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 1. इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए ।</h3><p><b>उत्तर </b>:</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए ।" border="0" data-original-height="396" data-original-width="1022" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhKvvpHxcKlvBFwYcjXR-7hGaPHndnmE-n6woFo6_uSMchyphenhyphen7uTpsa3Adbf5KS5Pb8aAkPZ_i5e5FAUezL2m1-IktM9dm0yK_42MgGQsfogTvOcMqotYsM-7dHx-uXL-vjdQAS9YEpdvjRI/s16000/IMG_20201225_141826.jpg" title="इलेक्ट्रॉन , प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के गुणों की तुलना कीजिए ।" /></div><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 2. जे . जे . टॉमसन के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं ?</h3><p><b>उत्तर</b> - जे . जे . टॉमसन का परमाणु मॉडल दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोगों के परिणामों को नहीं समझा सका । इसको किसी प्रयोग द्वारा स्थापित नहीं किया गया । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 3. रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल की क्या सीमाएँ हैं ? </h3><p><b>उत्तर</b>- रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल से परमाणु की स्थिरता की व्याख्या नहीं की जा सकती । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 4. बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b>- नील्स बोर ने परमाणु की संरचना के बारे में निम्नलिखित अवधारणाएँ प्रस्तुत की -</p><p>( i ) परमाणु का केन्द्र धनावेशित होता है जिसे नाभिक कहा जाता है । एक परमाणु का लगभग सम्पूर्ण द्रव्यमान नाभिक में होता है । </p><p>( ii ) नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में काफी कम होता है । </p><p>( iii ) नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते हैं , जिन्हें इलेक्ट्रॉन की विविक्त कक्षा कहते हैं ।</p><p>( iv ) जब इलेक्ट्रॉन इस विविक्त कक्षा में चक्कर लगाते हैं तो उनकी ऊर्जा का विकिरण नहीं होता है । इन कक्षाओं ( या कोशों ) को ऊर्जा स्तर कहते हैं । ये कक्षाएँ ( या कोश ) K , L , M , N ....... या संख्याओं , 1 , 2 , 3 , 4 .... के द्वारा दिखाई जाती है , जैसा कि नीचे चित्र में दिखाया गया है । </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrqUvaHM0ivLCMGMpCEPwaIA7WeGf_g62FDKulDnMzXKOJfSXW1mIfB6-T7sXIgC3dT0trcuIg7pe0NTvKMYidFM1VMGOmSE7EUE9STtBdnLlqpz_gDTNE62E9R4soy8Ov4uqiFRzV8ow/s975/IMG_20201225_140231.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए । उत्तर- नील्स बोर ने परमाणु की संरचना के बारे में निम्नलिखित अवधारणाएँ प्रस्तुत की -" border="0" data-original-height="433" data-original-width="975" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjrqUvaHM0ivLCMGMpCEPwaIA7WeGf_g62FDKulDnMzXKOJfSXW1mIfB6-T7sXIgC3dT0trcuIg7pe0NTvKMYidFM1VMGOmSE7EUE9STtBdnLlqpz_gDTNE62E9R4soy8Ov4uqiFRzV8ow/s16000/IMG_20201225_140231.jpg" title="बोर के परमाणु मॉडल की व्याख्या कीजिए । उत्तर- नील्स बोर ने परमाणु की संरचना के बारे में निम्नलिखित अवधारणाएँ प्रस्तुत की -" /></a></div><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 5. इस अध्याय में दिए गए सभी परमाणु मॉडलों की तुलना कीजिए </h3><p><b>उत्तर</b>:<b> ( i ) जे.जे. टॉमसन का परमाणु मॉडल</b> : टॉमसन ने परमाणुओं की संरचना से संबंधित एक मॉडल प्रस्तुत किया , जो तरबुज कि तरह था । उन्होंने इसके लिए निम्न मॉडल प्रास्तावित किया । </p><p>( 1 ) परमाणु धनआवेशित गोले का बना होता है और इलेक्ट्रॉन उसमें धंसे होते है । </p><p>( 2 ) ऋणात्मक और धनात्मक आवेश परिणाम में समान होते है । इसलिए परमाणु वैद्युतीय रूप से उदासीन होता है । </p><p><b>( ii ) रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल</b> : रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के अनुसार , परमाणु में धनावेशित भाग उसके केंद्र में है जिसे नाभिक कहा जाता है । इस नाभिक में परमाणु का समस्त द्रव्यमान स्थित है । इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर स्थित रिक्त स्थान में चक्कर लगाते हैं । नाभिक का आकार परमाणु के आकार कि तुलना में अत्यंत कम या उपेक्षनीय है । ठीक वैसे ही जैसे एक बड़े से मैदान के बीच में रखा फूटबाल ।</p><p><b>( iii ) बोर का परमाणु मॉडल</b> : इलेक्ट्रॉन केवल कुछ निश्चित कक्षाओं में ही चक्कर लगा सकते है , जिन्हें इलेक्ट्रॉन की विविक्त कक्षा कहते है । जब इलेक्ट्रॉन इस विविक्त कक्षा में चक्कर लगाते है तो उनकी उर्जा का विकिरण नहीं होता ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 6. पहले अठारह तत्वों के विभिन्न कक्षों में इलेक्ट्रॉन वितरण के नियम को लिखिए । </h3><p><b>उत्तर</b> - पहले अठारह तत्वों के विभिन्न कक्षों में इलेक्ट्रॉन वितरण के लिए बोर और बरी ने निम्न नियम प्रस्तुत किए </p><p>( i ) किसी कक्षा में उपस्थित अधिकतम इलेक्ट्रॉनों की संख्या को सूत्र 272 से दर्शाया जाता है , जहाँ । ' कक्षा की संख्या या ऊर्जा स्तर है । इसलिए इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या पहले कक्ष या K कोश में होगी 2 × 1^<sup>2</sup> = 2 , </p><p>दूसरे कक्ष या L कोश में होगी = 2 × 2^<sup>2</sup> = 8 </p><p>तीसरे कक्ष या M कोश में होगी = 2 × 3^<sup>2</sup> = 18 </p><p>चौथे कक्ष या N कोश में होगी = 2 × 4^<sup>2</sup> = 32 </p><p>( ii ) सबसे बाहरी कोश में इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 8 हो सकती है । </p><p>( iii ) किसी परमाणु के दिए कोश में इलेक्ट्रॉन तब तक स्थान नहीं लेते हैं जब तक कि उससे पहले वाले भीतरी कक्ष पूर्ण रूप से भर नहीं जाते । इससे स्पष्ट होता है कि कक्षाएँ क्रमानुसार भरती हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 7. सिलिकॉन और ऑक्सीजन का उदाहरण लेते हुए संयोजकता की परिभाषा दीजिए । </h3><p><b>उत्तर</b> - परमाणु के बाह्यतम कक्ष में इलेक्ट्रॉनों के अष्टक बनाने के लिए जितनी संख्या में इलेक्ट्रॉनों की साझेदारी या स्थानांतरण होता है , वही उस तत्व की संयोजकता - शक्ति अर्थात् संयोजकता होती है । संयोजकता परमाणु की संयोजन शक्ति है सिलिकॉन ( Si ) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2,8,4 है । </p><p>अत : <b>सिलिकॉन की संयोजकता 4 </b>होगी क्योंकि उसे अष्टक पूर्ण करने के लिए 4 इलेक्ट्रॉन साझा करने पड़ेंगे । ऑक्सीजन ( O ) का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2 , 6 है । अतः <b>ऑक्सीजन की संयोजकता</b> 2 होगी क्योंकि उसे अपना अष्टक बनाने के लिए 2 इलेक्ट्रॉन लेने पड़ेंगे । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 8. उदाहरण के साथ व्याख्या कीजिए - परमाणु संख्या , द्रव्यमान संख्या , समस्थानिक और समभारिक । समस्थानिकों के कोई दो उपयोग लिखिए । </h3><p><b>उत्तर - परमाणु संख्या - </b>एक परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की कुल संख्या को परमाणु कहते हैं । इसे Z के द्वारा दर्शाया जाता है । किसी तत्व के सभी अणुओं की परमाणु संख्या ( Z ) समान होती है । </p><p>हाइड्रोजन के लिए Z = 1 , क्योंकि हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक में केवल एक प्रोटॉन होता है । </p><p><b>द्रव्यमान संख्या -</b> एक परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों की कुल संख्या के योग को द्रव्यमान संख्या कहा जाता है । उदाहरण के लिए कार्बन का द्रव्यमान 12u है क्योंकि इसमें 6 प्रोटॉन और 6 न्यूट्रॉन होते हैं , 6 u + 6u = 12। इसी प्रकार ऐलुमिनियम का द्रव्यमान 27 u है ( 13 प्रोटॉन + 14 न्यूट्रॉन ) ।</p><p><b>समस्थानिक - </b>समस्थानिक एक ही तत्त्व के परमाणु होते हैं जिनकी परमाणु संख्या समान लेकिन द्रव्यमान संख्या भिन्न होती है।</p><p>उदाहरण के लिए , हाइड्रोजन परमाणु की तीन परमाण्विक स्पीशीज होती हैं - प्रोटियम , H ड्यूटीरियम ( H या D ) ट्राइटियम H या T ) । प्रत्येक की परमाणु संख्या समान है लेकिन द्रव्यमान संख्या क्रमश : 1.2 और 3 है । </p><p><b>समभारिक - </b>समभारिक वे परमाणु हैं जिनकी द्रव्यमान संख्या समान लेकिन परमाणु संख्या भिन्न - भिन्न होती है । दो तत्वों - कैल्शियम , परमाणु संख्या 20 और आर्गन परमाणु संख्या में परमाणु संख्या भिन्न है लेकिन उनकी द्रव्यमान संख्या 40 यानि कि समान है ।</p><p> <b><span style="color: red;">समस्थानिकों के अनुप्रयोग- </span></b></p><p>( 1 ) यूरेनियम के एक समस्थानिक का उपयोग परमाणु भट्टी ( atomic reactor ) में ईंधन के रूप में होता है । </p><p>( 2 ) कैंसर के उपचार में कोबाल्ट के समस्थानिक का उपयोग होता है । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 9. Na<sup>+ </sup>के पूरी तरह भरे हुए K व L कोश होते है - व्याख्या कीजिए ।</h3><p><b>उत्तर</b> - सोडियम Na की परमाणु संख्या 11 है । अत : Na में 11 इलेक्ट्रॉन हैं व उसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2 , 8 , 1 है । </p><p>किन्तु Na<sup>+</sup> में 10 इलेक्ट्रॉन होते हैं । 10 में से K कक्ष में 2 व L कक्ष में 8 इलेक्ट्रॉन होंगे । अत : Na<sup>+ </sup>के पूरी तरह भरे हुए K व L कोश होते हैं । </p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 10. अगर <b>ब्रोमीन परमाणु दो समस्थानिकों <sup>79</sup><sub>35</sub>Br (49.7%) तथा <sup>81</sup><sub>35</sub>Br (50.3%) </b>के रूप में है, तो ब्रोमीन परमाणु के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_DBPc8RpWnQ5M7-fJBUsYVHYCQeqmQaKDYuWN2nrLzmGqf9AEuc8LaCbHbMW3kCP_s_-I7Xhsh5RjWXxrsYCGvCtB9yyyNlJAfHqdqpZqAzBl0IP_LXtYmzryOyRrLv4bqWlWFgC7WyE/s751/IMG_20201225_150800.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="अगर ब्रोमीन परमाणु दो समस्थानिकों 7935Br (49.7%) तथा 8135Br (50.3%) के रूप में है, तो ब्रोमीन परमाणु के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।" border="0" data-original-height="164" data-original-width="751" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_DBPc8RpWnQ5M7-fJBUsYVHYCQeqmQaKDYuWN2nrLzmGqf9AEuc8LaCbHbMW3kCP_s_-I7Xhsh5RjWXxrsYCGvCtB9yyyNlJAfHqdqpZqAzBl0IP_LXtYmzryOyRrLv4bqWlWFgC7WyE/s16000/IMG_20201225_150800.jpg" title="अगर ब्रोमीन परमाणु दो समस्थानिकों 7935Br (49.7%) तथा 8135Br (50.3%) के रूप में है, तो ब्रोमीन परमाणु के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।" /></a></div><br /></h3><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfME0JQKV5V5ouIdNFx-g9gYKlx1o5-tNL-X2ke_P8h4yXass1Hvky61juMVr8JUD_pjKiRL912vCnx2tqcyPst0WwZ2CqBHCJEHKlypIQ1sq7aUSYrwTGp0Npke8RHxrIIPlx2oi5V5M/s1027/IMG_20201225_135706.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="अगर ब्रोमीन परमाणु दो समस्थानिकों 7935Br (49.7%) तथा 8135Br (50.3%) के रूप में है, तो ब्रोमीन परमाणु के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।" border="0" data-original-height="410" data-original-width="1027" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhfME0JQKV5V5ouIdNFx-g9gYKlx1o5-tNL-X2ke_P8h4yXass1Hvky61juMVr8JUD_pjKiRL912vCnx2tqcyPst0WwZ2CqBHCJEHKlypIQ1sq7aUSYrwTGp0Npke8RHxrIIPlx2oi5V5M/s16000/IMG_20201225_135706.jpg" title="अगर ब्रोमीन परमाणु दो समस्थानिकों 7935Br (49.7%) तथा 8135Br (50.3%) के रूप में है, तो ब्रोमीन परमाणु के औसत परमाणु द्रव्यमान की गणना कीजिए।" /></a></div><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 11. एक तत्व X का परमाणु द्रव्यमान 16.2 u है तो इसके किसी एक नमूने में समस्थानिक <sup>16</sup><sub>8</sub>X और <sup>18</sup><sub>8</sub>X का प्रतिशत क्या होगा?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfJVmBy28Ee0ObaCqwEL1yxDjEMPhjH0TwkbXxggDjmxuVzucu5VRHbK4Ac3dBGql7QImDJ642AEzfJZzqsXCNiEb5N8PZ3qIBKAoX2lefJUrr3pWqGXXh69FJ5hmhTXh_T1ujgWe9FFY/s1080/IMG_20201225_151001.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="एक तत्व X का परमाणु द्रव्यमान 16.2 u है तो इसके किसी एक नमूने में समस्थानिक 168X और 188X का प्रतिशत क्या होगा?" border="0" data-original-height="227" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfJVmBy28Ee0ObaCqwEL1yxDjEMPhjH0TwkbXxggDjmxuVzucu5VRHbK4Ac3dBGql7QImDJ642AEzfJZzqsXCNiEb5N8PZ3qIBKAoX2lefJUrr3pWqGXXh69FJ5hmhTXh_T1ujgWe9FFY/s16000/IMG_20201225_151001.jpg" title="एक तत्व X का परमाणु द्रव्यमान 16.2 u है तो इसके किसी एक नमूने में समस्थानिक 168X और 188X का प्रतिशत क्या होगा?" /></a></div><br /></h3><p><b>उत्तर</b>:</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg81EVMJLhmngTeO0HlcQyZ4SfiLUmdNneT7V1tRbADhRsoS7uIAZd8ykkvTEhaUNIjVFRBsxL89VTlM9Am9usFuLeVqaN-wgawSQQ0L513rYXpCNSSZ7j9hMkz-0KVPWVB4hsDuYpINqw/s1080/IMG_20201225_135735.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="एक तत्व X का परमाणु द्रव्यमान 16.2 u है तो इसके किसी एक नमूने में समस्थानिक 168X और 188X का प्रतिशत क्या होगा?" border="0" data-original-height="754" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg81EVMJLhmngTeO0HlcQyZ4SfiLUmdNneT7V1tRbADhRsoS7uIAZd8ykkvTEhaUNIjVFRBsxL89VTlM9Am9usFuLeVqaN-wgawSQQ0L513rYXpCNSSZ7j9hMkz-0KVPWVB4hsDuYpINqw/s16000/IMG_20201225_135735.jpg" title="एक तत्व X का परमाणु द्रव्यमान 16.2 u है तो इसके किसी एक नमूने में समस्थानिक 168X और 188X का प्रतिशत क्या होगा?" /></a></div><p></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 12. यदि तत्व का Z = हो तो तत्व की संयोजकता क्या होगी ? तत्व का नाम भी लिखिए । </h3><p><b>उत्तर</b>- Z = 3 का तात्पर्य है कि तत्व की परमाणु संख्या है , तो उसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 2, 1 होगा । अत : तत्व की संयोजकता 1 है ( क्योंकि उसके बाहरी कक्ष में 1 इलेक्ट्रॉन है । ) अत : Z = 3 वाला तत्व लीथियम है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 13. दो परमाणु स्पीशीज के केन्द्रकों का संघटन नीचे दिया गया है </h3><h3 style="text-align: left;"> X Y <br />प्रोटॉन 6 6<br />न्यूट्रॉन 6 8 <br />X और Y की द्रव्यमान संख्या ज्ञात कीजिए । इन दोनों स्पीशीज में क्या संबंध है ? </h3><p><br /></p><p><b>उत्तर</b>-<b> X की द्रव्यमान संख्या</b> = प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन की संख्या = 6 + 6 = 12 </p><p><b>Y की द्रव्यमान संख्या</b> = प्रोटॉन की संख्या + न्यूट्रॉन की संख्या = 6 + 8 = 14 </p><p> इन दोनों परमाणु स्पीशीज में परमाणु संख्या समान है । परन्तु <b>द्रव्यमान संख्या </b>भिन्न है । अतः ये <b>समस्थानिक</b> हैं ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 14: निम्नलिखित में से सही और गलत पहचानो</h3><p dir="ltr"></p><ol style="text-align: left;"><li>जे जे टॉमसन ने यह प्रस्तावित किया था कि परमाणु के केंद्रक में केवल न्यूक्लीयॉन्स होते हैं।</li><li>एक इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन मिलकर न्यूट्रॉन का निर्माण करते हैं इसलिए यह अनावेशित रहता है।</li><li>इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान प्रोटॉन से लगभग 1/2000 गुणा होता है।</li><li>आयोडीन के समस्थानिक का इस्तेमाल टिंक्चर आयोडीन बनाने में होता है। इसका उपयोग दवा के रूप में होता है।</li></ol><p></p><p dir="ltr"><b>उत्तर</b>: (1) F, (2) F, (3) T, (4) T</p><p dir="ltr"><br /></p><p dir="ltr"></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 15: रदरफोर्ड के अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग किसकी खोज के लिए उत्तरदायी था:</h3><ol style="text-align: left;"><li>परमाणु केंद्रक</li><li>इलेक्ट्रॉन</li><li>प्रोटॉन</li><li>न्यूट्रॉन</li></ol><p></p><p dir="ltr"><b>उत्तर</b>: (3) प्रोटॉन</p><p dir="ltr"><br /></p><p dir="ltr"></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 16: एक तत्व के समस्थानिक में होते हैं:</h3><ol style="text-align: left;"><li>समान भौतिक गुण</li><li>भिन्न रासायनिक गुण</li><li>न्यूट्रॉनों की अलग-अलग संख्या</li><li>भिन्न परमाणु संख्या</li></ol><p></p><p dir="ltr"><b>उत्तर</b>: (3) न्यूट्रॉनों की अलग-अलग संख्या</p><p dir="ltr"><br /></p><p dir="ltr"></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 17: Cl<sup>-</sup> आयन में संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या है:</h3><ol style="text-align: left;"><li>16</li><li>8</li><li>17</li><li>18</li></ol><b>उत्तर: (2) 8</b><p></p><p dir="ltr"><br /></p><p dir="ltr"></p><h3 style="text-align: left;">प्रश्न 18: सोडियम का सही इलेक्ट्रॉनिक विन्यास निम्न में से कौन है?</h3><ol style="text-align: left;"><li>2, 8</li><li>8, 2, 1</li><li>2, 1, 8</li><li>2, 8, 1</li></ol><p></p><p> </p><p dir="ltr"><b>उत्तर: (4) 2, 8, 1</b></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। 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#6fa8dc;"><b>Ncert solution Class 9 Science Chapter 4 Question answer in Hindi Class 9 Science Chapter 4 Extra Questions and Answers NCERT Class 9 Science Chapter 4 PDF download , CH 4 Science Class 9 Notes PDF Q Class 9 Chapter 4 Atoms and Molecules Class 9 Worksheet with Answers 9th class Science chapter 4 , NCERT Solutions for Class 9 Science Chapter 4 in hindi solution</b></span></p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-8112075089301538702021-11-03T18:30:00.004-07:002021-11-13T03:07:48.342-08:00Class 9th science notes chapter 3 Atoms and molecules (परमाणु और अणु)<b>Class 9th science chapter 3 solution </b>इस पोस्ट में हमने कक्षा 9वीं विज्ञान के अध्याय 3 के संक्षिप्त नोट्स प्रस्तुत किये हैं। इस पोस्ट में <b>यौगिक, परमाणु, अणु, द्रव्यमान के संरक्षण का नियम, निश्चित अनुपात का नियम, बहुपरमाणुक आयन, समस्थानिक ( आइसोटोप ), आवोगाद्रो स्थिरांक, मोलर द्रव्यमान </b>जैसे प्रश्न शामिल किए हैं। हमें उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। आइये शुरू करते हैं।<div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgQSN9W8O1NK6d6VOgMkeV2h01ZaOZHi3XOlnWMY-RaMcB_oOov8RKpyVHCbABiFAXxG5S6hNGdQ1clhrueqJXfyvmJ7qU5nPdbUsm7GCjzEsGcA74RfBxixY7G_85aLUTCj2mqOrZtkPlN9m2FUcqoJCJscJl2Ote1F2_4DAfP0-VOQxjkmOxx7pw=s2048" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 9th science notes chapter 3 Atoms and molecules (परमाणु और अणु)" border="0" data-original-height="1188" data-original-width="2048" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgQSN9W8O1NK6d6VOgMkeV2h01ZaOZHi3XOlnWMY-RaMcB_oOov8RKpyVHCbABiFAXxG5S6hNGdQ1clhrueqJXfyvmJ7qU5nPdbUsm7GCjzEsGcA74RfBxixY7G_85aLUTCj2mqOrZtkPlN9m2FUcqoJCJscJl2Ote1F2_4DAfP0-VOQxjkmOxx7pw=s16000" title="Class 9th science notes chapter 3 Atoms and molecules (परमाणु और अणु)" /></a></div><p></p><h2 style="text-align: left;">इस अध्याय के महत्वपूर्ण बिंदु</h2><ul style="text-align: left;"><li>किसी पदार्थ का वह मुल पदार्थ जिसे सरलीकृत नहीं किया जा सके <b>तत्व</b> कहलाता है । जैसे- हाइड्रोजन , कार्बन , ऑक्सीजन , आयरन , चाँदी और सोना आदि । </li><li>पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण जिसे और आगे विभाजित नहीं किया जा सके वह <b>परमाणु</b> कहलाता है । </li><li>एक ही तत्व या भिन्न - भिन्न के दो या दो से अधिक परमाणुओं के समूह जो रासायनिक से एक दुसरे से बंधे होते है <b>अणु</b> कहलाते हैं । उदाहरण : O<span style="font-size: xx-small;">2</span>, H<span style="font-size: xx-small;">2</span> , N<span style="font-size: xx-small;">2</span> , H<span style="font-size: xx-small;">2</span>O , CO<span style="font-size: xx-small;">2</span> , MgCl<span style="font-size: xx-small;">2</span> , इत्यादि । </li><li>अणु जो एक से अधिक तत्वों से मिलकर बना है <b>यौगिक</b> कहलाता है । उदाहरण : H<span style="font-size: xx-small;">2</span>O , CO<span style="font-size: xx-small;">2</span> , NH<span style="font-size: xx-small;">3</span>, BrCl<span style="font-size: xx-small;">2</span> , CH<span style="font-size: xx-small;">4</span> , इत्यादि </li><li><b>किसी तत्व के सबसे छोटे कण परमाणु </b>होते हैं । जैसे - हाइड्रोजन के परमाणु ( H ) , ऑक्सीजन के परमाणु ( O ) , कार्बन के परमाणु ( C ) , मैग्नीशियम के परमाणु ( Mg ) इत्यादि । </li><li><b>द्रव्यमान संरक्षण का नियमः</b> द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अनुसार किसी रासायनिक अभिक्रिया में द्रव्यमान का न हीं तो सृजन होता है और न हीं विनाश होता है । </li><li><b>निश्चित अनुपात का नियमः</b> किसी भी यौगिक में तत्व सदैव एक निश्चित द्रव्यमान के अनुपात में विद्यमान होते हैं । </li><li>दिए गए तत्व के सभी परमाणुओं का द्रव्यमान एवं रासायनिक गुणधर्म समान होते हैं । </li><li>भिन्न - भिन्न तत्वों के परमाणुओं के द्रव्यमान एवं रासायनिक गुणधर्म भिन्न - भिन्न होते हैं । </li><li><b>डाल्टन के परमाणु सिद्धांत</b> में परमाणु द्रव्यमान सबसे विशिष्ट संकल्पना थी और उनके अनुसार प्रत्येक तत्व का एक अभिलाक्षणिक परमाणु द्रव्यमान होता है । </li><li><b>परमाणु द्रव्यमान इकाई</b> : किसी तत्व के सापेक्षिक परमाणु द्रव्यमान को उसके परमाणुओं के औसत द्रव्यमान का कार्बन -12 परमाणु के द्रव्यमान के 1/12 वें भाग के अनुपात को <b>परमाणु द्रव्यमान इकाई </b>कहते है। </li><li>किसी तत्व या यौगिक का अणु उस तत्व या यौगिक के सभी गुण धर्म को प्रदर्शित करते हैं ।</li><li>एक ही तत्व के परमाणु अथवा भिन्न - भिन्न तत्वों के ' परमाणु परस्पर संयोग करके अणु निर्मित करते हैं । </li><li>आर्गन ( Ar ) हीलियम ( He ) इत्यादि जैसे अनेक उत्कृष्ट ( गैसों ) तत्वों के अणु उसी तत्व के केवल एक परमाणु द्वारा निर्मित होते हैं । अत : ये एक परमाणुक होते हैं क्योंकि उत्कृष्ट गैसें किसी भी तत्व से यहाँ तक की खुद से भी संयोजन नहीं करती है । </li><li>किसी अणु संरचना में प्रयुक्त होने वाले परमाणुओं की संख्या को उस <b>अणु की परमाणुकता</b> कहते है । जैसे - ऑक्सीजन के अणु ( O ) की परमाणुकता 2 है । , फोस्फोरस के अणु ( P ) की परमाणुकता 4 है </li><li>कुछ तत्व जैसे ऑक्सीजन , हाइड्रोजन और क्लोरीन आदि अपने दो परमाणुओं से अणु बनाते हैं । ऐसे तत्व को <b>द्वि - परमाणुक अणु</b> कहते हैं। उदाहरण : ( a ) हाइड्रोजन ( H<span style="font-size: xx-small;">2</span> ) ( b ) ऑक्सीजन ( O<span style="font-size: xx-small;">2</span> ) </li><li>वह अणु जो तीन परमाणुओं से मिलकर बना होता है <b>त्रि - परमाणुक अणु </b>कहलाता है । जैसे - ओजोन ( O<span style="font-size: xx-small;">3</span> ) । </li><li>किसी तत्व के वें अणु जिसमें चार परमाणु होते हैं <b>चतुर्परमाणुक अणु</b> कहलाता है । जैसे - फोस्फोरस ( P<span style="font-size: xx-small;">4</span> ) </li><li>किसी तत्व के वें अणु जिसमें परमाणुओं की संख्या चार से अधिक हो <b>बहुपरमाणुक अणु </b>कहलाता है । जैसे- ( a ) सल्फर ( S<span style="font-size: xx-small;">8</span> ) ।</li><li>किसी परमाणु में प्रोट्रॉन तथा इलेक्ट्रान बरावर संख्या में होते हैं । अक्रिय गैस को छोड़कर सभी परमाणुओं का इलेक्ट्रोनिक रचनाएँ अस्थायी होते हैं । </li><li>परमाणु स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में नहीं रह सकते हैं । परमाणु अस्तित्व में बने रहने के लिए इलेक्ट्रॉन्स की साझेदारी करते हैं । </li><li>आयन विद्युत आवेशित कण होते हैं । </li><li>आयनों का इलेक्ट्रोनिक रचनाएँ स्थायी होते हैं । </li><li>आयन स्वतंत्र रूप से अस्तित्व में रह सकते हैं । </li><li><b>आयनिक यौगिकों</b> में पहला तत्व धातु ( metal ) होता है जो धनायन ( cation ) बनाता है और दूसरा तत्व अधातु ( non - metal ) होता है जो ऋणायन ( anion ) बनाता है ।</li><li><b>मोल</b> एक प्रकार से बहुत सारे परमाणुओं का ढेर ( heap ) है जिसमें किसी भी तत्व के परमाणुओं , अणुओं अथवा आयनों की संख्या 6.022 × 10²³ होता है । </li><li><b>मोल पदार्थ की वह मात्रा है </b>जिसमें कणों की संख्या ( परमाणु , आयन , अणु या सूत्र इकाई इत्यादि ) कार्बन -12 के ठीक 12 g में विद्यमान परमाणुओं के बराबर होती है । </li><li>किसी पदार्थ के एक मोल में कणों ( परमाणु , अणु अथवा आयन ) की संख्या निश्चित होती है । जिसका मान 6.022 × 10²³ होता है । इसी संख्या को <b>आवोगादो स्थिरांक या आवोगाद्रो संख्या</b> कहते हैं । </li><li>किसी तत्व के परमाणुओं के एक मोल का द्रव्यमान को <b>मोलर द्रव्यमान कहते </b>है । </li><li>परमाणुओं के मोलर द्रव्यमान को <b>ग्राम परमाणु द्रव्यमान </b>भी कहते हैं ।</li></ul><p></p><p style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;"><b>अभ्यास प्रश्नों के उत्तर</b></span></p><h4 style="text-align: left;">Q1 . एक अभिक्रिया में 5.3 ग्राम सोडियम कार्बोनेट तथा 6.0 ग्राम एथेनोइक अम्ल अभिकृत होता है । 2.2 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड 8.2 g सोडियम एथेनोएट एवं 0.9g जल उत्पादन के रूप में प्राप्त होता है । इस अभिक्रिया द्वारा दिखाइए की यह परिक्षण द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अनुरूप है । </h4><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio2R0Rcvq0BWGuL_nZnrXYL4In2wY16-j2Ct0Dung0CanedkkQN3esNNvDzM9Y3eS8ty3MkVZQ6R0j897c9kNUY34iG-iLrCDnphRqbX8phRfGFPwsg1kA1bHLVQ4liJxhOSUh3BWEhmE/s1080/IMG_20201224_145330.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="एक अभिक्रिया में 5.3 ग्राम सोडियम कार्बोनेट तथा 6.0 ग्राम एथेनोइक अम्ल अभिकृत होता है । 2.2 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड 8.2 g सोडियम एथेनोएट एवं 0.9g जल उत्पादन के रूप में प्राप्त होता है । इस अभिक्रिया द्वारा दिखाइए की यह परिक्षण द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अनुरूप है ।" border="0" data-original-height="247" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio2R0Rcvq0BWGuL_nZnrXYL4In2wY16-j2Ct0Dung0CanedkkQN3esNNvDzM9Y3eS8ty3MkVZQ6R0j897c9kNUY34iG-iLrCDnphRqbX8phRfGFPwsg1kA1bHLVQ4liJxhOSUh3BWEhmE/s16000/IMG_20201224_145330.jpg" title="एक अभिक्रिया में 5.3 ग्राम सोडियम कार्बोनेट तथा 6.0 ग्राम एथेनोइक अम्ल अभिकृत होता है । 2.2 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड 8.2 g सोडियम एथेनोएट एवं 0.9g जल उत्पादन के रूप में प्राप्त होता है । इस अभिक्रिया द्वारा दिखाइए की यह परिक्षण द्रव्यमान संरक्षण के नियम के अनुरूप है ।" /></a></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">Q2 . हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन द्रव्यमान के अनुसार 1.8 के अनुपात में संयोग करके जल निर्मित करते है । 3g हाइड्रोजन गैस के साथ पूर्ण रूप से संयोग करने के लिए कितने ऑक्सीजन गैस के द्रव्यमान की आवश्यकता होगी ? </h4><p><b>उत्तर</b>:</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIvaRPQy3ughpWrUpNo3OrzkPhR6A8RWJFdFFYKw-4zjnlwtxwTfgTH9SEGpg9QshNrsc6AHPXG3T_tu7uPvVe7oniMp7JUYctq-IPYoZQxOq54w6YxA9UhzXG_ceT58pNmjuGf0DJh9o/s1920/PicsArt_12-24-03.03.07.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन द्रव्यमान के अनुसार 1.8 के अनुपात में संयोग करके जल निर्मित करते है । 3g हाइड्रोजन गैस के साथ पूर्ण रूप से संयोग करने के लिए कितने ऑक्सीजन गैस के द्रव्यमान की आवश्यकता होगी ?" border="0" data-original-height="518" data-original-width="1920" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiIvaRPQy3ughpWrUpNo3OrzkPhR6A8RWJFdFFYKw-4zjnlwtxwTfgTH9SEGpg9QshNrsc6AHPXG3T_tu7uPvVe7oniMp7JUYctq-IPYoZQxOq54w6YxA9UhzXG_ceT58pNmjuGf0DJh9o/s16000/PicsArt_12-24-03.03.07.jpg" title="हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन द्रव्यमान के अनुसार 1.8 के अनुपात में संयोग करके जल निर्मित करते है । 3g हाइड्रोजन गैस के साथ पूर्ण रूप से संयोग करने के लिए कितने ऑक्सीजन गैस के द्रव्यमान की आवश्यकता होगी ?" /></a></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">Q3 डाल्टन के परमाणु सिद्धांत का कौन - सा अभिगृहीत द्रव्यमान के संरक्षण के नियम का प्ररिणाम है ?</h4><p><b>उत्तरः </b>डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त का अभिग्रहीत “ परमाणु अविभाज्य सूक्ष्म कण होते हैं जो रासायनिक अभिक्रिया में न तो सृजित होते हैं न ही उनका विनाश होता है । " द्रव्यमान के संरक्षण के नियम का परिणाम है । </p><h4 style="text-align: left;">Q4 . डाल्टन के परमाणु सिद्धांत का कौन - सा अभिगृहीत निश्चित अनुपात के नियम की व्याख्या करता है?</h4><div><b>उत्तर</b>: डाल्टन के परमाणु सिद्धान्त का अभिग्रहीत “ किसी भी यौगिक में परमाणुओं की सापेक्ष संख्या एवं प्रकार निश्चित होते हैं । " निश्चित अनुपात के नियम की व्याख्या करता है ।</div><p></p> <h4 style="text-align: left;">Q5 . निम्नलिखित यौगिकों में विद्यमान तत्वों का नाम दीजिए : ( a ) बुझा हुआ चूना ( b ) हाइड्रोजन ब्रोमाइड ( c ) बेकिंग पाउडर ( खाने वाला सोडा ) ( d ) पोटैशियम सल्फेट </h4><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgW-YY7ynozLiydGg1I7efKnahxkoESvbUSVMzvWZCfvu4bAC8HHSlH4Iv9QRJ-MjkeM2mcCZpRkEprYFivmG0iRFV-j0Dp_c3ep9A2DbdnsstQjRlGqg0m2k2LJf88oYidTQWj1EBDIMI/s1080/IMG_20201224_151757.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="निम्नलिखित यौगिकों में विद्यमान तत्वों का नाम दीजिए : ( a ) बुझा हुआ चूना ( b ) हाइड्रोजन ब्रोमाइड ( c ) बेकिंग पाउडर ( खाने वाला सोडा ) ( d ) पोटैशियम सल्फेट" border="0" data-original-height="269" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgW-YY7ynozLiydGg1I7efKnahxkoESvbUSVMzvWZCfvu4bAC8HHSlH4Iv9QRJ-MjkeM2mcCZpRkEprYFivmG0iRFV-j0Dp_c3ep9A2DbdnsstQjRlGqg0m2k2LJf88oYidTQWj1EBDIMI/s16000/IMG_20201224_151757.jpg" title="निम्नलिखित यौगिकों में विद्यमान तत्वों का नाम दीजिए : ( a ) बुझा हुआ चूना ( b ) हाइड्रोजन ब्रोमाइड ( c ) बेकिंग पाउडर ( खाने वाला सोडा ) ( d ) पोटैशियम सल्फेट" /></a></div><br /><p></p> <h3 style="text-align: left;">Q6 . निम्नलिखित पदार्थों के मोलर द्रव्यमान का परिकलन कीजिए : ( a ) एथाइन C<span style="font-size: x-small;">2</span>H<span style="font-size: xx-small;">2</span> ( b ) सल्फर अणु , S8 ( c ) फोस्फोरस अणु P4 ( फोस्फोरस का परमाणु द्रव्यमान = 31 ) ( d ) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , HCI ( e ) नाइट्रिक अम्ल , HNO3</h3><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTDa-Jw2bu3WLnQY55yS27y_Nr85QgN2icg-bcrNGw_Bmdfw4KPpFi4Jb4nCAF42fXY2lg400Gbb4VJ9AtSJZbK-LDo7hSBCgNDBHl83nAn2_cGRTwv20_7jIorweVZoEWoSxRSj2Y9Xw/s993/IMG_20201224_152522.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="निम्नलिखित पदार्थों के मोलर द्रव्यमान का परिकलन कीजिए : ( a ) एथाइन C2H2 ( b ) सल्फर अणु , S8 ( c ) फोस्फोरस अणु P4 ( फोस्फोरस का परमाणु द्रव्यमान = 31 ) ( d ) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , HCI ( e ) नाइट्रिक अम्ल , HNO3" border="0" data-original-height="276" data-original-width="993" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgTDa-Jw2bu3WLnQY55yS27y_Nr85QgN2icg-bcrNGw_Bmdfw4KPpFi4Jb4nCAF42fXY2lg400Gbb4VJ9AtSJZbK-LDo7hSBCgNDBHl83nAn2_cGRTwv20_7jIorweVZoEWoSxRSj2Y9Xw/s16000/IMG_20201224_152522.jpg" title="निम्नलिखित पदार्थों के मोलर द्रव्यमान का परिकलन कीजिए : ( a ) एथाइन C2H2 ( b ) सल्फर अणु , S8 ( c ) फोस्फोरस अणु P4 ( फोस्फोरस का परमाणु द्रव्यमान = 31 ) ( d ) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , HCI ( e ) नाइट्रिक अम्ल , HNO3" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvfV6SOG-J8cwcqijcOLf8rYWQ8fQ8s4vuGrpLdm31VFFZt1ZXQT05ckChkNJIu5nKhmt198AMMBAAVh4b0nzIlXEH0nP4tV-JYGSAJ6Jqee4ZPUCYT7yzxrl7vCjqVBK0dOBxar0dG88/s1080/IMG_20201224_152540.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="निम्नलिखित पदार्थों के मोलर द्रव्यमान का परिकलन कीजिए : ( a ) एथाइन C2H2 ( b ) सल्फर अणु , S8 ( c ) फोस्फोरस अणु P4 ( फोस्फोरस का परमाणु द्रव्यमान = 31 ) ( d ) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , HCI ( e ) नाइट्रिक अम्ल , HNO3" border="0" data-original-height="811" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvfV6SOG-J8cwcqijcOLf8rYWQ8fQ8s4vuGrpLdm31VFFZt1ZXQT05ckChkNJIu5nKhmt198AMMBAAVh4b0nzIlXEH0nP4tV-JYGSAJ6Jqee4ZPUCYT7yzxrl7vCjqVBK0dOBxar0dG88/s16000/IMG_20201224_152540.jpg" title="निम्नलिखित पदार्थों के मोलर द्रव्यमान का परिकलन कीजिए : ( a ) एथाइन C2H2 ( b ) सल्फर अणु , S8 ( c ) फोस्फोरस अणु P4 ( फोस्फोरस का परमाणु द्रव्यमान = 31 ) ( d ) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल , HCI ( e ) नाइट्रिक अम्ल , HNO3" /></a></div><br /><p></p><h2 style="text-align: left;"></h2><h4 style="text-align: left;">Q7 . निम्न का द्रव्यमान क्या होगाः ( a ) 1 मोल नाइट्रोजन परमाणु ? ( b ) 4 मोल ऐलुमिनियम परमाणु ( ऐलुमिनियम का परमाणु द्रव्यमान = 27 ) ? ( c ) 10 मोल सोडियम सल्फाईट ( Na<span style="font-size: xx-small;">2</span>SO<span style="font-size: xx-small;">3</span> ) ?</h4><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiDAZxrNWlYgXlwLCRDzRePKxHXFc0RpdQBT1g5RnTq-09BvLoxQKFmQOJvPfEpo5ZyH2M6vdm2thJcEqvV0WUyNnqRnd52D6Dg55831OUjWr27vUppA4FvnnrePKwR0pDnlFgaI8BT0o/s1080/IMG_20201224_152659.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="निम्न का द्रव्यमान क्या होगाः ( a ) 1 मोल नाइट्रोजन परमाणु ? ( b ) 4 मोल ऐलुमिनियम परमाणु ( ऐलुमिनियम का परमाणु द्रव्यमान = 27 ) ? ( c ) 10 मोल सोडियम सल्फाईट ( Na2SO3 ) ?" border="0" data-original-height="343" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiDAZxrNWlYgXlwLCRDzRePKxHXFc0RpdQBT1g5RnTq-09BvLoxQKFmQOJvPfEpo5ZyH2M6vdm2thJcEqvV0WUyNnqRnd52D6Dg55831OUjWr27vUppA4FvnnrePKwR0pDnlFgaI8BT0o/s16000/IMG_20201224_152659.jpg" title="निम्न का द्रव्यमान क्या होगाः ( a ) 1 मोल नाइट्रोजन परमाणु ? ( b ) 4 मोल ऐलुमिनियम परमाणु ( ऐलुमिनियम का परमाणु द्रव्यमान = 27 ) ? ( c ) 10 मोल सोडियम सल्फाईट ( Na2SO3 ) ?" /></a></div><br /><p></p><h3 style="text-align: left;">Q8 . मोल में परिवर्तित कीजिए : ( a ) 12g ऑक्सीजन गैस ( b ) 20g जल ( c ) 22 g कार्बन डाइऑक्साइड </h3><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8AD1UV7NHWO_oNKjIClnOwzQXZTro1KFI7P0bAvXBSKCQxuZZlZ7EKbGfOdarBqy5Jo7kvQFXMD-ywJqfYBy4Z94qZKxddSDfPTyJDxFAUt5XcYRnhyvtG7rtKMsFSt2Mtt_HJDkoTbU/s1080/IMG_20201224_153313.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="मोल में परिवर्तित कीजिए : ( a ) 12g ऑक्सीजन गैस ( b ) 20g जल ( c ) 22 g कार्बन डाइऑक्साइड" border="0" data-original-height="742" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8AD1UV7NHWO_oNKjIClnOwzQXZTro1KFI7P0bAvXBSKCQxuZZlZ7EKbGfOdarBqy5Jo7kvQFXMD-ywJqfYBy4Z94qZKxddSDfPTyJDxFAUt5XcYRnhyvtG7rtKMsFSt2Mtt_HJDkoTbU/s16000/IMG_20201224_153313.jpg" title="मोल में परिवर्तित कीजिए : ( a ) 12g ऑक्सीजन गैस ( b ) 20g जल ( c ) 22 g कार्बन डाइऑक्साइड" /></a></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">Q9 . निम्न का द्रव्यमान क्या होगाः ( a ) 0.2 मोल ऑक्सीजन परमाणु ? ( b ) 0.5 मोल जल अणु ?</h4><p><b>उत्तर</b>: </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><img alt="निम्न का द्रव्यमान क्या होगाः ( a ) 0.2 मोल ऑक्सीजन परमाणु ? ( b ) 0.5 मोल जल अणु ?" border="0" data-original-height="891" data-original-width="2896" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg_D_DSmif5hlubG9myZ4mKsdyusF_C7AWbEPlArUqplILZad9wx1AgGecuKSolYOIJbrqTRwxbNOhRN7PB1YtESE612po_S7OZ46Nc4zM3mzc6C3p8C9w3spiDCFlkOwQeC7R2st_SJ4I/s16000/PicsArt_12-24-03.40.33.jpg" title="निम्न का द्रव्यमान क्या होगाः ( a ) 0.2 मोल ऑक्सीजन परमाणु ? ( b ) 0.5 मोल जल अणु ?" /></div><p></p><h4 style="text-align: left;">Q10. 16g ठोस में सल्फर ( S<span style="font-size: xx-small;">8</span> ) के अणुओं की संख्या का परिकलन कीजिए । </h4><p><b>उत्तर</b>:</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZHm4hw8mCRgX-VKVYa1UdOAIvhdxKEignj4vf3gqdSnnaC5zwgB14x9ALoADFVT3FpJFlEUVCXWbdrStZyGKuxbX-iO4QfT-ffLgFmAVBBQXlEQX7b4TBCsSI_rGAdEoWlEEkroyxiYw/s703/IMG_20201224_154412.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="16g ठोस में सल्फर ( S8 ) के अणुओं की संख्या का परिकलन कीजिए ।" border="0" data-original-height="144" data-original-width="703" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjZHm4hw8mCRgX-VKVYa1UdOAIvhdxKEignj4vf3gqdSnnaC5zwgB14x9ALoADFVT3FpJFlEUVCXWbdrStZyGKuxbX-iO4QfT-ffLgFmAVBBQXlEQX7b4TBCsSI_rGAdEoWlEEkroyxiYw/s16000/IMG_20201224_154412.jpg" title="16g ठोस में सल्फर ( S8 ) के अणुओं की संख्या का परिकलन कीजिए ।" /></a></div><br /><p></p><h4 style="text-align: left;">Q11 . 0.051 g ऐलुमिनियम ऑक्साइड ( Al<span style="font-size: xx-small;">2</span>C0<span style="font-size: x-small;">3</span> ) में ऐलुमिनियम आयन की संख्या का परिकलन कीजिए ।</h4><div><b>उत्तर</b>: <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEha76HNBQXCpwPKVtUQZTAHS01YE-LCrn8dj6cNoVlv632ccayvhJ4P6GZoVlw6avpZ7DLwtyDBEZLUCwmjaACjh8zmo_hy5xf3UXcRSllSrrgdEFkRC2_MWgt-ySRi28-iEjDsUI1Ty50/s1279/IMG_20201224_161037.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="0.051 g ऐलुमिनियम ऑक्साइड ( Al2C03 ) में ऐलुमिनियम आयन की संख्या का परिकलन कीजिए ।" border="0" data-original-height="1279" data-original-width="1080" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEha76HNBQXCpwPKVtUQZTAHS01YE-LCrn8dj6cNoVlv632ccayvhJ4P6GZoVlw6avpZ7DLwtyDBEZLUCwmjaACjh8zmo_hy5xf3UXcRSllSrrgdEFkRC2_MWgt-ySRi28-iEjDsUI1Ty50/s16000/IMG_20201224_161037.jpg" title="0.051 g ऐलुमिनियम ऑक्साइड ( Al2C03 ) में ऐलुमिनियम आयन की संख्या का परिकलन कीजिए ।" /></a></div> <h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">अति - लघुउत्तरीय प्रश्न: </span></h2><p style="text-align: left;">Q1 . अमोनिया में हाइड्रोजन के कितने परमाणु होते है ? </p><p><b>उत्तर</b> : 4 </p><p style="text-align: left;">Q2 . डाल्टन ने अपनी जीविका किस रूप में शुरू की ?</p><p><b>उत्तर</b> : शिक्षक के रूप में </p><p style="text-align: left;">Q3 . परमाणुओं का वह पुंज जो आयन की तरह व्यवहार करता है क्या कहलाता है ? </p><p><b>उत्तर</b> : बहुपरमाणुक आयन ।</p><p style="text-align: left;">Q4 . एक अधातु का नाम जिसकी संयोजकता 1 होती है ? </p><p><b>उत्तर</b> : हाइड्रोजन , क्लोरीन । </p><p style="text-align: left;">Q5 . एक नैनो मीटर कितने मीटर के बराबर होता है ? </p><p><b>उत्तर</b> : 10<sup>-9</sup> m</p><p style="text-align: left;">Q6 . कार्बन के किस समस्थानिक को परमाणु द्रव्यमान ईकाई का मात्रक बनाया गया है ।</p><p><b>उत्तर</b> : कार्बन -12 </p><p style="text-align: left;">Q7 . हाइड्रोजन के अणु की परमाणुकता क्या है ? </p><p><b>उत्तर</b> : द्वि - परमाणुक । </p><p style="text-align: left;">Q8 . कार्बन का एक परमाणु अभिक्रिया के दौरान क्लोरीन के कितने परमाणुओं से बंध ( अणु ) बनयेगा । </p><p><b>उत्तर</b> : 4 </p><p style="text-align: left;">Q9.18 ग्राम जल में कितना मोल होगा ? </p><p><b>उत्तर</b> : 1 मोल </p><p style="text-align: left;">Q10 . एक अधातु जिसका एटॉमिक न 07 है । </p><p><b>उत्तर</b> : नाइट्रोजन </p><p style="text-align: left;">Q11. Anion ( ऋणायन ) जो 2- इलेक्ट्रान होल्ड करता है ।</p><p><b>उत्तर</b> : ऑक्साइड ( O<sup>-2</sup> ) </p><p style="text-align: left;">Q12 . स्थिर अनुपात का नियम देने वाले वैज्ञानिक का नाम - </p><p><b>उत्तर</b> : जे . एल . प्राउस्ट । </p><p style="text-align: left;">Q13 . AMU का पूरा नाम </p><p><b>उत्तर</b> : एटॉमिक मास यूनिट ( atomic mass unit )</p><p style="text-align: left;">Q14 . हाइड्रोजन को अपना अष्टक पूरा करने के लिए कुल कितने इलेक्ट्रान होने चाहिए ? </p><p><b>उत्तर</b> : 2 </p><p style="text-align: left;">Q15 . उस वैज्ञानिक का नाम जिन्होंने परमाणु सिद्धांत दिया ।</p><p><b>उत्तर</b> : डाल्टन । </p><p style="text-align: left;">Q16 . IUPAC क्या काम करता है ? </p><p><b>उत्तर</b> : तत्वों के नाम एवं प्रतिक चिन्ह प्रदान करता है । </p><p style="text-align: left;">Q17 . परमाणु त्रिज्या मापने की इकाई को क्या कहते है ? </p><p><b>उत्तर</b> : नैनोमीटर ( nm ) । </p><p style="text-align: left;">Q18 . डाल्टन के परमाणु सिद्धांत के अनुसार परमाणु की परिभाषा लिखिए । </p><p><b>उत्तर</b> : सभी द्रव्य चाहे तत्व , यौगिक या मिश्रण हो सूक्ष्म कणों से बने होते है जिन्हे परमाणु कहते है । </p><h4 style="text-align: left;">Q19 . आयन क्या है ? यह कितने प्रकार का होता है ? </h4><p><b>उत्तर</b> : अणु या परमाणु के आवेशित कण को आयन कहते है । यह दो प्रकार का होता है । ( i ) धनायन ( ii ) ऋणायन </p><h4 style="text-align: left;">Q20 . आणविक द्रव्यमान से आप क्या समझते है ? </h4><p><b>उत्तर</b> - किसी पदार्थ का आण्विक द्रव्यमान उसके सभी संघटक परमाणुओं के द्रव्यमान का योग होता है । इस प्रकार यह अणु का वह सापेक्ष द्रव्यमान है जिसे परमाणु द्रव्यमान इकाई द्वारा व्यक्त किया जाता है ।</p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “<a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html"><b>NCERT Solution</b> <b>Variousinfo</b></a>” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में <b>Bookmark (Ctrl + D) </b>करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी <b><span style="color: red;">Subscribe</span></b> करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे <b>whatsapp , Facebook या Twitter</b> जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद ! </p></div></div></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-33530002906738709102021-11-03T18:00:00.002-07:002021-11-13T03:07:48.492-08:00Class 9th science notes chapter 2 : क्या हमारे आस पास के पदार्थ शुद्ध है?<p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT3Gy9TzMcxsLSNLEYoAP9sq84ipo7aNQdB2r4YPCm5smGxWYuuyfKKFgZbg-NUofKAdpwtaVYcwMgtHERGm7NRYSk_z8RDXQLEObPtkFUmfGCgjDBfQ__7za_qmQRhl_FcDjIvs3d8PA/s960/PicsArt_12-24-07.44.11.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 9th science chapter 2 solution इस पोस्ट में हमने कक्षा 9वीं विज्ञान के अध्याय 2 के संक्षिप्त नोट्स प्रस्तुत किये हैं। इस पोस्ट में शुद्ध पदार्थ किसे कहते हैं? मिश्रण क्या होता है? तत्व किसे कहते हैं? यौगिक किसे कहते हैं? समांगी मिश्रण क्या होता है ? विष्मांगी मिश्रण क्या होता है? विलियन किसे कहते हैं? समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ? विलयन , निलंबन और कोलाइड एक दुसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ?" border="0" data-original-height="638" data-original-width="960" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiT3Gy9TzMcxsLSNLEYoAP9sq84ipo7aNQdB2r4YPCm5smGxWYuuyfKKFgZbg-NUofKAdpwtaVYcwMgtHERGm7NRYSk_z8RDXQLEObPtkFUmfGCgjDBfQ__7za_qmQRhl_FcDjIvs3d8PA/s16000/PicsArt_12-24-07.44.11.jpg" title="Class 9th science chapter 2 solution इस पोस्ट में हमने कक्षा 9वीं विज्ञान के अध्याय 2 के संक्षिप्त नोट्स प्रस्तुत किये हैं। इस पोस्ट में शुद्ध पदार्थ किसे कहते हैं? मिश्रण क्या होता है? तत्व किसे कहते हैं? यौगिक किसे कहते हैं? समांगी मिश्रण क्या होता है ? विष्मांगी मिश्रण क्या होता है? विलियन किसे कहते हैं? समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ? विलयन , निलंबन और कोलाइड एक दुसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ?" /></a></b></div><b><br />Class 9th science chapter 2 solution </b>इस पोस्ट में हमने कक्षा 9वीं विज्ञान के अध्याय 2 के संक्षिप्त नोट्स प्रस्तुत किये हैं। इस पोस्ट में <span style="color: #3d85c6;"><b>शुद्ध पदार्थ किसे कहते हैं? मिश्रण क्या होता है? तत्व किसे कहते हैं? यौगिक किसे कहते हैं? समांगी मिश्रण क्या होता है ? विष्मांगी मिश्रण क्या होता है? </b></span><span style="color: #3d85c6;"><b>विलियन किसे कहते हैं?</b></span><b style="color: #3d85c6;"> </b><span style="color: #3d85c6;"><b>समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ</b></span><b style="color: #3d85c6;">? </b><span style="color: #3d85c6;"><b>विलयन , निलंबन और कोलाइड एक दुसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ? </b></span>जैसे प्रश्न शामिल किए हैं। हमें उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी। आइये शुरू करते हैं।<p></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">शुद्ध पदार्थ किसे कहते हैं? </span></h2><p>समान रासायनिक प्रकृति के पदार्थों को जो एक ही प्रकार के कणों से बने होते हैं , <b>शुद्ध पदार्थ</b> कहते है । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">मिश्रण क्या होता है?</span></h2><p><b>मिश्रण ( Mixture ) :</b> दो या दो से अधिक शुद्ध पदार्थों के मेल से बने पदार्थ को मिश्रण कहते है । जैसे - जल में चीनी , रक्त , वायु और बालू नमक का मिश्रण आदि । </p><p>● समुद्र का जल , खनिज , मिटटी आदि सभी मिश्रण के उदाहरण हैं । </p><p>● किसी पदार्थ को अन्य प्रकार के तत्वों में भौतिक प्रक्रम द्वारा अलग नहीं किया जा सकता है । ये शुद्ध पदार्थ होते हैं जैसे - सोडियम क्लोराइड , चीनी आदि । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">तत्व किसे कहते हैं?</span></h2><p><b>तत्व ( Element ) : </b>तत्व किसी पदार्थ का वह मूल रूप होता है जो एक ही प्रकार के रासायनिक प्रकृति के बने होते हैं और जिसे किसी भी भौतिक या रासायनिक प्रक्रम के द्वारा अलग नहीं किया जा सकता है । तत्व कहलाता है । जैसे - लोहा , ऑक्सीजन , सल्फर , सोना , चांदी आदि । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">यौगिक किसे कहते हैं?</span></h2><p><b>यौगिक ( Compound ) : </b>दो या दो से अधिक तत्वों के मेल से एक निश्चित अनुपात में रासायनिक प्रक्रिया द्वारा बने पदार्थ को यौगिक कहते है । जैसे - जल , नमक , चीनी , अल्कोहल एवं कार्बन डाइऑक्साइड आदि यौगिक है । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">समांगी मिश्रण क्या होता है ?</span></h2><p><b>समांगी मिश्रण</b> : वह मिश्रण जिसकी बनावट समान हो तथा इसके कणों को अलग अलग नहीं पहचाना जा सके समांगी मिश्रण कहते है । जैसे : नमक और जल का घोल । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">विषमांगी मिश्रण क्या होता है?</span></h2><p><b>विषमांगी मिश्रण</b> : वह मिश्रण जिसके अंश भौतिक रूप से अलग होते है और इसके कणों को अलग अलग पहचाना जा सकता है , विषमांगी मिश्रण कहलाता है । जैसे : लोहे के बुरादे और बालू का मिश्रण । </p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">विलियन किसे कहते हैं?</span></h2><p><b>विलियन</b> : दो या दो से अधिक पदार्थों के समांगी मिश्रण को विलयन कहते है । विलयन पदार्थ के तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है । जैसे - ठोस - मिश्रघातु , द्रव - निम्बू पानी , गैस- वायु । </p><p>विलयन के कण समान रूप से वितरित रहते है , अर्थात इसके कणों को अलग - अलग पहचाना नहीं जा सकता है । जैसे - निम्बू - चीनी पानी में एक ही स्वाद होता है । </p><p><br /></p><p style="text-align: center;"><b><span style="color: #2b00fe; font-size: x-large;">पाठगत - प्रश्रः </span></b></p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">Q1 . शुद्ध पदार्थ से आप क्या समझते हैं ? </h2><p><b><span style="color: red;">उत्तर</span></b> : वह पदार्थ जिसमें मौजूद सभी कण समान रासायनिक प्रकृति के हैं तथा एक ही प्रकार के कणों से मिलकर बना होता है । शुद्ध पदार्थ कहलाता है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">Q2 . समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ । अथवा उदाहरण के साथ समांगी एवं विषमांगी मिश्रणों में विभेद कीजिये । </h2><p><b><span style="color: red;">उत्तरः</span></b> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEB7qnDqPOA93-8pWOO10GZZU_3d1rQ9t0vgt3nmhxaYHLQrI6_d4NWYW3cWt4V_8Ph1SwetG4Glo28kpV8C1LpUITtsfnyBjcSfNYcF4AiGyrg9OXJPIHfkKeamOHnirVf3_d_jt9sT0/s848/PicsArt_12-24-07.46.31.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ । अथवा उदाहरण के साथ समांगी एवं विषमांगी मिश्रणों में विभेद कीजिये ।" border="0" data-original-height="473" data-original-width="848" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjEB7qnDqPOA93-8pWOO10GZZU_3d1rQ9t0vgt3nmhxaYHLQrI6_d4NWYW3cWt4V_8Ph1SwetG4Glo28kpV8C1LpUITtsfnyBjcSfNYcF4AiGyrg9OXJPIHfkKeamOHnirVf3_d_jt9sT0/s16000/PicsArt_12-24-07.46.31.jpg" title="समांगी और विषमांगी मिश्रणों में अंतर बताएँ । अथवा उदाहरण के साथ समांगी एवं विषमांगी मिश्रणों में विभेद कीजिये ।" /></a></div><p></p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">Q2 . विलयन , निलंबन और कोलाइड एक दुसरे से किस प्रकार भिन्न हैं ? </h2><p><b><span style="color: red;">उत्तर</span> : </b></p><p><b>विलयनः</b> </p><p>( i ) विलयन दो या दो से अधिक पदार्थों का समांगी मिश्रण हैं । </p><p>( ii ) इसके कणों में समांगिकता होती है । </p><p>( iii ) इसके कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि आँख से नहीं देखे जा सकते हैं । </p><p>( iv ) विलयन में प्रकाश का मार्ग दिखाई नहीं देता । </p><p>( v ) छानने की विधि द्वारा विलेय के कणों को विलयन से पृथक नहीं किया जा सकता है । </p><p>( vi ) यह स्थाई होता है । </p><p><br /></p><p><b>निलंबन : </b></p><p>( i ) यह एक विषमांगी मिश्रण है । </p><p>( ii ) इसके कणों में समांगिकता नहीं होती है । </p><p>( iii ) इसके कण बड़े होते है और ये आँखों से देखे जा सकते है । </p><p>( iv ) इनके निलंबित कण प्रकाश के किरण को फैला देते है ।</p><p>( v ) इन्हें छानने की विधि से अलग किया जा सकता है । </p><p>( vi ) ये अस्थाई होते है । </p><p><br /></p><p><b>कोलाइड : </b></p><p>( i ) यह भी एक विषमांगी मिश्रण है । </p><p>( ii ) इसके कणों में भी समांगिकता नहीं होती है । </p><p>( iii ) इनका आकार छोटा होने के कारण इन्हें आँखों से देखा नहीं जा सकता है । </p><p>( iv ) ये प्रकाश के मार्ग को दृश्य बनाते है और टिंडल प्रभाव दिखाते हैं ? </p><p>( v ) छानने की विधि से इसके कणों को पृथक नहीं किया जा सकता है । </p><p>( vi ) ये भी अस्थाई होते है ।</p><p><b><a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html/search/label/Class%209th%20Preparation">[ Class 9th science All Chapters solution in hindi ] कक्षा 9 वीं विज्ञान का पूरा हल </a></b></p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “<a href="https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html"><b>NCERT Solution</b> <b>Variousinfo</b></a>” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में <b>Bookmark (Ctrl + D) </b>करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी <b><span style="color: red;">Subscribe</span></b> करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे <b><span style="color: #3d85c6;">whatsapp , Facebook</span> या <span style="color: #3d85c6;">Twitter</span></b> जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद ! </p><p><br /></p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-17742109730026176662021-11-03T17:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:48.647-08:00Class 9th science notes chapter 1 ncert solution: हमारे आस पास के पर्दाथ <p><b></b></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><b><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhidqUA9GytpcmbnfXFTQggPl2zQhTd2-PIUxf67-boo9GxaM2C2l4I6stDk9zrTOECVtUksI7xWkSAUehcxq9FygPwyXZOrMQFKBZuZwwzNXPTS7Ad6VSNNhFtP8UTRe5oob7WrtTGETc/s1986/PicsArt_12-16-04.13.01.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Class 9th science chapter 1 short notes हमारे आस पास के पदार्थ Summary Notes Part 1." border="0" data-original-height="1129" data-original-width="1986" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhidqUA9GytpcmbnfXFTQggPl2zQhTd2-PIUxf67-boo9GxaM2C2l4I6stDk9zrTOECVtUksI7xWkSAUehcxq9FygPwyXZOrMQFKBZuZwwzNXPTS7Ad6VSNNhFtP8UTRe5oob7WrtTGETc/s16000/PicsArt_12-16-04.13.01.jpg" title="Class 9th science chapter 1 short notes हमारे आस पास के पदार्थ Summary Notes Part 1." /></a></b></div><br /><b>Class 9th science chapter 1 short notes summary </b>इस पोस्ट में हमने कक्षा 9वीं विज्ञान का अध्याय 1 के संक्षिप्त नोट्स प्रस्तुत किये हैं। इस पोस्ट में <b><span style="color: #3d85c6;">पदार्थ क्या है ? विसरण क्या है? अंतराणुक बल क्या होता है? संपीडिता क्या है? गलनांक क्या है? संगलन क्या है? </span></b>जैसे प्रश्न शामिल किए हैं। हमें उम्मीद है कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।आइये शुरू करते हैं।<p></p><p>1. संसार की सभी वस्तुएँ जिस सामग्री से बनी हैं , वैज्ञानिक उसे <b>पदार्थ </b>कहते है । </p><p>2. वे वस्तुएँ जिनका द्रव्यमान होता है और स्थान ( आयतन ) घेरती है , <b>पदार्थ</b> कहलाता है । </p><p>3. प्राचीन भारत के दार्शनिकों ने पदार्थ को पंचतत्व वायु , पृथ्वी , अग्नि , जल और आकाश से बना बताया और पदार्थ को इन्ही पंचतत्व में वर्गीकृत किया है | </p><p>4. सभी <b>पदार्थ कणों से मिलकर</b> बने होते हैं । पदार्थ के कण अत्यंत सूक्ष्म होते है । </p><p>5. पदार्थ के कणों के बीच <b>रिक्त स्थान</b> होता है । </p><p>6. पदार्थ के कण निरंतर <b>गतिशील</b> होते हैं । </p><p>7. पदार्थ के कण एक - दुसरे को <b>आकर्षित</b> करते है । </p><p>8. पदार्थ के कणों में गतिज ऊर्जा होती है और तापमान बढ़ने से कणों की गति तेज हो जाती है ।</p><p>8. पदार्थ के कण अपने आप ही एक - दुसरे के साथ अंत : मिश्रित हो जाते हैं । ऐसा कणों के रिक्त स्थानों में <b>समावेश</b> के कारण होता है । </p><p>9. दो विभिन्न पदार्थो के कणों का स्वतः मिलना <b>विसरण</b> कहलाता है । </p><p>10. पदार्थ के कणों के बीच एक बल कार्य करता है | यह बल कणों को एक साथ रखता है । इसे <b>अंतराणुक बल</b> भी कहा जाता है । </p><h2 style="text-align: left;">Class 9th science chapter 1 short notes </h2><p>11. प्रत्येक पदार्थ में यह आकर्षण बल अलग - अलग होता है इन्ही बलों के कारण पदार्थ की अवस्थाएं बनती है । </p><p>12. <b>पदार्थ की तीन अवस्थाएँ</b> होती हैं - ठोस , द्रव और गैस | </p><p>पदार्थ की ये अवस्थाएँ उनकी कणों की विभिन्न विशेषताओं के कारण होता है | </p><p>13. बल लगाने पर ठोस टूट सकते हैं लेकिन इनका आकार नहीं बदलता । </p><p>14. द्रव का कोई अपना आकार नहीं होता है जिस बर्तन में इसे रखते है ये उसी का आकार ले लेता है , परन्तु द्रव का आयतन होता है द्रव में ठोस , द्रव और गैस तीनों का विसरण संभव है । </p><p>15. ठोस की अपेक्षा द्रवों में विसरण की दर अधिक होती है यही कारण है द्रव अवस्था में पदार्थ के कण स्वतंत्र रूप से गति करते हैं </p><p>16. ठोस की अपेक्षा द्रव के कणों में रिक्त स्थान भी अधिक होता है । </p><p>17. ठोसों एवं द्रवों की तुलना में गैसों की <b>संपीड्यता</b> ( compression ) काफी अधिक होती है । </p><p>18. तापमान एवं दाब में परिवर्तन कर पदार्थ की अवस्थाएं बदली जा सकती है । </p><p>19. जिस तापमान पर कोई ठोस पिघलकर द्रव बन जाता है , वह इसका ताप उस पदार्थ का <b>गलनांक ( Melting Point ) </b>कहलाता है । </p><p>20. गलने की प्रक्रिया यानी ठोस से द्रव अवस्था में परिवर्तन को <b>संगलन</b> भी कहते है । </p><h2 style="text-align: left;">Class 9th science chapter 1 notes summary </h2><p>21. गलने की प्रक्रिया के दौरान गलनांक पर पहुँचने के बाद जब तक कोई पदार्थ पूरी तरह गल नहीं जाता , तापमान नहीं बदलता है | चाहे उसमें और भी ऊष्मा दे दी जाए |</p><p>22. पदार्थ के कणों के आकर्षण बल को बदलने के लिए ताकि अवस्था में परिवर्तन हो सके तापमान में बिना कोई वृद्धि दर्शाए पदार्थ उस अतिरिक्त ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है | </p><p>23. यह ऊष्मा पदार्थ में छपी रहती है , जिसे <b>गुप्त ऊष्मा</b> कहते हैं । </p><p>24. <b>संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा</b> : वायुमंडलीय दाब पर 1kg ठोस को उसके गलनांक पर द्रव में बदलने के लिए जीतनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है , उसे संगलन की <b>प्रसुप्त ऊष्मा </b>कहते है । </p><p>25. वायुमंडलीय दाब पर वह तापमान जिस पर द्रव उबलने लगता है , इस ताप को उस <b>पदार्थ का क्वथनांक</b> कहते है । </p><p>26. <b>जल का क्वथनांक 100 ° C या 373 K</b> है । </p><p>27. द्रव अवस्था में परिवर्तन हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस और वापस ठोस में बदलने की प्रक्रिया को <b>उर्ध्वपातन ( sublimention ) </b>कहते है । </p><p>28. पदार्थ के कणों के बीच दुरी में परिवर्तन होने के कारण पदार्थ की विभिन्न अवस्थाएँ बनती हैं । </p><p>29. ठोस CO , द्रव अवस्था में आए बिना सीधे गैस में परिवर्तित जाती है । यही कारण है कि <b>ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ़ ( dry ice )</b> कहते हैं | </p><p>30. दाब के बढ़ने और तापमान के घटने से गैस द्रव में बदल सकते है । </p><p>31. क्वथनांक से कम तापमान पर द्रव के वाष्प में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को <b>वाष्पीकरण ( Evoparisation ) </b>कहते हैं ।</p><p>32. वाष्पीकरण से शीतलता आती है ।</p><p style="text-align: center;"><b><span style="color: red; font-size: x-large;">अभ्यास प्रश्नोत्तर</span></b></p><h3 style="text-align: left;">क्या कारण है कि गर्मा - गरम खाने की गंध कई मीटर दूर से ही आपके पास पहुँच जाती है लेकिन ठंडे खाने की महक लेने के लिए आपको उसके पास जाना पड़ता है।</h3><p>उत्तर : यह पदार्थ के कणों की विशेषताओं का गुण है जो तापमान बढ़ने से इनके कणों की गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है और ये कण गतिज ऊर्जा बढ़ने से इनकी बीच की दुरी अर्थात कणों के बीच रिक्त स्थान बढ़ जाता है और फैलने लगते हैं यही कारण है कि गर्म खाने की महक ठंडे खाने की अपेक्षा तेजी से हमारे पास पहुंचता है ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">स्विमिंग पूल में गोताखोर पानी काट पाता है । इससे पदार्थ का कौन सा गुण प्रेक्षित होता है ? </h3><p>उत्तर : यह क्रिया - कलाप यह दर्शाता है कि पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता हैं । यदि पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान नहीं होता तो गोताखोर पानी को नहीं काट पाता । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">पदार्थ के कणों की क्या विशेषताएँ होती है ? </h3><p>उत्तर : पदार्थ के कणों की निम्न विशेषताएँ होती है । </p><p>( i ) पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है ।</p><p>( ii ) पदार्थ के कण निरंतर गतिशील होते हैं । </p><p>( iii ) पदार्थ के कण एक - दुसरे को आकर्षित करते हैं </p><p><br /></p><p> नोट: किसी तत्व के द्रव्यमान प्रति इकाई आयतन को <b>धनत्व</b> कहते हैं | ( घनत्व = द्रव्यमान / आयतन )</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है । उदाहरण देकर इसे समझाइए । </h3><p>उत्तर : जब हम एक बीकर में पानी लेते है और उसमें पोटैशियम परमैगनेट के कुछ कण डाल देते है । कुछ देर बाद हम देखते है कि पोटैशियम परमैगनेट पुरे बीकर में फैल जाता है । अर्थात पोटैशियम परमैगनेट का प्रत्येक कण जल के प्रत्येक कणों के बीच मिल जाता है जिसेसे यह पता चलता है कि पदार्थ के कणों के बीच रिक्त स्थान होता है ।</p><h4 style="text-align: left;">कारण बताइए , क्यों गैस उस बर्तन को पूरी तरह भर देती है जिसमें इसको रखते है ? </h4><p>उत्तरः द्रवों की तुलना में गैसों की संपीड्यता अधिक होती है जिससे ये जिस बर्तन में डालना होता है तेजी से स्थान लेते हैं और पूरी तरह भर देते है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">वाष्पीकरण के कारण शीतलता कैसे होती है ? </h3><p>उत्तर : वाष्पीकरण के दौरान कम हुई ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने के लिए द्रवों के कण अपने आस - पास से ऊर्जा अवशोषित कर लेते हैं । इस तरह आस - पास से ऊर्जा अवशोषित होने से आस - पास ठंडक होने लगता है और शीतलता आ जाती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ़ क्यों कहते हैं ? </h3><p>उत्तर : जब वायुमंडलीय दाब का माप । एटमोस्फेयर am हो , तो ठोस ( CO . ) कार्बन डाइऑक्साइड द्रव अवस्था में आए बिना सीधे गैस में परिवर्तित हो जाता है । यही कारण है कि ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ कहते है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">उर्ध्वपातन किसे कहते है ? </h3><p>उत्तर : द्रव अवस्था में परिवर्तन हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस और वापस ठोस में बदलने की प्रक्रिया को उर्ध्वपातन ( sublimention ) कहते है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कौन - कौन से कारक हैं ? </h3><p>उत्तर : वाष्पीकरण को प्रभावित करने वाले कारक</p><p>( i ) सतह क्षेत्र बढ़ने पर : वाष्पीकरण एक सतही प्रक्रिया है और सतही क्षेत्र बढ़ने पर वाष्पीकरण की दर भी बढ़ जाती है । </p><p>( ii ) तापमान में वृद्धि : तापमान बढ़ने पर पदार्थ के कणों को पर्याप्त गतिज ऊर्जा मिल जाती है जिससे वाष्पीकरण की दर बढ़ जाती है | </p><p>( iii ) आर्द्रता में कामी : वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्र जिसे आर्द्रता कहते है , जलबाष्प बढ़ने से आर्द्रता बढ़ेगी और आर्द्रता बढ़ने से वाष्पीकरण की दर घट जाती है । </p><p>( iv ) वायु की गति में वृद्धि : वायु की गति में वृद्धि होने से जलवाष्प के कण तेजी से वायु के साथ उड़ जाते हैं जिससे आस - पास की जल - वाष्प की मात्रा घट जाती है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">प्लाज्मा क्या है ? </h3><p>उत्तर : प्लाज्मा पदार्थ की चौथी अवस्था है , नियाँन बल्ब के अन्दर नियॉन गैस और फ्लोरसेंत ट्यूब के अंदर हीलियम या कोई एनी गैस होती है। विद्युत ऊर्जा प्रवाहित होने पर यह गैस आयनीकृत यानी आवेशित हो जाती है । आवेशित होने से ट्यूब या बल्ब के अंदर चमकीला पदार्थ तैयार होता है । जिसे प्लाज्मा कहा जाता है ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गुप्त ऊष्मा किसे कहते है ? </h3><p>उत्तर: गलने की प्रक्रिया के दौरान गलनांक पर पहुँचने के बाद जब तक कोई पदार्थ पूरी तरह गल नहीं जाता , तापमान नहीं बदलता है । चाहे उसमें और भी ऊष्मा दे दी जाए । पदार्थ के कणों के आकर्षण बल को बदलने के लिए ताकि अवस्था में परिवर्तन हो सके तापमान में बिना कोई वृद्धि दर्शाए पदार्थ उस अतिरिक्त ऊष्मा को अवशोषित कर लेता है । यह ऊष्मा पदार्थ में छपी रहती है , जिसे गुप्त ऊष्मा कहते हैं । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा किसे कहते हैं ? </h3><p>उत्तरः वायुमंडलीय दाब पर 1kg ठोस को उसके गलनांक पर द्रब में बदलने के लिए जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है , उसे संगलन की प्रसुप्त ऊष्मा कहते है । </p><p><br /></p><p>बाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा से आप क्या समझते हैं ! </p><p>उत्तरः वायुमंडलीय दाब पर 1kg द्रव को उसके क्वथनांक पर गैसीय अवस्था में परिवर्तन करने हेतु जितनी ऊष्मीय ऊर्जा की आवश्यकता होती है , उसे वाष्पीकरण की प्रसुप्त ऊष्मा कहते है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">संघनन क्या है ? </h3><p>उत्तर : वह प्रक्रिया जिसमें गैस संघनित होकर ( ठंडा ) द्रव में परिवर्तित हो जाता है संघनन कहलाता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">100 ℃ तापमान पर भाप अर्थात वाष्प के कणों में उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक ऊर्जा होती है । क्यों ? </h3><p>उत्तर : ऐसा इसलिए होता है , क्योंकि भाप के कणों ने वाष्पीकरण की गुप्त ऊष्मा के रूप में अतिरिक्त ऊष्मा अवशोषित कर लेता है जिससे वह उसी तापमान पर पानी के कणों की अपेक्षा अधिक ऊष्मा होती है ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">गलनांक एवं क्वथनांक में क्या अंतर है ? </h3><p>उत्तर : गलनांक एवं क्वथनांक में अंतर</p><p><b>गलनांक</b> </p><p>1. वह तापमान जिस पर कोई ठोस पिघलने लगता है । </p><p>2. ठोसों का गलनांक होता है </p><p><b>क्वथनांक</b></p><p>1. वह तापमान जिस पर कोई द्रव उबलने लगता है । </p><p>2. द्रवों का क्वथनांक होता है ।</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">तीन उर्ध्वपतित होने वाले पदार्थ का नाम बताइए । </h3><p>उत्तर: ( i ) कपूर ( ii ) नेप्थेलिन ( नौसादर ) ( iii ) अमोनियम क्लोराइड</p><div><br /></div><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">Now you should help us a bit</span></h2><div><p>So friends, how did you like our post! <b><span style="color: red;">Don't forget to share this</span> </b>with your friends, below <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> Post. 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You can help us reach more people by sharing it on social networking sites <b><span style="color: red;">like whatsapp, Facebook or Twitter. </span></b> Thank you !</p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-44335516059495833612021-11-03T01:10:00.003-07:002021-11-13T03:07:48.801-08:00प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय: प्रमुख रचनाएँ, भाषा एवं शैली और साहित्य में स्थान बताइए।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEh4IcgHnwNKKvuL4SY5g9HmglXWZBBw-2oG6l9ptedOLwKphI2hGxmH9lISTQ7K_rzky7vSwLMGJXKYiclbl3LVMuv4FKAirTXEAhUOMun9mUSBGv7E8GKLV5HDm1aKscWIbrOxSJkRsiZkgyPWtdedWbiFk4H-7MKC8AZj4gsfrhFWzt4kCt4oYkI=s640" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय: प्रमुख रचनाएँ, भाषा एवं शैली और साहित्य में स्थान बताइए।" border="0" data-original-height="425" data-original-width="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEh4IcgHnwNKKvuL4SY5g9HmglXWZBBw-2oG6l9ptedOLwKphI2hGxmH9lISTQ7K_rzky7vSwLMGJXKYiclbl3LVMuv4FKAirTXEAhUOMun9mUSBGv7E8GKLV5HDm1aKscWIbrOxSJkRsiZkgyPWtdedWbiFk4H-7MKC8AZj4gsfrhFWzt4kCt4oYkI=s16000" title="प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय: प्रमुख रचनाएँ, भाषा एवं शैली और साहित्य में स्थान बताइए।" /></a></div><br /><div class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></div><h2 style="text-align: left;">प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय </h2><p><b>( 1 ) प्रमुख रचनाएँ ( कोई -2 ) </b></p><p>1. गोदान </p><p>2. कर्मभूमि</p><p><br /></p><p><b>( 2 ) भाषा</b> : प्रेमचन्द की भाषा दो प्रकार की है - एक तो वह जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है ; दूसरी वह जिसमें उर्दू , संस्कृत और हिन्दी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है । यही भाषा प्रेमचन्द जी की प्रतिनिधि भाषा है । इसी भाषा का प्रयोग उन्होंने श्रेष्ठ रचनाओं में किया है । यह भाषा अधिक सजीव , व्यावहारिक और प्रवाहमयी है । प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में हिन्दी की खड़ी बोली के सरल , सहज , बोधगम्य एवं व्यावहारिक रूप को अपनाया है । उन्होंने भाषा में आकर्षण तथा सहज प्रवाह लाने के लिए अवसरानुकूल उर्दू शब्दों का प्रयोग किया है । उनकी भाषा में मुहावरे तथा सूक्तियाँ बहुतायत में मिलती हैं । </p><p><br /></p><p><b>शैली</b> :</p><p>प्रेमचन्द ने अपने साहित्य की रचना जनसाधारण के लिए की । वे विषय एवं भावों के अनुकूल शैली को परिवर्तित कर लेते थे । प्रेमचन्द ने अपने साहित्य में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया</p><p><br /></p><p><b>( 1 ) वर्णनात्मक शैली</b> - किसी पात्र , वस्तु , घटना आदि का वर्णन करते समय इस शैली का प्रयोग किया गया है । नाटकीय सजीवता इस शैली की प्रमुख विशेषता है । </p><p><b>( 2 ) विवेचनात्मक शैली</b> - प्रेमचन्द ने अपने गम्भीर विचारों को व्यक्त करने के लिए विवेचनात्मक शैली को अपनाया . है । इस शैली के अन्तर्गत प्रयुक्त वाक्य अपेक्षाकृत बड़े हैं तथा संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया गया है ; जैसे " लोग अपने - अपने कमरे में बैठे रोजेदार मुसलमानों की तरह महीने के दिन गिना करते थे , लेकिन मनुष्यों का वह छुपा हुआ जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छुपा हुआ है । " </p><p><b>( 3 ) मनोवैज्ञानिक शैली</b> - प्रेमचन्द ने मन के भावों तथा पात्रों के मन में उठे अन्तर्द्वन्द्वों को चित्रित करने के लिए इस शैली को अपनाया है । </p><p><b>( 4 ) हास्य व्यंग्यात्मक शैली -</b> सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय इस शैली ने प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति की है । </p><p><b>( 5 ) भावात्मक शैली</b> - काव्यात्मकता और आलंकारिकता पर आधारित प्रेमचन्द की इस शैली के अन्तर्गत मानव - जीवन से सम्बन्धित विभिन्न भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है । उनकी कहानियों में दीन - दुःखियों , महिलाओं , ग्रामीणों और समाज के अन्य तिरस्कृत तथा उपेक्षित लोगों के प्रति जन - जागरण तथा जन - चेतना लाने का भाव दिखाई देता है ।</p><p><b>( 3 ) साहित्य में स्थान :</b></p><p>हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द उपन्यास सम्राट कहलाते हैं । वे युग प्रवर्तक कहानीकार होने के साथ - साथ नए कहानीकारों में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । आधुनिक साहित्य जगत में कहानी - कला को अक्षुण्ण बनाये रखने वाले कथाकारों में वे अग्रणी हैं । उपन्यासों की भाँति उनकी कहानियों में भी आदर्शोन्मुख - यथार्थवादी प्रवृत्ति पाई जाती है । एक श्रेष्ठ कथाकार और उपन्यास - सम्राट के रूप में हिन्दी साहित्य में इनका नाम सदा अमर रहेगा ।</p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">Now you should help us a bit</span></h2><div><p>So friends, how did you like our post! <b><span style="color: red;">Don't forget to share this</span> </b>with your friends, below <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> Post. 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पर रीति का तात्पर्य लक्षण देते हुए या लक्षण को ध्यान में रखकर लिखे गए काव्य से है । इस प्रकार<b> रीति काव्य</b> वह काव्य है , जो लक्षण के आधार पर या उसको ध्यान में रखकर रचा जाता है । </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">रीतिकाल का नामकरण कैसे हुआ | Ritikal ka nam karan</h3><p><b>रीतिकाल का नामकरण</b> : - आचार्य शुक्ल का काल - विभाजन तत्कालीन कृतियों में परिलक्षित प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर हुआ है , परंतु कुछ विद्वानों ने रीतिकाल को अगल - अलग नाम दिए हैं । </p><p>सर्वप्रथम इस युग का नामकरण मिश्रबन्धुओं ने किया और इस काल को <b>अलंकृत काल</b> नाम दिया । </p><p>आचार्य पं . विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को ' <b>शृंगार काल</b> ' नाम से अभिहित किया और डॉ . भगीरथ मिश्र ने इसे ' <b>रीति युग</b> ' या अधिक से अधिक 'रीति - शृंगार युग ' माना है । इन नामों में से दो ही पक्ष प्रबल दिखते हैं- रीतिकाल और शृंगार काल । </p><p>रीतिकाल से आशय हिन्दी साहित्य के उस काल से है , जिसमें निर्दिष्ट काव्य रीति या प्रणाली के अंतर्गत रचना करना प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति बन गई थी । 'रीति' , 'कवित्त रीति' एवं ' सुकवि रीति ' जैसे शब्दों का प्रयोग इस काल में बहुत होने लगा था। हो सकता है आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने इसी कारण इस काल को <b>रीतिकाल</b> कहना उचित समझा हो । </p><p>काव्य रीति के ग्रन्थों में काव्य - विवेचन करने का प्रयास किया जाता था । हिन्दी में जो काव्य - विवेचन इस काल में हुआ , उसमें इसके बहाने मौलिक रचना भी की गई है । यह प्रवृत्ति इस काल में प्रधान है , लेकिन इस काल की कविता प्रधानतः शृंगार रस की है । </p><p>इसीलिए इस काल को शृंगार काल कहने की भी बात की जाती है । शृंगार ' और ' रीति ' यानी इस काल की कविता में वस्तु और इसका रूप एक - दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं । </p><p>भक्ति मूलत : प्रेम ही है । रीतिकालीन प्रेम या शृंगार में धार्मिकता का आवेश क्रमशः क्षीण होता गया । भक्तिकाल का अलौकिक शृंगार रीतिकाल में आकर लौकिक शृंगार बन गया । इससे यह अर्थ नहीं निकालना चाहिए कि इस काल में अलौकिक प्रेम ( शृंगार ) , भक्ति या अन्य प्रकार की कविताएँ नहीं हुई । </p><p>रीति का अवलंब लेकर भी कवियों ने सामान्य गृहस्थ जीवन के सीमित ही सही , मार्मिक चित्र खींचे हैं । </p><p>प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध शृंगार , नीति की मुक्त रचनाएँ रीतिकाल में प्रभावशाली ढंग से फिर प्रवाहित होती दिखलाई पड़ती है । भक्तिकाल में भक्ति के आवेग के सामने यह छिप सी गई थी । </p><p>भक्ति की कविताओं की परंपरा इस काल में समाप्त नहीं हुई , किंतु कबीर , सूर , जायसी , तुलसी , मीरा जैसे लोक - संग्रही मानवीय करुणा वाले उत्कृष्ट भक्त कवियों के सामने इस काल के भक्त कवि कहाँ ठहरते ? </p><p>भक्ति इस काल की क्षीणमात्र काव्यधारा है , वह भी अपने को काव्य रीति में ढाल रही थी । यही कारण है कि इस काल के प्रारंभ में ही ऐसे अनेक कवि दिखलाई पड़ते हैं , जिनका विषय तो भक्ति है , किंतु लगते रीतिकाल के कवि हैं । </p><p>ऐसे कवि वस्तुतः रीति धारा के ही कवि माने जाने चाहिए जैसे- केशव , गंग , सेनापति , पद्माकर आदि । इनकी भक्ति भी ठहरी हुई और एकरस है । </p><p>इस काल में रीति से हटकर स्वच्छंद प्रेम काव्य भी रचा गया जिसमें काव्य - कौशल होते हुए भी प्रेम विशेषतः विरह की तीव्र व्यंजना है । ऐसे कवियों की रचनाओं पर सूफी कवियों के प्रेम की पीर ' का प्रभाव स्पष्ट है । घनानन्द इसी श्रेणी के कवि हैं । </p><p>स्वच्छन्द प्रेम मार्ग पर चलकर रचना करने वाले अन्य कवि आलम , बोधा , ठाकुर हैं । इन बातों को ध्यान में रखते हुए रीतिकालीन काव्य को तीन धाराओं में विभाजित किया जाता है । </p><p>1. रीतिबद्ध काव्य </p><p>2 . रीतिमुक्त काव्य </p><p>3. रीतिसिद्ध काव्य ।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">रीतिकाल की प्रमुख विशेषतायें (प्रवृत्तियां) | Ritikal ki pramukh visheshata</h2><p>रीतिकाल में अनेक विशेषतायें या प्रवृत्तियाँ मिलती हैं । इस काल में भक्ति , नीति , वैराग्य , वीरता के अनेक अच्छे कवि हुए हैं । </p><p></p><ul style="text-align: left;"><li>रीतिकालीन काव्य अधिकांशतः दरबारों में लिखा गया , अत : दरबार की रुचि का ध्यान रखकर काव्य रचने वाले कवियों में शृंगारपरकता अनिवार्य थी । </li><li>शृंगार की प्रधानता के कारण कुछ विद्वान इसे शृंगार काल कहना उचित समझते हैं , किंतु इस काल की प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति रीति ही थी , क्योंकि भूषण जैसे वीर रस के कवि ने भी रीतिग्रंथ की रचना की है । अतः रीति में वीर रस के कवि भूषण आ जाते हैं । शृंगार कहने से ऐसे कवि छूटकर अलग जा पड़ते हैं । </li><li>रीतिकाल में मुक्तक काव्य की प्रधानता रही है । कवित्त , सवैया , दोहा , कुंडलियाँ- इस काल के बहुप्रयुक्त छन्द हैं । </li><li>रीतिकाल की भाषा ब्रजभाषा थी । </li><li>विषय वस्तु की दृष्टि से इस काल की कविता बहुत सीमित है । </li><li>प्रधानतः शृंगार और उसमें भी नायिका भेद ही मिलता है , किंतु रीतिपरक सूक्तियाँ भी दिखलाई पड़ती हैं । रहीम , वृंद , गिरिधर की नीतिपरक रचनाएँ बहुत लोकप्रिय रहीं । इसी प्रकार भक्ति की रचनाएँ भी दिखलाई पड़ती हैं । </li><li>रीतिबद्ध और रीतिसिद्ध काव्य प्रधानतः दरबारी काव्य है । इस काव्य पर आश्रयदाताओं की रुचियों और कवियों की आश्रयदाताओं से पुरस्कार पाने की आशा का प्रभाव है । यह प्रधानतः मुक्तक काव्य है । </li><li>रीतिमुक्त कवि दरबारी नहीं हैं । घनानंद जैसे कवि ने दरबार छोड़कर प्रेम की कविताएँ लिखीं हैं । इन कवियों ने सहज और स्वाभाविक प्रेम का चित्रण , विशेषतः विरह की मार्मिक मनोभूमियों का चित्रण किया है । इसीलिए इनकी कविताओं में सूफियों जैसी विरह की उत्कटता मिलती है । </li><li>भारतीय काव्य शास्त्र की अवधारणा तथा अभिशप्त जीवन में सरसता का संचार करने की दृष्टि से रीतिकालीन कविता का विशेष महत्व है । </li></ul><p></p><p>ब्रजभाषा को पूर्ण उत्कर्ष तक ले जाने की दृष्टि से भी इस काल का महत्व असंदिग्ध है । इस काल में कला का परिष्कृत रूप देखने को मिलता है । सम्भवतः इसी कारण भक्तिकाल को यदि भावना का स्वर्णकाल कहा गया है तो रीतिकाल को हम कला का स्वर्णकाल कह सकते हैं । </p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact Form</b> को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग 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href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5svQQnNzamBGIGw6uANR1ZZehVo1Nz8HVaBO05pOBmAThDHlDsDbrUEZQ8Ug0hy4G2p1RwIhSRaGhvPVCO_yJPnDJ4PHyWMjmT9APQiXcfaf-MUKo4ckesrPVPyTpjjTrEk36eaaKW-4/s960/PicsArt_11-25-10.47.06.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="भक्तिधारा (रैदास के पद , पदावली) के पद्यांश की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या , अभ्यास प्रश्नोत्तर।" border="0" data-original-height="540" data-original-width="960" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh5svQQnNzamBGIGw6uANR1ZZehVo1Nz8HVaBO05pOBmAThDHlDsDbrUEZQ8Ug0hy4G2p1RwIhSRaGhvPVCO_yJPnDJ4PHyWMjmT9APQiXcfaf-MUKo4ckesrPVPyTpjjTrEk36eaaKW-4/s16000/PicsArt_11-25-10.47.06.jpg" title="भक्तिधारा (रैदास के पद , पदावली) के पद्यांश की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या , अभ्यास प्रश्नोत्तर।" /></a></div><h2 style="text-align: left;"><br /></h2><p style="text-align: left;"><b>रैदास के पद ( रैदास ) के पद्यांश की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या</b></p><p><b><span style="color: red;">रैदास के पद (1) </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">प्रभुजी तुम चंदन हम पानी , जाकी अंग - अंग बास समानी ।</span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।</span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">प्रभुजी तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरे दिन राती ।</span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">प्रभुजी तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सोहागा । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै ' रैदासा ' ।</span></b></p><p><b><span style="color: red;">कठिन शब्दार्थ</span></b> - अंग - अंग = प्रत्येक अंग में ; बास सुगंध ; घन = बादल ; मोरा = मोर ; चितवत = देखता है ; चकोरा चकोर पक्षी ; जोति = प्रकाश ; बरे = जलती है ; दिन राती = रात - दिन ; सोनहिं = सोने की ; दासा = दास , सेवक । </p><p><b><span style="color: red;">सन्दर्भ</span></b> - प्रस्तुत पद्यांश ‘ <b>भक्तिधारा</b> ' के ' <b>रैदास के पद</b> ' शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता रैदास जी हैं । </p><p><b><span style="color: red;">प्रसंग</span></b> - इस पद में सन्त कवि रैदास ने भक्त और भगवान में क्या रिश्ता होता है , उसका विविध प्रकार से वर्णन किया है । </p><p><b><span style="color: red;">व्याख्या</span></b> - सन्त कवि रैदास भक्त और भगवान् के मध्य स्थित सम्बन्ध की चर्चा करते हुए कहते हैं कि हे प्रभुजी ! यदि आप चन्दन हैं तो हम पानी बनकर , चन्दन को घिस - घिस कर उसकी सुगन्ध को प्राप्त कर लेंगे और इस प्रकार भगवान् की सुगन्ध हमारे शरीर के प्रत्येक अंग में समा जायेगी । </p><p>आगे वे कहते हैं कि हे प्रभु जी ! आप तो बादलों के समान हैं और हम उन वर्षाकालीन धूम - धुआँरे बादलों को देखकर नाच करने वाले मोर बने हुए हैं । हम आपकी ओर टकटकी लगाकर वैसे ही देखते रहते हैं जैसे कि चकोर पक्षी चन्द्रमा को देखता फिरता है । हे भगवान् ! आप यदि दीपक हैं तो हम भक्त उस दीपक में जलने वाली बाती हैं । आपकी यह शाश्वत ज्योति दिन - रात जलती रहती है । हे भगवान् ! आप तो मोती के समान हैं और हम उन मोतियों को पिरोने वाले धागे हैं । जिस प्रकार सुहागा मिलकर सोने की चमक को कई गुना बढ़ा देता है वैसे ही आपका स्पर्श या संसर्ग पाकर हमारा सम्मान बढ़ जाता है । हे भगवान् ! आप स्वामी हैं और हम आपके दास हैं । हम आपसे यही विनती करते हैं कि आप मुझ रैदास को इसी प्रकार भक्ति देकर कृतार्थ करते रहो । </p><p><b><span style="color: red;">विशेष- </span></b></p><p>( 1 ) सम्पूर्ण पद में रूपक अलंकार है । </p><p>( 2 ) मुहावरों व कहावतों का सजीव ढंग से चित्रण किया गया है । ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><p><b><span style="color: red;">रैदास के पद ( 2 ) </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">नरहरि ! चंचल है मति मेरी , कैसे भगति करूँ मैं तेरी । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">तू मोहि देखै , हौँ तोहि देखू , प्रीति परस्पर होई । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">तू मोहि देखे , तोहि न देखू , यह मति सब बुधि खोई । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">सब घट अंतर रमसि निरंतर मैं देखन नहिं जाना । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">गुन सब तोर , मोर सब औगुन , कृत उपकार न माना ॥ </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">मैं , तँ तोरि - मोरि असमझि सौं , कैसे करि निस्तारा । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">कहै ' रैदासा ' कृष्ण करुणामय ! जै - जै जगत अधारा ॥ </span></b></p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">कठिन शब्दार्थ</span></b> - नरहरि = ईश्वर ; चंचल = चलायमान , अस्थिर , एक बात पर न टिकने वाली ; भगति = भक्ति ; परस्पर आपस में ; बुधि = बुद्धि ; घट प्राण , जीव ; रमसि रमण करता है , निवास करता है ; औगुन = अवगुण ; उपकार = भलाई ; कृत = की गयी ; निस्तारा = उद्धार ; जगत - अधारा = संसार के आश्रय स्थल । </p><p><b><span style="color: red;">सन्दर्भ</span></b> - प्रस्तुत पद्यांश ‘ <b>भक्तिधारा</b> ' के ' <b>रैदास के पद</b> ' शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता रैदास जी हैं । </p><p><b><span style="color: red;">प्रसंग</span></b> - इस पद में भक्त रैदासं भगवान् से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान् ! मेरी मति चंचल है । फिर चंचल मन से मैं तेरी भक्ति किस प्रकार करूँ ? </p><p><b><span style="color: red;">व्याख्या</span></b> -भक्त रैदास कहते हैं कि हे भगवान् ! मेरी बुद्धि चंचल है , वह किसी भी प्रकार एकाग्र नहीं हो पाती है । बिना एकाग्र हुए मैं तेरी भक्ति कैसे कर पाऊँगा । कहने का भाव यह है कि भक्ति के लिए मन की एकाग्रता बहुत जरूरी है । मैं आपको देखता हूँ और आप मुझे देखते हो इस नाते हम दोनों में आपस में प्रेम हो गया है । तू मुझे देखे और मैं यदि तुझे न देखू तो इस स्थिति में मेरी बुद्धि पथ भ्रमित हो जाती है । </p><p>हे भगवान् ! आप तो घट - घट वासी हैं अर्थात् आप तो प्रत्येक के हृदय में निवास करते हैं फिर भी अपनी अज्ञानता के कारण मैं आपको अपने अन्दर नहीं देख पाता हूँ । हे भगवान् ! आप तो सभी गुणों से पूर्ण हो और मैं अज्ञानी , मूर्ख सभी अवगुणों से पूर्ण हूँ । मैं इतना कृतघ्न हूँ कि आपने मानव जन्म देकर मेरे साथ जो महान् उपकार किया है , मैं उसे भी नहीं जानता हूँ । यह मेरा है , यह तेरा है इसी मैं - मैं , तँ - तें के चक्कर में मेरी बुद्धि भटक गयी है फिर भला बताओ कैसे मेरा उद्धार हो ? भक्त रैदास जी कहते हैं कि भगवान कृष्ण करुणामयी हैं , दयालु हैं उनकी जय - जयकार हो , वे ही वास्तव में जगत् के आधार हैं अर्थात् सम्पूर्ण संसार उन्हीं के ऊपर टिका हुआ है । </p><p><b><span style="color: red;">विशेष</span></b> - </p><p>( 1 ) रैदास अपनी मति को चंचल मानते हैं । इस चंचल मन में भगवान की भक्ति नहीं हो सकती । </p><p>( 2 ) ईश्वर घट - घट वासी है । </p><p>( 3 ) अन्तिम पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><p><b><span style="color: red;">रैदास के पद ( 3 ) </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">ऐसी लाल तुझ बिन कउनु करै । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">गरीब निवाजु गुसईंआ मेरा माथै शत्रु धरै । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">नीचह ऊँच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">नामदेव , कबीरु , त्रिलोचन , सधना सैनु तरै । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">कहि रविदास , सुनहु रे संतहु हरि जीउ तै सभै सरै । </span></b></p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">कठिन शब्दार्थ</span></b> - लाल = यहाँ भगवान , स्वामी के लिए आया है ; कउनु = कौन ; निवाजु = करुणा ; गुसईंया = गोस्वामी , मालिक , ईश्वर ; शत्रु धरै = शत्रुओं को नष्ट करता है ; छोति = छूने भर से ; कउ = को ; सैनु तरै आँखों के इशारे से तार दिया , उद्धार कर दिया ; सभै सरै = सबका कल्याण होता है । </p><p><b><span style="color: red;">सन्दर्भ</span></b> - प्रस्तुत पद्यांश ‘ <b>भक्तिधारा</b> ' के ' <b>रैदास के पद</b> ' शीर्षक से लिया गया है । इसके रचयिता रैदास जी हैं । </p><p><b><span style="color: red;">प्रसंग</span></b> - इस पद में भक्त रैदास कहते हैं कि उस ईश्वर की मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता है । वह चाहे तो सभी जीवों का उद्धार कर दे । </p><p><b><span style="color: red;">व्याख्या</span></b> - </p><p>भक्त रैदास कहते हैं कि हे लाल ! अर्थात् भगवान ! तुम्हारे बिना हम भक्तों की विपत्तियों का निस्तारण और कौन कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं । हे भगवान ! आप गरीबों पर कृपा करने वाले हो , आप हमारे गोस्वामी अर्थात् मालिक हो । आप मेरा मस्तक हो अर्थात् मैं आपको अपने माथे पर बिठाता हूँ और आप मेरे शत्रुओं को ठिकाने लगाने वाले हो । आप खेल - खेल में ही नीच एवं पतित व्यक्ति को बहुत ऊँचा पद प्रदान कर देते हो । मेरा वह गोविन्द किसी से भी नहीं डरता है । नामदेव , कबीर , त्रिलोचन और सधना आदि भक्तों को उसने अपने नेत्रों के इशारे से ही तार दिया अर्थात् उनका उद्धार कर दिया । सन्त रैदास जी कहते हैं कि हे सन्तो ! सुनो ! भगवान में इतनी शक्ति है कि वह सभी जीवों का उद्धार कर सकते हैं । </p><p><b><span style="color: red;">विशेष</span></b> - </p><p>( 1 ) इस पद में ' लाल ' भगवान के लिए प्रयुक्त हुआ है ।</p><p>( 2 ) रैदास ने भगवान को गरीब निवाज , गोस्वामी आदि कहा है । </p><p>( 3 ) अन्तिम पंक्ति में अनुपास की छटा है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><h2 style="text-align: left;">पदावली ( मीराबाई ) के पद्यांश की संदर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या</h2><p><b><span style="color: red;">मीराबाई की पदावली ( 1 ) </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">पायो जी मैंने राम रतन धन पायौ । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">वस्तु अमोलक दी मेरे सद्गुरु , किरपा करि अपनायौ । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">जनम - जनम की पूँजी पाई , जग में सभी खोवायौ । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">खरचै नहिं कोई चोर न लैवै , दिन - दिन बढ़ती सवायौ । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">सत की नाव खेवटिया सतगुरु , भव सागर तर आयौ । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">मीरा के प्रभु गिरधर नागर , हरख - हरख जस गायौ । </span></b></p><p><b><span style="color: red;">कठिन शब्दार्थ</span></b> -</p><p> रतन रत्न ; अमोलक अमूल्य ; किरपा = कृपा ; अपनायौ = अपना लिया , अपना बना लिया ; सवायौ = सवा गुना ; खेवटिया = खेवनहार ; भव सागर = -संसार रूपी समुद्र ; तर आयौ = तार दिया ; गिरधर नागर = गोवर्धन धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण ; हरख - हरख = खुश होकर । </p><p><b><span style="color: red;">सन्दर्भ</span></b> -प्रस्तुत पद्यांश '<b>भक्तिधारा</b> ' के <b>पदावली</b> ' शीर्षक से लिया गया है । इसकी रचयिता मीराबाई हैं ।</p><p><b><span style="color: red;">प्रसंग</span></b> - इस पद में कवयित्री मीराबाई रामरत्न रूपी धन को पाकर अपने जीवन को धन्य मानती हैं । </p><p><b><span style="color: red;">व्याख्या</span></b> - मीराबाई कहती हैं कि हे संसारी लोगों ! मैंने राम रत्न रूपी धन पा लिया है । मेरे सद्गुरु ने मुझे यह रामरत्न रूपी धन के रूप में अमूल्य वस्तु प्रदान की है । उस सद्गुरु ने मुझे कृपा करके अपना लिया है , अर्थात् अपना भक्त बना लिया है । इसके माध्यम से मैंने अनेक जन्मों की पूँजी प्राप्त कर ली है कहने का अर्थ यह है कि यह राम रत्न रूपी धन अनेक जन्मों की तपस्या के बाद मुझे प्राप्त हुआ है । मैंने तो यह धन पा लिया है जबकि संसार के अन्य सभी लोग इसे खोते रहते हैं । यह धन अनौखे रूप का है । यह खर्च करने से कम नहीं होता है और न ही चोर इसे चुरा सकते हैं । इसके विपरीत यह नित्य प्रति सवाया होकर बढ़ता रहता है । सत्य की नौका ( नाव ) का खेवनहार सद्गुरु है । वही इस संसार रूपी समुद्र से हमको पार लगायेगा । मीरा के स्वामी तो गोवर्धन पर्वत को धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण हैं । मैं खुश होकर उनका यश गाती रहती हूँ । </p><p><b><span style="color: red;">विशेष</span></b>- </p><p>( 1 ) मीरा भगवान के नाम को सबसे बड़ा धन मानती हैं । तर </p><p>( 2 ) राम रतन धन में रूपक , ' सत की नाव ........तर आयौ ' - में सांगरूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">मीराबाई की पदावली ( 2 )</span></h2><p><b><span style="color: #2b00fe;">सुनी हो मैं हरि आवनि की आवाज । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">महले चढ़े चढ़ि जोऊँ सजनी , कब आवै महाराज ॥ </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">दादुर मोर पपइया बोलै , कोइल मधुरे साज । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">मग्यो इन्द्र चहूँ दिस बरसे , दामणि छोड़े लाज । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">धरती रूप नवा नवा धरिया , इन्द्र मिलण कै काज । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">मीरों के प्रभु हरि अविनासी , बेग मिलो महाराज ।</span></b></p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">कठिन शब्दार्थ</span></b> - हरि आवनि = भगवान के आने की ; जोऊ देखती हूँ ; सजनी = सखि ; दादुर = दादुर , मेंढक ; पपइया = पपीहा ; कोइल = कोयल ; मग्यो = मग्न होकर , मस्त होकर ; चहूँ दिस चारों दिशाओं में ; दामणि = बिजली ; नवानवा = नया - नया ; अविनाशी = कभी नष्ट न होने वाले , शाश्वत ; वेग = शीघ्र । </p><p><span style="color: red;"><b>सन्दर्भ</b></span> - प्रस्तुत पद्यांश <b>भक्तिधारा ' के पदावली</b> ' शीर्षक से लिया गया है । इसकी रचयिता मीराबाई हैं । </p><p><b><span style="color: red;">प्रसंग</span></b> - इस पद में उस समय का वर्णन किया गया है जब मीराबाई को प्रभु के आगमन की आवाज सुनाई दी । </p><p><b><span style="color: red;">व्याख्या</span></b> - मीराबाई कहती हैं कि मैंने प्रभु के आगमन की आवाज सुन ली है । हे सखि ! मैं अपने महलों के ऊपर चढ़ - चढ़कर यह देख रही हूँ कि प्रभु जी हमारे घर कब पधारेंगे ? प्रभु के आगमन की इस शुभ घड़ी पर दादुर ( मेंढक ) , मोर , पपीहा आनन्द में मग्न होकर अपनी बोली बोल रहे हैं । इसी समय कोयल भी मधुर - मधुर बोली बोल रही है । आनन्द से भरकर इन्द्र देवता चारों दिशाओं में वर्षा कर रहे हैं और बिजली भी अपनी लज्जा को छोड़कर बार - बार बादलों में गरज रही है । पृथ्वी पर वर्षा के फलस्वरूप नयी - नयी वनस्पतियाँ उग आयी हैं जिससे पृथ्वी नये - नये रूपों में सजी हुई दिखाई दे रही है । संभवतः पृथ्वी अपनी साज - सज्जा इन्द्र से मिलने के लिए कर रही है । मीराबाई कहती हैं कि हे प्रभु जी ! आपतो अविनाशी हैं अर्थात् शाश्वत् रूप से सदैव विद्यमान रहने वाले हैं । आप कृपा करके मुझ भक्त से जल्दी आकर मिल जाओ । </p><p><span style="color: red;"><b>विशेष-</b></span> </p><p>( 1 ) मीरा की प्रभु से मिलने की तीव्र अभिलाषा है ।</p><p>( 2 ) चढ़ि - चढ़ि , नवा - नवा में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">मीराबाई की पदावली ( 3 ) </span></h2><p><b><span style="color: #2b00fe;">दरस बिन दूखण लागै नैन । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">अब के तु बिछरे , प्रभु मोरे कबहुँ न पायौ चैन सबद गुणत मेरी छतिया , काँपै मीठे - मीठे बैन । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">कल न परत पल , हरि मग जोवत , भई छमासी रैन ।</span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">बिरह कथा काँसूकहूँ , सजनी वह गयी करवत ऐन । </span></b></p><p><b><span style="color: #2b00fe;">मीरों के प्रभु कबहे मिलोगे , दुख मेटण सुखदैन ॥ </span></b></p><p><b><span style="color: red;">कठिन शब्दार्थ </span>-</b></p><p> दरस = दर्शन ; दूखण = दुखने लगे ; चैन = शान्ति ; बैन = वचन , बोल ; कल = चैन , शान्ति ; जोवत - देखती रहती हूँ ; छमासी रैन = छ : मास तक निरन्तर अंधकार बना रहा ; काँसू = किससे ; दुख मेटण = दुख नष्ट करने ; करवत = करपत्र अर्थात् आरे की मशीन । </p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">सन्दर्भ</span></b> - प्रस्तुत पद्यांश भक्तिधारा ' के पदावली ' शीर्षक से लिया गया है । इसकी रचयिता मीराबाई हैं । </p><p><b><span style="color: red;">प्रसंग</span></b> - मीरा प्रभु के दर्शन न पाकर अत्यधिक बेचैन हो उठती है अत : वह प्रभु से दर्शन देने की विनती कर रही है ।</p><p><b><span style="color: red;">व्याख्या</span></b> - </p><p>मीरा जी कहती हैं कि हे प्रभुजी ! आपके दर्शनों के बिना मेरे नेत्र दुखने लगे हैं । हे प्रभुजी ! जब से आप मुझसे बिछुड़े हैं तब से आज तक मुझे चैन नहीं मिला है । आपके द्वारा बोले गये शब्द मेरी छाती के अन्दर समाये हुए हैं और मेरी । </p><p>मीठी बोली भी अब काँप रही है । मुझे एक पल को भी आपके दर्शन के बिना चैन नहीं मिल रहा है । मैं बार - बार आपके आने का मार्ग देखती रहती हूँ । मेरे लिए यह वियोग ( बिछोह ) की अवधि छः महीने की रात के बराबर हो गयी है । हे सखि ! मैं अपनी इस विरह व्यथा को किससे कहूँ वह तो मेरे लिए आरे की मशीन के समान कष्ट देने वाली हो गयी है । कहने का अर्थ यह है कि जिस प्रकार कोई योगी अपने शरीर को आरे से चिरा कर मोक्ष प्राप्त करने में जितना कष्ट पाता है वैसा ही कष्ट प्रभुजी के दर्शन के बिना मुझे हो रहा है । मीरा जी कहती हैं कि हे प्रभु जी ! मेरी इस वियोग दशा को दूर करने तथा सुख देने के लिए आप कब दर्शन देंगे ? अर्थात् आप शीघ्र ही मुझे दर्शन प्रदान करें । </p><p><b><span style="color: red;">विशेष</span></b>- </p><p>( 1 ) कथा काँसू कहूँ ' में अनुप्रास अलंकार है । </p><p>( 2 ) वियोग शृंगार का वर्णन है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><p><b><span style="color: red;">भक्तिधारा अभ्यास बोध प्रश्न :</span></b></p><p><b><span style="font-size: medium;">भक्तिधारा के अति लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर</span></b></p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 1. रैदास की प्रभु भक्ति किस भाव की है ? </h2><p>उत्तर - दास्य ( सेवक ) भाव की । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 2. रैदास ने प्रभु से अपना सम्बन्ध किस रूप में निरूपित किया है ? </h2><p>उत्तर - रैदास ने प्रभु से अपना सम्बन्ध चन्दन और पानी के रूप में निरूपित किया है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 3. मीराबाई को कौन - सा रत्न प्राप्त हुआ था ? </h2><p>उत्तर - मीराबाई को ' <b>राम नाम रूपी रत्न</b> ' प्राप्त हुआ था । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 4. मीरा कहाँ चढ़कर प्रभु की बाट देख रही है ? </h2><p>उत्तर - मीरा अपने महल पर चढ़कर प्रभु की बाट देख रही है ।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 5. मीरा के नेत्र क्यों दुःखने लगे हैं ? </h2><p>उत्तर- प्रभु के दर्शन के बिना मीरा के नेत्र दु : खने लगे हैं । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><p><br /></p><p><b><span style="color: red; font-size: x-large;">भक्तिधारा के लघु उत्तरीय प्रश्न उत्तर:</span></b></p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 1. रैदास ने बुद्धि को चंचल क्यों कहा है ? </h2><p>उत्तर - रैदास ने बुद्धि को चंचल इसलिए कहा है कि यद्यपि आप सबके घट - घट में निवास करने वाले हो तब भी मैं अपनी इस चंचल बुद्धि के कारण आपको देख नहीं पाता हूँ । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 2. ' जाकी छोति जगत कउलागे ता पर तुही ढरै ' - से रैदास का क्या तात्पर्य है ? </h2><p>उत्तर - इस पंक्ति से रैदास का तात्पर्य यह है कि जिस प्रभु के छूने मात्र से जगत् का कल्याण हो जाता है , हे मूर्ख जीव ! तू उसी करुणामय भगवान से दूर भागता है ।</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 3. मीरा ने संसार रूपी सागर को पार करने के लिए क्या उपाय बताया है ? </h2><p>उत्तर - मीरा ने संसार रूपी सागर को पार करने का एक ही उपाय बताया है और वह है , सद्गुरु का सच्चे मन से स्मरण । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 4. रैदास एवं मीरा की भक्ति की तुलना कीजिए । </h2><p>उत्तर - रैदास की भक्ति निर्गुण निराकार ईश्वर की है जबकि मीरा की भक्ति सगुण साकार कृष्ण की भक्ति है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 5. ' प्रेम - बेलि ' के रूपक को स्पष्ट कीजिए । </h2><p>उत्तर - ' प्रेम - बेलि ' को मीरा ने विरह से उत्पन्न हुए आँसुओं के जल से निरन्तर सींचते हुए पल्लवित किया है । अब तो यह प्रेम - बेलि बहुत अधिक विकसित हो गई है और चारों ओर फैल गई है । अब यह आशा लग रही है कि इस बेल पर प्रियतम - मिलन से उत्पन्न हुए आनन्द रूपी फल आने शुरू होंगे । इस तरह विरह का अपार कष्ट दूर हो जाएगा ; तो निश्चय ही प्रियतमा ( भक्त मीरा ) का मिलन आराध्य श्रीकृष्ण से हो जाएगा । प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रति मीरा का प्रेम एक लता ( बेल ) है । प्रस्तुत प्रसंग में प्रेम उपमेय है और बेल आगमन रूप में प्रयुक्त है।</p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><p><b><span style="color: red; font-size: x-large;">भक्तिधारा के दीर्घ उत्तरीय प्रश्न उत्तर:</span></b></p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 1. मीरा को रामरतन धन प्राप्त होने से क्या - क्या लाभ प्राप्त हुए हैं ? </h2><p>उत्तर - मीरा को रामरतन धन प्राप्त होने से जन्म - जन्मान्तर से खोई हुई पूँजी प्राप्त हो गई और यह पूँजी ऐसी विलक्षण है कि न तो यह खर्च होती है और न ही चोर इसको चुराकर ले जाते हैं अपितु यह तो नित्य सवा गुनी होकर बढ़ती ही रहती है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 2. प्रभु दर्शन के बिना मीरा की कैसी दशा हो गई है ? </h2><p>उत्तर - प्रभु दर्शन के बिना मीरा के नेत्र दुखने लगे । उनके शब्द उसकी छाती में बार - बार सुनाई पड़ रहे हैं और उसकी वाणी उनका स्मरण कर काँपने लगी है । वह प्रतिक्षण प्रभु की बाट जोहती रहती है , प्रभु के बिना उसे चैन ही नहीं पड़ता है । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 3. " रैदास के पदों में भक्ति भाव भरा हुआ है । " स्पष्ट कीजिए । </h2><p>उत्तर: रैदास के पदों में भक्ति भाव भरा हुआ है । वह भगवान को गरीब निवाज एवं गुसाईं बताते हैं । उनकी मान्यता है कि भगवान की कृपा से नीच व्यक्ति उच्च पद को प्राप्त कर लेता है । इतनी बड़ी कृपा भगवान के अतिरिक्त और कौन कर सकता है ? अर्थात् कोई नहीं । </p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;">प्रश्न 4. भक्त और भगवान के सम्बन्ध में रैदास ने अलग - अलग क्या भाव व्यक्त किए हैं ? स्पष्ट कीजिए । </h2><p>उत्तर - रैदास ने भक्त और भगवान के सम्बन्ध में कहा है - वह प्रभु को चन्दन बताते हैं तो स्वयं को पानी । इसी पानी के साथ घिस - घिसकर वह चन्दन की सुगन्ध को प्राप्त करना चाहते हैं । वह भगवान को घन मानते हैं तो स्वयं को बादल , वह भगवान को दीपक तो अपने को उसकी बाती , भगवान को मोती तो स्वयं को धागा , भगवान को स्वामी तो अपने को दास मानते हैं । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><h2 style="text-align: left;"> <span style="color: red;">भक्तिधारा पाठ का काव्य सौन्दर्य </span></h2><h2 style="text-align: left;">भक्तिधारा पाठ के शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिए </h2><p><b><span style="color: #3d85c6;">औगुन का हिन्दी मानक रूप : अवगुण </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">कअनु का हिन्दी मानक रूप : कौन </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">गुसईया का हिन्दी मानक रूप : गुसाईं , गोस्वामी </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">माथे का हिन्दी मानक रूप : मस्तक </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">किरपा का हिन्दी मानक रूप : कृपा </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">हरख का हिन्दी मानक रूप : हर्ष </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">जस का हिन्दी मानक रूप : यश </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">सुगत का हिन्दी मानक रूप : सुगति </span></b></p><p><b><span style="color: #3d85c6;">कोइल का हिन्दी मानक रूप : कोयल </span></b></p><p><br /></p><p><b><span style="color: red;">पर्यायवाची शब्द :</span></b></p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: #3d85c6;">मोर के तीन पर्यायवाची शब्द - मयूर , सारंग , केकी । </span></h4><h3 style="text-align: left;"><span style="color: #3d85c6;">कोयल के तीन पर्यायवाची शब्द - पिक , कोकिल , स्यामा । </span></h3><h4 style="text-align: left;"><span style="color: #3d85c6;">इन्द्र के तीन पर्यायवाची शब्द - सुरेश , सुरेन्द्र , देवेश । </span></h4><h4 style="text-align: left;"><span style="color: #3d85c6;">चन्द्र के तीन पर्यायवाची शब्द - विधु , शशि , राकेश । </span></h4><h2 style="text-align: left;"><span style="color: #3d85c6;">ईश्वर के तीन पर्यायवाची शब्द - भगवान , प्रभु , परमात्मा । </span></h2><h4 style="text-align: left;"><span style="color: #3d85c6;">नैन के तीन पर्यायवाची शब्द - नेत्र , चक्षु , अक्षि । </span></h4><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">इन पंक्तियों कौन सा अलंकार है । </span></h4><p>( i ) कह ' रैदासा ' कृष्ण करुणामय ! जै - जै जगत - अधारा । </p><p>उत्तर: अनुप्रास</p><p>( ii ) कहि रविदास सुनहु रे संतहुँ हरि जीउ ते सभै सटै ।</p><p>उत्तर: अनुप्रास</p><p>( iii ) बिरह कथा काँसू कहूँ सजनी वह गयी करवत ऐन ।</p><p>उत्तर: अनुप्रास</p><p><br /></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: #ff00fe;">निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए । </span></h2><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">( क ) पायो जी मैंने राम रतन धन पायो । </h3><p>उत्तर- ( क ) रूपक अलंकार , </p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">( ख ) मै , तँ तोरि , मोरि असमझि सौं कैसे करि निस्तारा । </h4><p>उत्तर- ( ख ) अनुप्रास अलंकार,</p><p><br /></p><h4 style="text-align: left;">( ग ) सत की नाव खेवटिया सतगुरु भवसागर तर आयो । </h4><p>उत्तर- ( ग ) रूपक अलंकार</p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">'दरस बिन दूखण लागे नैन ' – पद में प्रयुक्त रस और स्थायी भाव का नाम लिखिए । </h3><p>उत्तर - इस पद में वियोग शृंगार नामक रस है तथा इसका स्थायी भाव ' रति ' है । </p><p><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <ins class="adsbygoogle" style="display:block; text-align:center;" data-ad-layout="in-article" data-ad-format="fluid" data-ad-client="ca-pub-1776278965240564" data-ad-slot="5112838683"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: #ff00fe;">भक्तिधारा पाठ की पंक्तियों का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए </span></h2><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">तूं मोहि देखै , हौं तोहि देखू , प्रीति परस्पर होई । पंक्ति का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए </h3><p>उत्तर: भक्त कवि रैदास परमात्मा ( तू ) तत्व को सर्वद्रष्टा और आत्मा ( हौं ) को एक ही तत्व में देखते हैं । परन्तु जगत में भौतिक बुद्ध प्रभाव से उनके एकत्व में भी विभेद उत्पन्न हो गया है । परमात्मा और जीवात्मा सम्बन्धी एकरूपता के भाव की हानि भक्त को बौद्धिक भ्रम से हो गई है । कबीर ने भी परमात्मा रूपी प्रियतम को प्रियतमा ने अपने नयनों के बीच स्थान देकर दुनिया के द्वारा न देखे जाने की बात कही है । कवि का यह रहस्यवाद अभी भी लोगों को चमत्कृत करता है ।</p><h3 style="text-align: left;">प्रभुजी तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती । पंक्ति का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए </h3><p>उत्तर: ईश्वरीय ज्ञान की ज्योति भक्त को उत्तम भक्ति मार्ग को दिखाती है । उस दशा में भक्त अपने मार्ग से इधर - उधर नहीं भटकता । अतः ईश्वर ज्ञान ज्योति के भण्डार रूपी दीपक के समान है जिसमें जीवात्मा की बत्ती निरन्तर प्रज्ज्वलित होती रहती है और अपने अस्तित्व को मिटाकर पूर्ण समर्पण से , स्नेह भाव से सम्पृक्त हो उठती है और वह जीवात्मा स्नेह ( तैल ) , ज्ञान और तप के बल से भक्त स्वरूप को प्राप्त हो जाता है ।</p><h3 style="text-align: left;">खरचै नहिं कोई चोर न लेवै दिन - दिन बढ़त सवायौ । पंक्ति का भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए </h3><p>उत्तर- भक्त मीरा ' रामरतन धन ' को प्राप्त करके परम सुख की अनुभूति करती है । उन्होंने सांसारिक सम्पदा का त्याग कर दिया और स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति को स्वीकार किया । यह भक्ति रूपी धन कभी भी नष्ट न होने वाला है । यह कितना ही खर्च किया जाए , फिर भी खर्च नहीं होता है । कोई भी चोर इसे चुरा नहीं सकता , क्योंकि यह अदृश्य भाव से विद्यमान है । प्रभु भक्ति से ' राम नाम ' का धन सवाये रूप से निरन्तर बढ़ता ही जाता है । </p><p>मीरा का ' रामरतन धन ' अमूल्य है , अलौकिक है । अक्षुण्ण है अर्थात् परमात्मा अविनाशी है , सर्वव्यापी है और सर्व तथा समद्रष्टा है । आराध्य के प्रति भक्त का समर्पण स्तुत्य है , महत्वपूर्ण है । </p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">Now you should help us a bit</span></h2><div><p>So friends, how did you like our post! <b><span style="color: red;">Don't forget to share this</span> </b>with your friends, below <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> Post. Apart from this, if there is any problem in the middle, then don't hesitate to ask in the <b><span style="color: red;">Comment box</span></b>. If you want, you can send your question to <b><span style="color: red;">our email Personal Contact Form as well</span></b>. We will be happy to assist you. We will keep writing more posts related to this. <b><span style="color: red;">So do not forget to bookmark (Ctrl + D)</span></b> our blog “<b><a href="www.variousinfo.co.in" target="_blank">https://www.variousinfo.co.in/p/ncert-solution-in-hindi-variousinfo.html</a></b>” on your mobile or computer and subscribe us now to get all posts in your email. If you like this post, then <b>do not forget to share it </b>with your friends. You can help us reach more people by sharing it on social networking sites <b><span style="color: red;">like whatsapp, Facebook or Twitter. </span></b> Thank you !</p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-21978984075101889882021-11-02T21:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:49.227-08:00MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा<p><span style="font-family: Mangal;"><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने </span><span style="color: navy; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;"><span style="color: black;"><b><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span><span style="font-size: medium;"></span><span lang="HI" style="font-size: medium;">पद्य </span><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">Chapter 10</span><span lang="HI" style="font-size: medium;"> विविधा</span></b> </span></span><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span> <span lang="HI"> पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 10</span><span lang="HI"> विविधा</span></h2> <p> <span lang="HI"> विविधा अभ्यास - </span>बोध प्रश्न</p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> विविधा अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></h3> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span lang="HI">आसमान में किस तरह के बादल उड़ रहे थे</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">आसमान में झीने-झीने</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कजरारे एवं चंचल बादल उड़ रहे थे।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">रिमझिम-रिमझिम पानी बरसने के बाद क्या हुआ</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>रिमझिम-रिमझिम पानी बरसने के बाद आकाश खुल गया और धूप-निकल आयी।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार हवा बार-बार क्या कर रही है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि के अनुसार हवा बार-बार उनकी पत्नी का आँचल खींच रही है।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span>कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप कैसा बतलाया</h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप इस प्रकार बतलाया है कि पूर्व में तो हमारी कुटियों में तूफान बिना पूछे ही घुस जाया करते थे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन नई सभ्यता में वे बिना दरवाजे खटखटाए ही घरों में चले आते हैं।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5.</span><span lang="HI">आक्रोश में आकर मजदूरों ने क्या किया</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>आक्रोश में आकर मजदूरों ने सूरज को निगल लिया।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6.</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">खाली पेट</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का क्या आशय है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">खाली पेट</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का आशय भूखे-नंगे लोगों से है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> विविधा लघु उत्तरीय प्रश्न</span></h2> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span lang="HI">बादलों के हटने पर तारे कैसे दिखलाई पड़ते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>बादलों के हटने पर तारे जब-तब उज्ज्वल एवं झलमल दिखाई पड़ते हैं।</p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार सम्पूर्ण दिन में किस तरह के बादल दिखाई पड़ रहे थे</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि के अनुसार सम्पूर्ण दिन में कपसीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऊदे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लाल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पीले और मटमैले बादल दिखाई पड़ रहे थे।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span lang="HI">कवि ने हरे खेतों के बारे में क्या कल्पना की हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि ने हरे खेतों के बारे में यह कल्पना की है कि हम दोनों ने इनको जोता और बोया है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> अब इनमें धीरे-धीरे अंकुर निकल आये हैं और इनकी हरियाली ने धरती माता का रूप सजा दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार मेहनत से कमाई हुई फसल का वास्तविक लाभ किसे प्राप्त होता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि के अनुसार मेहनत से कमाई हुई फसल का वास्तविक लाभ बिचौलियों को प्राप्त हो जाता है।</p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span><span lang="HI">कवि नियति से क्या प्रश्न करते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि नियति से एक प्रश्न करता है कि तुमने खाली पेट वालों को घुटने क्यों दिए।</p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बुनियाद चरमराने</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का क्या तात्पर्य है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>बुनियाद चरमराने से कवि का तात्पर्य यह है कि नयी सभ्यता ने हमारे प्राचीन ढंग एवं आदर्शों को पूरी तरह नकार दिया है।</p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> विविधा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span></h2> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">त्रिलोचन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> की कविता में प्रस्तुत शरद ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span lang="HI">शरद ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कविवर त्रिलोचन कहते हैं कि नवमी की तिथि है और इस समय रात बड़ी ही मधुरं एवं शीतल है। अभी पूरी तरह जाड़ा नहीं पड़ा है। हाँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हल्का गुलाबी जाड़ा अवश्य शुरू हो गया। इस गुलाबी जाड़े में कभी-कभी शरीर के रोएँ काँप जाया करते हैं। कभी-कभी रिमझिम पानी की बरसात होती है तो कभी आकाश साफ खुल जाता है। कभी-कभी कपसीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऊदे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लाल और पीले तथा मटमैले बादल आकाश में घूमते दिखाई दे जाते हैं।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2.</span><span lang="HI">पठित पाठ के आधार पर </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">त्रिलोचन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> की कविता के कलापक्ष पर अपना मन्तव्य दीजिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> पठित पाठ के आधार पर हम देखते हैं कि त्रिलोचन की कविता में भावपक्ष के साथ ही साथ कलापक्ष भी सुन्दर बन पड़ा है। कवि ने धीरे-धीरे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सीरी-सीरी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> झीने-झीने</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रिमझिम-रिमझिम</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उजला-उजला</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बार-बार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> धीरे-धीरे आदि शब्दों का प्रयोग से काव्य में पुनरूक्तिप्रकाश अलंकार के द्वारा काव्य के सौन्दर्य को कई गुना बढ़ा दिया है। इसी प्रकार कवि ने जब-तब</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तन-मन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> काला-हल्का</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुनती हो-गुनती हो आदि में पद मैत्री का सुन्दर प्रयोग किया है। यह पवन आज </span><span style="font-family: Mangal;">……….. </span> <span lang="HI"> छोटा देवर</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में </span></p><p><span lang="HI">उदाहरण अलंकार </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जिनको नहलाते हैं बादल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिनको बहलाती है बयार</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ। सम्पूर्ण कविता में अनुप्रास की छटा। भाषा कोमलकान्त पदावली है। कहीं-कहीं भाषा में लाक्षणिकता भी आ गयी है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span lang="HI">त्रिलोचन शास्त्री ने पवन के माध्यम से क्या संकेत किया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भाव व्यंजना कीजिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> त्रिलोचन शास्त्री ने पवन के माध्यम से यह संकेत किया है कि यह पवन आज बार-बार तुम्हारे आँचल को वैसे ही खींच रहा है जैसे कोई देवर अपनी भाभी के आँचल को खींचता हो।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4.</span><span lang="HI">नई और पुरानी सभ्यता में कवि ने क्या अन्तर बतलाया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> नई और पुरानी सभ्यता में कवि ने यह अन्तर बताया है कि प्राचीन समय में तो हमारी कुटियों में बिना पूछे ही तूफान प्रवेश पा जाते थे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर इस नई सभ्यता में तो सब कुछ बदल गया है। आज तो लोग हमारे घरों में बिना दरवाजा खटखटाए ही घुस आते हैं। शिष्टाचार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> शालीनता का कहीं कोई पता नहीं है। इस परिवर्तन ने हमारी बुनियाद की चूलें ही हिला दी हैं।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5.</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">खाली पेट</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में निहित व्यंग्य को समझाइए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">खाली पेट</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में निहित व्यंग्य यह है कि नियति ने किसी को कष्ट देने के लिए भोजन की व्यवस्था न की हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह बात तो ठीक है पर खाली पेट के साथ उसको चलने-फिरने के लिए घुटने क्यों दिए</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> कहने का भाव यह है कि नियति ने जिसको खाली पेट रखा है उसे वह घुटने भी प्रदान न करे तो अच्छा है क्योंकि बिना घुटने के वह चल फिर नहीं सकेगा और न वह समाज को अपना खाली पेट दिखा सकेगा।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">तृप्ति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के माध्यम से कवि ने किस विसंगति को उजागर किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">तृप्ति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के माध्यम से कवि ने समाज की उस विसंगति को उजागर किया है जिसमें मेहनतकश तो दो जून की रोटी भी प्राप्त नहीं कर पाता है और उसकी मेहनत का फल बिचौलिए या मध्यस्थ ले जाते हैं। वह बेचारा श्रमिक या मजदूर भूखा का भूखा रह जाता है। लेकिन जब मजदूर से ये अत्याचार सहन नहीं होते हैं तो उसका गुस्सा लावा बनकर फूट पड़ता है और तब वह सूरज तक को निगल जाता है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">7.</span>निम्नलिखितं काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए</h3> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) हाँ दिन भी अजीब रहा </span><span style="font-family: Mangal;">………….. </span> <span lang="HI"> आए बादल।</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिलोचन कहते हैं कि यह शरद ऋतु की नवमी तिथि का दिन है। ये रात कितनी मधुर है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह कहते नहीं बनता। इन रातों में हमारे मन में शीतलता बस जाती है। यद्यपि अभी कोई जाड़ा नहीं आया है। हाँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कभी-कभी थोड़े-थोड़े रोएँ काँप जाया करते हैं। ऐसे सुन्दर वातावरण को देखकर तन और मन में उत्साह भर आया। इस समय का दिन भी बड़ा विचित्र रहा। आज रिमझिम-रिमझिम करता हुआ पानी बरसा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसके बाद आकाश खुल गया और चारों ओर धूप छा गयी। पूरे दिन इसी प्रकार का क्रम बना रहा। आकाश में भिन्न-भिन्न रंगों के बादल यथा-कपसीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऊदे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लाल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मटमैले झुण्ड के रूप में तैर रहे थे। फिर रात आ गयी लेकिन उस रात में पहले जैसा न तो काला</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हल्का या गहरा या धुएँ जैसा रंग दिखाई देता था। फिर आकाश कुछ उजला-उजला सा दिखाई दिया। न मालूम इस रम्य वातावरण को किसके प्यासे नेत्र देख पायेंगे। चाँदनी चमक रही है और गंगा बहती जा रही है।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) यह पवन आज यों </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> जिधर वे हरे खेत।</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिलोचन अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि क्या तुम कुछ सुन रही हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> या कुछ गुनगुना रही हो। यह हवा आज तुम्हारे आँचल को वैसे ही बार-बार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर जब कभी हठ करके तुमसे कोई बात कहना चाह रहा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> आगे कवि अपनी पत्नी से कहता है कि तुम उधर चलो जहाँ हरे खेत खड़े हुए हैं। फिर वह कहता है कि शायद तुम्हें यह बात याद है या नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इन खेतों को हम दोनों ने एक साथ मिलकर जोता तथा बोया था। समय के अनुसार इन खेतों में बीज से नये अंकुर निकल आये और बड़े होते गये। इसके बाद हम दोनों ने उन्हें मिलकर सींचा था। आज हमारे परिश्रम के फलस्वरूप ही मनमोहन हरियाली चारों ओर फैल रही है। इस हरियाली से धरती माता का रूप सज गया है। खेत के इन परम सलौने पौधों को हम दोनों ने मिलकर ही बड़ा किया है। आज उन पौधों को बादल नहला रहे हैं और बयार (हवा) उनको बहला रही है। वे हरे खेत कैसे लग रहे हैं और इस समय उनकी दशा क्या होगी</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> वे इस समय सचेत होंगे या खोये हुए से होंगे।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) कल हमारी कुटियों </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> चरमरा रही है।</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि श्री अभिमन्यु कहते हैं कि कल तक तो हमारी कुटियों में बिना पूछे ही तूफान चले आते थे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किन्तु नयी सभ्यता की चकाचौंध में आज हमारे मेहमान हमारे ही घरों में बिना दरवाजा खटखटाए घुसे चले आ रहे हैं। उनके इस बदले हुए व्यवहार से हमारे घर की दीवारें और छतें ही नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपितु उनसे तो हमारी बुनियाद ही चरमरा रही है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> विविधा काव्य सौन्दर्य</span></h2> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span>निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए</h4> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">अ) </span><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">इसलिए आक्रोश में आकर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मजदूर सूरज को निगल गया</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> में निहित अलंकार को पहचानकर उसके लक्षण लिखिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>इसमें रूपकातिशयोक्ति अलंकार है जिसका लक्षण इस प्रकार है-</p> <p> <span lang="HI"><b> रूपकातिशयोक्ति</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> जहाँ उपमान द्वारा उपमेय का वर्णन किया जाये वहाँ रूपकातिशयोक्ति अलंकार होता है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ब) </span><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">माथे की श्रम बूंदों को खेत में पहुँचाकर बो दिया</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> इस पंक्ति का भाव है कि मजदूर ने परिश्रम करके खेत की जुताई</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गुड़ाई की। उसने अपना पसीना बहाकर फसल के लिए खेत तैयार किये। खेत तैयार होने पर उसने श्रम के द्वारा बीज बो दिए ताकि अच्छी पैदावार हो सके।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2.</span><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">खाली पेट वालों को तुमने घुटने क्यों दिए</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> फैलाने वाले हाथ क्यों दिए</span><span style="font-family: Mangal;">?” </span> <span lang="HI"> इन पंक्तियों के प्रश्नों का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> जब व्यक्ति का पेट खाली होता है तो वह अपने घुटनों से पेट को दबा लेता है ताकि भूख का दबाव कम हो जाय या फिर अपनी भूख शान्त करने के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाता है। ये दोनों ही स्थितियाँ हीनता की परिचायक हैं। इन प्रश्नों का भाव है कि घुटने और हाथ न होते तो खाली पेट व्यक्ति अपनी हीनता नहीं दर्शा पाता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भले वह भूख के कारण मर जाता।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span>भयानक रस को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।</h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"><b> भयानक रस :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> किसी भयंकर व्यक्ति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वस्तु के कारण जाग्रत भय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से भयानक रस रूप में परिणत होता है। जैसे-</span></p> <div style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">एक ओर अजगर सिंह लखि</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">एक ओर मृगराय।<br /></span><span lang="HI"> विकल वटोही बीच ही</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर्यो मूरछा खाय॥</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></div> <p> <span lang="HI"> यहाँ आश्रय वटोही तथा आलम्बन अजगर और सिंह हैं। अजगर एवं सिंह की डरावनी चेष्टाएँ उद्दीपन हैं। बटोही (राहगीर) का मूच्छित होना अनुभाव तथा स्वेद</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कम्पन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रोमांच आदि संचारी भाव हैं।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span>वीभत्स रस और भयानक रस में अन्तर बताइए।</h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर :</span></p> <p> <span lang="HI"> वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा (घृणा) होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जबकि भयानक रस का स्थायी भाव भय होता है। विभाव</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुभाव और संचारी भावों में भिन्नता होती है। स्पष्ट है कि वीभत्स में घृणा का भाव जाग्रत होता है परन्तु भयानक में भय उत्पन्न होता है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5.</span><span lang="HI">अद्भुत रस की परिभाषा एवं उदाहरण</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रस के विभिन्न अंगों सहित दीजिए।</span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> अद्भुत रस-किसी असाधारण या अलौकिक वस्तु के देखने में जाग्रत विस्मय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से अद्भुत रस में परिणत होता है। जैसे-</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">अखिल भुवनचर-अचरसब</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हरिमुख मेंलखि मातु।</span></p> <p> <span lang="HI"> चकित भई गद्-गद् वचन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विकसित दृग पुलकातु ॥</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></p> <p> <span lang="HI"> यहाँ माँ यशोदा आश्रय तथा श्रीकृष्ण के मुख में विद्यमान सब लोक आलम्बन हैं। चर-अचर आदि उद्दीपन हैं। आँख फाड़ना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गद-गद स्वर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रोमांच अनुभाव तथा दैन्य</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> त्रास आदि संचारी भाव हैं।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> विविधा महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न</span></h2> <p> <span lang="HI"> बहु-विकल्पीय प्रश्न विविधा</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span><span lang="HI">आसमान में किस तरह के बादल उड़ रहे थे</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) लाल</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) मटमैले</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) पीले</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2.</span><span lang="HI">त्रिलोचन कवि ने शरद ऋतु की किस तिथि का वर्णन किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) द्वितीया</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) चतुर्थी</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) नवमी</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) इनमें से कोई नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) नवमी</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span lang="HI">बादलों के हटने पर तारे कैसे दिखलाई पड़ते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) नहीं दिखाई दे रहे हैं</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) उज्ज्वल झलमल</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) जगमगा रहे हैं</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) छिपते-छिपते।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) उज्ज्वल झलमल</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बुनियाद चरमराने</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का क्या आशय है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) छत टूटना</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) जमीन टूटना</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) जड़ से नष्ट होना</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) जड़ से नष्ट होना</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></h4> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के रचयिता </span><span style="font-family: Mangal;">………….. </span> <span lang="HI"> हैं।</span></li><li><span lang="HI"> यह पवन आज यों बार-बार खींचता तुम्हारा </span><span style="font-family: Mangal;">…………… </span> <span lang="HI"> है।</span></li><li><span lang="HI"> इसीलिए आक्रोश में आकर मजदूर </span><span style="font-family: Mangal;">……………. </span> <span lang="HI"> को निगल गया।</span></li><li><span lang="HI"> उनसे हमारी दीवारें और छतें नहीं हमारी </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> चरमरा रही है।</span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> त्रिलोचन शास्त्री</span></li><li><span lang="HI"> आँचल</span></li><li><span lang="HI"> सूरज</span></li><li><span lang="HI"> बुनियाद।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"><b> सत्य/असत्य</b></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के रचयिता अप्रवासी भारतीय अभिमन्यु </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">अनन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> हैं।</span></li><li><span lang="HI"> कवि त्रिलोचन ने हरी-भरी धरती को माता के सदृश सम्मान दिया है।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता ने कृषकों की दयनीय दशा का वर्णन किया है।</span></li><li><span lang="HI"> कवि अभिमन्यु अनंत नियति से प्रश्न करते हैं। (</span><span style="font-family: Mangal;">2016)</span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"><b> सही जोड़ी मिलाइए</b></span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)</span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">1.</span><span lang="HI">कितनी</span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">, </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">कितनी मधुर रात मन में </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">रिमझिम-रिमझिम पानी बरसा फिर खुला </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. '</span><span lang="HI">भाभी का आँचल खींच रहा है</span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">' </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">पंक्ति में </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. '</span><span lang="HI">तृप्ति</span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">' </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">कविता में मानवीय श्रम के </span> </span></p> </td> <td> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(क) प्रेम और वात्सल्य की अनुभूति है </span> </span></p> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ख) शोषण की चर्चा है </span> </span></p> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ग) बस जाती शीतलता </span> </span></p> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(घ) गगन हो गयी धूप</span></span></p> </td> </tr> </tbody></table> <p><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></h4> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में कवि ने मानवीय व्यवहार का चित्रण किस माध्यम से किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">दिनभर ऐसा ही रहा तार कपसीले</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">ऊदे लाल और पीले मटमैले दल के दल</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> पंक्ति का प्रयोग किसके लिये किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कल हमारी कुटियों में बिन पूछे तूफान दाखिल हो जाते थे</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता का शीर्षक लिखिए।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">तुमने खाली पेट दिया ठीक किया</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> यह पंक्ति किसकी ओर संकेत करती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI"> आक्रोश में आकर मजदूरों ने क्या किया</span><span style="font-family: Mangal;">? (2014)</span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> हवा</span></li><li><span lang="HI"> बादलों के लिए</span></li><li><span lang="HI"> नयी सभ्यता</span></li><li><span lang="HI"> निर्धनता एवं भुखमरी</span></li><li><span lang="HI"> सूरज को निगल लिया।</span></li></ol> <p></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है भाव सारांश</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में त्रिलोचन कवि ने गंगा नदी के किनारे चाँदनी रात का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि का कथन है कि गंगा नदी के किनारे चाँदनी रात का वातावरण अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। इस समय आकाश में काले-काले बादल काजल की भाँति इधर-उधर घूम रहे हैं। बादलों में छिपते और चमकते तारे शोभा को बढ़ा रहे हैं। चाँदनी रात्रि में गंगा की लहरें तरंगित होती हुई सुशोभित हो रही हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> शरद काल का समय है और नवमी तिथि की मनोहर रात है। शीतल ठंडी रात मन में रोमांच का अनुभव कराती है। शीत ऋतु यद्यपि अभी नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">किन्तु शरदकालीन शीतलता से तन के रोंये कम्पन कर रहे हैं अर्थात् शरीर रोमांचित हो रहा है।</span></p> <p> <span lang="HI"> रात में आसमान स्वच्छ था लेकिन यकायक वर्षा होने लगी है। इसके बाद आकाश स्वच्छ हो गया और पुनः धूप खिल उठी। देखते-देखते बादल इकट्ठे हो गये हैं। कवि अपनी पत्नी से कहता है कि यह हवा बार-बार तुम्हारा आँचल इस प्रकार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर बचपन में आँचल खींचता और हठ करता था।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि पत्नी से कहता है कि खेतों की ओर चलो और देखो हम दोनों ने जो बीज बोये थे वे अब अंकुरित तथा बड़े होकर वायु वेग से लहलहा रहे हैं। वास्तव में खेतों की हरियाली के कारण गंगा तट का सौन्दर्य दुगना हो गया है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> चल रही हवा</span></p> <p> <span lang="HI"> धीरे-धीरे </span></p> <p> <span lang="HI"> सीरी-सीरी</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> </p> <p> <span lang="HI"> उड़ रहे गगन में </span></p> <p> <span lang="HI"> झीने-झीने </span></p> <p> <span lang="HI"> कजरारे </span></p> <p> <span lang="HI"> चंचल बादल! </span></p> <p> <span lang="HI"> छिपते-छिपते </span></p> <p> <span lang="HI"> जब-तब </span></p> <p> <span lang="HI"> तारे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> उज्ज्वल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> झलमल</span></p> <p> <span lang="HI"> चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सीरी-सीरी= ठण्डी-ठण्डी। गगन = आकाश। झीने-झीने = पतले-पतले। कजरारे = काले।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि त्रिलोचन कहते हैं कि ठण्डी-ठण्डी हवा धीरे-धीरे बह रही है और आकाश में झीने-झीने तथा काले एवं चंचल बादल उमड़ रहे हैं। इसी समय आकाश में उज्ज्वल एवं झिलमिलाते हुए जब कभी तारे भी छिपते-छिपते दिखाई दे जाते हैं। चाँदनी चमक रही है और गंगा की धारा बहती जा रही है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रकृति की सुन्दरता का चाँदनी रात में कवि ने वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास अलंकार।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> ऋतु शरद और</span></p> <p> <span lang="HI"> नवमी तिथि है </span></p> <p> <span lang="HI"> है कितनी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कितनी मधुर रात </span></p> <p> <span lang="HI"> मन में बस जाती शीतलता है </span></p> <p> <span lang="HI"> अभी नहीं जाड़ा कोई </span></p> <p> <span lang="HI"> बस जरा-जरा रोएँ काँपे </span></p> <p> <span lang="HI"> तन-मन में भर आया उछाह </span></p> <p> <span lang="HI"> हाँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दिन भी आज अजीब रहा </span></p> <p> <span lang="HI"> रिमझिम रिमझिम पानी बरसा</span></p> <p> <span lang="HI"> फिर खुला गगन </span></p> <p> <span lang="HI"> हो गयी धूप </span></p> <p> <span lang="HI"> दिन भर ऐसा ही रहा तार </span></p> <p> <span lang="HI"> कपसीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऊदे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लाल और </span></p> <p> <span lang="HI"> पहले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मटमैले-दल के दल </span></p> <p> <span lang="HI"> आये बादल </span></p> <p> <span lang="HI"> अब रात </span></p> <p> <span lang="HI"> न उतना रंग रहा </span></p> <p> <span lang="HI"> काला-हलका या गहरा </span></p> <p> <span lang="HI"> या धुएँ-सा </span></p> <p> <span lang="HI"> कुछ उजला-उजला </span></p> <p> <span lang="HI"> किसके अतृप्त दृग देखेंगे</span></p> <p> <span lang="HI"> चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> उछाह = उत्साह। तार = क्रम। दल के दल = झुण्ड के झुण्ड। अतृप्त = प्यार से। दृग = नेत्र।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिलोचन कहते हैं कि यह शरद ऋतु की नवमी तिथि का दिन है। ये रात कितनी मधुर है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह कहते नहीं बनता। इन रातों में हमारे मन में शीतलता बस जाती है। यद्यपि अभी कोई जाड़ा नहीं आया है। हाँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कभी-कभी थोड़े-थोड़े रोएँ काँप जाया करते हैं। ऐसे सुन्दर वातावरण को देखकर तन और मन में उत्साह भर आया। इस समय का दिन भी बड़ा विचित्र रहा। आज रिमझिम-रिमझिम करता हुआ पानी बरसा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसके बाद आकाश खुल गया और चारों ओर धूप छा गयी। पूरे दिन इसी प्रकार का क्रम बना रहा। आकाश में भिन्न-भिन्न रंगों के बादल यथा-कपसीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऊदे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लाल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पीले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मटमैले झुण्ड के रूप में तैर रहे थे। फिर रात आ गयी लेकिन उस रात में पहले जैसा न तो काला</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हल्का या गहरा या धुएँ जैसा रंग दिखाई देता था। फिर आकाश कुछ उजला-उजला सा दिखाई दिया। न मालूम इस रम्य वातावरण को किसके प्यासे नेत्र देख पायेंगे। चाँदनी चमक रही है और गंगा बहती जा रही है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> शरद ऋतु का कवि ने मनोरम वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास की छटा।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> कुछ सुनती हो</span></p> <p> <span lang="HI"> कुछ गुनती हो </span></p> <p> <span lang="HI"> यह पवन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आज यों बार-बार </span></p> <p> <span lang="HI"> खींचता तुम्हारा आँचल है </span></p> <p> <span lang="HI"> जैसे जब तब छोटा देवर </span></p> <p> <span lang="HI"> तुमसे हठ करता है जैसे</span></p> <p> <span lang="HI"> तुम चलो जिधर वे हरे खेत </span></p> <p> <span lang="HI"> वे हरे खेत </span></p> <p> <span lang="HI"> हैं याद तुम्हें</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </p> <p> <span lang="HI"> मैंने जोता तुमने बोया </span></p> <p> <span lang="HI"> धीरे-धीरे अंकुर आये </span></p> <p> <span lang="HI"> फिर और बढ़े </span></p> <p> <span lang="HI"> हमने तुमने मिलकर सींचा </span></p> <p> <span lang="HI"> फैली मनमोहन हरियाली </span></p> <p> <span lang="HI"> धरती माता का रूप सजा </span></p> <p> <span lang="HI"> उन परम सलौने पौधों को </span></p> <p> <span lang="HI"> हम दोनों ने मिल बड़ा किया </span></p> <p> <span lang="HI"> जिनको नहलाते हैं बादल </span></p> <p> <span lang="HI"> जिनको बहलाती है बयार </span></p> <p> <span lang="HI"> वे हरे खेत कैसे होंगे </span></p> <p> <span lang="HI"> कैसा होगा इस समय ढंग </span></p> <p> <span lang="HI"> होंगे सचेत या सोये से </span></p> <p> <span lang="HI"> वे हरे खेत</span></p> <p> <span lang="HI"> चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> मनमोहन = मन को मोहने वाली। ढंग = रूप</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्थिति। सचेत = जागते हुए से।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिलोचन अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि क्या तुम कुछ सुन रही हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> या कुछ गुनगुना रही हो। यह हवा आज तुम्हारे आँचल को वैसे ही बार-बार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर जब कभी हठ करके तुमसे कोई बात कहना चाह रहा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> आगे कवि अपनी पत्नी से कहता है कि तुम उधर चलो जहाँ हरे खेत खड़े हुए हैं। फिर वह कहता है कि शायद तुम्हें यह बात याद है या नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इन खेतों को हम दोनों ने एक साथ मिलकर जोता तथा बोया था। समय के अनुसार इन खेतों में बीज से नये अंकुर निकल आये और बड़े होते गये। इसके बाद हम दोनों ने उन्हें मिलकर सींचा था। आज हमारे परिश्रम के फलस्वरूप ही मनमोहन हरियाली चारों ओर फैल रही है। इस हरियाली से धरती माता का रूप सज गया है। खेत के इन परम सलौने पौधों को हम दोनों ने मिलकर ही बड़ा किया है। आज उन पौधों को बादल नहला रहे हैं और बयार (हवा) उनको बहला रही है। वे हरे खेत कैसे लग रहे हैं और इस समय उनकी दशा क्या होगी</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> वे इस समय सचेत होंगे या खोये हुए से होंगे। चाँदनी चमक रही है और गंगा बहती जा रही है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जैसे जब तब </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> छोटा देवर</span><span style="font-family: Mangal;">’-</span><span lang="HI">में उदाहरण अलंकार।</span></p> <p> <span lang="HI"> अन्यत्र उपमा और अनुप्रास की छटा।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> भाव सारांश कुछ कविताएँ</span></h3> <p> <span lang="HI"> नयी सभ्यता-अभिमन्यु </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">अनन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> अप्रवासी भारतीय हैं। उन्हें भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम है। वे अपनी सभ्यता की बुनियाद को चरमराते हुए देखकर अत्यन्त व्यथित होते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> उनका कथन है कि आज पाश्चात्य सभ्यता अनजाने अतिथि की भाँति बिना दरवाजा खटखटाये हमारे घरों में प्रवेश कर रही है। इसके परिणामस्वरूप हम अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से पृथक् होते जा रहे हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> तृप्ति इन पंक्तियों में कवि ने मजदूरों की दयनीय दशा का वर्णन किया है। शोषणवादी नीति के विरुद्ध अपना आक्रोश व्यक्त किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> मजदूर दिन-रात खून-पसीना बहाकर खेतों में लहलहाती फसल उगाते हैं लेकिन फसल तैयार होने पर उससे प्राप्त धन से पूँजीपति अपनी तिजोरी से भर लेते हैं। इसी कारण मजदूर ने सूरज को निगलने अथवा विद्रोह करने का झंडा गाढ़ दिया।</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">खाली पेट</span><span style="font-family: Mangal;">’ – </span> <span lang="HI"> कवि ने नियति से प्रश्न किया है कि तुम्हें खाली पेट क्यों दिया</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> यदि पेट दिया तो उसमें टेकने के लिए घुटने भी दिये हैं जिसकी सहायता से श्रमिक अपनी क्षुधा को शान्त करने का कोरा प्रयास करता है। हाथ भी व्यर्थ ही दिये क्योंकि वे दूसरों के समक्ष हाथ फैलाकर याचना करते हैं।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> कुछ कविताएँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> नयी सभ्यता </span></p> <p> <span lang="HI"> कल हमारी कुटियों में बिन पूछे </span></p> <p> <span lang="HI"> तूफान दाखिल हो जाते थे </span></p> <p> <span lang="HI"> आज हमारे घरों में बिन दरवाजे खटखटाये </span></p> <p> <span lang="HI"> जो चले आ रहे हैं। </span></p> <p> <span lang="HI"> उनसे हमारी दीवारें और छतें नहीं</span></p> <p> <span lang="HI"> हमारी बुनियाद चरमरा रही है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> दाखिल = प्रवेश। बुनियाद = नींव</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मूल।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कुछ कविताएँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक के अन्तर्गत </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नयी सभ्यता</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि अभिमन्यु अनन्त हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस कविता में कवि ने नयी सभ्यता के रूपक को प्रस्तुत किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि श्री अभिमन्यु कहते हैं कि कल तक तो हमारी कुटियों में बिना पूछे ही तूफान चले आते थे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किन्तु नयी सभ्यता की चकाचौंध में आज हमारे मेहमान हमारे ही घरों में बिना दरवाजा खटखटाए घुसे चले आ रहे हैं। उनके इस बदले हुए व्यवहार से हमारे घर की दीवारें और छतें ही नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपितु उनसे तो हमारी बुनियाद ही चरमरा रही है।</span></p> <p><span lang="HI"> <b>विशेष</b>:</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने नयी सभ्यता पर व्यंग्य कसा है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></p> <p> <span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> तृप्ति </span></p> <p> <span lang="HI"> माथे की श्रम बूंदों को </span></p> <p> <span lang="HI"> खेत में पहुँचाकर मजदूर ने बो दिया। </span></p> <p> <span lang="HI"> लहलहाती फसल जब तैयार हुई </span></p> <p> <span lang="HI"> उन हरे-भरे दानों को किसी और ने </span></p> <p> <span lang="HI"> तिजोरी के लिए बटोर लिया </span></p> <p> <span lang="HI"> इसीलिए आक्रोश में आकर </span></p> <p> <span lang="HI"> मजदूर सूरज को निगल गया।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> आक्रोश = क्रोध में।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> यह कतिवा </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">तृप्ति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">अभिमन्यु अनन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस कविता में बिचौलियों (व्यापारियों) पर सटीक व्यंग्य किया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि श्री अभिमन्यु अनन्त कहते हैं कि मजदूर ने अपने खून-पसीने को एक करके खेतों में बीज को बो दिया। कुछ अन्तराल के बाद जब खेत में लहलहाती फसल पक कर तैयार हुई तो मध्यस्थ व्यापारियों या बिचौलिओं ने उस सम्पूर्ण फसल को इकट्ठा करके अपने कब्जे में ले लिया और उसे बाजार में बेचकर अपनी तिजोरियों को भर लिया। बिचौलियों के इस व्यवहार से दु:खी होकर किसान क्रोधित हो उठा और उसने सूरज को निगल लिया। कहने का भाव यह है कि जब किसी व्यक्ति को उसका वाजिब हक (उचित अधिकार) नहीं मिलता है तब वह विद्रोह कर उठता है और उस विद्रोह के फलस्वरूप वह होनी-अनहोनी सभी कर डालता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> मध्यस्थों एवं बिचौलियों पर व्यंग्य।</span></p> <p> <span lang="HI"> मजदूर किसान की बेवसी का वर्णन।</span></p> <p> <span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक शैली में।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> खाली पेट </span></p> <p> <span lang="HI"> तुमने आदमी को खाली पेट दिया </span></p> <p> <span lang="HI"> ठीक किया। </span></p> <p> <span lang="HI"> पर एक प्रश्न है रे नियति! </span></p> <p> <span lang="HI"> खाली पेट वालों को </span></p> <p> <span lang="HI"> तुमने घुटने क्यों दिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> फैलने वाला हाथ क्यों दिया</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नियति = प्रकृति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भाग्य।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">खाली पेट</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि अभिमन्यु अनन्त हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने भूखे लोगों की नियति का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर श्री अभिमन्यु अनन्त कहते हैं कि हे भाग्य! तेरी लीला बड़ी विचित्र है। तुमने आदमी को खाली पेट दिया यह तो ठीक है पर प्रश्न यह है कि खाली पेट वालों को तुमने चलने के लिए घुटने क्यों दिये</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> साथ ही इन्हें भीख माँगने के लिए फैलाने वाले हाथ क्यों दिये।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने नियति (भाग्य) पर व्यंग्य किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक।</span></p> <nav aria-label="..."> </nav> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-29199392339036080882021-11-02T21:00:00.002-07:002021-11-13T03:07:49.430-08:00MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 9 जीवन दर्शन<div class="container" dir="ltr" id="mozac-readerview-container" style="font-size: 16px;"><div class="content"><div class="mozac-readerview-content"><div class="page" id="readability-page-1"><p><span style="font-family: Mangal;"><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने </span><span style="color: navy; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;"><span style="color: black;"><b><span style="font-family: Mangal; font-size: 16px;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span><span style="font-size: 16px;"></span><span lang="HI" style="font-size: 16px;">पद्य </span><span style="font-family: Mangal; font-size: 16px;">Chapter 9</span><span lang="HI" style="font-size: 16px;"> जीवन दर्शन</span></b> </span></span><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span> <span lang="HI"> पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 9</span><span lang="HI"> जीवन दर्शन</span></h2> <p> <span lang="HI" style="color: #2b00fe;"><b> जीवन दर्शन अभ्यास</b></span></p> <p> <span lang="HI"><b> बोध प्रश्न</b></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> जीवन दर्शन अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></h3> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span lang="HI">कवि नाश पथ पर कौन-से चिह्न छोड़ जाना चाहता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि नाश पथ पर अपने पग चिह्न छोड़ जाना चाहता</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">मधुप की मधुर गुनगुन विश्व पर क्या प्रभाव डालेगी</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>मधुप की मधुर गुनगुन सम्पूर्ण संसार के क्रन्दन को भुला देगी।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span lang="HI">तितलियों के रंग से कवि का क्या तात्पर्य है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>तितलियों के रंग से कवि का तात्पर्य सांसारिक सुख-भोग एवं सुविधाओं से है।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार काँटे की मर्यादा क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि के अनुसार काँटे की मर्यादा है उसका कठोर होना तथा तीखा होना।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span><span lang="HI">कवि ने </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मर्दे होंगे</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> किसे कहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि ने </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मुर्दे होंगे</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> उन प्रेमियों के लिए कहा है जिन्होंने प्रेम के नाम पर सम्मोहन करने वाली मदिरा पी रखी है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> जीवन दर्शन लघु उत्तरीय प्रश्न</span></h3> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span lang="HI">कवि की आँखें उनींदी क्यों हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि की आँखें उनींदी इसलिए हैं कि आज हमको समाज में अनुकूल वातावरण नहीं मिल रहा है।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मोम के बन्धन सजीले</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का क्या आशय है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">मोम के बन्धन सजीले</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का आशय सांसारिक आकर्षणों से है।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चिर सजग</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> का क्या आशय है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चिर सजग</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> का आशय है कि हमें हमेशा सचेत रहना चाहिए और सांसारिक बाधाओं से संघर्ष करते रहना चाहिए।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4.</span><span lang="HI">कवि ने अन्तिम रहस्य के रूप में क्या पहचान लिया</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span>कवि ने अन्तिम रहस्य के रूप में यह जान लिया कि यह संसार एक यज्ञशाला है और इसमें व्यक्ति को स्वाहा होना है।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5.</span>कुचला जाकर भी कवि किस रूप में उभरता</h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कुचला जाकर भी कवि आँधी की धूल बनकर उमड़ना चाहता है।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">निर्मम रण में पग-पग पर रुकना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> किस प्रकार प्रतिफलित होता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>निर्मम रण में पग-पग पर रुकना वार बनकर प्रतिफलित होता है।</p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI" style="color: #2b00fe;"> जीवन दर्शन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span></h2> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जाग तुझको दूर जाना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में क्या आशय छिपा है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> लिखिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जाग तुझको दूर जाना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में यह आशय छिपा है कि मनुष्य का जीवन एक निश्चित अवधि का होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जबकि जीवन क्षेत्र में उसे अनगिनत कार्य करने पड़ते हैं। अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उसे अनेकानेक विघ्न-बाधाओं से टकराना होता है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. '</span><span lang="HI">पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span lang="HI">मनुष्य जब अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए चलता है तो सांसारिक भौतिक आकर्षण तथा सुख-सुविधाएँ उसे विचलित करने की चेष्टा करती हैं। मनुष्य जब तक इनसे सचेत नहीं रहेगा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकेगा।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> द्वारा कवि क्या सन्देश देना चाहता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>छाँह चाहने के लिए अर्थात् जीवन में सुख-सुविधाएँ जुटाने के लिए व्यक्ति उचित एवं अनुचित सभी प्रकार के कार्य करता रहता है। कभी-कभी मनुष्य के स्वयं किये गये कारनामे ही उसे कारागार की हवा खिला देते हैं। अतः कवि जीवन के अनुचित कार्यों से बचने की सलाह देता है।</p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4.</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता का मूल भाव लिखिए।</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता का मूलभाव यह है कि यद्यपि जीवन मरणशील है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> इसमें जय और पराजय दोनों हैं। इसमें गति को रोकने वाली अनेक विघ्न-बाधाएँ भी हैं किन्तु इन्हीं सबके चलते हुए हमें जीवन को निरन्तर आगे चलाते रहना चाहिए। संसार एक यज्ञ वेदिका जैसा है इसमें सब कुछ होम करके ही जीवन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है। तप करके ही जीवन में ललकार देने की शक्ति आती है। कवि ने इसमें त्याग और तपस्या का महत्व बताया है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5.</span><span lang="HI">प्रस्तुत कविताओं से हमें क्या सीख मिलती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span lang="HI">प्रस्तुत कविताओं से हमें यह सीख मिलती है कि मानव का जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। यह संसार नाशवान् है पर महान् मनुष्य वे होते हैं जो आने वाली पीढ़ी के लिए अपने चरण चिह्न छोड़ जाया करते हैं। अपनी पहचान बनाने के लिए हमें भौतिक सुख-सुविधाओं को त्यागना होगा। संसार एक यज्ञ की वेदी के समान है। इसमें जो सब कुछ स्वाहा कर देता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी का जीवन सार्थक बन जाता है। त्याग और तपस्या से मानव का संसार में महत्व आँका जाता है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6.</span>निम्नलिखित काव्य पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या लिखिए</h3> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) मैं कब कहता हूँ </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> ओछा फूल बने</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय जी संसार के मनुष्यों से कहते हैं कि मैं संसार के लोगों से कब कहता हूँ कि वे मेरे समान संघर्षों का सामना करने वाली शक्ति को धारण करें। मैं यह भी नहीं कहता हूँ कि संसार के मनुष्य अपने रेगिस्तान जैसे शुष्क जीविन को देवताओं के सुन्दर उपवन के समान हरा-भरा या सुख-सुविधाओं में सम्पन्न बना लें। काँटा देखने में कठोर और तीखा अवश्य लगता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर उसकी भी इस सृष्टि में अपनी मर्यादा है। मैं उससे भी यह नहीं कहता कि वह अपने इस कठोर रूप को कम करके किसी भाग का एक ओछा फूल बन जाये। कहने का भाव यह है कि सबका अपना-अपना भाग्य होता है। अतः सभी को अपनी सामर्थ्य के अनुसार जीवन में काम करना चाहिए।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) विश्व का क्रन्दन </span><span style="font-family: Mangal;">…………… </span> <span lang="HI"> तुझको दूर जाना।</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे मानव! क्या ये मोम के गीले बन्धन तझे अपने जाल में बाँध लेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> क्या रंग-बिरंगी तितलियों के पंख तुम्हारे मार्ग की रुकावट बनेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> क्या भौरों की मधुर गुनगुनाहट संसार के दुःखों को भुला देंगी या ओस से गीले फूल की पंखुड़ियाँ तुझे डूबो देंगी</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> तू व्यर्थ में ही अपनी ही परछाईं को अपना जेलखाना बना रहा है। इन निराशा की भावनाओं को छोड़! तेरा जो लक्ष्य है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसे पाने के लिए तू सतत् प्रयत्न कर तुझे अभी बहुत दूर तक जाना है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI" style="color: #2b00fe;"> जीवन दर्शन काव्य सौन्दर्य</span></h2> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span>हास्य रस की परिभाषा किसी अन्य उदाहरण द्वारा समझाइए।</h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">हास्य रस-विचित्र वेश-भूषा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विकृत आकार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चेष्टा आदि के कारण जाग्रत हास स्थायी भाव विभावादि से पुष्ट होकर हास्य रस में परिणत होता है। जैसे-</span></p> <div style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">हँसि हँसि भजे देखि दूलह दिगम्बर को</span><span style="font-family: Mangal;">,<br /></span><span lang="HI"> पाहुनी जे आवै हिमाचल के उछाह में।<br /></span><span lang="HI"> कहै पद्माकर सु काहु सों कहै को कहा</span><span style="font-family: Mangal;">,<br /></span><span lang="HI"> जोई जहाँ देखे सो हँसोई तहाँ राह में।<br /></span><span lang="HI"> मगन भएई हँसे नगन महेश ठाढ़े</span><span style="font-family: Mangal;">,<br /></span><span lang="HI"> और हँसे वेऊ हँसि-हँसि के उमाह में।<br /></span><span lang="HI"> सीस पर गंगा हँसे भुजनि भुजंगा हँसे</span><span style="font-family: Mangal;">,<br /></span><span lang="HI"> हास ही को दंगा भयो नंगा के विवाह में ॥</span><span style="font-family: Mangal;">” </span></div> <p> <span lang="HI"> यहाँ दर्शक आश्रय हैं तथा शिवजी आलम्बन हैं। उनकी विचित्र आकृति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नग्न स्वरूप आदि उद्दीपन हैं। लोगों का हँसना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भागना आदि अनुभाव तथा हर्ष</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उत्सुकता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चपलता आदि संचारी भाव हैं।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> जीवन दर्शन महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न</span></h2> <p> <span lang="HI"> जीवन दर्शन बहु-विकल्पीय प्रश्न</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span><span lang="HI">कवि की आँखें उन्नींदी क्यों हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) शीघ्र जगने के कारण</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) नींद पूरी न होने से</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) आलस्य के कारण</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बिना किसी कारण।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) आलस्य के कारण</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जाग तुझको दूर जाना अचल के हृदय में चाहे कम्प हो ले</span><span style="font-family: Mangal;">’ ‘</span><span lang="HI">अचल</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शब्द का प्रयोग किसके लिये है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) हिमालय</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) गंगा</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) आकाश</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) आँखों।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) हिमालय</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span lang="HI">कवयित्री ने </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मोम के बन्धन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> किसको कहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) माया-मोह</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) विषय-वासनादि</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) साधना मार्ग की बाधाएँ</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4.</span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैने आहुति बनकर देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के रचयिता हैं</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">अज्ञेय</span><span style="font-family: Mangal;">’</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) रामनरेश त्रिपाठी</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) रामधारी सिंह </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">दिनकर</span><span style="font-family: Mangal;">’</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) नरेश मेहता।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">अज्ञेय</span><span style="font-family: Mangal;">’</span></p><p><span style="font-family: Mangal;"><br /></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></h4> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> महादेवी वर्मा के काव्य में वेदना की प्रचुरता थी। इसी कारण उन्हें आधुनिक </span><span style="font-family: Mangal;">………. </span> <span lang="HI"> कहा जाता है।</span></li><li><span lang="HI"> महादेवी वर्मा साधना मार्ग में </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> नहीं आने देना चाहती थीं।</span></li><li><span lang="HI"> बाँध लेंगे क्या तुझे मोम के </span><span style="font-family: Mangal;">……….. </span> <span lang="HI"> सजीले।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">धूल पैरों से कुचली जाती है किन्तु वह कुचलने वाले के सिर पर सवार हो जाती है।</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> उसी प्रकार मैंने </span><span style="font-family: Mangal;">……….. </span> <span lang="HI"> से हार नहीं मानी है।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> मीरा</span></li><li><span lang="HI"> आलस्य</span></li><li><span lang="HI"> बन्धन</span></li><li><span lang="HI"> बाधाओं।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"><b> सत्य/असत्य</b></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> महादेवी वर्मा छायावादी युग की प्रमुख कवयित्री हैं। इन्होंने छायावाद के अन्तर्गत जीवन के दोनों पक्षों का वर्णन किया है।</span></li><li><span lang="HI"> महादेवी वर्मा का वैवाहिक जीवन सुखमय था। इसी कारण उन्होंने विरह गीत लिखे हैं।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">हरी घास पर क्षण भर</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> कविता महादेवी वर्मा की है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI"> हिन्दी साहित्य में अज्ञेय की ख्याति केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी है।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"><b> सही जोड़ी मिलाइए</b></span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)</span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">1.</span><span lang="HI">महादेवी वर्मा का प्रमुख काव्य संग्रह नीहार</span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">,</span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">महादेवी वर्मा ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद् की मनोनीत </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">आज भी आलोक को डोले तिमिर की ओर छाया </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें</span></span></p> </td> <td> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(क) जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">तूफान बोले </span> </span></p> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ख) अनुभव रस का कटु प्याला है</span></span></p> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ग) नीरजा</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">, </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">सांध्यगीत</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">, </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">दीपशिखा और यामा उल्लेखनीय हैं </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(</span><span lang="HI">घ) सदस्या के रूप में कार्य किया</span></p> </td> </tr> </tbody></table> <p><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></h4> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> महादेवी वर्मा ने कबीर की भाँति अपने काव्य में वर्णन किया है।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">तु न अपनी छाँह को अपने लिए काटा बनाना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> यह पंक्ति किस रचनाकार की है। (</span><span style="font-family: Mangal;">2011)</span></li><li><span lang="HI"> अज्ञेय की रचनाएँ नई पीढ़ी के लेखकों के लिए हैं।</span></li><li><span lang="HI"> अज्ञेय ने अपनी कविता द्वारा स्पष्ट किया है कि जीवन मरणशील है। इसमें पराजय भी है और आगे बढ़ने में हैं।</span></li><li><span lang="HI"> काँटे की मर्यादा क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">? (2016)</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> रहस्यवाद का</span></li><li><span lang="HI"> महादेवी वर्मा</span></li><li><span lang="HI"> मानक स्वरूप</span></li><li><span lang="HI"> अनेक व्यवधान</span></li><li><span lang="HI"> काँटे की मर्यादा उसके कठोर एवं तीखे होने में है।</span></li></ol> <p></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! भाव सारांश</span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> नामक कविता में महादेवी वर्मा ने अपने मन को साधना मार्ग का राहगीर समझकर उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साहित किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री कहती हैं हे मन! तू आलस्य को त्याग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्योंकि ये जीवन पथ बहुत लम्बा है और तुझे यह दूरी तय करनी है। चाहे हिमालय पर्वत अपने स्थान से हिल जाये अथवा आसमान में प्रलय के बादल छा जाये। चाहे तेज आँधी और तूफान आयें या घनघोर वर्षा हो। बिजली भी चाहे कड़के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुम्हें आगे बढ़ते ही जाना है।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री का कथन है कि मेरे मन तुम वज्र के सदृश कठोर थे लेकिन आँसुओं ने उन्हें गीला करके गला दिया। सांसारिक माया-मोह में डूबकर तुमने अपने जीवन के मूल्यवान क्षणों को खो दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री कहती है कि हे प्राण! तुम आलस्य और प्रमाद को त्यागकर अपने मन में उत्साह उत्पन्न करो जिससे कि तुम्हें विषय-वासनाओं से मुक्ति मिलेगी और तुम्हारी साधना का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। अत: हे मानव! आलस्य को त्याग दे। यही तेरे लिये उचित और उत्तम है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना! संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!</span></p> <p> <span lang="HI"> जाग तुझको दूर जाना! </span></p> <p> <span lang="HI"> अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> आज पी आलोक को डोले तिमित की घोर छाया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> जाग या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले </span></p> <p> <span lang="HI"> पर तुझे है नाश-पथ पर चिन्ह अपने छोड़ जाना! </span></p> <p> <span lang="HI"> जाग तुझको दूर जाना!</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> चिर = पुराना। सजग = जाग्रत। उनींदी = अलसाई हुई। व्यस्त = काम में लगा हुआ। बाना = व्यवहार। अचल = पर्वत। हिमगिरि = बर्फ से ढंकी हुई पहाड़ियाँ। कम्प = कम्पन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> थरथराहट। अलसित = आलस्य से भरा हुआ। व्योम = आकाश। आलोक = प्रकाश। तिमिर = अन्धकार। विद्युत = बिजली। निठुर = निष्ठुर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कड़े स्वभाव वाला।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से लिया गया है। इसकी रचयिता श्रीमती महादेवी वर्मा हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री मानव को सचेत करते हुए कह रही हैं कि हे संसार के पथिक! तेरी सदैव सजग रहने वाली आँखें आज अलसाई हुई सी क्यों हो रही हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुझे तो अभी बहुत दूर तक जाना है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे संसार के पथिक! तू तो सदैव सजग रहकर इस मार्ग पर चलता रहता था पर आज तेरी ये सजग आँखें उनींदी सी क्यों हो रही हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तूने ये कैसा बाना (ढर्रा) बना लिया है। तुझे तो अभी बहुत दूर तक जाना है।</span></p> <p> <span lang="HI"> चाहे हिमालय पर्वत की ऊँची चोटियों में आज कम्पन पैदा हो जाये या फिर प्रलय के आँसुओं को लेकर ऊलसाया हुआ आकाश। रुदन करने लग जाये</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> या फिर अन्धकार की घोर छाया प्रकाश को। पीकर डोल जाये</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> या फिर बिजली की जाग्रत शिखाओं में निष्ठुर तूफान हुँकार भरने लग जाये लेकिन तेरा लक्ष्य तो यह है कि इस नाश के पथ पर तू अपने चरणों के चिह्नों को छोड़ दे। कहने का भाव यह है कि चाहे कैसी भी विषम परिस्थितियाँ क्यों न हों</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुझे तो अपने निर्धारित लक्ष्य पर निरन्तर बढ़ते चले जाना है ताकि नाश। की अवस्था आने पर भी तेरे चरणों के चिह्न आने वाले समय में लोगों का मार्गदर्शन कर सकें। जाग जा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुझे तो अभी बहुत दूर जाना है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इन विषम परिस्थितियों से अपने लक्ष्य को मत भूल जाना।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवयित्री विषम परिस्थितियों में भी संसार के पथिक को अपने मार्ग पर निरन्तर चलते रहने की प्रेरणा दे रही हैं।</span></li><li><span lang="HI"> लाक्षणिक भाषा।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> बाँधे लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </p> <p> <span lang="HI"> विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना! </span></p> <p> <span lang="HI"> जाग तुझको दूर जाना!</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सजीले = गीले। पंथ = रास्ते की। रँगीले = रंग-बिरंगे। क्रन्दन= रोना-धोना। मधुप = भौंरों की। मधुर = मीठी। कारा = जेलखाना।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!</span><span style="font-family: Mangal;">” </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसकी रचयिता श्रीमती महादेवी वर्मा हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवयित्री मानव को सचेत करते हुए कह रही हैं कि हे संसार के पथिक! तेरी सदैव सजग रहने वाली आँखें आज अलसाई हुई सी क्यों हो रही हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span><span lang="HI">तुझे तो अभी बहुत दूर तक जाना है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री महादेवी वर्मा कहती हैं कि हे मानव! क्या ये मोम के गीले बन्धन तझे अपने जाल में बाँध लेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> क्या रंग-बिरंगी तितलियों के पंख तुम्हारे मार्ग की रुकावट बनेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> क्या भौरों की मधुर गुनगुनाहट संसार के दुःखों को भुला देंगी या ओस से गीले फूल की पंखुड़ियाँ तुझे डूबो देंगी</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> तू व्यर्थ में ही अपनी ही परछाईं को अपना जेलखाना बना रहा है। इन निराशा की भावनाओं को छोड़! तेरा जो लक्ष्य है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसे पाने के लिए तू सतत् प्रयत्न कर तुझे अभी बहुत दूर तक जाना है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवयित्री सांसारिक प्राणियों से कल्पना लोक में न विचर कर जीवन की यथार्थता का ज्ञान कराना चाहती हैं। साथ ही उसे जीवन पथ पर निन्तर बढ़ते रहने की प्रेरणा देती हैं।</span></li><li><span lang="HI"> लाक्षणिक भाषा।</span></li></ol> <p></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> मैंने आहुति बनकर देखा भाव सारांश</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के द्वारा </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">अज्ञेय</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कवि ने कर्म करते हुए स्वयं को बलिदान करने की इच्छा को सर्वोत्तम बताया है। त्याग द्वारा ही व्यक्ति को आत्मिक सुख प्राप्त होता है। कवि का कथन है कि वह संसार की प्रत्येक वस्तु को उसके वास्तविक रूप में देखने का इच्छुक है। वह यह कदापि नहीं चाहता कि वृद्धावस्था की तुलना युवावस्था से की जाये। अतः उसकी तुलना शक्तिशाली व्यक्ति से नहीं करनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> जीवन में यदि दःखों का सागर उमडे तो मानव में उसे भी सहन करने की शक्ति होनी चाहिए। कवि कहता है कि मैं नन्दन वन के फूलों की चाहत की भाँति धनवानों के धन की चाहत में अपनी इच्छा और सुखों को गँवा देने का इच्छुक हूँ। काँटों की शोभा काँटा बना रहने में है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> फूल बनने में नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"> योद्धा की शोभा युद्धभूमि में प्राप्त हुए घावों से ही होती है। यह आवश्यक नहीं कि यदि मैं किसी से प्रेम करूँ तो वह व्यक्ति भी मुझसे प्रेम करे। मैं तो स्वार्थ रहित प्रेम की इच्छा रखता हूँ और चाहता हूँ कि आस्था और विश्वास महल बनाकर कर्तव्य पथ पर बढ़ता रहूँ।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रेम में त्याग आवश्यक है। जो लोग प्रेम में कटुता का अनुभव करते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उन्हें स्वयं को रोगी मान लेना चाहिए। जो व्यक्ति प्रेम को सम्मोहन वाली मदिरा मानते हैं उन्हें यह मान लेना चाहिए कि उनमें जीवन ही नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिन्होंने प्रेम के रहस्य को जान लिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि का कथन है कि मैंने प्रेम को आहुति बनकर देख लिया है। प्रेम यज्ञ की अग्नि है। जिस प्रकार अग्नि में आहुति डाली जाती है और वह सामग्री जल जाती है उसी प्रकार मैंने भी अपने आप को आहुति बनाकर जल जाने की बात सोच ली है। व्यक्ति को आगे बढ़ने के लिए विषम आँधी और तूफानों का सामना करना पड़ता है परन्तु मानव को सफलता पाने के लिए निरन्तर बढ़ते रहना चाहिए। जीवन एक रणक्षेत्र है जहाँ पर अनेक बाधाएँ आती हैं। ईश्वर ने जो जीवन दिया है उसे हम ईश्वर के लिए समर्पित कर दें। तब ही जीवन सफल और सार्थक होगा।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> मैंने आहुति बनकर देखा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँजीवन-मरुनन्दन-कानन का फूल बने</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </p> <p> <span lang="HI"> काँटा कठोर है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तीखा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसमें उसकी मर्यादा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> जग = संसार। दुर्धर = कठिनाइयों को पार करने में समर्थ। अनुकूल = उसी के अनुरूप। जीवन-मरु = जीवन रूपी रेगिस्तान। नन्दन-कानन = देवताओं का उपवन। प्रांतर = छोटे से प्रदेश का। ओछा = छोटा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पद में नीचा।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि अज्ञेय हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि का सन्देश है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अपने पथ पर चलने को बाध्य नहीं करता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन सबको अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय जी संसार के मनुष्यों से कहते हैं कि मैं संसार के लोगों से कब कहता हूँ कि वे मेरे समान संघर्षों का सामना करने वाली शक्ति को धारण करें। मैं यह भी नहीं कहता हूँ कि संसार के मनुष्य अपने रेगिस्तान जैसे शुष्क जीविन को देवताओं के सुन्दर उपवन के समान हरा-भरा या सुख-सुविधाओं में सम्पन्न बना लें। काँटा देखने में कठोर और तीखा अवश्य लगता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर उसकी भी इस सृष्टि में अपनी मर्यादा है। मैं उससे भी यह नहीं कहता कि वह अपने इस कठोर रूप को कम करके किसी भाग का एक ओछा फूल बन जाये। कहने का भाव यह है कि सबका अपना-अपना भाग्य होता है। अतः सभी को अपनी सामर्थ्य के अनुसार जीवन में काम करना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि संसार के मनुष्यों को निरन्तर कर्म करने की प्रेरणा दे रहा है।</span></li><li><span lang="HI"> लाक्षणिक भाषा।</span></li></ul><div><br /></div> <p></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> मैंकबकहताहूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> प्यार करुतो मुझे प्राप्तिकीओटमिले</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </p> <p> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँ विजय करूँ-मेरा ऊँचा प्रासाद बने</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </p> <p> <span lang="HI"> या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली सी याद बने</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रासाद = महल। धुंधली सी = अस्पष्ट सी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि अज्ञेय हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि का सन्देश है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अपने पथ पर चलने को बाध्य नहीं करता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span><span lang="HI">लेकिन सबको अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय जी कहते हैं कि मैं यह कब कहता हूँ कि युद्ध क्षेत्र में जाने पर मुझे कोई चोट न लगे</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँ कि यदि मैं किसी से प्यार करूँ तो मुझे उसका प्रतिफल भी मिले</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> मैं कब कहता हूँ कि युद्ध क्षेत्र में मुझे विजय प्राप्त हो और मेरा एक भव्य महल निर्मित हो। या फिर संसार रूपी रंगमंच पर अभिनय करने वाले पात्र के रूप में मेरी धुंधली-सी याद मनुष्यों के मानस-पटल पर अंकित हो जाये।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि संसार में निरन्तर कार्य में लगे रहने की प्रेरणा दे रहा है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक है।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> नेतृत्व न मेरा छिन जावे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्यों इसकी हो परवाह मुझे</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </p> <p> <span lang="HI"> मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने </span></p> <p> <span lang="HI"> फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रशस्त = चौड़ा। विकल = बेचैन। नेतृत्व = नेतागीरी। प्रस्तुत = तैयार। गति-रोधक = चाल को रोकने वाला। शूल = काँटा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि अज्ञेय हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि का सन्देश है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अपने पथ पर चलने को बाध्य नहीं करता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span><span lang="HI">लेकिन सबको अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय कहते हैं कि मेरे मन में इस प्रकार चाह या इच्छा क्यों उत्पन्न हो कि मार्ग सदैव चौड़ा एवं निर्विघ्न हो। मुझे इस बात की भी परवाह नहीं करनी चाहिए कि कहीं मेरी नेतागीरी तो खत्म नहीं हो रही है। मैं इसके लिए तैयार हूँ कि मेरे मरने के पश्चात् मेरे शरीर की मिट्टी इसी भूमि की धूल में मिल जाये</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> फिर चाहे उसी धूल का एक-एक कण मेरे रास्ते को रोकने वाले काँटे ही क्यों न बन जायें।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि को अपनी सामर्थ्य पर विश्वास है। अतः वह हर विषम स्थिति को स्वीकार करने को तैयार है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> अपने जीवन को रस देकर जिसको यत्नों से पाला है</span></p> <p> <span lang="HI"> क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसूकी माला है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है</span></p> <p> <span lang="HI"> वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन-कारी हाला है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> यत्नों = प्रयत्नों से। अवसाद मलिन = दुःख से सना हुआ। कटु = कड़वा। सम्मोहनकारी = वश में करने वाली। हाला = मदिरा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि अज्ञेय हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि का सन्देश है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अपने पथ पर चलने को बाध्य नहीं करता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span><span lang="HI">लेकिन सबको अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय कहते हैं कि मैंने अपने जीवन को रस देकर तथा यत्नपूर्वक पाला-पोसा है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> क्या ऐसा मेरा जीवन केवल दुःख से सने हुए आँसुओं की माला भर है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> जिन प्रेमियों ने अनुभव रस के कड़वे प्याले को पिया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वे रोगी होंगे अर्थात् स्वस्थ नहीं होंगे और जिन प्रेमियों ने मोह पाश में डालने वाली मदिरा का पान कर लिया है वे मुर्दे होंगे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जीवन्त मनुष्य नहीं होंगे।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि मनुष्यों को सतत् जागरूक बने रहने का सन्देश दे रहा है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> मैंने विदग्ध हो जान लिया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अन्तिम रहस्य पहचान लिया</span></p> <p> <span lang="HI"> मैंने आहुति बनकर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है। </span></p> <p> <span lang="HI"> मैं कहता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मैं बढ़ता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नभ की चोटी चढ़ता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> कुचला जाकर भी धूली-सा आँधी और उमड़ता हूँ।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> विदग्ध = जानकार होते हुए भी। आहुति = यज्ञ में दी जाने वाली समिधा। नभ = आकाश। धूली-सा = धूल जैसा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि अज्ञेय हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि का सन्देश है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अपने पथ पर चलने को बाध्य नहीं करता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span><span lang="HI">लेकिन सबको अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय कहते हैं कि मैंने जानकार बनकर यह भली-भाँति जान लिया है और जीवन के अन्तिम रहस्य को पहचान लिया है। मैंने आहुति बनकर देख लिया है कि यह प्रेम एक यज्ञ की ज्वाला.के समान है। मैं इस बात को डंके की चोट पर कहता हूँ कि मैं निरन्तर आगे बढ़ता जाता हूँ और नभ की चोटी पर चढ़ता जाता हूँ। यद्यपि विषम परिस्थितियों में धूल जैसा कुचला जाता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन उस अवस्था में भी मैं आँधी बनकर उमड़ता रहता हूँ।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि हर स्थिति में अपनी पहचान बनाये रखता है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(6) </span> <span lang="HI"> मेरा जीवन ललकार बने</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> असफलता की असि-धार बने</span></p> <p> <span lang="HI"> इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने।</span></p> <p> <span lang="HI"> भव सारा तुझको है स्वाहा सब कुछ तपकर अंगार बने। </span></p> <p> <span lang="HI"> तेरी पुकार-सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> ललकार = चुनौती। असि-धार = तलवार की धार। निर्मम = निर्दयी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्रूर। वार = प्रहार। भव = संसार। दुर्निवार = जिसका निवारण करना कठिन हो। नीरव = शान्त।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मैंने आहुति बनकर देखा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि अज्ञेय हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि का सन्देश है कि मैं किसी भी व्यक्ति को अपने पथ पर चलने को बाध्य नहीं करता हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span><span lang="HI">लेकिन सबको अपनी मर्यादा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर अज्ञेय कहते हैं कि मैं चाहता हूँ कि मेरा जीवन दूसरों के लिए एक चुनौती बने तथा मेरी असफलताएँ तलवार की धार के समान तेज बन जाएँ। मेरे जीवन के इस निर्दयी रण-क्षेत्र में कदम-कदम पर रुकना ही मेरा प्रहार बन जाये। मैं तेरे लिए सारे संसार को स्वाहा कर सकता हूँ और इस यज्ञ में सभी कुछ तपकर अंगार बन जायें। तुम्हारी पुकार जैसा तथा कठिनता से निवारण किया जाने वाला मेरा यह प्यार नीरव बन जाये।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि अपने को बलिदान कर देना चाहता है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक।</span></li></ol> <p></p> <nav aria-label="..."> </nav> </div></div> </div> </div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-42052367563271320802021-11-02T20:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:49.549-08:00MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 8 कल्याण की राह<div class="container" dir="ltr" id="mozac-readerview-container" style="font-size: 16px;"><div class="content"><div class="mozac-readerview-content"><div class="page" id="readability-page-1"><p style="font-size: medium;"><span style="color: navy;"><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने </span><span style="font-size: medium;"><b>MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b><span style="color: black;">पद्य खंड </span><span style="font-family: Mangal;"><b>Chapter 8 </b></span><span style="color: black;"><span style="font-size: 16px;"><b>कल्याण की राह</b></span> </span></span><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></span></p><p><span style="font-family: Mangal;"></span></p><h2><span style="color: navy;"><b><span style="font-family: Mangal;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span><span lang="HI">पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 8</span><span lang="HI"> </span></b></span>कल्याण की राह</h2> <p> <span lang="HI"><b> कल्याण की राह अभ्यास</b></span></p> <p> <span lang="HI" style="color: #3d85c6;"><b> बोध प्रश्न</b></span></p> <p> <span style="color: red;"><span lang="HI"> कल्याण की राह अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span><span lang="HI">चलने के पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>चलने के पूर्व बटोही को बाट (मार्ग) की भली-भाँति पहचान कर लेनी चाहिए।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार व्यक्ति को किस रास्ते पर चलना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि के अनुसार व्यक्ति को उसी रास्ते पर चलना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिसको उसने अच्छी तरह समझ और देख लिया हो।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span lang="HI">प्रत्येक सफल राहगीर क्या लेकर आगे बढ़ा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>प्रत्येक सफल राहगीर एक निश्चित उद्देश्य तथा अपनी राह में आने वाले संकटों का सामना करने का विश्वास लेकर आगे बढ़ा है तभी उसे सफलता मिली है।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span><span lang="HI">नरेश मेहता अपनी कविता में किसके साथ चलने की बात कह रहे हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>नरेश मेहता अपनी कविता में संघर्ष करते हुए सूरज के संग-संग चलते रहने की बात कह रहे हैं।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span><span lang="HI">नदियाँ आगे चलकर किस रूप में परिवर्तित हो जाती हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>नदियाँ आगे चलकर समुद्र में परिवर्तित हो जाती हैं।</p> <h4 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span><span lang="HI">कवि ने रुकने को किसका प्रतीक माना है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि ने रुकने को मरण का प्रतीक माना है।</p><p><br /></p> <p> <b><span style="color: #2b00fe;"><span lang="HI"> कल्याण की राह</span><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">लघु उत्तरीय प्रश्न</span></span></b></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span>स्वप्न पर मुग्ध न होने की राय कवि क्यों देता</h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>स्वप्न पर मुग्ध न होने की राय कवि इसलिए देता है कि इससे मनुष्य सच्चाई से दूर हो जाता है और ये स्वप्न उसे कहीं का नहीं रहने देते। वह इन्हीं पर विचरण करता हुआ जग और जीवन से अलग-थलग हो जाता है।</p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">कवि ने जीवन पथ में क्या-क्या अनिश्चित माना है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि ने जीवन पथ में निम्न बातों को अनिश्चित माना है-किस जगह पर हमें नदी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किस जगह पर हमें बाग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जंगल मिलेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किस जगह हमारी यात्रा खत्म हो जायेगी और कब हमें फूल मिलेंगे और कब काँटे।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार जीवन पथ के यात्री को पथ की पहचान क्यों आवश्यक है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि हरिवंशराय बच्चन मानते हैं कि मानव को जीवन का मार्ग सोच-विचार कर अपनाना चाहिए। जीवन में महान बनने का निश्चित लक्ष्य लेकर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी के अनुरूप जीवन पथ अपनाना आवश्यक है। जीवन पथ का चयन महापुरुषों की जीवनियों के आधार पर निश्चित किया जा सकता है। जीवन पथ निश्चित कर उसमें अच्छे-बुरे का द्वन्द्व नितान्त अनुचित है क्योंकि हर सफल पंथी दृढ़ विश्वास के सहारे ही मार्ग पर चलता जाता है। महान जीवन जीने का भाव आते ही तन-मन में उत्साह भर जाता है। उस समय सही जीवन पथ की पहचान न हुई तो असफलता हाथ लग सकती है। अतः जीवन पथ के यात्री को जीवन पथ की पहचान होना आवश्यक है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span><span lang="HI">कवि के अनुसार क्षितिज के उस पार कौन बैठा है और क्यों</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span>कवि के अनुसार क्षितिज के उस पार श्रृंगार किये हुए लक्ष्मी बैठी हैं और वह इसलिए बैठी हैं कि कोई पुरुषार्थी आये और अपने परिश्रम से उन्हें प्राप्त कर ले।</p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span><span lang="HI">मानव जिस ओर गया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उधर क्या-क्या हुआ</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">मानव जिस ओर गया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उधर नगर बस गये और तीर्थ बन गये।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति</span><span style="font-family: Mangal;">’</span><span lang="HI">कविता में कविने लोगों को क्या-क्या सलाह दी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में कवि ने लोगों को सलाह दी है कि उन्हें जीवन में कहीं भी रुकना नहीं चाहिए। जिस प्रकार सूरज दिन-रात चलता रहता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी तरह उनको भी दिन-रात चलते रहना चाहिए। मानव ने निरन्तर चलकर ही नगर एवं तीर्थों का निर्माण किया है। जहाँ चलना थम जाता है वहीं मृत्यु आ जाती है। अतः निरन्तर चलते रहो।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI" style="color: #2b00fe;"><b> कल्याण की राह दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</b></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span lang="HI">चलने से पूर्व बटोही को कवि किन-किन बातों के लिए आगाह कर रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">चलने से पूर्व बटोही को कवि आगाह कर रहा है कि हे बटोही! तू चलने से पूर्व अपने पथ की पहचान कर ले। बटोही के क्रियाकलापों और चेष्टाओं की कहानी किसी पुस्तक में छपी नहीं मिलती है। इस मार्ग पर अनगिनत राही चले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर अधिकांश का कोई पता नहीं है पर हाँ कुछ अनौखे रास्तागीर हुए हैं जिन्होंने अपने पग चिन्हों को मार्ग पर छोड़ा है और हम लोग उन्हीं पर चल रहे हैं।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">स्वप्न और यथार्थ में सन्तुलन किस तरह आवश्यक है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> स्पष्ट करें।</span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">कवि कहता है कि हमेशा स्वप्न पर ही तुम मुग्ध मत हो जाओ</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> जीवन में जो सत्य है उसे भी जान लो। संसार के पथ में यदि स्वप्न दो की संख्या में हैं तो सत्य दो सौ की संख्या में हैं। अत: स्वप्न के साथ ही साथ सत्य को भी जान लो। स्वप्न देखना बुरा नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हर आदमी अपनी उमर एवं समय के अनुसार इन्हें देखता है लेकिन कोरे स्वप्न से जीवन में काम नहीं चलता है। हमें सत्य का भी सहारा लेना पड़ता।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता का मूल आशय क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता का मूल आशय यह है कि हमें जीवन में कभी भी रुकना नहीं चाहिए। जिस प्रकार सूरज दिन-रात चलता रहता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी प्रकार हमको भी दिन-रात काम में लगे रहना चाहिए। मानव ने निरन्तर चलकर ही संसार में नये और भव्य नगरों का निर्माण किया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी ने नये-नये तीर्थों का निर्माण किया है। जहाँ चलना थम जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वहीं मृत्यु आ जाती है। अतः निरन्तर चलते रहो।।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span><span lang="HI">युग के संग-संग चलने की सीख कवि क्यों दे रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><span lang="HI">युग के संग-संग चलने की सीख कवि इसलिए दे रहा है कि जो व्यक्ति परिवर्तित युग के साथ कदम-से-कदम मिलाकर नहीं चलेगा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह संसार की इस दौड़ में पिछड़ जायेगा। नयी सभ्यता के सामने उसके पैर जम नहीं पायेंगे। अतः कवि युग के साथ-साथ चलने की सीख दे रहा है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span>निम्नलिखित अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए</h2> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) रास्ते का एक काँटा </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> सीख का सम्मान कर ले।</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर बच्चन कहते हैं कि हमें स्वर्ग के सपने आते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इससे हमारे नेत्रों के कोने में एक विशेष प्रकार की चमक आ जाती है। हमारे पैरों में पंख लग जाते हैं अर्थात् हम कल्पना लोक में विचरण करने लग जाते हैं और हमारी स्वच्छन्द छाती ललकने लगती है। रास्ते में पड़ा हुआ एक भी काँटा हमारे पाँव के दिल को चीर देता है। जब खून की दो बूंद गिरती हैं तो उसमें एक दुनिया डूब जाती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> आगे कवि कहता है कि चाहे हमारी आँखों में स्वर्ग के सपने हों पर हमारे पैर पृथ्वी पर ही टिके रहने चाहिए कहने का भाव यह है कि हमें जीवन के यथार्थ का भी ज्ञान होना चाहिए। काँटों की इस अनोखी शिक्षा का</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हे मानव! तू सम्मान कर ले। हे रास्तागीर! रास्तों पर चलने से पूर्व रास्ते की भली-भाँति पहचान कर ले।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) रुकने का नाम मरण </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> संग-संग चलते चलो।</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नरेश मेहता कहते हैं कि निरन्तर बहने वाली नदियों ने ही अपने पानी द्वारा सागर का निर्माण किया है। बादलों ने ही उमड़-घुमड़ कर धरती को फलवती बना दिया है। रुकना मृत्यु है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पीछे सब पत्थर पड़े मिलेंगे यदि आगे बढ़ोगे तो देवयान मिलेंगे। अतः युग (समय) के साथ ही साथ चलते रहो।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI" style="color: #2b00fe;"><b> कल्याण की राह काव्य सौन्दर्य</b></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span>वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा किसी अन्य उदाहरण सहित समझाइए।</h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर: </span><b>वक्रोक्ति अलंकार :</b></p> <p> <span lang="HI"> जहाँ पर ध्वनि द्वारा कथित का भिन्न अर्थ ग्रहण किया जाए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> उदाहरण :</b></span></p> <div style="text-align: left;"><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">को तुम हो</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> इत आये कहाँ</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> घनश्याम हो तो कितहुँ बरसो।<br /></span><span lang="HI"> चितचोर कहावत है हमतौ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तहँ जाहु जहाँ घन है सरसौ।</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></div> <p> <span lang="HI"> यहाँ कृष्ण तथा राधा का सुन्दर परिहास के माध्यम से वक्रोक्ति अलंकार को व्यक्त किया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI" style="color: #2b00fe;"><b> कल्याण की राह महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कल्याण की राह बहु-विकल्पीय प्रश्न</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span><span lang="HI">चलने से पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) नगर देखना</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) गाँव निर्धारित करना</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) राहगीर को देखना</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) मार्ग निर्धारित करना।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) मार्ग निर्धारित करना।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span><span lang="HI">नदियाँ आगे चलकर किस रूप में परिवर्तित हो जाती हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) बाँध</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) सागर</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) बालू</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) इनमें से कोई नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) सागर</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span><span lang="HI">कवि ने रुकने को किसका प्रतीक माना है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) गति का</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) रुग्णावस्था का</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) जीवन का</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) मृत्यु का।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) मृत्यु का।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति जनगरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में कवि ने लोगों को क्या-क्या सलाह दी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) सूरज की भाँति प्रकाशित हो</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) नदी के प्रवाह की भाँति सतत् चलो</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) चन्द्रमा व तारे की भाँति गति करो</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"><b> रिक्त स्थानों की पूर्ति</b></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के रचयिता </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> हैं।</span></li><li><span lang="HI"> जीवन में उचित लक्ष्य का निर्धारण कर </span><span style="font-family: Mangal;">…………… </span> <span lang="HI"> पर अग्रसर होने पर ही सफलता मिलती</span></li><li><span lang="HI"> पूर्व चलने के बटोही पथ की </span><span style="font-family: Mangal;">…………….. </span> <span lang="HI"> कर ले।</span></li><li><span lang="HI"> रास्ते का एक काँटा पाँव का </span><span style="font-family: Mangal;">…………….. </span> <span lang="HI"> चीर देता।</span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्री हरिवंशराय बच्चन</span></li><li><span lang="HI"> जीवन-पथ</span></li><li><span lang="HI"> पहचान</span></li><li><span lang="HI"> दिल।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"><b> सत्य/असत्य</b></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">इसकी कहानी पुस्तकों में छापी गयी</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> ऐसा </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में है।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">खोल इसका अर्थ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पंथी पंथ का अनुमान कर ले</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> पंक्ति श्री हरिवंशराय बच्चन की </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> कविता की है।</span></li><li><span lang="HI"> कवि ने सपनों पर मुग्ध होने के लिए उत्साहित किया है।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">क्षितिज पर श्रृंगार किये लक्ष्मी बैठी</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> पंक्ति </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता की है।</span></li><li><span lang="HI"> नदियाँ आगे चलकर सागर में परिवर्तित हो जाती हैं। (</span><span style="font-family: Mangal;">2015)</span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI" style="color: #2b00fe;"><b> सही जोड़ी मिलाइए</b></span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)</span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">1.</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">किस जगह यात्रा खत्म हो जाएगी </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">कर्म पर दृढ़ विश्वास रखने वाला</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">व्यक्ति ही पथ की </span> </span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">पथ की पहचान</span></span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">चलते चलो चलते चलो सूरज के संग-संग चलते</span></span></p></td> <td> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(</span><span lang="HI">क) चलो</span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">, </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">चलते चलो </span> </span></p> <p><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ख) यह भी अनिश्चित</span></span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(</span><span lang="HI">ग) बाधाओं को सरलता से पार कर पाता</span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">है</span></span></p> <p><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(</span><span lang="HI">घ) डॉ. हरिवंशराय बच्चन</span></p></td> </tr> </tbody></table> <p><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p> <span lang="HI"><b> एक शब्द/वाक्य में उत्तर</b></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> चलने से पूर्व बटोही को क्या करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">? (2013, 15)</span></li><li><span lang="HI"> जीवन का कल्याणमय पथ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI"> भारत छोड़ो आन्दोलन में कौन सक्रिय रहे</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI"> धरती को प्रकाश और ऋतुओं को नया शृंगार कौन प्रदान करता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> पथ की पहचान</span></li><li><span lang="HI"> सतत् कर्म द्वारा</span></li><li><span lang="HI"> नरेश मेहता</span></li><li><span lang="HI"> सूरज।</span></li></ol> <p></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> पथ की पहचान भाव सारांश</span></h2> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के रचयिता हरिवंशराय बच्चन का कथन है कि जीवन यात्रा के समान है। इसीलिए पथ का उचित ज्ञान आवश्यक है। एक बार उचित मार्ग चुनने के पश्चात् दृढ़तापूर्वक आगे बढ़ना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> मानव को सुख-दुःख में समान भाव से रहना चाहिए क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के सपने होते हैं और ये सपने तभी पूर्ण होते हैं जब व्यक्ति अपने कर्मपथ की बाधाओं को कुचलता हुआ अपने उद्देश्य की प्राप्ति में दृढ़ता से लगा रहे।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्यक्ति यदि असमंजस की स्थिति में बार-बार मार्ग बदलता है तो वह अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाता। यदि अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त करनी है तो अपने मार्ग के काँटों को अर्थात् विषमताओं को दूर करते हुए आगे बढ़ो। सफलता अवश्य तुम्हारे चरण चूमेगी। तः मानव को अपना पथ सोच-समझकर निर्धारित करना चाहिए।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> पथ की पहचान संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h3> <p><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> पूर्व चलने के बटोही</span></p> <p> <span lang="HI"> बाट की पहचान कर ले। </span></p> <p> <span lang="HI"> पुस्तकों में है नहीं छापी </span></p> <p> <span lang="HI"> गयी इनकी कहानी</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> हाल इनका ज्ञात होता </span></p> <p> <span lang="HI"> हैन औरों की जुबानी। </span></p> <p> <span lang="HI"> अनगिनत राही गए इस </span></p> <p> <span lang="HI"> राह से</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनका पता क्या</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> पर गए कुछ लोग इस पर </span></p> <p> <span lang="HI"> छोड़ पैरों की निशानी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> यह निशानी मूक होकर </span></p> <p> <span lang="HI"> भी बहुत कुछ बोलती है</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> खोल इसका अर्थ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पंथी </span></p> <p> <span lang="HI"> पंथ का अनुमान कर ले। </span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्व चलने के बटोही</span></p> <p> <span lang="HI"> बाट की पहचान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> बटोही = पथिक</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रास्तागीर। बाट = रास्ता। औरों की जुबानी = औरों के कहने से। राही = पथिक। मूक = गूंगी। पंथी = रास्तागीर।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत पंक्तियाँ पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार श्री हरिवंशराय बच्चन हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि इसमें यह सन्देश देता है कि कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में भली-भाँति जानकारी कर लेनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर हरिवंशराय बच्चन कहते हैं कि हे रास्तागीर! जिस रास्ते पर तुम चलना चाह रहे हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उस रास्ते की भली-भाँति पहचान कर लो। इसकी कहानी किसी भी पुस्तक में नहीं छापी गयी है और न ही इसके बारे में किसी अन्य व्यक्ति से कोई जानकारी प्राप्त हो सकती है। इस मार्ग से</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिस पर तू चलना चाह रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनगिनत राही जा चुके हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर आज तक उनका कोई अता-पता नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन कुछ ऐसे भी महान् पुरुष इस मार्ग से गये हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जहाँ उन्होंने अपने चरणों की अमिट छाप छोड़ी है। यद्यपि उनके चरणों की यह छाप मूक अर्थात् गूंगी है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन इसके बावजूद वह बहुत कुछ बोलती है। अतः हे पंथी! इस मूक निशानी का अर्थ तू भली-भाँति समझ ले और फिर उससे अपने पंथ का अनुमान लगा ले। हे राहगीर! चलने से पूर्व अपने मार्ग की पहचान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने सोच-समझकर किसी कार्य को करने को कहा है।</span></li><li><span lang="HI"> कविता में लाक्षणिकता है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> यह बुरा है या कि अच्छा</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> व्यर्थ दिन इस पर बिताना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> अब असम्भव</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> छोड़ यह पथ </span></p> <p> <span lang="HI"> दूसरे पर पग बढ़ाना</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> तू इसे अच्छा समझ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> यात्रा सरल इससे बनेगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> सोच मत केवल तुझे ही</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> यह पड़ा मन में बिठाना</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> हर सफल पंथी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है।</span></p> <p> <span lang="HI"> तू इसी पर आज अपने </span></p> <p> <span lang="HI"> चित्त का अवधान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्व चलने के बटोही</span></p> <p> <span lang="HI"> बाट की पहचान कर ले।</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> व्यर्थ = बेकार में। पग बढ़ाना = दूसरा कार्य। शुरू करना। पंथी = राहगीर। अवधान = दृढ़ निश्चय।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पंक्तियाँ पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार श्री हरिवंशराय बच्चन हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इसमें यह सन्देश देता है कि कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में भली-भाँति जानकारी कर लेनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर बच्चन कहते हैं कि जो व्यक्ति शंकालु होते हैं और बार-बार यह सोचते रहते हैं कि यह अच्छा है या बुरा है और इसी सोच में बेकार में अपना समय बर्बाद किया करते हैं। किसी पहली बात को असम्भव बताकर दूसरे नये काम में लग जाया करते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व उसे अच्छी तरह समझ लो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऐसा करने से आपकी यात्रा सरल एवं सफल हो जायेगी। तू यह मत सोच कि केवल तेरा ही इन संकटों से पाला पड़ा है बल्कि हर सफल पंथी की यही कहानी रही है और वह इसी विश्वास को लेकर उस पर आगे बढ़ा है। अतः खूब सोच-विचार कर तू अपना दृढ़ निश्चय इस पर कर ले। हे रास्तागीर! मार्ग पर चलने से पूर्व मार्ग की भली-भाँति। जाँच-पड़ताल कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने कहा है कि किसी भी काम को अपने। हाथ में लेने से पूर्व भली-भाँति सोच-समझ लो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर जब उस पर चल पड़ो तो फिर उसमें आने वाली विपत्तियों से मत डरो।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> है अनिश्चित किस जगह पर</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> सरित</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गिरि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गह्वर मिलेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> है अनिश्चित किस जगह पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> बाग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुन्दर मिलेंगे।</span></p> <p> <span lang="HI"> किस जगह यात्रा खत्म हो </span></p> <p> <span lang="HI"> जाएगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह भी अनिश्चित</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> है अनिश्चित कब सुमन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कब</span></p> <p> <span lang="HI"> कंटकों के शर मिलेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> कौन सहसा छूट जाएंगे</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> मिलेंगे कौन सहसा</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> आ पड़े कुछ भी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रुकेगा </span></p> <p> <span lang="HI"> तू न</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऐसी आन कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्व चलने के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बटोही </span></p> <p> <span lang="HI"> बाट की पहचान कर ले।</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सरित = नदी। गिरि </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> पर्वत। गह्वर = गुफाएँ। वन = जंगल। सुमन = फूल। कंटकों = काँटों के। शर = बाण। आन = प्रतिज्ञा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पंक्तियाँ पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार श्री हरिवंशराय बच्चन हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इसमें यह सन्देश देता है कि कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में भली-भाँति जानकारी कर लेनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर बच्चन कहते हैं कि जब हम किसी मार्ग पर चल निकलते हैं तो कहाँ हमें नदी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर्वत और गुफाएँ मिलेंगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह सब अनिश्चित है। इसी प्रकार कहाँ हमें बाग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जंगल और सुन्दर स्थान मिलेंगे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह भी अनिश्चित है। साथ ही हमारी यात्रा कहाँ खत्म हो जायेगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह भी अनिश्चित है। यह भी अनिश्चित है कि हमें कब तो सुमन मिलेंगे और कब हमें काँटों के बाण मिलेंगे। साथ ही कौन हमारे साथ चलते-चलते हमसे अलग हो जायेगा और कौन नया मिल जायेगा। अतः तू ऐसी प्रतिज्ञा कर ले कि चाहे जो भी परिस्थिति हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तू अपने मार्ग पर चलते रहने से रुकेगा नहीं। हे राहगीर! चलने से पहले अपनी राह की भली-भाँति पहचान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि का सन्देश है कि किसी भी कार्य के करने में हमें अनेकानेक विपरीत स्थितियाँ मिलेंगी पर हमारा ध्येय इनकी चिन्ता न कर निरन्तर आगे बढ़ते रहना है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> कौन कहता है कि स्वप्नों</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> को न आने दे हृदय में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> देखते सब हैं इन्हें </span></p> <p> <span lang="HI"> अपनी उमर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपने समय में.</span></p> <p> <span lang="HI"> और तू कर यत्न भी तो </span></p> <p> <span lang="HI"> मिल नहीं सकती सफलता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> ये उदय होते</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लिए कुछ</span></p> <p> <span lang="HI"> ध्येय नयनों के निलय में </span></p> <p> <span lang="HI"> किंतु जग के पंथ पर यदि </span></p> <p> <span lang="HI"> स्वप्न दो तो सत्य दो सौ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> सत्य का भी ज्ञान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्व चलने के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बटोही</span></p> <p> <span lang="HI"> बाट की पहचान कर ले।</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नयनों = नेत्रों के। निलय = घर में। जग = संसार। मुग्ध = मोहित।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पंक्तियाँ पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार श्री हरिवंशराय बच्चन हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इसमें यह सन्देश देता है कि कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में भली-भाँति जानकारी कर लेनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर बच्चन कहते हैं कि यह कौन व्यक्ति कहता है कि जीवन में कभी भी स्वप्न मत आने दो। अरे भाई ये स्वप्न तो अपनी उमर और अपने समय के अनुसार सभी देखते हैं। इसके साथ ही कवि यह भी कहता है कि हे मनुष्य! तू हजारों यत्न कर ले लेकन सफलता तुझे तब भी नहीं मिलेगी।</span></p> <p> <span lang="HI"> आगे कवि कहता है कि ये स्वप्न जब भी उदय होते हैं तो वे कोई-न-कोई लक्ष्य अपने नेत्रों में समाये रहते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> परन्तु हे राहगीर! इस जीवन के पथ पर यदि थोड़े से सपने हैं तो सैकड़ों सत्य (संघर्ष</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विपदाएँ) भी हैं। अकेले स्वप्न पर ही हे मनुष्य! तू मोहित मत हो जा। सपने के साथ ही साथ जीवन के सत्य की भी तू पहचान कर ले। हे राहगीर! राह पर चलने से पूर्व अपने राह की पहचान कर ले।</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI"><b>विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि स्वप्न देखना बुरा नहीं मानता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर वह यह कहना चाहता है कि स्वप्न के साथ ही साथ सत्यता का भी ज्ञान कर लेना चाहिए।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> स्वप्न आता स्वर्ग:का</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> द्रग</span></p> <p> <span lang="HI"> कोरकों में दीप्ति आती</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> पंख लग जाते पगों को </span></p> <p> <span lang="HI"> ललकती उन्मुक्त छाती</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> रास्ते का एक काँटा </span></p> <p> <span lang="HI"> पाँव का दिल चीर देता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> रक्त की दो बूंद गिरती</span></p> <p> <span lang="HI"> एक दुनिया डूब जाती</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> आँख में ही स्वर्ग लेकिन </span></p> <p> <span lang="HI"> पाँव पृथ्वी पर टिके हों</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </p> <p> <span lang="HI"> कंटकों की इस अनोखी </span></p> <p> <span lang="HI"> सीख का सम्मान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्व चलने के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बटोही</span></p> <p> <span lang="HI"> बाट की पहचान कर ले।</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> दृग = नेत्र। कोरकों = कोनों में। दीप्ति = चमक। पगों = पैरों में। उन्मुक्त = पूरी तरह मुक्त। अनोखी = विचित्र। सीख = शिक्षा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पंक्तियाँ पथ की पहचान</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचनाकार श्री हरिवंशराय बच्चन हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इसमें यह सन्देश देता है कि कोई भी कार्य करने से पहले उसके बारे में भली-भाँति जानकारी कर लेनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर बच्चन कहते हैं कि हमें स्वर्ग के सपने आते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इससे हमारे नेत्रों के कोने में एक विशेष प्रकार की चमक आ जाती है। हमारे पैरों में पंख लग जाते हैं अर्थात् हम कल्पना लोक में विचरण करने लग जाते हैं और हमारी स्वच्छन्द छाती ललकने लगती है। रास्ते में पड़ा हुआ एक भी काँटा हमारे पाँव के दिल को चीर देता है। जब खून की दो बूंद गिरती हैं तो उसमें एक दुनिया डूब जाती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> आगे कवि कहता है कि चाहे हमारी आँखों में स्वर्ग के सपने हों पर हमारे पैर पृथ्वी पर ही टिके रहने चाहिए कहने का भाव यह है कि हमें जीवन के यथार्थ का भी ज्ञान होना चाहिए। काँटों की इस अनोखी शिक्षा का</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हे मानव! तू सम्मान कर ले। हे रास्तागीर! रास्तों पर चलने से पूर्व रास्ते की भली-भाँति पहचान कर ले।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि स्वप्न देखना बुरा नहीं मानता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर यथार्थ की भी हमें जानकारी होनी चाहिए इसी पर कवि जोर देता है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> चरैवेति-जन गरबा भाव सारांश</span></h2> <p> <span lang="HI"> नरेश मेहता ने अपनी कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चरैवेति जनगरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में मानव को निरन्तर चलने की प्रेरणा दी कवि का कथन है कि सूर्य निरन्तर चलता है। चन्द्रमा भी रात्रि में गति करता है। नित्य प्रति ऋतु परिवर्तन भी होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तारे आसमान में गति करते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> जिस भाँति प्रकृति निरन्तर चलती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी भाँति मानव को निरन्तर चलते रहना चाहिए। कवि का कथन है कि आज मनुष्य स्वतन्त्र है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अतः मानव योनि में जन्म लेने के कारण व्यक्ति को कर्म करते रहना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> यदि व्यक्ति कर्म में रत रहेगा तो लक्ष्मी उससे दूर नहीं रहेगी</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">क्योंकि परिश्रम करने वाला व्यक्ति ही संसार में सुख-सम्पदा का स्वामी बनता है। कवि ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को आगे बढ़ते रहना चाहिए। पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। कर्म करते रहना ही सच्चा तीर्थस्थल है।</span></p> <p> <span lang="HI"> मनुष्य को युग परिवर्तन के साथ-साथ प्राचीन रूढ़ियों का परित्याग करके नवीन समय का स्वागत करने को तैयार रहना चाहिए।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> चरैवेति-जन गरबा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h3> <p><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> चलते चलो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चलते चलो। </span></p> <p> <span lang="HI"> सूरज के संग-संग चलते चलो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चलते चलो॥</span></p> <p> <span lang="HI"> तम के जो बन्दी थे </span></p> <p> <span lang="HI"> सूरज ने मुक्त किये </span></p> <p> <span lang="HI"> किरनों से गगन पोंछ</span></p> <p> <span lang="HI"> धरती को रंग दिये </span></p> <p> <span lang="HI"> सूरज को विजय मिली</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऋतुओं की रात हुई </span></p> <p> <span lang="HI"> कह दो इन तारों से चन्दा के संग-संग चलते चलो॥</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> तम = अन्धकार। मुक्त = स्वतन्त्र।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चैरवेति-जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से ली गई है। इसके कवि श्री नरेश मेहता हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि इस अवतरण में मनुष्यों को सदैव चलते रहने का सन्देश देना चाहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नरेश मेहता कहते हैं कि हे मनुष्यो! जीवन में तुम सदैव चलते चलो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रुको मत। जिस प्रकार सूरज रात दिन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वर्ष भर चलता ही रहता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह थकता नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसी प्रकार तुम भी जीवन भर चलते रहो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रुको मत। आगे कवि कहता है कि जो अन्धकार के बन्दी थे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उन्हें सूरज ने मुक्त कर दिया है तथा अपनी किरणों से सूरज ने आकाश को पोंछ कर धरती को नये-नये रंग दे दिये हैं। आज सूरज को जीत मिल गई है और ऋतुओं की रात हो गयी है। इन तारों से कह दो कि वे चन्दा के साथ-साथ सदैव चलते रहें।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने जीवन की सार्थकता निरन्तर चलते रहने में बताई है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> रत्नमयी वसुधा पर</span></p> <p> <span lang="HI"> चलने को चरण दिये </span></p> <p> <span lang="HI"> बैठी उस क्षितिज पार </span></p> <p> <span lang="HI"> लक्ष्मी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> श्रृंगार किये। </span></p> <p> <span lang="HI"> आज तुम्हें मुक्ति मिली</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कौन तुम्हें दास कहे </span></p> <p> <span lang="HI"> स्वामी तुम ऋतुओं के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> संवत् के संग-संग चलते चलो!!</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> रलमयी = रत्नों से भरी हुई। वसुधा = पृथ्वी। संवत् = वर्ष।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चैरवेति-जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गई है। इसके कवि श्री नरेश मेहता हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इस अवतरण में मनुष्यों को सदैव चलते रहने का सन्देश देना चाहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नरेश मेहता कहते हैं कि ईश्वर ने कृपा करके रत्नों की भण्डार इस पृथ्वी पर चलने के लिए तुम्हें चरण प्रदान किये हैं। क्षितिज के दूसरी ओर लक्ष्मी शृंगार किये बैठी है। कहने का अर्थ यह है कि लक्ष्मी को प्राप्त करना चाहते हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो जीवन में पुरुषार्थ करो।</span></p> <p> <span lang="HI"> आज तुम स्वतन्त्र हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुम्हें दास कहने की किसमें हिम्मत। है। तुम सभी ऋतुओं के स्वामी हो। अतः संवत्सर के साथ-साथ निरन्तर चलते रहो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रुको मत।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने मानव को सदैव प्रयत्न करते रहने का सन्देश दिया है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> नदियों ने चलकर ही</span></p> <p> <span lang="HI"> सागर का रूप लिया </span></p> <p> <span lang="HI"> मेघों ने चलकर ही </span></p> <p> <span lang="HI"> धरती को गर्भ दिया </span></p> <p> <span lang="HI"> रुकने का मरण नाम</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पीछे सब प्रस्तर है।</span></p> <p> <span lang="HI"> आगे है देवयान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> युग केही संग-संग चलते चलो!!</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तर = पत्थर देवयान = देवताओं का वाहन।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चैरवेति-जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गई है। इसके कवि श्री नरेश मेहता हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इस अवतरण में मनुष्यों को सदैव चलते रहने का सन्देश देना चाहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नरेश मेहता कहते हैं कि निरन्तर बहने वाली नदियों ने ही अपने पानी द्वारा सागर का निर्माण किया है। बादलों ने ही उमड़-घुमड़ कर धरती को फलवती बना दिया है। रुकना मृत्यु है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पीछे सब पत्थर पड़े मिलेंगे यदि आगे बढ़ोगे तो देवयान मिलेंगे। अतः युग (समय) के साथ ही साथ चलते रहो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने निरन्तर आगे बढ़ने का सन्देश दिया</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> मानव जिस ओर गया</span></p> <p> <span lang="HI"> नगर बसे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तीर्थ बने </span></p> <p> <span lang="HI"> तुमसे है कौन बड़ा </span></p> <p> <span lang="HI"> गगन सिन्धु मित्र बने </span></p> <p> <span lang="HI"> भूमा का भोगो सुख</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नदियों का सोम पियो। </span></p> <p> <span lang="HI"> त्यागो सब जीर्ण बसन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नूतन के संग-संग चलते चलो!!</span></p> <p><span lang="HI"><b>शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> भूमा = पृथ्वी। जीर्ण बसन = पुराने वस्त्र। नूतन = नवीन।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">चैरवेति-जन गरबा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गई है। इसके कवि श्री नरेश मेहता हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p><p><span lang="HI">कवि इस अवतरण में मनुष्यों को सदैव चलते रहने का सन्देश देना चाहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नरेश मेहता कहते हैं कि मानव ने जिस तरफ भी अपने चरण बढ़ाये वहीं नगरों एवं तीर्थों का निर्माण होने लगा। कवि मानव के महत्व को बताते हुए कहता है कि हे मनुष्य! तुमसे कोई भी बड़ा नहीं है। आकाश और समुद्र तक तुम्हारे मित्र बन बन गये हैं। अतः हे मनुष्यो! इस पृथ्वी का सुख भोगो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नदियों के सोम रस का पान करो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सभी पुराने वस्त्रों को त्याग दो और फिर नये वस्त्रों के साथ-साथ चलते चलो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> मानव के महत्व को कवि ने बताया है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ul> <p></p> <nav aria-label="..."> </nav> </div></div> </div> </div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-86835220348029007372021-11-02T19:06:00.002-07:002021-11-13T03:07:49.671-08:00MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 7 सामाजिक समरसता<p><span style="color: navy;"><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने </span><span style="font-size: medium;"><b style="color: navy; font-family: "Times New Roman";">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b><span style="color: black;">पद्य खंड </span><span style="font-family: Mangal;"><b>Chapter 7 सामाजिक समरसता</b></span><span style="color: black;"> </span></span><span style="color: black; font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: navy;"><b><span style="font-family: Mangal;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span> <span lang="HI"> पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 7</span><span lang="HI"> सामाजिक समरसता</span></b></span></h2> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> बोध प्रश्न</span></span></p> <p> <span style="color: navy;"><b> <span lang="HI"> अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></b></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span><span lang="HI">लोहा किसकी श्वांस से भस्म हो जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> लोहा मरे हुए जानवर की खाल से बनी हुई मसक की श्वांस (हवा) से भस्म हो जाता है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> भक्ति किस प्रकार के प्राणियों से नहीं हो सकती</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कामी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्रोधी और लालची प्रकृति के प्राणियों से भक्ति नहीं हो सकती।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> गुण लाख रुपये में कब बिकता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> गुण लाख रुपये में तब बिकता है जब उसे गुण का ग्राहक मिल जाता है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> संसार में विद्यमान सचर-अचर प्राणी क्या कर रहे हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> संसार में विद्यमान जितने भी सचर या अचर प्राणी हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वे सभी अपने-अपने कर्मों में लगे हुए हैं।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> दयामयी माता के तुल्य किसे माना गया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> दयामयी माता के तुल्य पृथ्वी को माना गया है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span> <span lang="HI"> जीवन को सफल बनाने के लिए कवि क्या निर्देश देते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> जीवन को सफल बनाने के लिए कवि ने मनुष्यों को अपने-अपने उद्देश्य में लगे रहने का निर्देश दिया है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> लघु उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> कबीर ईश्वर से क्या माँगते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कबीर ईश्वर से यह माँगते हैं कि हे भगवान तुम कृपा करके मुझे इतना दे देना जिससे मैं अपने परिवार को पाल लूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मैं खुद भी भूखा न रहूँ और कोई साधु भी मेरे घर से खाली हाथ न जाये।</span></p> <p> <span lang="HI"> <br /> </span></p><h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"><span style="color: red;">प्रश्न </span> </span><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार किस प्रकार के वृक्ष के नीचे विश्राम करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार उस वृक्ष के नीचे विश्राम करना चाहिए जिसमें बारह महीने फल लगते हों</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिसमें शीतल छाया हो और घने फल हों तथा जिस पर पक्षी गण क्रीड़ा करते हों।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> साधु से किस प्रकार के प्रश्न नहीं करने चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> साधु से उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उससे तो केवल ज्ञान की बातें पूछनी चाहिए।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. ‘</span><span lang="HI">लोक कल्याण कामना</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का क्या आशय है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> लोक कल्याण कामना से कवि का आशय है कि हमें संसार में रहकर ऐसे कार्य करने चाहिए जिनसे अधिक-से-अधिक लोगों का कल्याण हो। स्वार्थ के लिए हमें कार्य नहीं करने चाहिए।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> कवि जग की विषम आँधियों के सम्मुख किस प्रकार के स्वभाव की अपेक्षा कर रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि जग की विषम आँधियों के सम्मुख हिम्मत से डटे रहने के स्वभाव की अपेक्षा कर रहा है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span> <span lang="HI"> कर्मच्युत होने से क्या परिणाम होगा</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कर्मच्युत होने से यह परिणाम निकलेगा कि तुम धोखे में पड़कर इस अलभ्य (अनमोल) अवसर से हाथ धो बैठोगे।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> दुर्बल को सताने का क्या दुष्परिणाम होता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> दुर्बल व्यक्ति को सताने का यह परिणाम होता है कि उसकी मोटी आहों से कोई बच नहीं पायेगा।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> अवगुण का निवास कहाँ है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> अवगुण का निवास मनुष्यों के हृदय में होता है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> किन विशेषताओं को खोकर भक्ति की जा सकती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> जाति एवं वर्ण जैसी विशेषताओं को खोकर ही भक्ति की जा सकती है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> मनुष्य किन-किन शक्तियों से सम्पन्न है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> संसार में जीने का उद्देश्य लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> मनुष्य अमित बुद्धि एवं बल से युक्त है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अतः उसका संसार में जीने का भी निश्चित उद्देश्य है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> और वह है जीवन में प्रतिक्षण अपने उद्देश्य को पाने के लिए कर्म में जुटे रहना।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. ‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता का केन्द्रीय भाव लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में कवि ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य एक कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किन्तु कभी-कभी वह कर्तव्य से विमुख होकर भी काम करने लगता है और जीवन के उच्च उद्देश्यों से भटक जाता है। इस प्रकार के कार्यों से वह समाज की कोई भलाई नहीं कर सकता। अपने समाज और अपनी जन्म-भूमि के प्रति भी मनुष्य में कर्त्तव्य भावना होनी चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तभी उसकी जीवन यात्रा सार्थक है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span> <span lang="HI"> संसार मनुष्य के लिए एक परीक्षा स्थल है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऐसा कवि ने क्यों कहा है </span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> संसार में अनेकानेक विषम परिस्थितियाँ और विपदाएँ आती रहती हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसलिए कवि ने संसार को एक परीक्षा स्थल कहा है। इन विषम परिस्थितियों और आपदाओं से मनुष्य को घबड़ाना नहीं चाहिए बल्कि उनका डटकर सामना करना। चाहिए तथा अपने उद्देश्य को पाने के लिए निरन्तर संघर्ष करते रहना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> <br /> <span style="color: red;">प्रश्न </span> </span><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">7. </span> <span lang="HI"> निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए</span></span></p> <p><span style="color: red;"><b><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) ऊँचै कुल का </span><span style="font-family: Mangal;">………. </span> <span lang="HI"> निंद्या सोई॥</span></b></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने भर से कोई व्यक्ति ऊँचा नहीं हो जाता। यदि उसके कार्य ऊँचे नहीं हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो वह कभी ऊँचा नहीं हो सकता है। ऊँचे अर्थात् श्रेष्ठ कार्य करने वाला व्यक्ति ही.ऊँचा होता है। वे उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यदि सोने के कलश में मदिरा भरी हुई है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो साधु लोग उस कलश की प्रशंसा न करके निन्दा ही करेंगे।<br /> </span></p> <p><span style="color: red;"><b><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) जब गुण </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> बदलै जाइ॥</span></b></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि जब गुण के ग्राहक मिल जाते हैं तो गुण लाख रुपये में बिकता है और यदि गुण के ग्राहक न मिलें तो वह गुण कौड़ियों में बिक जाता है।<br /> </span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) तुम मनुष्य हो </span><span style="font-family: Mangal;">………….. </span> <span lang="HI"> निज जीवन में</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी जी कहते हैं कि तुम मनुष्य हो और तुम्हारा जन्म इस संसार में अत्यधिक बुद्धि एवं बल से युक्त है। ऐसी दशा में क्या तुमने अपने मन में कभी इस बात पर विचार किया है कि तुम्हारा जीवन क्या उद्देश्य रहित है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> अर्थात् नहीं। कवि पुनः कहता है कि हे मनुष्यो! तुम बुरा मत मानना। तुम अपने मन में एक बार सोचो तो कि क्या तुमने अपने जीवन के सभी कर्त्तव्य पूरे कर लिये हैं अर्थात् अभी नहीं किये हैं।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"><b> <span lang="HI">काव्य सौन्दर्य</span></b></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> करुण रस को उदाहरण सहित समझाइए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> करुण रस-किसी प्रिय वस्तु अथवा व्यक्ति की अनिष्ट की आशंका या विनाश से हृदय में उत्पन्न क्षोभ या दुःख को करुण रस कहते हैं। इसका स्थायी भाव शोक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> उदाहरण</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> अभी तो मुकुट बँधा था माथ हुए कल ही हल्दी के हाथ।</span></p> <p> <span lang="HI"> खुले भी न थे लाज के बोल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> खिले भी चुंबन शून्य कपोल। हाय रुक गया यहीं संसार</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">बना सिन्दूर अंगार।</span></p> <p> <span lang="HI"> बातहत लतिका वह सुकुमार पड़ी है छिन्न धार।</span></p> <p> <span lang="HI"> स्पष्टीकरण स्थायी भाव-शोक।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विभाव</b> :</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) आलम्बन विनष्ट पति।</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) आश्रय-पत्नी।</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) उद्दीपन-मुकुट का बाँधना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हल्दी के हाथ होना</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">लाज के बोल न खलना।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> अनुभाव</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> वातहत लतिका के समान नायिका का बेहाल पड़े रहना। संचारी भाव-जड़ता</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">स्मृति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दैन्य और विषाद आदि।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> गीतिका छन्द को अन्य उदाहरण सहित समझाइए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> गीतिका छन्द में </span><span style="font-family: Mangal;">26</span><span lang="HI"> मात्रा</span><span style="font-family: Mangal;">, 14-12</span><span lang="HI"> पर यति तथा प्रत्येक चरण के अन्त में </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">लघु-गुरु</span><span style="font-family: Mangal;">’ (15) </span> <span lang="HI"> होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> उदाहरण :</span></p> <p> <span lang="HI"> हे प्रभो! आनन्ददाता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ज्ञान हमको दीजिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> शीघ्र सारे दुर्गुणों कों दूर हमसे कीजिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> लीजिए हमको शरण में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हम सदाचारी बनें।</span></p> <p> <span lang="HI"> ब्रह्मचारी धर्मरक्षक</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वीर व्रत धारी बनें।।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> हरिगीतिका छन्द के लक्षण देते हुए एक अन्य उदाहरण लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> हरिगीतिका सममात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में </span><span style="font-family: Mangal;">16</span><span lang="HI"> एवं </span><span style="font-family: Mangal;">12</span><span lang="HI"> पर यति के साथ कुल </span><span style="font-family: Mangal;">28</span><span lang="HI"> मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में लघु-गुरु होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> उदाहरण :</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">गाते प्रियाओं के सहित रस राग यक्ष जहाँ तहाँ। प्रत्यक्ष दो उत्तर दिशा की दीखती लक्ष्मी यहाँ। कहते हुए यों पार्श्व में सहसा उदासी छा गई। उत्तर दिशा से याद सहसा उत्तरा की आ गई।</span><span style="font-family: Mangal;">’</span></p><p><span style="font-family: Mangal;"><br /></span></p> <p><span style="color: navy;"> MCQ</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> लोहा किसकी श्वांस से भस्म हो जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) कोयले की</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) सोने की</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) लकड़ी की</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) मरी हुई खाल की।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) लकड़ी की<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> दयामयी माता के तुल्य किसे माना गया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) माँ</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) भारत की धरती को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) भारत</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) प्रान्त को।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) भारत की धरती को<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार किस प्रकार के वृक्ष के नीचे विश्राम करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) छायादार</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) घना</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) फलयुक्त</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) उपर्युक्त सभी।<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> सज्जन व्यक्ति से क्या पूछना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) जाति</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) नाम</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) ज्ञान</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) काम।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) ज्ञान</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span> <span lang="HI"> रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> जाति न पूछो साधु की पूछि लीजिए </span><span style="font-family: Mangal;">………..</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कबीर ने बाह्य आडम्बरों तथा </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> का व मूर्तिपूजा का विरोध किया।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> ऊँचे कुल में जन्म लिया हो पर करनी ऊँची न हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऐसा व्यक्ति </span><span style="font-family: Mangal;">……….. </span> <span lang="HI"> स्वर्ण कलश के समान है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> लोक कल्याण की कामना ही सच्ची </span><span style="font-family: Mangal;">……….. </span> <span lang="HI"> है।</span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> ज्ञान</span></li><li><span lang="HI"> अन्ध विश्वास</span></li><li><span lang="HI"> मदिरा से भरे</span></li><li><span lang="HI"> लोक सेवा।</span></li></ol> <p></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> सत्य/असत्य</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कबीर की भाषा को खिचड़ी या सधुक्कड़ी भाषा कहा जाता है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कबीर ने बाहरी आडम्बरों का समर्थन किया। (</span><span style="font-family: Mangal;">2009)</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">सबसे अधिक अवगुण औरों में ही होते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कबीर का यह कथन है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> रामनरेश त्रिपाठी स्वच्छन्दतावादी काव्यधारा के प्रतिष्ठित कवि हैं। इन्होंने स्वच्छन्दतावादी परम्परा को बढ़ाया।</span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> सही जोड़ी मिलाइए</span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)</span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">1.</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">जाति हमारी आतमा प्रान हमारा नाम अलख हमारा</span></span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">कबीर की पत्नी का नाम लोई तथा पुत्र का</span></span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">रामनरेश त्रिपाठी के अनुसार मनुष्य एक कर्तव्य </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">जग की विषम आँधियों के झोंके सम्मुख हो सहना स्थिर उद्देश्य समान<br /> </span></span></span></p></td> <td> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(क) निष्ठ प्राणी है उसे जीवन-पर्यन्त कर्म करना चाहिए </span> </span></p> <p><span style="color: red;"><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ख) और विश्वास सदृश दृढ़ रहना</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><span lang="HI"> </span> </span></span></p> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(ग) नाम कमाल था</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span lang="HI"> <span style="font-size: small;"><br /> (घ) इष्ट है</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">,</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">गगन हमारा ग्राम</span></span></span></p></td> </tr> </tbody></table> <p><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कबीर सच्चे अर्थों में कवि होते हुए भी क्या थे</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> साधु से क्या नहीं पूछना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">? </span></span> <span style="color: red; font-family: Mangal;"> </span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कवि ने जीवन सन्देश में अपने कर्म में कैसी तत्परता बतायी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> अटल निश्चय व भय रहित संसार में कौन है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> जीवन संदेश कविता का मूल स्वर क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </span><span style="color: red; font-family: Mangal;"> </span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> गुण कब लाख रुपये में बिकता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> समाज सुधारक</span></li><li><span lang="HI"> जाति</span></li><li><span lang="HI"> तुच्छ पत्र जैसी</span></li><li><span lang="HI"> ध्रुव जैसा</span></li><li><span lang="HI"> कर्म में रत रहना</span></li><li><span lang="HI"> जब गुणों को समझने वाला ग्राहक मिलता है।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> कबीर की साखियाँ भाव सारांश</span></span></p> <p> <span lang="HI"> कबीर ने अपनी साखियों में जीवन से सम्बन्धित अनेक उपयोगी सीखें दी हैं। मानव को भगवान से उतनी ही याचना करनी चाहिए जितनी आवश्यकता हो। दुर्बल को सताना अपने लिए काँटे बोना है। साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए अपितु उसके गुणों पर दृष्टिपात करना चाहिए। भक्ति के मार्ग में काम</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">क्रोध तथा लोभ बाधक हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अत: इनका त्याज्य अनिवार्य है। उच्च कुल में जन्म लेने वाले मानव का आचरण भी पवित्र होना आवश्यक है। फलदायी वृक्ष का आश्रय सुखद होता है। गुणी मानव हीं गुणों की परख कर सकता है। हीरा की परख जौहरी ही जानता है। भगवान गुणों के अक्षय कोष हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अवगुण तो हमारे मन-मानस में पल्लवित हैं। कबीर की साखियों में उच्चादर्शों से सम्बन्धित उत्कृष्ट काव्य सृष्टि है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"><b> कबीर की साखियाँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</b></span></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> साईं इतना दीजिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जामैं कुटुम समाय। </span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मैं भी भूखा न रहूँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> साधु न भूखा जाय॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">1)</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> साईं = स्वामी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भगवान। कुटुम = कुटुम्ब। समाय = भरण-पोषण हो जाए। साधु = अतिथि।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से ली गयी है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इसमें कवि ने भगवान से प्रार्थना की है कि हे भगवान! हमें इतना दे दो कि हमारा भली-भाँति गुजारा हो जाए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि हे भगवान! आप हमें इतना भर दे दें जिसमें हमारे कुटुम्ब का भली-भाँति भरण-पोषण हो जाए। मैं भी भूखा न रहूँ और मेरे घर पर जो भी साधु-संन्यासी आएँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वे भी खाली हाथ न लौटें।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने मात्र कुटुम्ब भरण तक की सुविधा ही भगवान से माँगी है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> दुर्बल को न सताइए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जाकी मोटी हाय। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> मरी चाम की स्वांस से</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लौह भसम है जाय॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">2)</span></b></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> दुर्बल = कमजोर व्यक्ति। चाम = चमड़े।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीर ने दुर्बल व्यक्ति को न सताने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि दुर्बल व्यक्तियों को मत सताओ। इनकी आहे बड़ी मोटी अर्थात् भारी होती हैं। एक उदाहरण देकर वे कहते हैं कि जब मरे हुए चमड़े से बनाई गई मसक की श्वांस से लोहा भी भस्म हो जाता है तो जीवित व्यक्ति की आहों से कितना अहित हो जायेगा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसे अच्छी तरह सोच लो और दुर्बलों को मत सताओ।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने दुर्बलों को न सताने का उपदेश दिया।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> जाति न पूछो साधु की</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पूछि लीजिए ज्ञान। </span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मोल करो तलवार का</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पड़ा रहन दो म्यान॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">3)</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> मोल = मोल-भाव।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी साधु संन्यासी की जाति न पूछने और ज्ञान जानने की बात कहते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी संसारी मनुष्यों से कहते हैं कि हे मनुष्यो! तुम कभी भी किसी साधु-संन्यासी की जाति के बारे में मत पूछो। यदि तुम्हें पूछना ही है तो उससे उसके ज्ञान के बारे में जानकारी लो। एक उदाहरण देकर कबीर बताते हैं कि मोल-भाव तो तलवार का किया जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> म्यान को कौन पूछता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> गुणों को जानना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जाति को नहीं।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> जाति हमारी आतमा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> प्रान हमारा नाम। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> अलख हमारा इष्ट है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गगन हमारा ग्राम॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">4)</span></b></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> अलख = अदृश्य। इष्ट = भगवान। गगन = आकाश।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस साखी में कबीरदास जी अपना परिचय देते हुए कह रहे हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि हमारी आत्मा ही हमारी जाति है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हमारा नाम ही हमारे प्राण हैं। अदृश्य अर्थात् न दिखाई देने वाला निर्गुण निराकार ईश्वर ही हमारा इष्ट है और आकाश हमारा ग्राम है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने अपनी व्यापकता का परिचय दिया है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द है।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> कामी क्रोधी लालची</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इन पै भक्ति न होय। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> भक्ति करै कोई शूरमाँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जाति वरण कुल खोय॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">5)</span></b></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कामी = काम वासना में रत रहने वाला। जाति = जाति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कुल। वर्ण = वर्ण व्यवस्था। खोय = खोकर।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कबीरदास जी ने बताया है कि कामी-क्रोधी व्यक्तियों से ईश्वर की भक्ति नहीं हो सकती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि कामी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्रोधी और लालची स्वभाव के व्यक्तियों से भगवान की भक्ति नहीं हो सकती है जो व्यक्ति जाति एवं वर्ण भूल जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वही शूरमाँ होता है और वही भगवान की भक्ति कर सकता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> विषय-वासनाओं से मुक्त होकर ही भक्ति की जा सकती है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऊँचै कुल का जनमियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जे करणी ऊँच न होइ।। </span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> सोवन कलस सुरै भऱ्या</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> साधू निंद्या सोई॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">6)</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> जनमियाँ = जन्म लेने वाला। करणी = कार्य। सोवन = सोने के। सुरै = मदिरा। भऱ्या = भरी हुई है। निंद्या = निंदा करता है। सोइ = उसकी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई व्यक्ति ऊँचा नहीं होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि ऊँचे कुल में जन्म लेने भर से कोई व्यक्ति ऊँचा नहीं हो जाता। यदि उसके कार्य ऊँचे नहीं हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो वह कभी ऊँचा नहीं हो सकता है। ऊँचे अर्थात् श्रेष्ठ कार्य करने वाला व्यक्ति ही.ऊँचा होता है। वे उदाहरण देते हुए कहते हैं कि यदि सोने के कलश में मदिरा भरी हुई है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो साधु लोग उस कलश की प्रशंसा न करके निन्दा ही करेंगे।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> व्यक्ति अच्छे कामों से ऊँचा होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ऊँचे कुल में जन्म लेने से नहीं।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> तरवर तास बिलंबिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बारह मास फलंत। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> सीतल छाया गहर फल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पंधी केलि करत॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">7)</span></b></span></p> <p style="text-align: left;"> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> तरवर = श्रेष्ठ वृक्ष। तास = उसी का। बिलंबिए = सहारा लीजिए। फलंत = फलता है। गहर = घने। पंषी = पक्षी। केलि = क्रीड़ाएँ।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी ने ऐसे व्यक्ति का आश्रय लेने का उपदेश दिया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिससे हर व्यक्ति सुखी हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी तरुवर के माध्यम से उस श्रेष्ठ व्यक्ति का आश्रयं ग्रहण करने का उपदेश देते हैं कि उसी श्रेष्ठ वृक्ष का आश्रय लेना चाहिए जो बारह महीने फल देता हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिसकी छाया शीतल हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिसमें घने फल लगते हों और जिस पर बैठकर पक्षीगण अपनी क्रीड़ाएँ करते हों।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सज्जन लोगों का आश्रय लेने की बात कही है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> जब गुण कँगाहक मिलै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तब गुण लाख बिकाइ। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> जब गुण कौं गाहक नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कौड़ी बदले जाइ॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">8)</span></b></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> गाहक = ग्रहण करने वाला</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जानकार।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि गुणों का महत्त्व तभी तक है जब तक उसके ग्राहक मिलते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि जब गुण के ग्राहक मिल जाते हैं तो गुण लाख रुपये में बिकता है और यदि गुण के ग्राहक न मिलें तो वह गुण कौड़ियों में बिक जाता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> गुण के ग्राहक का महत्व है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> सरपहि दूध पिलाइये</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दूधैं विष है जाइ। </span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऐसा कोई नां मिलै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सौं सरपैं विष खाइ॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">9)</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सरपहि = साँप को। लै जाइ = हो जायेगा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि सर्प को दूध पिलाने से कोई लाभ नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्योंकि वह दूध भी विष बन जायेगा।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि सर्प को दूध पिलाने से कोई लाभ नहीं है क्योंकि सर्प के गले में जाकर दूध भी विष बन जायेगा। कबीर कहते हैं कि मुझे आज तक ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जो सर्प के विष को खा जाये।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ul style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> साँप से आशय दुष्ट लोग हैं।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ul> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> करता करे बहुत गुण</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आगुण कोई नांहि। </span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> जे दिल खोजौं आपणौं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो सब औगुण मुझ माहि॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">10)</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> करता = कर्ता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सृष्टि का निर्माणकर्ता। केरे = तेरे। आगुण = अवगुण। आपणौ = अपना। मांहि = अन्दर।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कबीर की साखियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से ली गयी है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कर्ता (भगवान) में गुण ही गुण होते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अवगुण नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कबीरदास जी कहते हैं कि कर्ता अर्थात् भगवान में केवल गुण ही गुण हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनमें कोई भी अवगुण नहीं है। कबीर दास जी कहते हैं कि जब मैंने अपना दिल खोजा तो मैंने पाया कि सभी अवगुण मेरे अन्दर हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> ईश्वर (कर्ता) की महत्ता का वर्णन तथा अपने अवगुणों का वर्णन कवि ने किया है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol> <p></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: navy;"><span lang="HI"> जीवन संदेश भाव सारांश</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन संदेश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में श्री रामनरेश त्रिपाठी ने मानव को कर्म में रत रहने का संदेश दिया है। संसार में जड़</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">चेतन सभी पदार्थ अपने-अपने कर्म में लगे रहते हैं। सूर्य संसार में नवीन शोभा विकीर्ण करता है। चन्द्रमा रात्रि में अमृत की वर्षा करता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> तुच्छ तिनका भी कर्म में रत रहकर अपना सर्वस्व न्योछावर कर देता है। कवि मनुष्य को सचेत करता हुआ कहता है कि तुम मनुष्य हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुम्हारे पास बुद्धि</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">बल है। तुम्हें भी सोद्देश्य जीवन बिताना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> मातृभूमि के प्रति भी अपने कर्तव्य का दृढ़ता से पालन करना चाहिए। जीवन में लोक कल्याण व लोक सेवा आवश्यक है। संसार में मानव को विषम परिस्थितियों का दृढ़ता से सामना करना चाहए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चाहे कितनी ही विषम आँधियाँ आयें। व्यक्ति को चन्द्रमा सा शान्त व ध्रुव तारे की भाँति अचल भावना रखनी चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> यह संसार ईश्वर के द्वारा निर्मित है। उसी के द्वारा समस्त सृष्टि का संचालन होता है। अतः कवि का कथन है कि जिस भूमि पर तुमने जन्म लिया है उसके प्रति अपने कर्तव्य का पालन अन्तिम श्वांस तक करना चाहिए। यही मानव का परम धर्म है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> जीवन संदेश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></h3> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म निरत हैं।</span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> धुन है एक न एक सभी को सबके निश्चित व्रत हैं। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जीवनभर आतप सह वसुधा पर छाया करता है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सचर = चलने-फिरने वाले प्राणी। अचर = न चलने-फिरने वाली जड़ वस्तुएँ। कर्म निरत हैं अपने-अपने आप में लगे हुए हैं। व्रत = उद्देश्य</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निश्चय। आतप = धूप। वसुधा = पृथ्वी। पत्र = पत्ता। स्वकर्म= अपने काम में। तत्परता = लगन।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने यहाँ बताने का प्रयास किया है कि संसार में जड़ एवं चेतन सभी अपने-अपने काम में लगे हुए हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> श्री रामनरेश त्रिपाठी कहते हैं कि इस संसार। में जितने भी जड़ और चेतन हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वे सभी अपने-अपने कामों में लगे हुए हैं। सभी को कोई-न-कोई धुन होती है और उनका कोई-न-कोई व्रत (उद्देश्य) होता है। कवि पत्ते का उदाहरण देते हुए कहता है कि वह तुच्छ पत्ता जीवन भर धूप को सहता हुआ पृथ्वी पर छाया करता रहता है। देखिए उस तुच्छ पत्ते की भी अपने काम में कितनी तत्परता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि का मानना है कि जड़ और चेतन सभी अपने कामों में लगे हुए हैं।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> रवि जग में शोभा सरसाता सोम सुधा बरसाता।</span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सब हैं लगे कर्म में कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> हैं उद्देश्य नितान्त तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उसी पूर्ति में वह करता है अन्त कर्ममय तन का॥</span></span></p> <p style="text-align: left;"><b>शब्दार्थ</b> : </p> <p> <span lang="HI"> रवि = सूर्य। सोम = चन्द्रमा। सुधा = अमृत। निष्क्रिय = बिना काम के। नितान्त = पूरी तरह से। तुच्छ = छोटे। तृण = घास। कर्ममय = काम में लगते हुए।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि का कथन है कि सूर्य</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चन्द्रमा आदि सभी अपने-अपने कर्म में लगे हुए हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी जी कहते हैं कि सूर्य संसार में शोभा का विस्तार करता है तो चन्द्रमा पृथ्वी पर अमृत बरसाता है। इस संसार में सभी जड़</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चेतन अपने-अपने कामों में लगे हुए हैं। कोई भी व्यक्ति हमें बिना काम के नजर नहीं आता है। तुच्छ तिनके के लघु जीवन का भी उद्देश्य है और उसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु वह अपने शरीर का अन्त कर देता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सभी संसार में कार्यरत हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बिना काम के कोई नहीं है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> तुम मनुष्य हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अमित बुद्धिबल-विलसित जन्म तुम्हारा।</span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> क्या उद्देश्य रहित है जग में तुमने कभी विचारा</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </span></b> </p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> बुरा न मानो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> एक बार सोचो तुम अपने मन में। </span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> क्या कर्त्तव्य समाप्त कर लिए तुमने निज जीवन में॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> अमित = अत्यधिक। बुद्धि-बल विलसित = बुद्धि और बल से सुशोभित।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि मनुष्यों को सचेत करते हुए कहता है कि तुम्हें भी अपने जीवन को काम करते हुए सार्थक बनाना है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी जी कहते हैं कि तुम मनुष्य हो और तुम्हारा जन्म इस संसार में अत्यधिक बुद्धि एवं बल से युक्त है। ऐसी दशा में क्या तुमने अपने मन में कभी इस बात पर विचार किया है कि तुम्हारा जीवन क्या उद्देश्य रहित है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> अर्थात् नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि पुनः कहता है कि हे मनुष्यो ! तुम बुरा मत मानना। तुम अपने मन में एक बार सोचो तो कि क्या तुमने अपने जीवन के सभी कर्त्तव्य पूरे कर लिये हैं अर्थात् अभी नहीं किये हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि मनुष्य का कर्म क्षेत्र में निरन्तर लगे रहने की प्रेरणा देता है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ol> <p></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> वह सनेह की मूर्ति दयामयि माता-तुल्य मही है।</span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> हाथ पकड़कर प्रथम जिन्होंने चलना तुम्हें सिखाया। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> भाषा सिखा हृदय का अद्भुत रूप स्वरूप दिखाया।</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सनेह = स्नेह</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> प्रेम। दयामयि = दया करने वाली। मही = पृथ्वी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि तुमने जन्म तो ले लिया पर जन्म देने वालों के प्रति तुम्हारे जो कर्त्तव्य हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उन्हें पूरा करो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी कहते हैं कि वह प्रेम की मूर्ति। और दयामयी पृथ्वी माता के समान है। क्या उसके प्रति तुम्हारा। कोई कर्त्तव्य नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> अर्थात् निश्चय ही उसके प्रति हमारा कर्तव्य है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> हाथ पकड़कर जिन्होंने सर्वप्रथम तुम्हें पृथ्वी पर चलना सिखाया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बाद में भाषा का ज्ञान देकर हृदय के अद्भुत रूप। एवं स्वरूप को दिखाया है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> क्या उनके प्रति तुम्हारा कर्त्तव्य नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> हाँ अवश्य है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p style="text-align: left;"></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI">कवि का सन्देश है कि जिन्होंने हमारे साथ कुछ भी उपकार किया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनके प्रति हमें कर्त्तव्य पूरा करना चाहिए।</span></li><li>अनुप्रास की छटा। </li></ol><p></p> <p><span style="color: red;"><b><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> जिनकी कठिन कमाई का फल खाकर बड़े हुए हो।</span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दीर्घ देह की बाधाओं में निर्भय खड़े हुए हो॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> जिनके पैदा किए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बुने वस्त्रों से देह ढके हो। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> आतप-वर्षा-शीत-काल में पीडित हो न सके हो॥</span></span></p> <p style="text-align: left;"> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> बाधाओं = रुकावटों। निर्भय = निडर।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि पृथ्वी ने तुम्हें जो विभिन्न उपहार। प्रदान किये हैं उनके प्रति तुम्हें पूर्ण रूप से समर्पित होना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी कहते हैं कि जिन माता-पिता की कमाई खाकर तुम बड़े हुए हो और अनेकानेक शारीरिक कष्टों से तुम्हें उबार कर जिन्होंने निर्भय बनाकर तुम्हें खड़ा कर दिया है। जिनके पैदा किए हुए तथा बुने हुए वस्त्रों से तुम अपना शरीर ढके हुए हो तथा जिनकी कृपा से धूप</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वर्षा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> शीत आदि की मुसीबतों से बचे रहे हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्या उनके प्रति तुम्हारा कोई कर्त्तव्य नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> भाव यह है कि उनके प्रति तुम्हारा पूर्ण समर्पण होना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने मनुष्यों को अपने कर्तव्य के प्रति सचेत करना चाहा है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(6) </span> <span lang="HI"> क्या उनका उपकार-भार तुम पर लवलेश नहीं है।</span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उनके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सतत् ज्वलित दुःख दावानल में जग केदारुण रन में। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> छोड़ उन्हें कायर बनकर तुम भाग बसे निर्जन में।</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> उपकार = कृपा। लवलेश = जरा भी। सतत् = निरन्तर। ज्वलित = जलते हुए। दावानल = जंगल की आग। दारुण = भयंकर। निर्जन = एकान्त।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि उन लोगों को फटकार लगाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जो संसारिक मुसीबतों से घबड़ाकर जंगल में चले जाते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी कहते हैं कि क्या जिन लोगों ने तुम्हें जन्म दिया और पाल-पोस कर बड़ा किया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनके प्रति तुम्हारा कोई कर्त्तव्य नहीं है। निरन्तर जलते हुए दुःख के दावानल में तथा संसार के भयानक रण-क्षेत्र में उन सबको छोड़कर और कायर बनकर तुम निर्जन स्थान में भाग कर बस गए हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्या यह तुम्हें उचित लगता है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> अर्थात् बिल्कुल नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने कृतघ्न लोगों को फटकारा है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></p> <p><span style="color: red;"><b><span style="font-family: Mangal;">(7) </span> <span lang="HI"> यही लोक-कल्याण-कामना यही लोक-सेवा है।</span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> यही अमर करने वाले यश-सुरतरु की मेवा है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"><b> <span lang="HI"> जाओ पुत्र! जगत् में जाओ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> व्यर्थ न समय गँवाओ। </span></b></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सदालोक-कल्याण-निरतहोजीवनसफलबनाओ।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> यश-सुरतरु = शयरूपी कल्प वृक्ष। निरत = लगे रहो।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि मनुष्यों को व्यर्थ में ही समय न गँवाकर लोक कल्याण में लग जाने का उपदेश देता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> श्री त्रिपाठी जी कहते हैं कि लोक कल्याण की भावना से जो व्यक्ति लोक सेवा करता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इससे भी अमर होता है तथा इसी से उसे यशरूपी कल्पतरु से मिलने वाली मेवा प्राप्त होती है। इसलिए हे मानवी पुत्रो! तुम व्यर्थ में अपना समय मत गँवाओं और सदैव लोक कल्याण में रत रहकर अपने जीवन को सफल बनाओ।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने मनुष्यों को लोक कल्याणकारी कार्यों में लगे रहने का महत्व बताया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(8) </span> <span lang="HI"> जनता के विश्वास कर्म मन ध्यान श्रवण भाषण में।</span></span></b></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> वास करो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आदर्श बनो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विजयी हो जीवन-रण में। </span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> अति अशांत दुखपूर्ण विश्रृंखल क्रान्ति उपासक जग में। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> रखना अपनी आत्म शक्ति पर दृढ़निश्चय प्रति पग में।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> वास करो = निवास करो। जीवन-रण = जीवन रूपी रण में। विशृंखल = बिखरे हुए।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि का संदेश है कि अपने कर्मों</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मन में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ध्यान में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> श्रवण में और भाषण में सदैव ऐसी बातें रखना जिससे तुम। जनता के हृदय में वास कर सको</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनके आदर्श बन सको। इस प्रकार के क्रिया-कलाप करते हुए तुम जीवन रूपी रण में सदैव विजयी होगे। आज संसार का वातावरण अति अशान्त</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुःखपूर्ण बिखरा हुआ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्रान्ति की उपासना करने वाला बना हुआ है। इन परिस्थितियों में भी तुम अपनी आत्म शक्ति पर प्रत्येक पग में दृढ़ निश्चय रखना अर्थात् कभी विचलित मत। हो जाना।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने जनता के कल्याण में रत रहने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> रूपक एवं अनुप्रास की छटा।</span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(9) </span> <span lang="HI"> जग की विषम आँधियों के झोंके सम्मुख हो सहना।</span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> स्थिर उद्देश्य-समान और विश्वास सदृश दृढ़ रहना। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जाग्रत नित रहना उदारता-तुल्य असीम हृदय में। </span></span></p> <p> <b><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अन्धकार में शान्त</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चन्द्रसा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ध्रुव-सा निश्चय भय में।</span></span></b></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> विषय आँधियों = विपरीत परिस्थितियों। </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> सम्मुख = सामने से। जाग्रत = जागना। तुल्य = समान। असीम = सीमा रहित।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि उपदेश देता है कि चाहे संसार में कैसी भी विषम परिस्थितियाँ क्यों न आ जाएँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुम ध्रुव तारे के समान डटे रहना।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी कहते हैं कि संसार में आने वाली विषम परिस्थितियों के झोंकों से तुम विचलित मत होना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपितु उनका डटकर सामना करना। समान उद्देश्य में स्थिर तथा विश्वास के समान दृढ़ बने रहना। उदारता करते समय नित्य जागते रहना और अपने असीम हृदय में यह गुण धरते रहना। अन्धकार अर्थात् निराशा के समय चन्द्रमा के समान शान्त रहना और भय तथा विपत्ति में ध्रुव के समान निश्चल (अडिग) बने रहना।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने किसी भी स्थिति में विचलित न होने। का सन्देश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> उपमा और अनुप्रास की छटा।</span></p> <p><b><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(10) </span> <span lang="HI"> जगन्नियंता की इच्छा से यह संसार बना है।</span></span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उसकी ही क्रीड़ा का रूपक यह समस्त रचना है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> है यह कर्म-भूमि जीवों की यहाँ कर्मच्युत होना। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> धोखे में पड़ना अलभ्य अवसर से है कर धोना॥</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पैदा कर जिस देश जाति ने तुमको पाला पोसा। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> किए हुए वह निजहित का तुमसे बड़ा भरोसा।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उससे होना उऋण प्रथम है सत्कर्त्तव्य तुम्हारा। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> फिर दे सकते हो वसुधा को शेष स्वजीवन सारा॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> जगन्नियंता = ईश्वर। कर्मच्युत = काम से भागना। अलभ्य = जो सरलता से प्राप्त न हो सके। उऋण = ऋण मुक्त।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">जीवन सन्देश</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता श्री रामनरेश त्रिपाठी हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने सन्देश दिया है कि जिस देश जाति ने तुमको पैदा कर तुम्हारा भरण-पोषण किया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसके प्रति नि:स्वार्थ भाव से सेवा करके तुम उऋण हो सकते हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर त्रिपाठी जी कहते हैं कि परम सत्ता की इच्छा से ही इस संसार का निर्माण हुआ है तथा उसकी ही क्रीड़ा का रूपक यह संसार है। यह देश जीवों की कर्मभूमि है अतः यहाँ कभी भी कर्म से पीछे मत हटना। यदि किसी धोखे में पड़कर तुमने कर्त्तव्य को त्याग दिया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो तुम्हारे हाथ से अलभ्य (अनमोल) अवसर निकल जायेगा। जिस देश और जाति ने तुम्हें पैदा कर तुम्हें पाला-पोसा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह अपने हित का तुम परं बहुत बड़ा भरोसा किए हुए है। तुम्हारा यह सत्कर्म तथा प्रथम कर्त्तव्य है कि तुम देश और जाति के ऋण से ऋण-मुक्त हो जाओ। इस प्रकार तुम अपना शेष (बचा हुआ) जीवन अपनी पृथ्वी को दे सकते हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने कर्म क्षेत्र से भागने वालों की निन्दा सकते हो। की है।</span></li><li><span lang="HI"> कवि का उपदेश है कि जिस देश और जाति में तुमने जन्म पाया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनके प्रति भी तुम्हारे कुछ कर्त्तव्य हैं।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ol> <p></p> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-43744746957982504232021-11-02T19:00:00.002-07:002021-11-13T03:07:49.791-08:00MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 6 शौर्य और देश प्रेम<p><span style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने </span><span style="font-size: medium;"><b style="color: navy; font-family: "Times New Roman";">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b>पद्य खंड <span style="color: navy; font-family: Mangal;"><b>Chapter 6 शौर्य और देश प्रेम</b></span> </span><span style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></p><h2 style="text-align: left;"><b><span style="color: navy; font-family: Mangal;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></b><b style="color: navy;"><span lang="HI">पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 6</span><span lang="HI"> शौर्य और देश प्रेम</span></b></h2> <p><span style="color: navy;">बोध प्रश्न</span></p> <p> <b><span lang="HI"> अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></b></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> सभी दिशाएँ क्या पूछ रही हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> सभी दिशाएँ यह पूछ रही हैं कि वीरों का वसन्त कैसा हो।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> किसके अंग-अंग पुलकित हो रहे है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> पृथ्वी रूपी वधू के अंग-अंग पुलकित हो रहे हैं।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> वसन्त के आने पर कौन तान भरने लगता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> वसन्त के आने पर कोयल अपनी तान भरने लगती हैं।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> कवि चट्टानों की छाती से क्या निकालने के लिए कह रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि चट्टानों की छाती से दूध निकालने के लिए कह रहा है।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5.</span><span lang="HI"> कवि के अनुसार मनुष्य का भीतरी गुण क्या</span> <span lang="HI"> है</span>?</span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:कवि के अनुसार मनुष्य का भीतरी गुण स्वातन्त्र्य जाति की लगन है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span> <span lang="HI"> भ्रामरी किसका अभिनन्दन करती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> जो व्यक्ति युद्ध क्षेत्र में जाकर तलवार की चोट खाकर माथे पर रक्त का चन्दन लगाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भ्रामरी उसी का अभिनन्दन करती है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> शौर्य और देश प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1.</span><span lang="HI"> ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग-जाग</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का क्या आशय है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग-जाग</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से कवि का आशय यह है कि जिस प्रकार द्वापर में कुरुक्षेत्र में अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया गया था</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आज पुनः उसी की आवश्यकता है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> सिंहगढ़ का दुर्ग एवं हल्दी घाटी में किसकी याद छिपी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> सिंहगढ़ के दुर्ग में अद्वितीय वीर शिवाजी की तथा हल्दी घाटी में राणा प्रताप की याद छिपी है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> विजयी के सदृश बनने के लिए कवि क्या-क्या करने को कह रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> विजयी के सदृश बनने के लिए कवि मनुष्यों से वैराग्य छोड़ने</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> युद्ध में लड़ने</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चट्टानों की छाती से दूध निकालने</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चन्द्रमा को निचोड़ कर अमृत निकालने और ऊँची चट्टटानों पर सोमरस पीने के लिए कहता है।</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> <br /></span></span></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> स्वाधीन जगत में कौन जीवित रह सकता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> जो व्यक्ति अपनी आन-बान पर डटा रहता है तथा जो किसी के सामने झुकता नहीं है साथ ही जो अपने शरीर पर वज्रों का आघात सहता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वही जाति स्वाधीन जगत में जीवित रह सकता है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> जीवन की परिभाषा क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> कवि के विचारों को लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि के शब्दों में जीवन गति है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जो विघ्न-बाधाओं को पार करता हुआ निरन्तर चलता रहता है। जीवन एक तरंग है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> एक गर्जन है और एक चंचलता है।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span> <span lang="HI"> कवि ने वीरता के कौन से दो लक्षण बताये हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि ने वीरता के दो लक्षण इस प्रकार बताये हैं-स्वर में पावक जैसी उष्णता या तीव्रता होनी चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दूसरे वीर के सिर पर तलवार की चोट का चन्दन लगा होना चाहिए।</span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> <br /> दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> कवयित्री वीरों के लिए किस तरह वसन्त का का आयोजन करना चाहती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवयित्री वीरों के लिए इस तरह के वसन्त का आयोजन करना चाहती हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिसमें इधर तो कोयल अपनी तान सुना रही हो और उधर मारू बाजा बज रहा हो। इस प्रकार रंग (आनन्द) और रण (युद्ध) का वातावरण बन रहा हो।</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> वसन्त उत्सव के लिए प्रेरक पंक्तियों का उल्लेख कीजिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> वसन्त उत्सव के लिए प्रेरक पंक्तियाँ निम्नलिखित हैं-</span></p> <p> <span lang="HI"> फूली सरसों ने दिया रंग</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> मधु लेकर आ पहुँचा अनंग</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></p> <p> <span lang="HI"> वधू-वसुधा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पुलकितअंग-अंग</span></p> <p> <span lang="HI"> हैं वीर-देश में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किन्तु कंत।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार जब अहं पर चोट पड़ती है तब उसकी प्रतिक्रिया क्या होती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार जब अहं पर चोट पड़ती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तब उसकी प्रतिक्रियास्वरूप अहं से बड़ी कोई चीज जन्म ले लेती है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> स्वतन्त्रता प्रेमी जाति के गुणों का वर्णन कीजिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> स्वतन्त्रता प्रेमी जाति में लगन होती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह जाति धुन की पक्की होती है। चाहे कितनी भी विपत्तियाँ क्यों न आ जायें वे उनसे हार नहीं मानती है।<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> निम्नलिखित पद्यांशों की व्याख्या कीजिए-</span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">अ) गलबाहें हो या हो कृपाण </span><span style="font-family: Mangal;">……………. </span> <span lang="HI"> कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवयित्री कहती हैं कि चाहे तो प्रेमालाप के समय कोई परस्पर गले में बाँहें डाले हो अथवा रणक्षेत्र आने पर हाथ में कृपाण (तलवार) उठी हो। चाहे आनन्द का रस विलास। हो अथवा दलित नागरिकों की रक्षा की बात हो। आज मेरे सामने यही सबसे बड़ी समस्या है कि वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ब) स्वर में पावक </span><span style="font-family: Mangal;">…………… </span> <span lang="HI"> मनुष्यता के पथ भी खुलते हैं।</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि कहता है कि यदि तुम्हारी वाणी में आग जैसी गर्मी नहीं है तो फिर तुम्हारा क्रन्दन करना वृथा है। यदि तुममें वीरता नहीं है तो फिर सभी प्रकार की विनम्रता केवल रोना है। जिस व्यक्ति के सिर पर तलवार की चोट से रक्त और चन्दन लगा होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुर्गा या काली माँ उसी व्यक्ति का अभिनन्दन किया करती हैं। </span> <span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> कवि कहता है कि राक्षसी रक्त से सभी पाप धुल जाया करते हैं। साथ ही ऐसी वीरता से ऊँची मनुष्यता का मार्ग खुल जाया करता है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> शौर्य और देश प्रेम काव्य सौन्दर्य</span></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> संकलित कविता में से </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वीर रस</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> की कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए वीर रस को परिभाषित कीजिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> वीर रस-जहाँ उत्साह नामक स्थायी भाव जाग्रत होकर विभाग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुभाव एवं संचारी के संयोग से पुष्ट होकर रस दशा में पहुँचता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वहाँ वीर रस होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> उदाहरण :</span></p> <p> <span lang="HI"> वैराग्य छोड़कर बाँहों की विभा सँभालो।</span></p> <p> <span lang="HI"> चट्टानों की छाती से दूध निकालो।</span></p> <p> <span lang="HI"> है रुकी जहाँ भी धार शिलाएँ तोड़ो।</span></p> <p> <span lang="HI"> पीयूष चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो॥</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> <br /></span></span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> रौद्र रस को समझाते हुए वीर एवं रौद्र रस में अन्तर स्पष्ट कीजिए।</span></span></h2><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> शत्रु या दुष्ट जन द्वारा किए गए अत्याचारों या गुरुजन की निन्दा आदि से उत्पन्न क्रोध स्थायी भाव</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विभाव</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुभाव तथा संचारी के संयोग से पुष्ट होकर रौद्र रस के रूप में परिणत होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर एवं रौद्र रस में अन्तर :</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर एवं रौद्र दो भिन्न-भिन्न रूप हैं। वीर रस का स्थायी भाव उत्साह होता है जबकि रौद्र रस का स्थायी भाव क्रोध है। दोनों के आलम्बन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुभाव</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> संचारी आदि में अन्तर होता है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> अन्योक्ति अलंकार की उदाहरण सहित परिभाषा कीजिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> प्रस्तुत कथन के द्वारा अप्रस्तुत का बोध हो वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> उदाहरण :</span></p> <p> <span lang="HI"> नहिं पराग नहिं मधुर मधु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नहिं विकास एहि काल।</span></p> <p> <span lang="HI"> अली कली ही सौ बिंध्यौ</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> आगे कौन हवाल॥</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: navy;"> MCQ</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> हिमालय से क्या आ रही है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) पुकार</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) हुंकार</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) दुत्कार</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) चीत्कार।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) पुकार</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> वसन्त के आने पर कौन तान भरने लगता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) कौआ</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) मोर</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) कोयल</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) मेंढक</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) कोयल</span></p> <p> <span lang="HI"> <br /> <span style="color: red;">प्रश्न </span> </span><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">3. “</span><span lang="HI">जीवन गति है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह नित अरुद्ध चलता है</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> पंक्ति पाठ्य-पुस्तक की किस कविता से ली</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) सोये हुए बच्चे से</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ख) श्रद्धा से</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) उद्बोधन से</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) शौर्य और देश-प्रेम से।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) उद्बोधन से<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> रामधारी सिंह </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">दिनकर</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> ने जीवन की गति को कैसा बतलाया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) रुक-रुक कर चलने वाला</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) निर्मल</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) नित अरुद्ध</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) चंचल।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) नित अरुद्ध</span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> रिक्त स्थानों की पर्ति</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता की रचयिता </span><span style="font-family: Mangal;">………….. </span> <span lang="HI"> चौहान हैं।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> रामधारी सिंह </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">दिनकर</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> की कविता में </span><span style="font-family: Mangal;">………….. </span> <span lang="HI"> है। </span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> महाराणा प्रताप ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए </span> <span style="font-family: Mangal;">……………. </span> <span lang="HI"> की अधीनता स्वीकार नहीं की।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कवि के अनुसार चलते रहने का नाम </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> है।</span></span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सुभद्राकुमारी</span></li><li><span lang="HI"> ओज गुण</span></li><li><span lang="HI"> मुगलों</span></li><li><span lang="HI"> जीवन</span></li></ol> <p></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> सत्य/असत्य</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में केवल वसन्त की प्राकृतिक शोभा का वर्णन है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में कवि ने सिंहगढ़ का किला</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">राणा प्रताप के शौर्य एवं वीरता की याद दिलवाई है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> वसन्त ऋतु में कोयल का मधुर स्वर सुनायी पड़ता है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है ।</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> पंक्ति </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वीरों का कैसा हो</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> वसन्त कविता की है।</span></span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य।</span></li></ol> <p></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> सही जोड़ी मिलाइए</span></span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)</span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">1.</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">वीरों का कैसा हो वसन्त </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">भर रही कोकिला इधर तान </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">भूषण अथवा कवि चन्द नहीं</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">, </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">बिजली भर दे</span></span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">उद्बोधन</span></span></span></p> </td> <td> <p><span style="color: red;"><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(क) रामधारी सिंह </span> </span> <span style="font-family: Mangal; font-size: small;">'</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">दिनकर </span> </span></span></p> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(ख) वह छन्द नहीं </span> </span></p> <p><span style="color: red;"><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(ग) आ रही हिमालय से पुकार</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><span lang="HI"> </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">घ) सुभद्राकुमारी चौहान</span></span></span></p> </td> </tr> </tbody></table> <p><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में कवयित्री ने किस पर्व का आयोजन किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> वीरों की पुकार किस स्थान से आ रही है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> वसन्त ऋतु में सरसों में किसके द्वारा पीलिमा छा जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> नर पर जब विपत्ति आती है तब वह विपत्ति मानव को किस प्रकार की शक्ति देती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> वीरों के वसन्त का</span></li><li><span lang="HI"> हिमालय पर्वत से</span></li><li><span lang="HI"> फूलों द्वारा</span></li><li><span lang="HI"> संघर्षों से जूझने की।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> भाव सारांश</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने राष्ट्र को परतन्त्रता से मुक्ति की अपेक्षा राग-रंग को श्रेष्ठ ठहराया है। जैसे प्रकृति अपने फूलों के माध्यम से केसरिया वस्त्र पहनती है</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">उसी भाँति वीरों को भी वसंत का आह्वान करना चाहिए। संपूर्ण दिशाएँ भी यह पूछ रही हैं कि वीरों का वसंत कैसा होना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> हिमालय की पुकार में भी यही स्वर गुंजायमान है। वीरों को कोकिला की तान सुनने के साथ ही रणभूमि में जाने के लिए उद्यत रहना चाहिए। कवयित्री पुनः जागृति का सन्देश देते हुए कहती है कि हे वीरो! तुम्हें भली प्रकार विदित है कि लंका में क्यों आग लगायी गयी थी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कुरुक्षेत्र में महासंग्राम क्यों हुआ था। अन्त में कवयित्री का कथन है कि मेरी कविता भूषण अथवा कवि चन्दवरदायी की कविता के समान क्रान्ति की ज्वाला धधकाने में सक्षम नहीं है क्योंकि परतन्त्रता के वातावरण में कलम पर भी बन्धन है। वह अपनी भावनाओं को ब्रिटिश शासन के उत्पीड़न के फलस्वरूप व्यक्त करने में प्तक्षम नहीं है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या</span></h2> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> आ रही हिमालय से पुकार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> है उदधि गरजतां बार-बार </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्राची</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">पश्चिम</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">भू</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">नभ</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">अपार</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सम पूछ रहे हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दिग् दिगन्त </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> उदधि = समुद्र। प्राची = पूर्व दिशा। दिग = दिशाएँ।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से लिया गया है। इसकी रचयिता सुश्री सुभद्रा कुमारी चौहान हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवयित्री ने वीरों का वसन्त कैसा होना चाहिए के बारे में बतलाया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री जी कहती हैं कि वीरों का वसन्त कैसा हो</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> आज हिमालय की चोटियों से यही पुकार आ रही है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> समुद्र बार-बार गर्जन कर पूछ रहा है। पूर्व दिशा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पश्चिम दिशा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पृथ्वी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आकाश एवं दिग-दिगन्त सभी पूछ रहे हैं कि वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> वीरों का सम्मान हिमालय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> समुद्र एवं दिशाएँ सभी करते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास अलंकार।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> फूली सरसों ने दिया रंग</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मधु लेकर आ पहुँचा अनंग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वधू-वसुधा पुलकित अंग-अंग </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> हैं वीर देश में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> किन्तु कंत </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> अनंग = कामदेव। वधू-वसुधा = पृथ्वी रूपी दुल्हन। कंत = पति।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री जी कहती हैं कि वसन्त ऋतु में सरसों ने फूलकर अपना वसन्ती रंग सम्पूर्ण पृथ्वी पर बिखेर दिया है। कामदेव मधु लेकर स्वयं उपस्थित हो गया है। इस ऋतु में पृथ्वी रूपी वधू का अंग प्रत्यंग खुशी से पुलकित हो रहा है। आज हमारे देश में वीर तो हैं परन्तु हमारा वसन्त (पति) हमारे पास नहीं है। वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> बसन्त ऋतु की मादकता प्रकृति में छा गई है।</span></p> <p> <span lang="HI"> वधू वसुधा में रूपक</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अंग-अंग में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> भर रही कोकिला इधर तान</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मारू बाजे पर उधर गान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> है रंग और रण का विधान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मिलने आए हैं आदि-अंत </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसंत</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> कोकिला = कोयल। मारू = युद्ध का बाजा। रण = युद्ध।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री कहती हैं कि एक ओर तो कोयल अपनी मीठी धुन गा-गाकर सुना रही है और दूसरी ओर युद्ध का बाजा मारू बज रहा है। ऐसा लग रहा है कि आज आनन्द और युद्ध दोनों का विधान है। ऐसा लग रहा है कि आज</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> आदि और अन्त दोनों मिलने के लिए आये हों। वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> चाहे वसन्त की मादकता हो या फिर कोई दूसरा आकर्षण</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वीरों को अपने रण क्षेत्र से हटा नहीं सकता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास अलंकार।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> गलबाँहे हों या कृपाण</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> चल चितवन हो या धनुष बाण</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> हो रस-विलास</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> या दलित त्राण</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> अब यही समस्या है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुरन्त</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> गलबाँहें = प्रेम में प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे के गले में अपनी बाँहे डाल देते हैं। कृपाण = तलवार। चल-चितवन = प्रेम में चंचल दृष्टि। रस-विलास = आनन्द का वातावरण। दलित = दबे हुए। त्राण = रक्षा। दुरन्त = मुश्किल से नष्ट होने वाली।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> जब समाज में एक ओर बलिदान की बात हो तो प्रेम की बात अच्छी नहीं लगती।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री कहती हैं कि चाहे तो प्रेमालाप के समय कोई परस्पर गले में बाँहें डाले हो अथवा रणक्षेत्र आने पर हाथ में कृपाण (तलवार) उठी हो। चाहे आनन्द का रस विलास। हो अथवा दलित नागरिकों की रक्षा की बात हो। आज मेरे सामने यही सबसे बड़ी समस्या है कि वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> कह दे अतीत! अब मौन त्याग</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> लंके! तुझमें क्यों लगी आग</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जाग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बतला अपने अनुभव अनंत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसंत</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> लंके = रावण की लंका। मौन = खामोशी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चुप्पी।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> इसमें कवयित्री अतीत की वीर गाथाओं का सन्दर्भ लेते हुए कह रही हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री कहती है कि हे अतीत! तुम अब अपना मौन त्याग दो और विगंत की घटनाओं को बतला दो। हे लंके! तू बता तुझमें क्यों आग लगी</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> हे कुरुक्षेत्र! तुम अब जाग जाओ और अपने अनन्त अनुभवों को हमें बता दो। वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री ने लंका और कुरुक्षेत्र का मानवीकरण किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अतीत काल की वीर गाथाओं का स्मरण किया है।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(6) </span> <span lang="HI"> हल्दी घाटी के शिला खण्ड</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऐ दुर्ग! सिंहगढ़ के प्रचंड</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> राणा-ताना का कर घमण्ड</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दो जगा आज स्मृतियों ज्वलन्त</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> शिला खण्ड = चट्टानें। ज्वलन्त = प्रखर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तेज। सन्दर्भ एवं प्रसंग-पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री कहती हैं कि हे हल्दी घाटी के शिलाखण्डों तथा हे सिंहगढ़ के दुर्ग! तुम राणा प्रताप तथा शिवाजी की वीरता का बखान करके आज तेजी के साथ उन अतीत की स्मृतियों को जगा दो। वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> हल्दी घाटी में राणा प्रताप के शौर्य की गाथा की ओर कवयित्री ने संकेत किया है तो सिंहगढ़ के दुर्ग के माध्यम से वीर शिवाजी की वीरता का बखान किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> मानवीकरण अलंकार।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(7) </span> <span lang="HI"> भूषण अथवा कवि चन्द नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बिजली भर दे वह छन्द नहीं </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> है कलम बँधी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्वच्छन्द नहीं </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> फिर हमें बतावै कौन</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> हंत! </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरों का कैसा हो वसन्त</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> बिजली भर दे = वीरता का संचार कर दे। हंत = दुर्भाग्य है।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री अतीत का स्मरण करती हुई कहती है कि अतीत काल में हमारे देश में भूषण और चन्दवरदाई जैसे वीर रस का संचार करने वाले दो महाकवि थे। भूषण ने शिवाजी के शौर्य का वर्णन कर उस समय समाज में वीरता का संचार किया था और उससे पूर्व चन्दवरदाई ने पृथ्वीराज के शौर्य का वर्णन कर तत्कालीन समाज में वीरता का संचार किया लेकिन देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे महान कवि आज नहीं हैं। इतना ही नहीं वर्तमान शासकों ने इस प्रकार के कवियों की रचना धर्मता को कैद कर लिया है उनको बोलने की आज्ञा नहीं दी है। फिर। हमें कौन मार्गदर्शन देगा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यह हमारा दुर्भाग्य है। वीरों का वसन्त कैसा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवयित्री अंग्रेजी शासन के उन आदेशों की ओर संकेत कर रही हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जब अंग्रेज शासकों ने यहाँ के कवियों द्वारा वीरता के गान पर पाबन्दी लगा दी थी।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> उद्बोधन भाव सारांश</b></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता में कवि ने मनुष्य का उद्बोधन करते हुए उसे मृत्यु से भयभीत न होने का संदेश दिया है। कवि का आग्रह है कि विषम परिस्थितियों में भी व्यक्ति को स्वाभिमान नहीं छोड़ना चाहिए। इसके लिए चाहे उसे अपना सिर कटाकर भले ही मूल्य चुकाना पड़े। व्यक्ति को अन्याय का डटकर सामना करना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> विपत्ति के भयानक बादल छा जाने पर मानव के हृदय में संघर्ष करने की भावना जाग्रत होती है। आघात सहने के साथ ही एक छोटी सी चिंगारी अंगारे का रूप धारण कर लेती है। यदि वाणी में ज्वाला के सदृश तेज नहीं तो वह वन्दना निरर्थक है।</span></p> <p> <span lang="HI"> जीवन का नाम ही गति है। पावक के सदृश जलना ही जीवन गति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। धरती पर आगे बढ़ने में राह में अनेक बाधायें आती हैं तब भी निरन्तर गतिमान रहना चाहिए।</span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> <br /> उद्बोधन संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> वैराग्य छोड़कर बाँहों की विभा सँभालो</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> चट्टानों की छाती से दूध निकालो। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> है रुकी जहाँ भी धार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> शिलाएँ तोड़ो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पीयूष चन्द्रमाओं को पकड़ निचोड़ो। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> चढ़ तुंग शैल-शिखरों पर सोम पियो रे! </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> योगियों नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विजयी की सदृश जियो रे!</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> बाँहों की विभा सँभालो = अपने पौरुष। (शक्ति) पर विश्वास करो। पीयूष = अमृत। तुंग = ऊँचे। शैल = चट्टान। सदश = समान।।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">उद्बोधन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचनाकार श्री रामधारी सिंह </span> <span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">दिनकर</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने मनुष्यों को वैराग्य छोड़ने और शूरता का पथ अपनाने का सन्देश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर दिनकर जी कहते हैं कि हे भारतवासियो! तुम वैराग्य की बातों को त्याग दो और अपनी भुजाओं के बल। पर विश्वास करो। तुम ऐसी चेष्टा करो कि आवश्यकता पड़ने पर चट्टानों की छाती से दूध निकाल लो। यदि तुम्हारे मार्ग में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लक्ष्य प्राप्त करने में कोई बाधाएँ आती हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुम्हारी गति की धार को यदि बीच में शिलाएँ रोक देती हैं तो तुम अपने बल पर उन शिलाओं को तोड़कर अपना मार्ग स्वयं बना डालो। अमृतधारी चन्द्रमाओं को पकड़कर उन्हें निचोड़ डालो। हे वीर! तुम ऊँचे पर्वत शिखरों पर चढ़कर सोम का पान करो। अतः योगियों जैसा नहीं अपितु वीर विजेता के समान जीवन जीओ।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> समय के अनुरूप कवि ने भारतीयों को शक्ति संचित करने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि वैरागियों से घृणा करता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> लाक्षणिक शैली।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> छोड़ो मत अपनी आन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सीस कट जाए</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मत झुको अनय पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भले व्योम फट जाए। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मरता है जो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> एक ही बार मरता है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे! </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे!</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> आन = मान-मर्यादा। अनय = अनीति। व्योम = आकाश। यमराज = मृत्यु का देवता। कंठ धरता है = मनुष्य को मृत्यु देता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने हर स्थिति में अन्याय का विरोध करने और अपनी आन-बान-शान की रक्षा का सन्देश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि अपनी आन (मान-मर्यादा) को मत छोड़ो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चाहे इसकी रक्षा के लिए तुम्हें अपना सिर भी क्यों ने कटाना पड़े। कभी भी अनीति के सामने झुको मत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चाहे फिर आकाश ही क्यों न फट जाए। कवि मनुष्यों को सचेत करते हुए कहता है कि मृत्यु का देवता यमराज किसी भी व्यक्ति के प्राणों को दो बार नहीं लेता है। जिसे भी मरना होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह एक ही बार मरता है। अतः भय छोड़कर अनीति का डटकर विरोध करो। कवि कहता है कि तुममें इतना साहस होना चाहिए कि तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चढ़ बैठो। यदि तुममें जीने की इच्छा है तो फिर मौत से भी डरो मत।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> आन-बान-शान की रक्षा का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> भाषा लाक्षणिक है।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> स्वातन्त्र्य जाति की लगन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> व्यक्ति की धुन है</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बाहरी वस्तु यह नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भीतरी गुण है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> नत हुए बिना जो अशनि-घात सहती है</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> स्वाधीन जगत् में वही जाति रहती है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरत्व छोड़</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर-का मत चरण गहो रे! </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जो पड़े आन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> खुद ही सब आग सहो रे!</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> स्वातन्त्र्य = स्वतन्त्रता की। नत = झुकना। अशनिघात = वज्राघात। वीरत्व = वीरता को।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि स्वाधीन जगत में वही जाति जीवित रहती है जो अपनी रक्षा के लिए कठोर से कठोर एवं भीषण विपत्तियों का मुकाबला करती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहते हैं कि स्वतन्त्रता की लगन व्यक्ति </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> विशेष की धुन हुआ करती है। यह कोई बाहरी वस्तु नहीं अपितु यह तो भीतरी गुण है। बिना झुके हुए जो जाति वज्रों का आघात सहती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वही जाति स्वाधीन संसार में जीवित रह सकती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अतः हे वीर पुरुषो! वीरता का बाना छोड़कर अन्य किसी का चरण मत पकड़ो। जो कोई भी परिस्थिति आ जाये</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसका सामना बिना संकोच के तुम्हें स्वयं करना होगा।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> अपनी जाति एवं आन की रक्षा के लिए हमें बड़ी से बड़ी विपत्ति को सहन करना होगा।</span></p> <p> <span lang="HI"> लाक्षणिक शैली।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> जब कभी अहं पर नियति चोट देती है.</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कुछ चीज अहं से बड़ी जन्म लेती है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> नर पर जब भी भीषण विपत्ति आती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वह उसे और दुर्घर्ष बना जाती है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> चोटें खाकर विफरो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कुछ अधिक तनो रे! </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> धधको स्फुलिंग में बढ़ अंगार बनो रे!</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> नियति = भाग्य</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ईश्वरीय सत्ता। भीषण = भयानक। दुर्घर्ष = कठिन। स्फुलिंग = ज्योति-कण।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि का कथन है कि विपत्तियों से मानव और अधिक ताकतवर बन जाता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहते हैं कि जब कभी भी अहं (आत्म सम्मान) पर भाग्य चोट देता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तब अहं से बड़ी वस्तु का जन्म </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> हुआ करता है। मनुष्य पर जब भी भीषण विपत्ति आती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो वह उसे और कठोर बना देती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> अतः हे वीर पुरुषो! चोटें खाकर बिफर पड़ो तथा कुछ। अधिक तन जाओ। तुम अपनी वीरता के क्रोध से धधक पड़ो और ज्योति-कण से बढ़कर अंगार बन जाओ।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने मनुष्यों को विपत्ति में न घबड़ाने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> लाक्षणिक शैली।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> स्वर में पावक नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> वृथा वन्दन है।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वीरता नहीं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो सभी विनय क्रन्दन है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सिर जिसके असिंघात रक्त चन्दन है।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> भ्रामरी उसी का करती अभिनन्दन है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दानवी रक्त से सभी पाप धुलते हैं। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऊँची मनुष्यता के पथ भी खुलते हैं।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पावक = अग्नि। वृथा = बेकार का। क्रन्दन = रोना। असिंघात = तलवार की चोट। भ्रामरी =दुर्गा। दानवी = राक्षसी। पथ = रास्ते।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि मनुष्यों में वीरता का संचार करने का उपदेश देता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि यदि तुम्हारी वाणी में आग जैसी गर्मी नहीं है तो फिर तुम्हारा क्रन्दन करना वृथा है। यदि तुममें वीरता नहीं है तो फिर सभी प्रकार की विनम्रता केवल रोना है। जिस व्यक्ति के सिर पर तलवार की चोट से रक्त और चन्दन लगा होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुर्गा या काली माँ उसी व्यक्ति का अभिनन्दन किया करती हैं। </span> <span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> कवि कहता है कि राक्षसी रक्त से सभी पाप धुल जाया करते हैं। साथ ही ऐसी वीरता से ऊँची मनुष्यता का मार्ग खुल जाया करता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि मनुष्यों में वीरता के संचार का उपदेश देता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> लाक्षणिक शैली।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(6) </span> <span lang="HI"> जीवन गति है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह नित अरुद्ध चलता है</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पहला प्रमाण पावक का</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह जलता है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सिखला निरोध-निज्वलन धर्म छलता है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जीवन तरंग गर्जन है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चंचलता है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> धधको अभंग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पाल-पिवल अरुण जलो रे! </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> धरा रोके यदि राह</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विरुद्ध चलो रे!</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> अरुद्ध = बिना रुके। पावक = अग्नि। निरोध = रुकना। निर्व्वलन = जिसमें जलने की क्षमता न हो। अभंग = बिना रुकावट के। अरुण = सूर्य। धरा = पृथ्वी।</span></p> <p> <span lang="HI"> सन्दर्भ :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रसंग :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि जीवन की सार्थकता निरन्तर चलते रहने में है। यदि हमारे सत्कार्य में कोई भी बाधा डाले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो हमें उसका विरोध करना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि जीवन उसे ही कहते हैं जिसमें गति होती है और वह जीवन बिना किसी के रोके निरन्तर चलता रहता है। अग्नि का पहला प्रमाण ही उसमें जलने का गुण होता है। जो धर्म हमें रुकने तथा न जलने का उपदेश देता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह वास्तव में धर्म न होकर छलावा है। जीवन तो चंचलता एवं गर्जन में ही निवास करता है।</span></p> <p> <span lang="HI"> हे वीरो! बिना किसी रुकावट के तुम सूर्य के समान निरन्तर धधकते रहो। यदि पृथ्वी भी तुम्हारी राह रोकती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो तुम उसके विरुद्ध भी चल पड़ो।</span></p> <p> <span lang="HI"> विशेष :</span></p> <p> <span lang="HI"> जीवन की सार्थकता चलते रहने में है।</span></p> <p> <span lang="HI"> लाक्षणिक शैली।</span></p> <p> <span lang="HI"> वीर रस।</span></p> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-73789065598480882692021-11-02T18:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:49.907-08:00MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions पद्य खंड Chapter 5 प्रकृति चित्रण<p><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;"><span style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने </span><span style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;"><b style="color: navy;">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b>पद्य खंड <b style="font-size: medium;"><span style="color: navy;"><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">Chapter </span><span lang="HI"><span style="font-size: medium;">5 </span></span></span></b>प्रकृति चित्रण </span><span style="font-family: "Times New Roman"; font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="font-size: medium;"><span style="font-size: medium;">MP Board Class 10th Hindi Navneet पद्य Chapter 5 प्रकृति चित्रण</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> <span style="font-size: medium;"><b>प्रकृति चित्रण अति लघु उत्तरीय प्रश्न</b><br /> </span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वनों और बागों में किसका विस्तार है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">वनों और बागों</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में बसन्त ऋतु का विस्तार है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2.</span><span lang="HI"> तन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मन और वन में परिवर्तन किसके प्रभाव से दिखाई दे रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> तन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मन और वन में परिवर्तन बसन्त ऋतु के प्रभाव से दिखाई दे रहा है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> कन्हैया के मुकुट की शोभा क्यों बढ़ गई है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> शरद ऋतु की चाँदनी की छवि पाकर कन्हैया के मुकुट की शोभा बढ़ गई है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> कवि ने हिमालय की झीलों में किसको तैरते हुए देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि ने हिमालय की झीलों में कमल नाल को खोजने वाले तैरते हुए हंसों को देखा है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> कवि ने बादलों को कहाँ घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि ने मानसरोवर झील के समीप हिमालय की ऊँची चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. </span> <span lang="HI"> कौन अपनी अलख नाभि से उठने वाले परिमल के पीछे-पीछे दौड़ता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कस्तूरी मृग अपनी अलख नाभि से उठने वाले परिमल के पीछे-पीछे दौड़ता है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">प्रकृति चित्रण लघु उत्तरीय प्रश्न<br /> </span></span></p> <p> </p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> बसन्त ऋतु के आगमन पर प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?<br /> </span></span></h3> <span lang="HI"> <br /> उत्तर:</span> <span lang="HI"> बसन्त ऋतु के आगमन पर कुंजों में भौरे गुंजार करने लगते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उनके झुण्ड के झुण्ड आम के बौरों पर चक्कर लगाने लगते हैं। विहग (पक्षी) समाज में तरह-तरह की आवाजों के द्वारा बसन्त की खुशी का वर्णन होने लगता है। ऋतुराज के आने से प्रकृति में भाँति-भाँति के राग-रंग बिखरने लगते हैं।<br /> </span><p></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2.</span><span lang="HI">यमुना तट पर किसी छटा बिखरी हुई है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> यमुना तट पर अखण्ड रासमण्डल की छटा बिखरी हुई है।</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> <br /></span></span></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">घनेरी घटाएँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> क्या कर रही है।</span></span></h3><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार घनेरी घटाएँ घुमड़-घुमड़ कर गर्जना करने लग जाती हैं और फिर उनकी गर्जना थमने का नाम नहीं लेती।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. ‘</span><span lang="HI">निशाकाल से चिर अभिशापित</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> किसे कहा गया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> निशाकाल से चिर अभिशापित चकवा-चकवी को कहा गया है। कवियों की मान्यता है कि चकवा-चकवी का रात के समय वियोग हो जाता है। यह वियोग उन्हें किसी शाप के द्वारा प्राप्त हुआ है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> कवि ने भीषण जाड़ों में किससे </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">गरज-गरज कर भिड़ते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि ने भीषण जाड़ों में महादेव को झंझावात से गरज-गरज कर भिड़ते देखा है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> <span style="font-size: medium;"><span style="color: navy;">प्रकृति चित्रण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span><br /> </span></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> पद्माकर ने वर्षा ऋतु में प्रकृति का चित्रण किस तरह किया है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> उल्लेख कीजिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> पद्माकर ने वर्षा ऋतु में चारों ओर चमकने वाली बिजली और शीतल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मन्द सुगन्धित वायु के बहने की तथा घनेरी घटाओं के घुमड़-घुमड़ कर गर्जन करने का वर्णन किया है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार बसन्त का प्रभाव कहाँ-कहाँ दिखाई दे रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि के अनुसार बसन्त का प्रभाव कूलों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> केलि में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कछारों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कुंजों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्यारियों में और सुन्दर किलकती हुई कलियों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पत्तों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कोयल में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पलासों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> समस्त द्वीपों में और ब्रज के बाग-बगीचों तथा युवतियों में देखा जा सकता है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span lang="HI"> नागार्जुन ने कवि कल्पित</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> सन्दर्भ किसे माना है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> स्पष्ट कीजिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> नागार्जुन ने कवि कल्पित सन्दर्भ मेघदूत को माना है। अलकापुरी से जब यक्ष को निर्वासित कर दिया गया तो वह अपनी प्रेमिका के वियोग में दुःखी रहने लगा। वर्षा ऋतु के आने पर यक्ष ने बादल को दूत बनाकर अर्थात् मेघदूत के माध्यम से ही अपनी प्रेमिका को प्रेम-सन्देश भेजा है।</span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> नागार्जुन के अनुसार बसन्त ऋतु के उषाकाल का वर्णन कीजिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> नागार्जुन के अनुसार बसन्त ऋतु के उषाकाल का वर्णन इस प्रकार है-</span></p> <p> <span lang="HI"> बसन्त ऋतु का सुप्रभात था</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उस समय मन्द-मन्द गति से हवा चल रही थी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सूर्य की प्रातःकालीन कोमल किरणें पर्वत शिखरों पर स्वर्णिम आभा में गिर रही थीं। रात में चकवा-चकवी का वियोग क्रन्दन सुनाई पड़ता था तथा सरवर के किनारे काई की हरी दरी पर प्रात:काल में उनको प्रणय आलाप करते देखा है।<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> निम्नलिखित काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए</span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">अ) कौन बताए वह छायामय </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> गरज-गरज भिड़ते देखा है।</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कविवर नागार्जुन कहते हैं कि इस कैलाश शिखर पर धनपति कुबेर की अलका नगरी का पुराणों में उल्लेख मिलता है लेकिन आज तो इसका यहाँ कोई नामोनिशान भी नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> न ही हमें कालिदास के आकाश में विचरण करने वाले उस मेघदूत का कहीं पता मिलता है। हमने बहुत प्रयत्न कर लिए पर वह ढूँढने से भी नहीं मिला। ऐसा हो सकता है कि वह छायामय मेघदूत यहीं कहीं जाकर बरस गया होगा। फिर कवि कहता है कि इन बातों को छोड़ो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मेघदूत तो कवि कालिदास की कल्पना थी।</span></p> <p> <span lang="HI"> मैंने तो भयंकर कड़कड़ाते जाड़ों में आकाश को चूमने वाले कैलाश के शिखर पर घनघोर झंझावातों में महादेव जी को उनसे गरज-गरज कर युद्ध करते देखा है। बादल को घिरते देखा है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ब) और भाँति कुंजन </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> और बन गए।</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कविवर पद्माकर कहते हैं कि बसन्त ऋतु में कुंजों में और ही प्रकार की सुन्दरता छा गई है तथा भरों की भीड़ में अनौखी गुंजार सुनाई दे रही है। डालियों</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> झुण्डों तथा आम के बौरों में नयी आभा आ गई है। गलियों में और ही भाँति की शोभा छा गयी है पक्षियों के समाज में भी और ही प्रकार की बोलियाँ सुनाई दे रही हैं। ऐसे श्रेष्ठ ऋतुराज बसन्त के अभी दो दिन भी नहीं चुके हैं फिर भी सर्वत्र और ही प्रकार का रस</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> और ही प्रकार की रीति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> और ही प्रकार के राग तथा और ही प्रकार के रंग सर्वत्र छाये हुए हैं। इस ऋतु में मनुष्यों के शरीर और ही प्रकार के हो गए हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> और ही प्रकार के मन तथा और ही प्रकार के वन और बाग हो गए हैं।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: navy; font-size: medium;"> MCQ</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. ‘</span><span lang="HI">कहाँ गया धनपति कुबेर वह</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> पंक्ति पाठ्य-पुस्तक की किस कविता से ली गयी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) नीति-अष्टक</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) श्रद्धा</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) पथ की पहचान</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बादल को घिरते देखा है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बादल को घिरते देखा है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> कन्हैया के मुकुट की शोभा किसके द्वारा बढ़ गई है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) नगों द्वारा</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) शरद की चाँदनी से</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) तारों की आभा से</span> <span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) सोने का होने के कारण</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) शरद की चाँदनी से</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> कवि ने बादलों को कहाँ घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) नवल धवल गिरि पर</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) तालाबों में</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) चट्टानों में</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बागों में।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) नवल धवल गिरि पर<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> निशाकाल से चिर अभिशापित किसे कहा गया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) मृगों को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) नायक-नायिका को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) चकवा-चकवी को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) भौंरों को।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) चकवा-चकवी को<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> हिमालय की झीलों में कवि नागार्जुन ने तैरते हुए देखा है</span></span></h4> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) मछली को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) मृग को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) हंसों को</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) नारी को।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ग) हंसों को</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy; font-size: medium;"> <span lang="HI"> रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> अमल धवल गिरि के शिखरों पर </span><span style="font-family: Mangal;">……… </span> <span lang="HI"> को घिरते देखा है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> वर्षा ऋतु का वर्णन पद्माकर ने </span><span style="font-family: Mangal;">….. </span> <span lang="HI"> को बढ़ाने वाली ऋतु के रूप में किया है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलनि में बगन में बागन में बगर्यो </span> <span style="font-family: Mangal;">…….. </span> <span lang="HI"> है।</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">……… </span> <span lang="HI"> की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> हिमालय की झीलों में कवि नागार्जुन ने </span><span style="font-family: Mangal;">………. </span> <span lang="HI"> को तैरते देखा है।</span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> बादल</span></li><li><span lang="HI"> विरह</span></li><li><span lang="HI"> बसन्त</span></li><li><span lang="HI"> शैवालों</span></li><li><span lang="HI"> हंसों</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: navy; font-size: medium;"> <span lang="HI"> सत्य/असत्य</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> ताप तीन प्रकार के होते हैं </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> दैहिक</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दैविक और भौतिक।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऋतु वर्णन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता में कविवर पद्माकर ने वर्षा ऋतु का सुन्दर वर्णन किया है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> हिमालय पर बादलों की स्थिति सदैव एक-सी रहती है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बादल को घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता के कवि तुलसीदास हैं। </span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">सही जोड़ी मिलाइए</span></span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)<br /> </span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">1.</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">पद्माकर कवि ने वसन्त</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">,</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">वर्षा और शरद</span></span><span lang="HI"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"> </span> </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">ऋतु का </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">रात्रिकाल से चिर-अभिशापित </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">नागार्जुन</span></span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">बिजली चमक रही है</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">,</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">लौंग की लताएँ </span> </span></span></p></td> <td> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(क) बादल को घिरते देखा है।<br /> </span></span></p> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(ख) प्रभावशाली वर्णन अपने काव्य में किया है </span> </span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">(</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">ग) चकवा-चकवी पक्षी </span> </span></span></p> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(घ) लावण्यमय हो उठी हैं<br /> </span></span></p></td> </tr> </tbody></table> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p><p><br /></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> पद्माकर कवि को किस काल का कवि माना जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऋतु वर्णन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में कवि ने प्रमुख रूप से इन पदों में किस ऋतु का वर्णन किया है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> पद्माकर कवि ने विरह को बढ़ाने वाली ऋतु कौन-सी मानी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> चकवा और चकवी कब बेबस हो जाते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> कवि नागार्जुन ने हिमालय की झीलों में किसको तैरते देखा</span><span style="font-family: Mangal;">? </span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> रीतिकाल</span></li><li><span lang="HI"> शरद ऋतु</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">बसन्तु ऋतु तथा वर्षा ऋतु</span></li><li><span lang="HI"> वर्षा ऋतु</span></li><li><span lang="HI"> रात्रि में</span></li><li><span lang="HI"> हंसों को।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: navy; font-size: medium;"> <span lang="HI"> ऋतु वर्णन पाठ सारांश</span></span></p> <p> <span lang="HI"> ऋतु वर्णन में पद्माकर कवि ने वसन्त ऋतु की महिमा का गुणगान किया है। यमुना के तट पर</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">गोपियों की रासलीला का सुन्दर वर्णन किया है। वसन्त ऋतु में कोयल की कूक का मधुर स्वर गूंजता सुनायी पड़ता है। विभिन्न प्रकार के पुष्प खिले रहते हैं तथा उन पुष्पों की सुगन्ध दूर-दूर तक फैली रहती है। बागों में पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित होकर भौरे गुंजार करते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> आम के वृक्ष मंजरियों से भर गये हैं। प्रकृति के हरा-भरा होने से पक्षी भी मस्त होकर कलरव कर रहे हैं। कवि ने शरद ऋतु की अपूर्व शोभा का सुन्दर</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">वर्णन किया है। शरद ऋतु की चाँदनी चारों ओर व्याप्त है। लताओं पर तथा तमाल के वृक्षों पर चारों ओर शरद ऋतु का सौन्दर्य छाया है। शरद ऋतु में चाँदनी दिग्दिगन्त को अपनी आभा से मंडित कर रही है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"><b> ऋतु वर्णन संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</b></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> कुलन में केलि में कछारन में कंजन में</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> क्यारिन में कलित कलीन किलकत है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कहैं पद्माकर परागन में पौन में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पातन में पिक में पलासन पतंग है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> द्वार में दिसान में दुनी में देस देसन में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> देखौ दीप दीपन में दीपत दिगंत है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलनि में</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बनन में बागन में बगर्यो बसंत है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> कूलन = नदी के किनारों में। कलित = सुन्दर। केलि क्रीड़ा में। कलीन-कलियों में। किलकंत=किलकारी मारता है। पौन = पवन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हवा। पातन = पत्तों। पिक = कोयल। दुनी = दुनिया। दीप = द्वीप। दीपत = दीप्त। दिगंत = दिशाओं में। बीथिन = गलियों में। नवेलिन = नवयुवतियों में। बगर्यो = फैला हुआ है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">प्रकृति चित्रण</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> के अन्तर्गत </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऋतु-वर्णन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b>:</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने बसन्त की चारों ओर फैली हुई मादकता का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर पद्माकर कहते हैं कि नदी के कूलों में क्रीड़ा स्थलों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कछारों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कुंजों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्यारियों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुन्दर कलियों में बसन्त किलकारी मार रहा है। पुष्पों के पराग में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पवन में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पत्तों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कोयल में और पलाशों में बसन्त पगा हुआ है। घर के द्वारों में दिशाओं में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुनिया में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> देशों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> द्वीपों में और दिशाओं में बसन्त दीप्तमान हो रहा है। गलियों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ब्रजमण्डल में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नवयुवतियों में बेलों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वनों में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बागों में चारों ओर बसन्त की बहार छाई हुई है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b>:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने बसन्त की मादक छटा का सम्पूर्ण संसार में प्रसार दिखाया है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास अलंकार की सुन्दर छटा।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-ब्रज।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> और भाँति कुंजन में गुजरत भीरे भौंर</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> और डौर झौरन पैं बोरन के वै गए। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कहै पद्माकर सु और भाँति गलियान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> छलिया छबीले छैल औरे छ्वै छ्वै गए।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> औरे भाँति बिहग समाज में अवाज होति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> और रस औरे रीति और राग औरे रंग</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> औरे तन और मन और बन है गए॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> भीरे = भीड़। बौरन = आम के बौर में। छैल = छवि। छ्दै छ्वै = छा-छा गए। विहग = पक्षी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">प्रकृति चित्रण</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">के अन्तर्गत </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऋतु-वर्णन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b>:</span></p><p><span lang="HI">इस छन्द में कवि ने बसन्त की चारों ओर फैली हुई मादकता का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर पद्माकर कहते हैं कि बसन्त ऋतु में कुंजों में और ही प्रकार की सुन्दरता छा गई है तथा भरों की भीड़ में अनौखी गुंजार सुनाई दे रही है। डालियों</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> झुण्डों तथा आम के बौरों में नयी आभा आ गई है। गलियों में और ही भाँति की शोभा छा गयी है पक्षियों के समाज में भी और ही प्रकार की बोलियाँ सुनाई दे रही हैं। ऐसे श्रेष्ठ ऋतुराज बसन्त के अभी दो दिन भी नहीं चुके हैं फिर भी सर्वत्र और ही प्रकार का रस</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> और ही प्रकार की रीति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> और ही प्रकार के राग तथा और ही प्रकार के रंग सर्वत्र छाये हुए हैं। इस ऋतु में मनुष्यों के शरीर और ही प्रकार के हो गए हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> और ही प्रकार के मन तथा और ही प्रकार के वन और बाग हो गए हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> बसन्त ऋतु को इन्हीं सब विशेषताओं के कारण ऋतुराज की पदवी दी गयी है।</span></li><li><span lang="HI"> बसन्त में प्रकृति तथा पुरुष सभी में एक विचित्र प्रकार की नवीनता आ जाती है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> चंचला चलाकै चहूँ ओरन तें चाह भरी</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> चरजि गई तो फेरि चरजन लागी री। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कहै पद्माकर लवंगन की लोनी लता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> लरजि गई तो फेरि लरजन लागी री। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कैसे धरौं धीर वीर त्रिविधि समीरै तन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तरजि गई तो फेरि तरजन लागी री। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> घुमड़ि-घुमड़ि घटा घन की घनैरों अबै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> गरजिं गई तो फेरि गरजन लागी री॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> चंचला = बिजली। चलाकै = चमककर। त्रिविध समीरें = शीतल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मन्द</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुगन्ध वाली हवा। घनेरी = घनी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">प्रकृति चित्रण</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">के अन्तर्गत </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऋतु-वर्णन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b>:</span></p><p>इस छन्द में कवि ने पावस ऋतु का सुन्दर एवं मनोहारी वर्णन किया है।</p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर पद्माकर कहते हैं कि पावस ऋतु में बिजली चारों ओर बड़ी चाहना से चमक रही है। एक बार वह बिजली आकाश में छा गयी तो सभी को आश्चर्यजनक लगने लगी। कवि पद्माकर कहते हैं कि लौंग (लवंग) की सुन्दर लता इस ऋतु को बहुत ही अच्छी लग रही है। एक बार यदि वह लवंग लता झुक गई तो फिर वह निरन्तर झुकती ही जाती है। वे वीर! तू ही बता ऐसे सुहावने समय में जबकि शीतल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मन्द और सुगन्धित वायु बह रही हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो मैं तेरे बिना कैसे धैर्य धारण करूँ। यह सुगन्धित वायु एक बार यदि तन को सुवासित करने लगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो फिर वह निरन्तर ही सुवासित करती रहेगी। इस ऋतु। में बादलों की घनी घटाएँ घुमड़-घुमड़ कर बार-बार आ रही हैं। यदि वे घटाएँ एक बार गर्जन करने लगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो फिर वे निरन्तर गर्जन करने लगेंगी।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> वर्षा ऋतु का बड़ा ही मनमोहक वर्णन हुआ</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> ब्रजभाषा का प्रयोग।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> तालने पै ताल पै तमालन पै मालन पै</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> वृन्दावन बीथिन बहार बंसीवट पै।</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कहै पद्माकर अखंड रासमंडल पै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मण्डित उमंड महा कालिन्दी के तट पै।</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> छिति पर छान पर छाजत छतान पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ललित लतान पर लाड़िली की लट पै।</span><span style="font-family: Mangal;"> </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> छाई भली छाई यह सदर जुन्हाई जिहि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पाई छबि आजु ही कन्हाई के मुकुट पै।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> तमालन = तमाल वृक्ष पर। बंसीवट = वह वट वृक्ष जहाँ श्रीकृष्ण बंसी बजाते थे। कालिन्दी = यमुना। छिति = पृथ्वी। छान = छाजन। छतान = छतों पर। लाड़िली = राधा जी। जुन्हाई = चाँदनी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">प्रकृति चित्रण</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">के अन्तर्गत </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">ऋतु-वर्णन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b>:</span></p><p>इस छन्द में कवि ने शरद ऋतु की सुन्दर शोभा का वर्णन किया है।</p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि पद्माकर कहते हैं कि तालाबों पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ताड़ पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तमाल वृक्षों पर और मालाओं पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वृन्दावन की गलियों एवं बंसीवट पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सभी ओर शरद ऋतु की बहार छाई हुई है। कविवर पद्माकर कहते हैं कि सम्पूर्ण रासमण्डली पर तथा कालिन्दी के तट पर शरद ऋतु की महान् छटाएँ उमड़ रही हैं। पृथ्वी पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> छप्परों पर और छतों पर शरद ऋतु छाई हुई है। सुन्दर लताओं पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लाड़िली अर्थात् राधाजी की लटों पर शरद ऋतु की यह चाँदनी भली-भाँति छाई हुई है और यही शोभा आज श्रीकृष्ण के मुकुट पर भी छाई हुई है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> शरद ऋतु की सुन्दरता का वर्णन।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> ब्रजभाषा का प्रयोग।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है भाव सारांश लिखिए</span></h3> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कविता में कवि ने हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों का तथा उमड़ने-घुमड़ने वाली घटाओं का चित्ताकर्षक वर्णन किया है। हिमालय की चोटियों के नीचे अनेक प्रकार की झीलें बहती रहती हैं। उन झीलों के समीप बरसात की उमस से व्याकुल होकर हंस कमलदण्डों को खोजते हुए इधर-उधर घूम रहे हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> उन जल-क्रीड़ा करते हुए हंसों को देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठता है। कवि कहता है कि हिमालय पर्वत की बर्फ से ढकी अगम्य घाटियों में कस्तूरी मृग विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। उन मृगों की नाभि से निकलने वाली कस्तूरी की सुगन्ध को खोजते हुए वे अज्ञानतावश इधर-उधर भटक रहे हैं। मृग कस्तूरी न मिलने के कारण स्वयं से दुखी प्रतीत होते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि बादलों का वर्णन करते हुए कहता है कि प्राचीनकाल में कुबेर के शाप से अलकापुरी से निष्कासित यक्ष ने बादलों को दूत बनाकर अपनी प्रेमिका के समीप भेजा था। इसमें कितनी सत्यता है कौन जानता है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> मैंने शीत के दिनों में बर्फ से ढकी कैलाश पर्वत की ऊँची-ऊँची चोटियों पर काले-काले बादलों को घिरते देखा है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या</span></span></h3> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> अमल धवल गिरि के शिखरों पर</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> छोटे-छोटे मोती जैसे </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उसके शीतल तुहिन कणों को </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मानसरोवर के उन स्वर्णिम </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कमलों पर गिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> अमल = निर्मल। धवल = सफेद। गिरि = पर्वत। तुहिन = ओस।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बादल को घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नागार्जुन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> घिरते हुए बादलों को देखकर कवि की कल्पना स्फुटित हुई है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी का यहाँ वर्णन है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नागार्जुन कहते हैं कि निर्मल तथा श्वेत पर्वत के शिखरों पर मैंने बादल को घिरते हुए देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके ठण्डे बर्फ के कणों को मानसरोवर के उन सुनहरे कमलों पर गिरते देखा है। बादल को घिरते देखा है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि का प्रकृति चित्रण बड़ा ही मोहक है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> तुंग हिमालय के कन्धों पर</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> छोटी-बड़ी कई झीलें हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उनके श्यामल नील सलिल में </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> समतल देशों से आ-आकर </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पावस की ऊमस से आकुल </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> हंसों को तिरते देखा है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> तुंग = ऊँचे। नील सलिल में = नीले जल में। समतल = मैदानी भागों से। पावस= वर्षा। आकुल= व्याकुल। तिक्त = तीखे। मधुर =मीठे। विसतंतु = कमल नाल।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बादल को घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नागार्जुन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने मानसरोवर झील में तैरने वाले हंसों का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नागार्जुन कहते हैं कि ऊँचे हिमालय पर्वत की तलहटी में छोटी और बड़ी कई झीलें हैं। उनके साँवले और नीले जल में मैदानी भागों से उड़-उड़कर आने वाले तथा</span></p> <p> <span lang="HI"> वर्षा की उमस से व्याकुल हुए एवं तीखे तथा मीठे कमल नाल को खोजते-फिरते हंसों को मैंने तैरते देखा है। बादल को घिरते देखा है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> मानसरोवर की प्राकृतिक सुषमा तथा उसमें तैरने वाले सुन्दर हंसों का मनमोहक वर्णन है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> ऋतु बसंत का सुप्रभात था</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मंद-मंद था अनिल बह रहा </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बालारुण की मृदु किरणें थीं </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> एक-दूसरे से विरहित हो </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> अलग-अलग रहकर ही जिनको </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सारी रात बितानी होती</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> निशा काल से चिर-अभिशापित </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बेबस उन चकवा-चकई का </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बंद हुआ क्रन्दन फिर उनमें </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> उस महान सरवर के तीरे </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> शैवालों की हरी दरी पर </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रणय-कलह छिड़ते देखा है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> अनिल = वायु। बालारुण = प्रात:कालीन सूर्य। मृदु = कोमल। स्वर्णिम = सुनहरे। विरहति = अलग। होकर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वियोग की दशा में। निशाकाल = रात के समय। चिर = दीर्घ काल से। अभिशापित = अभिशाप पाये हुए। सरवर = तालाब। तीरे = किनारे। शैवालों = काई। प्रणय-कलय = प्रेम का झगड़ा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बादल को घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नागार्जुन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत छन्द में कवि ने बसन्त ऋतु के सुप्रभात की मनोहर झाँकी का वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नागार्जुन कहते हैं कि बसन्त ऋतु का सुप्रभात था। उस समय वायु मंद-मंद गति से बह रही थी तथा प्रात:कालीन सूर्य की कोमल किरणे अगल-बगल के सुनहरे शिखरों पर बिखर रही थीं। उस समय एक-दूसरे से अलग होकर! सारी रात वियोग में बिता देने वाले</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनन्त काल से अलग रहने का अभिशाप पाये हुए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उन बेवस चकवा-चकवी का वियोग। दुःख से उत्पन्न क्रन्दन यकायक बन्द हो गया। प्रात:काल होने पर उस महान सरोवर के किनारे काई की हरी पट्टी पर उन चकवा-चकवी को परस्पर प्रेमालाप में झगड़ते हुए मैंने देखा है। बादल को घिरते देखा है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> चकवा-चकवी रात में एक-दूसरे से अलग होकर विरह जन्य क्रन्दन करते रहते हैं। प्रात:काल दोनों का संयोग होने पर प्रणय क्रीड़ाएँ करने लगते हैं।</span></li><li><span lang="HI"> बसन्त ऋतु की मादकता का वर्णन है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> दुर्गम बर्फानी घाटी में</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> अलख-नाभि से उठने वाले </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> निज के ही उन्मादक परिमल </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> के पीछे धावित हो होकर </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तरल तरुण कस्तूरी मृग को </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> अपने पर चिढ़ते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> दुर्गम = जहाँ जाना सरल न हो। बर्फानी = बर्फ से ढकी हुई। शत-सहस्र = सैकड़ों-हजारों। अलख नाभि = अदृश्य नाभि। उन्मादकं = नशीले। परिमल = पराग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुगन्ध। धावित = दौड़कर।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बादल को घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नागार्जुन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने दुर्गम बर्फीली घाटियों में दौड़ते हुए कस्तूरी मृगों की चेष्टाओं का सुन्दर वर्णन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नागार्जुन कहते हैं कि दुर्गम बर्फ से ढकी हुई चोटियों में सैकड़ों-हजारों फुट की ऊँचाई पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नाभि से उठने वाली स्वयं की ही अदृश्य उन्मादक गन्ध को ढूँढ़ते हुए तथा उसकी खोज में भटकते हुए चंचल एवं तरुण कस्तूरी मृगों को स्वयं अपने ऊपर चिढ़ते हुए मैंने देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कस्तूरी मृग की नाभि में अदृश्य रूप से छिपी रहती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पर कस्तूरी मृग अपने अन्दर छिपी हुई कस्तूरी को न जानकर उसकी खोज में इधर-उधर भटकता फिरता है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> कहाँ गया धनपति कुबेर वह</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कहाँ गई उसकी वह अलका </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> नहीं ठिकाना कालिदास के </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> व्योम-प्रवाही गंगाजल का</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ढूँढा बहुत परन्तु लगा क्या </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मेघदूत का पता कहीं पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कौन बताए वह छायामय </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बरस पड़ा होगा न यहीं पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जाने दो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह कवि कल्पित था</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> </span> </p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मैंने तो भीषण जाड़ों में</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> नभ-चंबी कैलाश शीर्ष पर </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> महादेव को झंझानिल से </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> गरज-गरज भिड़ते देखा है। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बादल को घिरते देखा है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> अलका = कुबेर की राजधानी। व्योम-प्रवाही। = आकाश में बहने वाली। नभ-चुंबी = आकाश को चूमने वाले। झंझानिल = झंझावात।।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत छन्द </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बादल को घिरते देखा है</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नागार्जुन</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">हैं।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने कैलाश पर्वत की सुन्दरता का वर्णन करते हुए पौराणिक आख्यानों की चर्चा की है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर नागार्जुन कहते हैं कि इस कैलाश शिखर पर धनपति कुबेर की अलका नगरी का पुराणों में उल्लेख मिलता है लेकिन आज तो इसका यहाँ कोई नामोनिशान भी नहीं है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> न ही हमें कालिदास के आकाश में विचरण करने वाले उस मेघदूत का कहीं पता मिलता है। हमने बहुत प्रयत्न कर लिए पर वह ढूँढने से भी नहीं मिला। ऐसा हो सकता है कि वह छायामय मेघदूत यहीं कहीं जाकर बरस गया होगा। फिर कवि कहता है कि इन बातों को छोड़ो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मेघदूत तो कवि कालिदास की कल्पना थी।</span></p> <p> <span lang="HI"> मैंने तो भयंकर कड़कड़ाते जाड़ों में आकाश को चूमने वाले कैलाश के शिखर पर घनघोर झंझावातों में महादेव जी को उनसे गरज-गरज कर युद्ध करते देखा है। बादल को घिरते देखा है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने गगनचुम्बी कैलाश शिखर की प्राकृतिक छटा का सुन्दर वर्णन किया है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खड़ी बोली। </span></li></ol><p></p> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-72163809385996712542021-11-02T18:00:00.002-07:002021-11-13T03:07:50.110-08:00MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions पद्य Chapter 4 नीति-धारा<p>नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने <span style="font-size: medium;"><b style="color: navy;">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b><b style="color: navy;"><span lang="HI">पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 4</span><span lang="HI"> नीति-धारा</span></b> </span><span style="font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: navy;"><span style="font-family: Mangal;">MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions </span> <span lang="HI"> पद्य </span><span style="font-family: Mangal;">Chapter 4</span><span lang="HI"> नीति-धारा</span></span></h2> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> नीति-धारा अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?T</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> गिरिधर के अनुसार हमें बीती हुई बातों को भूल जाना चाहिए।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> कोयल को उसकी मीठी वाणी के गुण के कारण पसन्द किया जाता है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम लिखिए।</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द का नाम </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कुण्डलियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> व्यक्ति सम्मान योग्य कब बन जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> व्यक्ति जब परोपकार की भावना से कार्य करता है तो वह सम्मान के योग्य बन जाता है।<br /> </span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण आपस में बैर और फूट की भावना का होना है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"><b> <span lang="HI"> नीति-धारा</span><span style="font-family: Mangal;"> </span><span lang="HI">लघु उत्तरीय प्रश्न</span></b></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को कब तक प्रकट नहीं करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> कवि गिरिधर के अनुसार मन की बात को तब तक प्रकट नहीं करना चाहिए जब तक कि किसी कार्य में सफलता न मिल जाए।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> धन-दौलत का अभिमान क्यों नहीं करना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:धन-दौलत का अभिमान इसलिए नहीं करना चाहिए क्योंकि यह धन-दौलत सदा एक के साथ नहीं रहती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपितु यह चंचल एवं स्थान बदलने वाली है।</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;"><br /> </span></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> कवि ने गुणवान के महत्व को किस प्रकार रेखांकित किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> कवि ने गुणवान के महत्त्व को इस प्रकार रेखांकित किया है कि गणी व्यक्ति के चाहने वाले हजारों व्यक्ति मिल जाते हैं पर निर्गुण का साथ तो घरवाले भी नहीं दे पाते।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> भारतेन्दु ने कोरे ज्ञान का परित्याग करने की सलाह क्यों दी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> भारतेन्दु ने कोरे ज्ञान का परित्याग करने की सलाह है इसलिए दी है कि कोरे ज्ञान से कोई काम या व्यापार चल नहीं सकता है। इनको चलाने के लिए उनमें डूबना पड़ता है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> सम्माननीय होने के लिए किन गुणों का होना आवश्यक है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> सम्माननीय होने के लिए व्यक्ति को परोपकारी होना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> कोरे पद से काम नहीं चलता है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">6. ‘</span><span lang="HI">उठहु छोड़ि विसराम</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> का आशय स्पष्ट कीजिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">उठहु छोड़ि विसराम</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> का आशय यह कि तुम विश्राम त्यागकर उस निर्गुण निराकर ईश्वर को पूरी तरह अपना लो।<br /> </span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> नीति-धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> समझाइए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:जो व्यक्ति बिना विचारे अपना कोई काम करता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तो उस काम में उसे सफलता नहीं मिलती है। इससे जहाँ उसका काम बिगड़ जाता है वहीं संसार में उसकी हँसी भी उड़ती है।<br /> </span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> कौआ और कोयल के उदाहरण से कवि जो सन्देश देना चाहता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसे अपने शब्दों में लिखिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> कौआ और कोयल के उदाहरण द्वारा कवि यह सन्देश देना चाहता है कि संसार में व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके रूप-रंग से नहीं अपितु गुणों से होती है।<br /> </span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3. </span> <span lang="HI"> पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी क्या सन्देश देना चाहते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> पाठ में संकलित भाषा सम्बन्धी दोहों के माध्यम से भारतेन्दु जी यह सन्देश देना चाहते हैं कि किसी भी देश की उन्नति उसकी मातृ भाषा के विकास द्वारा ही सम्भव है।<br /> </span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की काव्य प्रतिभा पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बहु आयामी रचनाकार हैं। उन्होंने नाटक</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> काव्य</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निबन्ध आदि सभी विधाओं पर लेखनी चलाई है। वे समाजोन्मुखी चिन्तक कवि हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसलिए उनकी कविताओं में नीति कथन सर्वत्र मिलते हैं। आपने परोपकार एवं एकता को विशेष महत्त्व प्रदान किया है।<br /> </span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">5. </span> <span lang="HI"> निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">अ) बिना विचारे जो करे सो पाछे पछिताय।</span></span></h3> <p><span style="color: red; font-family: Mangal;">…………………………. ……………………..</span></p> <p><span style="color: red; font-family: Mangal;">………………………….. ………………………</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> खटकत है जिय माँहि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कियौ जो बिना विचारे॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सम्मान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ब) गुन के गाहक सहस नर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बिनु गुन लहै न कोय।</span></span></h3> <p><span style="color: red; font-family: Mangal;">…………………… ……………………..</span></p> <p><span style="color: red; font-family: Mangal;">…………………… ……………………….</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बिन गुन लहै न कोय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सहस नर गाहक गुन के॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। </span></p><p> जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।</p><p> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं</p><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।</span><div><br /><p></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">स) मान्य योग्य नहिं होत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कोऊ कोरो पद पाए।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मान्य योग्य नर ते</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जे केवल परहित जाए॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> कवि श्री भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस संसार में कोरा पद पाकर ही कोई व्यक्ति समाज में माननीय नहीं हो सकता। समाज में माननीय वही व्यक्ति होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जो परोपकार की भावना से कार्य करता है।<br /> </span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">द) बैर फूट ही सों भयो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सब भारत को नास।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तबहुँन छाड़त याहि सब</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बँधे मोह के फाँस॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"><span lang="HI"> </span> </span> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस देश</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भारत का पूरी तरह से नाश आपसी बैर एवं फूट के कारण ही हुआ है। यह सच्चाई मानते हुए भी आज भी भारतवासी लोग मोह के फन्दे में ऐसे बँधे हुए हैं कि इस बुरी भावना का त्याग नहीं करते हैं।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> नीति-धारा काव्य सौन्दर्य</span></span></p> <h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. ‘</span><span lang="HI">उल्लाला</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> को परिभाषित करते हुए उदाहरण सहित समझाइए।</span></span></h2> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span><span style="font-family: Mangal;"> ‘</span><span lang="HI">उल्लाला</span><span style="font-family: Mangal;">’-</span><span lang="HI">परिभाषा-उल्लाला एक मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में </span><span style="font-family: Mangal;">15-15</span><span lang="HI"> मात्राएँ और दूसरे एवं चौथे चरण में </span><span style="font-family: Mangal;">13-13</span><span lang="HI"> मात्राएँ होती हैं। कुल </span><span style="font-family: Mangal;">28</span><span lang="HI"> मात्राएँ होती हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> उदाहरण :</span></p> <p> <span lang="HI"> करते अभिषेक पयोद हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बलिहारी इस वेष की।</span></p> <p> <span lang="HI"> हे मातृभूमि तू सत्य ही</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सगुण मूर्ति सर्वेश की॥</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"><b>MCQ</b></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">1. </span> <span lang="HI"> गिरिधर के अनुसार हमें क्या भूल जाना चाहिए</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) कल की बात</span> <span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ख) बरसों की बातें</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) आज की बात</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) बीती हुई बातें।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बीती हुई बातें।</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">2. </span> <span lang="HI"> कोयल को उसके किस गुण के कारण पसन्द किया जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) रंग</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">ख) आकृति</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) नृत्य</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) मधुर बोली।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बीती हुई बातें।</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">3.</span><span lang="HI"> भारतेन्दु के अनुसार भारत की दुर्दशा का प्रमुख कारण क्या है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) अन्धविश्वास</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ख) अज्ञानता</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) विद्या की कमी</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) बैर-फूट।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बीती हुई बातें।</span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न </span><span style="font-family: Mangal;">4. </span> <span lang="HI"> बिना विचारे काम करने में क्या हानि होती है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">क) धन की</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ख) मर्यादा की</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">ग) मान की</span><span style="font-family: Mangal;"> (</span><span lang="HI">घ) पछताना पड़ता है।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span style="font-family: Mangal;">(</span><span lang="HI">घ) बीती हुई बातें।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> सम्पत्ति के बढ़ने पर </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> नहीं करना चाहिए।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> गिरिधर कवि ने कहा है कि हमें अपने किये </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> ढिंढोरा नहीं पीटना चाहिए।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> भारतेन्दु जी ने भारत के विकास के लिए भारतवासियों को </span> <span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> छोड़ने को कहा।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">बैर-फूट ही सों भयो सब भारत को </span><span style="font-family: Mangal;">……….. </span> <span lang="HI"> ।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> नीतिकाव्य जीवन-व्यवहार को </span><span style="font-family: Mangal;">………. </span> <span lang="HI"> बनाने का आधार है।</span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> अभिमान</span></li><li><span lang="HI"> कामों का</span></li><li><span lang="HI"> बैर-भाव</span></li><li><span lang="HI"> नाश</span></li><li><span lang="HI"> सुगम</span></li></ol> <p></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> सत्य/असत्य</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> गिरिधर के अनुसार हमें बीती बातें भूल जानी चाहिए।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> दौलत पाकर व्यक्ति को सदैव अभिमान करना चाहिए।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कोकिल वायस एक सम पण्डित मूरख एक।</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> यह पंक्ति गिरिधर कवि की कुण्डलियों में</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> भारतेन्दु जी ने भाषा के द्वारा राष्ट्र की उन्नति व एकता बतायी है।</span></span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li></ol> <p></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सही जोड़ी मिलाइए</span></span></p> <table> <tbody><tr> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(i)</span></p></td> <td> <p> <span style="color: red; font-family: Mangal; font-size: small;">(ii)</span></p></td> </tr> <tr> <td> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><br /> 1.</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">गिरिधर कवि के सबसे बड़े संग्रह में </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">2. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">दौलत पाय न कीजिए </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">3. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">निज भाषा उन्नति करहु </span> </span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">4. </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: small;">कोयल</span></span></span></p></td> <td> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal; font-size: small;"><br /> (</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;">क) मधुर स्वर </span> </span></span></p> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(ख) प्रथम जो सबको मूल </span> </span></p> <p><span lang="HI"> <span style="color: red; font-size: small;">(ग) सपने में अभिमान </span> </span></p> <p><span style="color: red;"><span lang="HI"> <span style="font-size: small;">(घ) </span> </span><span style="font-family: Mangal; font-size: small;">457</span><span lang="HI"><span style="font-size: small;"> कुण्डलियाँ हैं</span></span></span></p></td> </tr> </tbody></table> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">1. → (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">2. → (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">3. → (</span><span lang="HI">ख)</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">4. → (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></span></p> <p> <span style="color: red;">(i) <span lang="HI"> बिना विचारे कार्य करने से क्या होता है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span></span> </p> <p> <span style="color: red;"> (ii) <span lang="HI"> काग और कोकिल में से किसका शब्द सुहावना लगता है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(iii) “</span><span lang="HI">कोरी बातन काम कछु चलिहैं नाहिन मीत।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तासों उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत॥</span><span style="font-family: Mangal;">” </span> <span lang="HI"> दोहा किस कवि का है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> (iv) <span lang="HI"> गिरिधर कवि किस प्रकार के रचनाकारों की श्रेणी में आते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> पछताना पड़ता है</span></li><li><span lang="HI"> कोकिल का</span></li><li><span lang="HI"> भारतेन्दु हरिश्चन्द्र</span></li><li><span lang="HI"> नीतिकाव्य के रचनाकार।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: navy;"> <span lang="HI"> गिरिधर की कुण्डलियाँ भाव सारांश</span></span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर की कुण्डलियों में नीति के उपदेश देते हुए कहा गया है कि मनुष्य को बीती बातें भुलाकर भविष्य के विषय में विचार करना चाहिए। मनुष्य को अपना कार्य सम्पन्न होने से पूर्व किसी को नहीं बतलाना चाहिए। जो व्यक्ति बिना सोच-विचार के कार्य करता है उसके पास पछताने के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता। धन पाकर मनुष्य को गर्व नहीं करना चाहिए। मनुष्य को अपने अन्दर गुणों का संग्रह करना चाहिए। इस संसार में गुणवान को सम्मान मिलता है और गुणहीन व्यक्ति उपेक्षा और तिरस्कार का पात्र बनता है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर की कुण्डलियाँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(1) </span> <span lang="HI"> बीती ताहि विसार दे</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आगे की सुधि लेइ।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जो बनि आवै सहज में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ताही में चित्त देइ॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ताही में चित्त देइ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बात जोई बनि आवै। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दुर्जन हँसे न कोइ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चित्त में खता न पावै॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कह गिरिधर कविराय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> यहै करु मन-परतीती। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> आगे की सुख समुझि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हो बीती सो बीती॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> बीती = जो बात हो गयी है। ताहि = उसी को। विसारि दे = भूल जाओ। सुधि लेइ = ध्यान में रखो। सहज = सरल रूप में। चित्त देइ = मन लगाओ। दुर्जन = दुष्ट लोग। खता = गलती</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भूल। परतीती = प्रतीति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विश्वास। बीती सो बीती = जो बीत गई सो बीत गई।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत कुण्डली कविवर गिरिधर द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">गिरिधर की कुण्डलियाँ</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> से ली गई है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इसमें कवि ने व्यावहारिक जीवन की यह बात बताई है कि बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो बीती हुई बात को भुलाकर आगे के लिए सचेत रहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं हे मनुष्यो! जो बात घटित हो चुकी है उसके बारे में व्यर्थ में सोच-विचार कर समय को बर्बाद मत करो। तुम आगे होनी वाली बातों या घटनाओं की चिन्ता करो जो कुछ भी तुमसे सहज</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सरल रूप में बन जाये उसी में अपना मन लगाओ। ऐसा करने पर कोई भी दुष्ट व्यक्ति तुम्हारी बातों की हँसी नहीं उड़ाएगा और न ही तुम्हारे मन में कोई खोट रहेगा।</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! तुम अपने मन में यह विश्वास रखो कि आने वाली बातों या घटनाओं में तुम पूरी सावधानी बरतो और जो हो गई</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सो हो गई।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।</span></li><li><span lang="HI"> अवधी भाषा का प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> कुण्डलियाँ-छन्द।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(2) </span> <span lang="HI"> साईं अपने चित्त की</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भूलि न कहिए कोई।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तब लग मन में राखिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जब लग कराज होइ॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जब लम कारज होइ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भूलि कबहूँ नहिं कहिए। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दुरजन हँसे न कोई</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आप सियरे है रहिए॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कह गिरिधर कविराय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बात चतुरन की ताईं।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> करतूती कहि देत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आप कहिए नहिं साईं॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> साईं = मित्र। तब लग = तब तक। जब लग = जब तक। कारज न होइ = काम में सफलता प्राप्त न हो जाए। दुरजन = दुष्ट लोग। सियरे = शीतल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> प्रसन्न। खै रहिए = होकर </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> रहिए। करतूती = काम।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने मनुष्यों को शिक्षा दी है कि यदि आप कोई काम करने की योजना बनाते हैं तो उसे प्रारम्भ करने से पूर्व जग जाहिर मत करो। नहीं तो दुष्ट लोग तुम्हारे उस </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> शुभ कार्य में बाधा डालेंगे।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर गिरिधर कहते हैं कि हे मित्र! अपने मन की बात भूलकर भी किसी दूसरे से मत कहो। उस बात को अपने </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> मन में तब तक दाब कर रखो जब तक कि आपका काम न हो जाए। जब तक आपका काम नहीं होता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भूल कर भी किसी से मत कहो। यह ऐसी नीति है कि इसमें दुर्जन लोगों को हँसी उड़ाने </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> का अवसर नहीं मिलेगा और स्वयं आपके चित्त को शान्ति एवं आनन्द मिलेगा।</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि यह बात मैंने चतुर लोगों के लिए कही है। हे मित्र! तुम अपने मुँह से कोई बात मत कहो। तुम्हारे काम स्वयं तुम्हारी बात को सबसे कह देंगे।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने व्यावहारिक जीवन की बात बताई है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-अवधी।</span></li><li><span lang="HI"> छन्द-कुण्डलियाँ।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(3) </span> <span lang="HI"> बिना विचारे जो करै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सो पाछे पछिताय।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> काम बिगारै आपनो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जग में होत हँसाय॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जग में होत हँसाय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चित्त में चैन न पावै। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> खान-पान सनमान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> राग-रंग मनहिं न भावै॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कह गिरिधर कविराय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुःख कछु टरत न टारे। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> खटकत है जिय माँहि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कियो जो बिना बिचारे।</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> बिना विचारे = बिना सोचे-समझे। बिगारे = बिगाड़ना। जग = संसार में। होत हँसाय = हँसी उड़ती है। चैन = शान्ति। टरत नटारे = टालने पर भी नहीं टलता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भागता है। माँहि = में।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि कहता है कि मनुष्य को बिना सोचे-समझे कोई काम नहीं करना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि बिना सोच और </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> विचार के जो कोई भी व्यक्ति काम करता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह बाद में पछताता है। ऐसा करने से एक तो उसका काम बिगड़ जाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दूसरे संसार में उसकी हँसी होती है अर्थात् सब लोग उसका मजाक उड़ाते हैं। संसार में हँसी होने के साथ ही साथ उसके स्वयं के मन में शान्ति नहीं रहती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह परेशान हो जाता है। खाना-पीना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सम्मान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> राग-रंग आदि कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती है।</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि इससे उत्पन्न दुःख टालने पर भी टलता नहीं है अर्थात् भगाने पर भी भागता नहीं है और सदा ही यह बात मन में खटकती रहती है कि बिना सोच-विचार के करने से मुझे यह मुसीबत झेलनी पड़ रही है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">टरत न टारे</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> मुहावरे का सुन्दर प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> अवधी-भाषा।</span></li><li><span lang="HI"> कुण्डलियाँ-छन्द।</span></li></ol><p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(4) </span> <span lang="HI"> दौलत पाय न कीजिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सपने में अभिमान।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> चंचल जल दिन चारि को</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ठाउँ न रहत निदान॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ठाउँ न रहत निदान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जियत जग में जस लीजै। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मीठे बचन सुनाय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विनय सबही की कीजै॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कह गिरिधर कविराय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अरे यह सब घट तौलत। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> पाहुन निसि दिन चारि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रहत सबही के दौलत॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> दौलत = धन सम्पत्ति। अभिमान = घमण्ड। चंचल जल = बहते हुए पानी के समान। दिन चारि को = चार दिन को अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए। ठाउँ न रहत निदान = एक स्थान पर सदा रुकी नहीं रहती है। जियत = जब तक जीवित हो। जस = यश। विनय = विनम्रता। घट तौलत = घट-घट को तौलने वाली</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> हर मनुष्य को परखने वाली। पाहुन = अतिथि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मेहमान।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने धन के ऊपर गर्व न करने की मनुष्य को सलाह दी है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर गिरिधर कहते हैं कि हे संसार के मनुष्यो! धन-दौलत पाकर सपने में भी घमण्ड मत करो। यह धन-दौलत जल के समान चंचल है अर्थात् यह कभी भी एक स्थान पर टिककर नहीं रहती है। चार दिन के लिए अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए यह किसी व्यक्ति के पास रहती है। स्थायी रूप से यह किसी व्यक्ति के पास नहीं रहती है। इसीलिए विद्वानों ने इसे चंचला कहा है। हे मनुष्यो! संसार में आये हो तो ऐसे काम करो जिससे जीवन में यश मिले। सभी से मीठे वचन बोलो तथा सभी के साथ विनम्रता से मिलो।</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि दौलत मनुष्यों को तौलती फिरती है। यह केवल चार दिन के लिए अर्थात् थोड़े समय के लिए ही किसी के घर मेहमान बनकर आती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> धन पर मनुष्य को गर्व नहीं करना चाहिए।</span></li><li><span lang="HI"> दिन चारि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ठाउँ न रहत निदान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सब घट तौलत आदि मुहावरों का सुन्दर प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-अवधी।</span></li></ol> <p></p> <p><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">(5) </span> <span lang="HI"> गुन के गाहक सहस नर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बिन गुन लहै न कोय।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> जैसे कागा कोकिला</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> शब्द सुनै सब कोय॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> शब्द सुनै सब कोय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कोकिला सबै सहावन। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> दोऊ को इक रंग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> काग सब भए अपावन॥ </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कह गिरिधर कविराय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुनो हो ठाकुर मन के। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बिन गुन लहै न कोय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सहस नर ग्राहक गुन के॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> गुण = गुणों के। सहस नर = हजारों आदमी। लहै = प्राप्त करना। अपावन = अपवित्र।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि संसार में गुणों का ही महत्त्व है</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> बिना गुण के कोई किसी को नहीं पूछता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर गिरिधर कहते हैं कि इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों लोग हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लेकिन बिना गुणों के किसी भी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता है। उदाहरण देकर कवि समझाता है कि कौआ और कोयल दोनों का रंग एक जैसा होता है पर दोनों की वोशी में जमीन-आसमान का अन्तर होता है। जब संसारी लोग इन दोनों की वाणी को सुनते हैं तो कोयल की वाणी सबको प्रिय लगती है और कौए की नहीं। इस कारण कोयल को सब प्यार करते हैं और कौओं से परहेज करते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"> गिरिधर कवि जी कहते हैं कि हे मनुष्यो! कान लगाकर सुन लो इस संसार में बिना गुणों के कोई किसी को पूछता तक नहीं है। इस संसार में गुणों के ग्राहक तो हजारों होते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निर्गुण का ग्राहक कोई नहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने मनुष्यों को गुणों को ग्रहण करने का सन्देश दिया है।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-अवधी।</span></li><li><span lang="HI"> छन्द-कुण्डलियाँ।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span lang="HI"><b> नीति अष्टक भाव सारांश</b></span></p> <p> <span lang="HI"> नीति अष्टक दोहों में बतलाया गया है कि वही व्यक्ति इस संसार में माननीय है जो दूसरों के कल्याण के लिए जीवन जीता है। भारत देश का विनाश लोगों की बैर भावना के कारण ही हुआ। इसलिए इसे मन से निकाल देना चाहिए। अपनी भाषा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपने धर्म</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">अपने कर्म पर हमें गर्व होना चाहिए। उस बुरे देश में किसी को निवास नहीं करना चाहिए जहाँ मूर्ख और विद्वान सबको एक ही भाँति का समझा जाता हो।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <b><span lang="HI"> नीति अष्टक संदर्भ-प्रसंग</span> <span lang="HI"> सहित व्याख्या</span></b></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> भारतेन्दु हरिश्चन्द्र मान्य योग्य नहीं होत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कोऊ कोरो पद पाए। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> मान्य योग्य नर ते</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जे केवल परहित जाए॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">1)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> मान्य योग्य = सम्मान के योग्य। होत = होता है। कोरो पद = केवल पद पाने से। परहित = परोपकार में।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span> <span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से लिया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> इसमें कवि ने बताया है कि जो व्यक्ति परोपकार में रत रहते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> समाज उन्हीं का आदर करता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि श्री भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस संसार में कोरा पद पाकर ही कोई व्यक्ति समाज में माननीय नहीं हो सकता। समाज में माननीय वही व्यक्ति होता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जो परोपकार की भावना से कार्य करता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि की दृष्टि में केवल परोपकार भावना में रत व्यक्ति ही समाज में सम्मान पाता है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> न कि पद से।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बिना एक जिय के भए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चलिहैं अब नहिं काम। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तासों कोरो ज्ञान तजि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उठहु छोड़ि बिसराम॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">2)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> एक जिय = एक रूप हुए। कोरो ज्ञान = केवल ज्ञान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> समर्पण नहीं। विसराम = आराम।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि जब तक ईश्वर के प्रति पूर्ण सेमर्पण नहीं होगा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जीव का उद्धार नहीं होगा।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्द जी कहते हैं कि भगवान के प्रति पूर्ण भाव से समर्पण किए बिना अब काम चलने वाला नहीं है। अतः कोरे ज्ञान को त्यागकर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विश्राम त्यागकर उठ खड़े हो</span></p> <p> <span lang="HI"> और ईश्वर में पूर्ण समर्पण कर दो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने ईश्वर भक्ति की सफलता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पूर्ण समर्पण में मानी है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> बैर फूट ही सों भयो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सब भारत को नास। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तबहुँ न छाड़त याहि सब</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बँधे मोह के फाँस॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">3)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> बैर फूट = परस्पर शत्रुता और भेद की भावना। नास = नाश। फाँस = फन्दे में।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में कवि ने भारतवासियों से आपसी बैर तथा फूट को छोड़ने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि इस देश</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भारत का पूरी तरह से नाश आपसी बैर एवं फूट के कारण ही हुआ है। यह सच्चाई मानते हुए भी आज भी भारतवासी लोग मोह के फन्दे में ऐसे बँधे हुए हैं कि इस बुरी भावना का त्याग नहीं करते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने बैर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> फूट आदि बुराइयों को दूर कर आपसी मेल-मिलाप की बात कही है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कोरी बातन काम कछु चलिहैं नाहिन मीत।</span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> तासों उठि मिलि के करहु बेग परस्पर प्रीत॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">4)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> कोरी बातन = व्यर्थ की बातों से। नाहिन = नहीं। मीत = मित्र। बेग = जल्दी। परस्पर = आपस में। प्रीत = प्रेम।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि परस्पर प्रेम की शिक्षा देता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि हे मित्र! केवल व्यर्थ की बातों में अब काम नहीं बनेगा। इस कारण से उठो और आपस में प्रेम का व्यवहार करो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने परस्पर प्रेम बढ़ाने की बात कही है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> निज भाषा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निज धरम</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निज मान करम ब्यौहार। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सबै बढ़ावहु वेगि मिलि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कहत पुकार-पुकार॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">5)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> निज = अपनी। धरम = धर्म। मान = इज्जत। करम = कर्म। ब्यौहार = व्यवहार। बेगि = जल्दी।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> कवि ने अपनी भाषा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> धर्म</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कर्म और व्यवहार को परस्पर बढ़ाने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि अपनी भाषा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> धर्म</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कर्म और व्यवहार से सब काम बनता है। अतः मैं बार-बार पुकार कर कहता हूँ कि आप लोग इन्हीं सब बातों को परस्पर मिलकर बढ़ाओ।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि ने अपनी भाषा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> धर्म</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कर्म और व्यवहार अपनाने का सन्देश दिया है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> करहँ विलम्ब न भ्रात अब</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उठहु मिटावहु सूल। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> निज भाषा उन्नति करहु प्रथम जो सबको मूल।। (</span><span style="font-family: Mangal;">6)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> विलम्ब = देरी। भ्रात = भाई। सूल = कष्ट</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दुःख</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बाधाएँ। मूल = आधार।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> निज भाषा हिन्दी की उन्नति के लिए कवि ने भारतीयों को जगाया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि हे भारतवासी भाइयो! अब देर मत करो और अपनी भाषा की उन्नति में आने वाली सभी बाधाओं को मिटा दो। तुम सब मिलकर अपनी हिन्दी भाषा की उन्नति का प्रयास करो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जो कि सबका मूल आधार है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> भारतेन्दु जी का निज भाषा अर्थात् हिन्दी की उन्नति के प्रति विशेष प्रयास रहा है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> सेत-सेत सब एक से</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जहाँ कपूर कपास। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> ऐसे देश कुदेस में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कबहुँ न कीजै बास।। (</span><span style="font-family: Mangal;">7)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> सेत-सेत = सफेद-सफेद। कुदेस = बुरे देश में। बास = निवास।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> इसमें कवि ने मूर्खो के देश में न रहने का उपदेश दिया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि जिस देश में रहने वाले नागरिकों में बुद्धि विवेक नहीं होता है और जो सफेद रंग की सभी वस्तुओं को एक जैसा ही समझते हैं</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> चाहे सफेद कपूर हो या फिर सफेद कपास। कवि कहता है कि ऐसे मूल् के देश में बुद्धिमान आदमी को कभी निवास नहीं करना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कवि अज्ञानी एवं मूर्खो के देश में रहने को बुरा बताता है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> कोकिल वायस एक सम</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पण्डित मूरख एक। </span></span></p> <p> <span style="color: red;"> <span lang="HI"> इन्द्रायन दाडिम विषय</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जहाँ न नेक विवेक॥ (</span><span style="font-family: Mangal;">8)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> कोकिल = कोयल। वायस = कौआ।</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> एक सम = एक जैसे। इन्द्रायन = एक प्रकार का कड़वा फल। दाडिम = अनार।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ :</b></span></p><p><span lang="HI">प्रस्तुत पद्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नीति</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">अष्टक</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span><span lang="HI">शीर्षक से लिया गया है।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> इस दोहे में कवि मूर्ख एवं अज्ञानी लोगों के देश में रहने को बुरा बता रहा है।</span></p> <p><span lang="HI"><b>व्याख्या</b>:</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर भारतेन्दु जी कहते हैं कि जिस देश में कोयल और कौवे में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> पण्डित और मूर्ख में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनार (मीठे फल) और इन्द्रायन (कड़वे फल) में अन्तर नहीं जाना जाता है और जहाँ पर न नेक (उचित बात) और ज्ञान की बात कही जाती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उस देश में भूलकर भी नहीं रहना चाहिए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> मूर्ख एवं अज्ञानी लोगों के देश में रहना कवि उचित नहीं मानता है।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा-छन्द</span></li></ol> <p></p> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-87204356563307427332021-11-02T17:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:50.230-08:00MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions पद्य खंड Chapter 3 प्रेम और सौन्दर्य<p>नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने <span style="font-size: medium;"><b style="color: navy;">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b>पद्य खंड <b style="font-size: medium;"><span style="color: navy;"><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">Chapter </span><span lang="HI"><span style="font-size: medium;">3 प्रेम और सौन्दर्य</span></span></span></b> </span><span style="font-size: medium;">के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: navy;"><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">MP Board Class </span><span lang="HI"> <span style="font-size: medium;">10</span></span><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">th Hindi Navneet Solutions </span></span><span style="color: navy;"><span style="font-family: Mangal; font-size: medium;">Chapter </span> <span lang="HI"> <span style="font-size: medium;">3 प्रेम और सौन्दर्य</span></span></span></h2> <p><span style="color: navy; font-size: medium;"> <span lang="HI"> अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 1. श्रीकृष्ण के हृदय में किसकी माला शोभा पा रही है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: श्रीकृष्ण के हृदय में गुंजाओं की माला शोभा पा रही है।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 2. गोपाल के कुंडलों की आकृति कैसी है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: गोपाल के कुंडलों की आकृति मछली जैसी है।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 3. श्रद्धा का गायन-स्वर किस तरह का है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: श्रद्धा का गायन-स्वर मधुकरी (भ्रामरी) जैसा है।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 4. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">मधुर विश्रांत और एकान्त जगत का सुलझा हुआ रहस्य</span><span style="font-family: Mangal;">’-</span><span lang="HI">सम्बोधन किसके लिए है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: यह सम्बोधन मनु के लिए है। श्रद्धा कहती है कि तुम्हें देखकर ऐसा लगता है मानो तुमने संसार के रहस्य को सुलझा लिया है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसलिए तुम निश्चित होकर बैठे ह</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 5. माथे पर लगे टीके की तुलना किससे की है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: माथे पर लगे टीके की तुलना सूर्य से की गयी है।</span></p><p><span></span></p><a name='more'></a><span lang="HI"><br /></span><p></p> <p><span style="color: navy; font-size: medium;"> <span lang="HI"> लघु उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 1. गोपाल के गले में पड़ी गुंजों की माला की तुलना किससे की गई है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: गोपाल के गले में पड़ी गुंजों की माला की तुलना दावानल की ज्वाला से की गई है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 2. श्रीकृष्ण के ललाट पर टीका की समानता किससे की गई है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: श्रीकृष्ण के ललाट पर शोभित टीके की समानता सूर्य से की गयी है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 3. मनु को हर्ष मिश्रित झटका-सा क्यों लगा</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: श्रद्धा की वाणी सुनते ही मनु को एक हर्ष मिश्रित झटका लगा और वे मोहित होकर यह देखने लगे कि यह संगीत से मधुर वचन कौन कह रहा है।<span></span></span></p><a name='more'></a><p></p> <p><span lang="HI"><span style="color: navy; font-size: medium;"><br /></span></span></p><p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">दीर्घ उत्तरीय प्रश्न</span></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 1. पीताम्बरधारी श्रीकृष्ण के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: श्याम वर्ण पर पीताम्बर धारण किए हुए श्रीकृष्ण का स्लौन्दर्य ऐसा लग रहा है मानो नीलमणि के पर्वत पर प्रात:कालीन सूर्य की किरणें पड़ रही हैं।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 2. </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">सरतरु की मनु सिन्धु में</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">लसति सपल्लव डार</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> का आशय स्पष्ट कीजिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर: नायक कहता है कि इस नायिका का झिलमिली नामक आभूषण अपार चमक के साथ झीने पट में झलक रहा है। उसे देखकर ऐसा लगता है मानो कल्प वृक्ष की पत्तों सहित डाल समुद्र में विलास कर रही है।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 3.</span> <span lang="HI"> अरुण रवि मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> छवि धाम का भावार्थ लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> कवि कहता है कि श्रद्धा का मुख ऐसा सुन्दर दिखाई दे रहा था जैसे सूर्य अस्त होने से पहले छिप गया हो परन्तु जब लाल सूर्य उन नीले मेघों को चीर कर दिखाई देता है तो वह अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। श्रद्धा के मुख का सौन्दर्य वैसा ही था।</span></p> <p> <span lang="HI"> <br /> <span style="color: red;">प्रश्न 4.</span></span><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अधोलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए</span></span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> (अ) तो पै वारौ उरबसी </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> खै उरबसी समान।</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> हे चतुर राधिका! सुन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तू तो इतनी सुन्दर है कि तुझ पर मैं इन्द्र की अप्सरा उर्वशी को भी न्योछावर कर दूँ। हे राधा! तू तो मोहन के उर (हृदय) में उरबसी आभूषण के समान बसी हुई है। अतः दूसरों की बात सुनकर तुम मौन धारण मत करो।</span></p> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> (ब) हृदय की अनुकृति </span><span style="font-family: Mangal;">………….. </span> <span lang="HI"> सौरभ संयुक्त।</span></span></h4> <p> <span lang="HI"> उत्तर: पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"> व्याख्या-कवि कहता है कि मनु ने वह सुन्दर दृश्य देखा जो नेत्रों को जादू के समान मोहित कर देने वाला था। श्रद्धा उस समय फूलों की शोभा से युक्त लता के समान लग रही थी। श्रद्धा चाँदनी से घिरे हुए काले बादल के समान लग रही थी। श्रद्धा ने नीली खाल का वस्त्र पहन रखा था इस कारण वह बादल के समान दिखाई दे रही थी। किन्तु उसकी शारीरिक कान्ति उसके परिधान के बाहर भी जगमगा रही थी। श्रद्धा हृदय की भी उदार थी और उसी के अनुरूप वह देखने में उदार लग रही थी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसका कद लम्बा था और उससे स्वच्छन्दता झलक रही थी। वायु के झोंकों में वह ऐसी लगती थी मानो बसन्त की वायु से हिलता हुआ कोई छोटा साल का पेड़ हो और वह सुगन्धि में डूबा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रेम और सौन्दर्य काव्य सौन्दर्य</span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 1.</span> <span lang="HI"> अधोलिखित काव्यांश में अलंकार पहचान कर लिखिए</span></span></h3> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (अ) धस्यौ मनो हियगढ़ समरू ड्योढ़ी लसत निसान।</span><span style="font-family: Mangal;">’</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (ब) </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">विश्व की करुण कामना मूर्ति</span><span style="font-family: Mangal;">’</span><span lang="HI">।।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर: (अ) उत्प्रेक्षा अलंकार</span></p> <p> <span lang="HI"> (ब) रूपक अलंकार।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न 2. फिरि-फिरि चित त ही रहतु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> टुटी लाज की लाव।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अंग-अंग छवि झऔर में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भयो भौंर की नाव।</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> में छन्द पहचान कर उसके लक्षण लिखिए।</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> उत्तर</b>: इसमें दोहा छन्द है जिसका लक्षण इस प्रकार है-</span></p> <p> <span lang="HI"> दोहा-लक्षण-दोहा चार चरण का मात्रिक छन्द है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्राएँ होती हैं। पहले तथा तीसरे चरणों में 13-13 मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे चरणों में 11-11 मात्राएँ। होती हैं।<br /> </span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 3.संयोग श्रृंगार का एक उदाहरण रस के विभिन्न: अंगों सहित लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"><b> संयोग शृंगार</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> जहाँ प्रेमी-प्रेमिका की संयोग दशा में प्रेम का अंकन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> माधुर्यमय वार्ता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्पर्श</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दर्शन आदि का वर्णन हो वहाँ संयोग श्रृंगार होता है। इसमें स्थायी भाव-रति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विभाव-प्रेमी-प्रेमिका</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुभाव-परिहास</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कटाक्ष</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्पर्श</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आलिंगन आदि तथा संचारी भाव-हर्ष</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उत्सुकता</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मद आदि होते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> अंगों सहित उदाहरण </b>:</span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">जा दिन ते वह नन्द को छोहरा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> या वन धेनु चराई गयी है। मोहिनी ताननि गोधन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गावत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बेनु बजाइ रिझाइ गयौ है।। वा दिन सो कछु टोना सो कै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रसखानि हियै में समाइ गयौ है। कोऊन काहू की कानि करै</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सिगरो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ब्रज वीर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बिकाई गयौ है।</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></p> <p> <span lang="HI"><b> स्पष्टीकरण</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> यहाँ पर आश्रय गोपियाँ तथा आलम्बन श्रीकृष्ण हैं। वन में गाय चराना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वंशी बजाना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गाना आदि उद्दीपन हैं। मोहित होना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लोक लज्जा न मानना आदि अनुभाव हैं। </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">स्मृति</span><span style="font-family: Mangal;">’ | </span> <span lang="HI"> संचारी भाव है। इस प्रकार रति स्थायी भाव संयोग-शृंगार में परिणत हुआ है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रश्न 4.</span> <span lang="HI"> वियोग श्रृंगार को परिभाषित करते हुए उदाहरण रस के अंगों सहित लिखिए।</span></span></h3> <p> <span lang="HI"><b> उत्तर</b>:</span> <span lang="HI"> वियोग श्रृंगार-जहाँ प्रेमी-प्रेमिका की वियोग दशा में प्रेम का अंकन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विरह वेदना का सरस वर्णन हो वहाँ वियोग श्रृंगार होता है। इसे विप्रलम्भ श्रृंगार भी कहते हैं। इसमें स्थायी भाव-रति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विभाव-प्रेमी-प्रेमिका</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुभाव-प्रस्वेद</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अश्रु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कम्पन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रुदन आदि तथा संचारी भाव-स्मृति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> विषाद</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आवेग</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">आदि होते हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> अंगों सहित उदाहरण :</b></span></p> <p><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"> वृन्दावन गोकुल वन उपवन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सघन कुंज की छाहीं।</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रात समय माता जसुमति अरु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नन्द देख सुख पावत।</span></p> <p> <span lang="HI"> माखन रोटी दह्यौ सजायौ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अति हित साथ खवावत।</span></p> <p> <span lang="HI"> गोपी ग्वाल बाल संग खेलत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सब दिन हँसत सिरात॥</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></p> <p> <span lang="HI"><b> स्पष्टीकरण</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इसमें आश्रय श्रीकृष्ण तथा आलम्बन गोकुल की वस्तुएँ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नन्द किशोर आदि हैं। वृन्दावन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वन उपवन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> रोटी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दही आदि उद्दीपन हैं। आँसू मलिनता आदि अनुभाव हैं। स्मृति संचारी भाव है तथा रति स्थायी भाव है।<span></span></span></p><!--more--><p></p> <p> <span style="color: navy; font-size: medium;">MCQ</span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न 1.</span> <span lang="HI"> श्रीकृष्ण के हृदय पर किसकी माला शोभा पा रही है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (क) मणियों की</span> <span lang="HI"> (ख) मोतियों की</span> <span lang="HI"> (ग) गुंजों की</span> <span lang="HI"> (घ) फूलों की।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> (ग) गुंजों की<br /> </span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न 2.श्रीकृष्ण के कानों में किस प्रकार के कुण्डल सुशोभित हैं</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (क) मकर की आकृति के</span> <span lang="HI"> (ख) मछलियों की आकृति के</span> <span lang="HI"> (ग) भौरों की आकृति के</span> <span lang="HI"> (घ) हिरणों की आकृति के।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> (ख) मछलियों की आकृति के</span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न 3.</span> <span lang="HI"> प्रसादजी ने श्रद्धा सर्ग में किस प्रकार का चित्रण किया है</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (क) मनु और श्रद्धा के प्रेम का</span> <span lang="HI"> (ख) प्रकृति का चित्रण</span> <span lang="HI"> (ग) नारी सौन्दर्य का</span> <span lang="HI"> (घ) उपर्युक्त सभी।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> (घ) उपर्युक्त सभी।</span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रश्न 4.</span> <span lang="HI"> सृष्टि में प्रलय के पश्चात् मनु ने सबसे पहले किसको देखा</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (क) पर्वतों को</span> <span lang="HI"> (ख) वायु के झोंके</span> <span lang="HI"> (ग) वृक्षों को</span> <span lang="HI"> (घ) श्रद्धा को।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span> <span lang="HI"> (घ) श्रद्धा को।<br /> </span></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> सोहत ओढ़े पीतु पटु स्याम </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> गात।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> गोपाल के गले में </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> माला थी।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> नील परिधान बीच सुकुमार खुल रहा मृदुल </span><span style="font-family: Mangal;">…………. </span> <span lang="HI"> अंग।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> श्रद्धा के अपूर्व सौन्दर्य को देख </span><span style="font-family: Mangal;">………… </span> <span lang="HI"> आकर्षित होते हैं।</span></span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सलौने</span></li><li><span lang="HI"> गुंजों</span></li><li><span lang="HI"> अधखिला</span></li><li><span lang="HI"> मनु।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"> </span></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">सत्य/असत्य</span></span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> बिहारी के दोहों में राधा-कृष्ण के प्रेम का सुन्दर वर्णन है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कामायनी</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> आधुनिक काल का श्रेष्ठ महाकाव्य है। </span> </span></li><li><span style="color: red;"><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">नील घनशावक से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> पंक्ति प्रसाद की लहर</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> कविता की है।</span></span></li><li><span style="color: red;"><span lang="HI"> प्रलयकाल के बाद जब मनु अकेले रह जाते हैं तब उन्हें श्रद्धा के दर्शन होते हैं।</span></span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य</span></li><li><span lang="HI"> असत्य</span></li><li><span lang="HI"> सत्य।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">सही जोड़ी मिलाइए</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> 1. बिहारी के दोहों में नायक श्रीकृष्ण व नायिका (क) मकर के आकार की है </span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> 2. बिहारी प्रेम और सौन्दर्य (ख) आकर्षित हो उठते हैं </span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> 3. गोपाल के कुण्डलों की आकृति (ग) के कवि हैं </span> </span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> 4. श्रद्धा की रूप-राशि से मनु (घ) राधा हैं</span></span></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p> <span lang="HI"> 1. </span><span style="font-family: Mangal;">→ (</span><span lang="HI">घ)</span></p> <p> <span lang="HI"> 2. </span><span style="font-family: Mangal;">→ (</span><span lang="HI">ग)</span></p> <p> <span lang="HI"> 3. </span><span style="font-family: Mangal;">→ (</span><span lang="HI">क)</span></p> <p> <span lang="HI"> 4. </span><span style="font-family: Mangal;">→ (</span><span lang="HI">ख)<br /> </span></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></span></p> <p style="text-align: left;"></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI" style="color: red;">बिहारी के काव्य में किस रस की प्रधानता है</span><span style="color: red; font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI" style="color: red;">प्राचीन काल में कवि राजाओं के दरबार में रहकर उनकी प्रशंसा में कविता क्यों करते थे</span><span style="color: red; font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI" style="color: red;">श्रद्धा की मधुर वाणी सुनकर किसकी समाधि भंग हुई</span><span style="color: red; font-family: Mangal;">?</span></li><li><span lang="HI" style="color: red;">श्रीकृष्ण के हृदय पर किसकी माला शोभा पा रही है</span><span style="color: red; font-family: Mangal;">? </span></li></ol><p></p> <p> <span lang="HI"> उत्तर:</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्रृंगार रस</span></li><li><span lang="HI"> जीविकोपार्जन के लिए</span></li><li><span lang="HI"> मनु की</span></li><li><span lang="HI"> गुंजों की।</span></li></ol> <p></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">सौन्दर्य-बोध भाव सारांश</span></span></p> <p> <span lang="HI"> रीतिकालीन कवि बिहारीजी ने श्रीकृष्ण की वेश-भूषा एवं सुन्दर छवि का वर्णन किया है। उनका पीताम्बर प्रात:काल की पीली धूप की भाँति सुशोभित है। श्रीकृष्ण का सौन्दर्य इतना अपूर्व है कि कोई भी कवि उनके अलौकिक सौन्दर्य के वर्णन में सफल नहीं हो सकता। श्रीकृष्ण के मस्तक पर लगा लाल रंग का टीका सूर्यमण्डल में प्रवेश करके उनके सौन्दर्य में चार-चाँद लगा रहा है।</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रीकृष्ण के हृदय में राधा निवास करती हैं। उनका सौन्दर्य उर्वशी अप्सरा से भी अधिक है। नायिका का मन नायक के प्रेम के कारण सांसारिक कार्यों में नहीं लगता है। उसका चंचल मन नायक के ध्यान में निमग्न रहता है। नायिका को अपने चारों ओर नायक श्रीकृष्ण की छवि दिखाई देती रहती है।</span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> प्रेम और सौन्दर्य संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> सोहत औ. पीतु पटु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्याम सलौने गात।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मनौं नीलमनि-सैल पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आतपु परयौ प्रभात॥ (1)</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सोहत = शोभा दे रहा है। सलौने = सुन्दर चमकीले। गात = शरीर। सैल = पर्वत। आतपु = घाम</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> धूप।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्रस्तुत दोहा बिहारी द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">सौन्दर्य-बोध</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> शीर्षक से लिया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> यहाँ पर पीताम्बरधारी श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण के स्वरूप का मोहक अंकन किया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कविवर बिहारी कहते हैं कि नायक के श्याम सलौने शरीर पर पीला वस्त्र ओढ़ने से ऐसा लगता है मानो नीलमणि के</span><span style="font-family: Mangal;">,</span><span lang="HI">पर्वत पर प्रात:कालीन धूप पड़ रही हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> इस दोहे में नायक के शारीरिक सौन्दर्य का वर्णन हुआ है।</span></li><li><span lang="HI"> छेकानुप्रास एवं उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> दोहा छन्द।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> सखि सोहत गोपाल के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उर गुंजनु की माल।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> बाहिर लसति मनौ पिए</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दावानल की ज्वाल॥ (2)</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> उर = वक्षस्थल पर। गुंजनु की माल = गुंजा रत्नों की माला। लसति = शोभित हो रही है। दावानल = जंगल की आग।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायिका ने गुंजों के कुंज में नायक से मिलने का वायदा किया था पर किसी कारण वह वहाँ न पहुँच सकी इससे नायक दुःखित हो जाता है। इसी भाव को यहाँ व्यक्त किया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायिका अपनी सखी से जो उसके वृत्तांत से परिचित है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> कहती है कि श्रीकृष्ण के हृदय पर गुंज माला मुझे ऐसी लगती है मानो उस कुंज में मुझे न पाकर इनको जो दुःखरूपी दावानल का पान करना पड़ा</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी की ज्वाला बाहर निकल रही है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसे देखकर मेरी आँखों को बड़ा ताप होता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> गुरुजनों के मध्य नायिका अपनी बात को संकेतों के माध्यम से कहना चाहती है।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास एवं उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> छन्द दोहा।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> लिखन बैठि जाकी सबी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गहि-गहि गरव गरूर।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> भए न केते जगत के</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> चतुर चितेरे कूर॥ (3)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> सबी (सबीह) = यथार्थ चित्र। गरव गरूर = घमण्ड के साथ। केते = कितने। जगत = संसार के। चितेरे = चित्र बनाने वाले। कूर = विदलित</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बुरी तरह विकृत।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस दोहे में नायिका की सखी नायक से उसके। क्षण-क्षण पर बढ़ते हुए यौवन तथा शरीर की कान्ति की प्रशंसा कर रही है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायिका की सखी नायक से कह रही है कि भला मैं बेचारी उस नायिका की प्रतिक्षण विकसित होती हुई शोभा। का वर्णन कैसे कर सकती हूँ</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> उसका यथार्थ चित्र लिखने के लिए घमण्ड में भर-भरकर बैठे जगत के कितने चतुर मूढ़ मति (क्रूर) नहीं हुए।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> नायिका के शरीर की</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> प्रतिक्षण बदलती रूप छवि का वर्णन किया गया है।</span></li><li><span lang="HI"> सबी</span><span style="font-family: Mangal;">’ (</span><span lang="HI">सबीह) अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ यथार्थ चित्र से है।</span></li><li><span lang="HI"> गहि-गहि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।</span></li></ol><div><br /></div> <p></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मकराकृति गोपाल कैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सोहत कुंडल कान।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> धस्यो मनौ हियगढ़ समरु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ड्योढ़ी लसत निसान॥ (4)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> मकराकृति = मछली की आकृति के। सोहत = शोभा देते हैं। धस्यौ = धस गया</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अपने अधिकार में किया। हियगढ़ = हृदय रूपी गढ़ में। लसत = शोभा दे रहे हैं। निसान = ध्वजा।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> सखी द्वारा नायिका का वर्णन करने पर नायक के ऊपर। जो कामदेव का प्रभाव पड़ा है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी का वर्णन यहाँ किया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> हे सखी। गोपाल के कानों में मछली की आकृति के कुंडल ऐसे सुशोभित हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मानो हृदय रूपी गढ़ (किले) पर कामदेव ने विजय प्राप्त कर ली है। इसी कारण उसके ध्वज मकान की ड्योढ़ी पर फहरा रहे हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> नायक पर कामदेव के प्रभाव का वर्णन किया गया है।</span></li><li><span lang="HI"> दूसरी पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li><li><span lang="HI"> शृंगार रस का वर्णन।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"> </span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> नीको लसत लिलार पर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> टीको जरित जराय।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> छविहिं बढ़वत रवि मनौ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ससि मंडल में आय॥ (5)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> नीको= अच्छा। लसत= शोभा देता है। लिलार पर = माथे पर। जरित जराय = जड़ा हुआ। रवि = सूर्य ससि = चन्द्रमा। टीको = माथे पर पहनने वाला आभूषण।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायिका के जड़ाऊ टीके को माथे पर देखकर उससे रीझकर नायक कहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायक कहता है कि उसके ललाट पर जड़ाऊ काम से जड़ा हुआ टीका ऐसा अच्छा लग रहा है मानो चन्द्र-मंडल में आकर सूर्य उसकी छवि बढ़ा रहा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> माथे पर पहने हुए टीके की शोभा का वर्णन</span></li><li><span lang="HI"> द्वितीय पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li><li><span lang="HI"> शृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"> </span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> झीनैं पट मैं झिलमिली</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> झलकति ओप अपार।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> सुरतरु की मनु सिंधु में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> लसति सपल्लव डार।। (6)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> ओप = चमक। सुरतरु = देवताओं का वृक्ष अर्थात् कल्पवृक्ष। लसति = शोभित होती है। सपल्लव = पत्तों सहित। डार = डाल।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> झीने पट में फूटकर निकली हुई नायिका के शरीर की झलक पर रीझकर नायक कहता है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायक कहता है ओहो! इसकी झिलमिली (एक प्रकार का कानों में पहने जाने वाला आभूषण) अपार चमक के साथ झीने पट में झलक रही है। मानो कल्प वृक्ष की पत्तों सहित डाल समुद्र में विलास कर रही हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> झीने पट में झिलमिली की झलक का सुन्दर वर्णन है।</span></li><li><span lang="HI"> दूसरी पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li><li><span lang="HI"> शृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> त्यौं-त्यौं प्यासेई रहत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ज्यौं-ज्यौं पियत अघाई।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> सगुन सलोने रूप की</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जुन चख तृषा बुझाई॥ (7)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> प्यासेई रहत = प्यास नहीं बुझती है। अघाई = छककर पीने पर भी। चख = नेत्र। तृषा = प्यास।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायिका नायक को बार-बार देखती है फिर भी उसकी प्यास नहीं बुझती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> इसी का यहाँ वर्णन है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> नायिका कहती है कि मेरे प्यासे नेत्र ज्यों-ज्यों उस सगुन सलोने रूप को अघाकर पीते हैं त्यों-त्यों ही वे प्यासे बने रहते हैं क्योंकि सगुन एवं सलोने (खारे) पानी से आँखों की प्यास बुझती नहीं है अपितु बढ़ती ही जाती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> इसमें कवि ने यह भाव प्रकट किया है कि जैसे खारे पानी से प्यास तृप्त नहीं होती है उसी तरह नायक के सलोने रूप को देखने की इच्छा भी पूरी नहीं होती है।</span></li><li><span lang="HI"> चख-तृषा में रूपक।</span></li><li><span lang="HI"> श्रृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> तो पर वारौं उरबसी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुनि राधिके सुजान।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> तू मोहन के उर बसी है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उरबसी समान॥ (8)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> उरबसी = उर्वशी नामक अप्सरा। सुजान = चतुर। उरबसी = हृदय में बस गयी है। उरबसी = हृदय पर पहनने का आभूषण।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> जब राधिका जी ने यह सुना कि श्रीकृष्ण किसी अन्य नायिका से प्रेम करने लगे हैं तो उन्होंने मौन धारण कर लिया है। सखी इसी मौन को छुड़ाने के निमित्त कहती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> हे चतुर राधिका! सुन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तू तो इतनी सुन्दर है कि तुझ पर मैं इन्द्र की अप्सरा उर्वशी को भी न्योछावर कर दूँ। हे राधा! तू तो मोहन के उर (हृदय) में उरबसी आभूषण के समान बसी हुई है। अतः दूसरों की बात सुनकर तुम मौन धारण मत करो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"><b> नायिका के मौन को छुड़ाने का प्रयास है।</b></span></p> <p> <b><span lang="HI"> उरबसी</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> में श्लेष</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उरबसी-उरबसी में यमक अलंकार।</span></b></p> <p> <span lang="HI"><b> शृंगार रस।</b></span></p><p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> फिरि-फिरि चित उत ही रहतु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> टूटी लाज की लाव।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अंग-अंग-छवि-झौर में</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> भयो भौर की नाव॥ (9)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> लाव = नाव बाँधने की रस्सी। लाज की लाव = लज्जा रूपी लाव। झौर = झूमर (झुंड) भौंर = भँवर।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस दोहे में नायिका अपनी सखी से अपनी स्नेह दशा का वर्णन करती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> हे सखी! नायक के अंग-प्रत्यंग की छवि के झूमर में फँसकर मेरा चित्त (मन) भँवर में पड़ी हुई नाव जैसा बनकर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> बार-बार घूमकर पुनः उसी अर्थात् नायक की ओर ही लगा रहता है। वह किसी दूसरी तरफ नहीं जाता है क्योंकि उसकी लज्जारूपी रस्सी टूट गई है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> नायक के प्रति विशेष आकर्षण ने उसकी लोक-लज्जा को मिटा दिया है।</span></li><li><span lang="HI"> फिरि-फिरि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अंग-अंग में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सम्पूर्ण में अनुप्रास।</span></li><li><span lang="HI"> शृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> जहाँ-जहाँ ठाढ़ौ लख्यौ</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्याम सुभग-सिरमौरू।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> उनहूँ बिन छिन गहि रहतु</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> दृगनु अजौं वह ठौरू॥ (10)</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> लख्यौ = देखा। सुभग = भाग्यवानों का। सिरमौरू = शिरोमणि। अजौं = अब भी। ठौरू = स्थान।</span></p> <p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b> :</span></p><p><span lang="HI">पूर्ववत्।</span></p><p><span lang="HI"><b>प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रीकृष्ण के गोकुल से मथुरा चले जाने पर ब्रजबालाएँ आपस में जो वार्तालाप कर रही हैं</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी का यहाँ वर्णन है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> ब्रज की युवतियाँ परस्पर कह रही हैं कि जिन-जिन स्थानों पर हमने प्यारे श्रीकृष्ण को खड़ा देखा था उन स्थानों में उनके कारण ऐसी सुन्दरता आ गई है कि उनके यहाँ न रहने पर भी हमारे नेत्रों को ऐसे प्रिय लगते हैं कि हम अब भी अपने आपको श्याम सुन्दर के संग पाती हैं।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> सुभग सिरमौरु का अर्थ सुन्दर पुरुषों में शिरोमणि (श्रीकृष्ण) के लिए आया है।</span></li><li><span lang="HI"> श्रीकृष्ण के अलौकिक प्रभाव की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> जहाँ-जहाँ में पुनरुक्ति</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> स्याम सुभग-सिरमौर में अनुप्रास अलंकार।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: navy; font-size: medium;"> <span lang="HI">श्रद्धा भाव सारांश</span></span></p> <p> <span lang="HI"> जयशंकर प्रसाद ने श्रद्धा तथा मनु की प्राचीन कथा के माध्यम से मानव मन की तर्क प्रधान बुद्धि का अंकन किया है।</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा मनु से प्रश्न करती है आप कौन हैं जो इस एकान्त स्थान को अपनी आभा से आलोकित किये हो</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> संसार रूपी सागर की लहरों के समीप इस निर्जन स्थान पर मौन होकर क्यों बैठे हो</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></p> <p> <span lang="HI"> आपको देखकर ऐसा आभास होता है कि आपने दुनिया के रहस्य का निदान कर लिया है। आप करुणा की सजल मूर्ति हो। मनु ने श्रद्धा के अपूर्व सौन्दर्य को निहारा। वह उनके नेत्रों को उलझाने वाला सुन्दर माया-जाल था। श्रद्धा का शरीर पुष्पों से आच्छादित कोमल लता के समान अथवा बादलों के मध्य चन्द्र की चाँदनी जैसा दृष्टिगोचर हो रहा था।</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा का शरीर बसन्त की शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु से झूमते हुए सुरभित शाल के लघु वृक्ष की भाँति सुशोभित हो रहा था। श्रद्धा की केशराशि उसके कंधों तक पीछे की ओर बिखरी हुई थी। बालों की आभा उसके मुखमण्डल की शोभा को और भी अधिक बढ़ा रही थी। श्रद्धा की मुस्कान कोमल कली पर उगते हुए सूर्य की उज्ज्वल किरण अलसाई होने के कारण सुन्दर लग रही थी।</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा की सुन्दरता इस प्रकार दृष्टिगोचर हो रही थी मानो पुष्पों का वन लेकर मन्द-मन्द बहती हुई वायु उसके आँचल को सुगन्ध से परिपूर्ण करके कृतज्ञता ज्ञापन कर रही हो।<br /> </span></p> <p> <span lang="HI"> <span style="color: navy; font-size: medium;">श्रद्धा संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (1) </span><span style="font-family: Mangal;">“</span><span lang="HI">कौन तुम</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> संसृति-जलनिधि तीर-तरंगों से फेंकी मणि एक</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> कर रहे निर्जन का चुपचाप प्रभा की धारा से अभिषेक</span><span style="font-family: Mangal;">?</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मधुर विश्रांत और एकांत-जगत का सुलझा हुआ रहस्य</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> एक करुणामय सुन्दर मौन और चंचल मन का आलस्य।</span><span style="font-family: Mangal;">”</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> संसृति = संसार। जलनिधि = सागर। निर्जन = एकान्त। प्रभा = कान्ति। अभिषेक = तिलक करना</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुशोभित करना। मधुर = आकर्षक। विश्रांत = थके हुए। . </span></p><p><span lang="HI"><b>सन्दर्भ</b>-प्रस्तुत छन्द महाकवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">कामायनी</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> महाकाव्य के </span><span style="font-family: Mangal;">‘</span><span lang="HI">श्रद्धा</span><span style="font-family: Mangal;">’ </span> <span lang="HI"> सर्ग से लिया गया है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> प्रसंग</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> इस छन्द में प्रलय काल के पश्चात् श्रद्धा का मनु से साक्षात्कार होता है। श्रद्धा मनु से पूछती है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा मनु से पूछती है कि तुम कौन हो</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> जिस प्रकार सागर की लहरों द्वारा किनारे पर फेंकी गई मणि सूनेपन को अपनी ज्योति से सुशोभित करती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसी प्रकार तुम भी इस संसार रूपी सागर के किनारे बैठे हुए मणि के समान इस एकान्त स्थान को अपनी कान्ति से सुशोभित कर रहे हो। तुम्हारा रूप मधुर है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> तुम थके हुए से प्रतीत हो रहे हो और इस एकान्त सूने स्थान पर बैठे हो। तुम्हें देखकर ऐसा लगता है मानो तुमने संसार के रहस्य को सुलझा लिया है इसलिए तुम यहाँ निश्चित होकर बैठे हो। तुम्हारे मुख पर करुणा भी है और तुम्हारा मौन बड़ा आकर्षक प्रतीत होता है। तुम्हारी यह शान्ति सदैव चंचल रहने वाले मन की शिथिलता के समान है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> कविता का आरम्भ नाटकीय ढंग से होता है।</span></li><li><span lang="HI"> रूपक एवं उपमा अलंकार का प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> श्रृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (2) सुना यह मनु ने मधु गुंजार मधुकरी-सा जब सानन्द</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> किए मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यों सुन्दर छन्द</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> एक झिटका-सा लगा सहर्ष</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> निरखने लगे लुटे से कौन</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> गा रहा यह सुन्दर संगीत</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> कुतूहल रहन सका फिर मौन।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> मधु-गुंजार = मनोहर शब्द। मधुकरी = भँवरी। सानन्द = आनन्द सहित। झिटका = झटका।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि उस समय मनु नीचे झुके हुए कमल के समान अपना मुख नीचा किए बैठे थे। उन्होंने भँवरी की गुंजार के समान श्रद्धा की यह मधुर वाणी बड़े हर्ष से सुनी। उस समय वे अकेले थे</span><span style="font-family: Mangal;">; </span> <span lang="HI"> किसी अन्य की मधुर वाणी सुनकर उनका प्रसन्न होना स्वाभाविक था। श्रद्धा द्वारा कहे गये ये शब्द मनु के लिए आदि कवि वाल्मीकि के प्रथम सुन्दर छन्द के समान थे।</span></p> <p> <span lang="HI"> वाल्मीकि कवि के प्रथम छन्द में करुणा का भाव समाया हुआ था। इधर श्रद्धा के वचनों में भी करुणा है। श्रद्धा की वाणी सुनते ही मनु को एक झटका-सा लगा और वे मोहित होकर यह देखने लगे कि कौन यह संगीत से मधुर वचन कह रहा है</span><span style="font-family: Mangal;">? </span> <span lang="HI"> जब मनु ने श्रद्धा को अपने सामने देखा तो कुतूहल के कारण वह शान्त न रह सके।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> आदि कवि वाल्मीकि के मुख से जो प्रथम छन्द निकला था</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसमें करुणा मौजूद थी।</span></li><li><span lang="HI"> अनुप्रास एवं उपमा अलंकार का प्रयोग।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा खड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (3) और देखा वह सुन्दर दृश्य नयन का इन्द्रजाल अभिराम</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> कुसुम-वैभव में लता समान चन्द्रिका से लिपटा घनश्याम।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया उन्मुक्त</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मधु-पवन</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> क्रीड़ित ज्यों शिशु साल</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> सुशोभित हो सौरभ-संयुक्त।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> इन्द्रजाल = जादू। अभिराम = सुन्दर। कुसुम-वैभव = फलों का ऐश्वर्य। चन्द्रिका = चाँदनी। घनश्याम = काला बादल। अनुकृति = अनुरूप। बाह्य = देखने में। उन्मुक्त = स्वछंद। मधु-पवन = बसन्त की वाय शिशु-साल = साल का छोटा वृक्ष। सौरभ-संयुक्त = सुगन्धि से युक्त।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि मनु ने वह सुन्दर दृश्य देखा जो नेत्रों को जादू के समान मोहित कर देने वाला था। श्रद्धा उस समय फूलों की शोभा से युक्त लता के समान लग रही थी। श्रद्धा चाँदनी से घिरे हुए काले बादल के समान लग रही थी। श्रद्धा ने नीली खाल का वस्त्र पहन रखा था इस कारण वह बादल के समान दिखाई दे रही थी। किन्तु उसकी शारीरिक कान्ति उसके परिधान के बाहर भी जगमगा रही थी। श्रद्धा हृदय की भी उदार थी और उसी के अनुरूप वह देखने में उदार लग रही थी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> उसका कद लम्बा था और उससे स्वच्छन्दता झलक रही थी। वायु के झोंकों में वह ऐसी लगती थी मानो बसन्त की वायु से हिलता हुआ कोई छोटा साल का पेड़ हो और वह सुगन्धि में डूबा हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्रद्धा के अनुपम सौन्दर्य का वर्णन।</span></li><li><span lang="HI"> उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (4) मसूण</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> गांधार देश के नील रोम वाले मेषों के चर्म</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> ढंक रहे थे उसका वपु कांत बन रहा था वह कोमल वर्म।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> नील परिधान बीच सुकुमार खुला रहा मृदुल अधखुला</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अंग</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> खिला हो ज्यों बिजली का फूल मेघवन बीच गुलाबी रंग।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> मसृण = चिकने। गांधार देश = कंधार देश (अफगानिस्तान देश वर्तमान में)। रोम = रोयें। मेष = मेंढ़ा। चर्म = खाल। वपु = शरीर। कान्त = सुन्दर। वर्म = आवरण। परिधान = वस्त्र। मृदुल = कोमल।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि कंधार देश के रोयें वाले मेंढ़ों की कोमल खाल से उसका सुन्दर शरीर ढका हुआ था। वही खाल (चमड़ा) उसका कोमल आवरण (वस्त्र) बन रहा था।</span></p> <p> <span lang="HI"> उस नीले आवरण के बीच से उसका कोमल अंग दिखाई दे रहा था। ऐसा लग रहा था मानो मेघ-वन के बीच में गुलाबी रंग का बिजली का फूल खिला हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्रद्धा की वेशभूषा और सुन्दरता का वर्णन है।</span></li><li><span lang="HI"> उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li><li><span lang="HI"> भाषा-खीड़ी बोली।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (5) आज</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वह मुख! पश्चिम के व्योम बीच जब घिरते हों घनश्याम</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अरुण रवि-मण्डल उनको भेद दिखाई देता हो छविधाम।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> या कि</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> नव इंद्रनील लघु शृंग फोड़कर धधक रही हो कांत</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> एक लघु ज्वालामुखी अचेत माधवी रजनी में अश्रान्त।</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> व्योम= आकाश। अरुणलाल। रवि-मण्डल = सूर्य मण्डल। छविधाम = सुन्दर। इन्द्रनील = नीलम। लघु श्रृंग = छोटी चोटी। माधवी रजनी = बसन्त की रात। अश्रान्त = निरन्तर।</span></p> <p> <span lang="HI"> <b>सन्दर्भ एवं प्रसंग</b>-पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या-</b>कवि कहता है कि आह! वह मुख बहुत ही। सुन्दर था। सन्ध्या के समय पश्चिम दिशा में जब काले बादल आ जाते हैं और सूर्य अस्त होने से पहले छिप जाता है किन्तु जब</span></p> <p> <span lang="HI"> लाल सूर्य उन मेघों को चीर कर दिखाई देता है तो वह अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। श्रद्धा के मुख का सौन्दर्य भी वैसा ही था।</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा के मुख की सुन्दरता का वर्णन करते हुए आगे कवि। कहता है कि नीलम की नन्ही-सी चोटी हो और बसन्त ऋतु की मधुर रात्रि में एक छोटा-सा ज्वालामुखी उस नीलम की चोटी</span></p> <p> <span lang="HI"> को फोड़कर धधक रहा हो तो जैसी उसकी शोभा होगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वैसी ही। शोभा श्रद्धा के मुख की थी।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्रद्धा द्वारा पहना गया वस्त्र नीला है इस कारण नीले मेघों के बीच सूर्य की कल्पना की गई है।</span></li><li><span lang="HI"> नीलम की चोटी कल्पना भी इसी नीले आवरण के कारण की गयी है।</span></li><li><span lang="HI"> उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (6) घिर रहे थे घुघराले बाल अंस अवलम्बित मुख के पास</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> नील घनशावक से सुकुमार सुधा भरने को विधु के पास।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> और उस मुख पर वह मुसकान। रक्त किसलय पर ले विश्राम</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> अरुण की एक किरण अम्लान अधिक अलसाई हो अभिराम।</span></span></p> <p> <span lang="HI"><b> शब्दार्थ</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> अंस. = कंधा। अवलम्बित = सहारे। घन-शावक = बादल के बच्चे। सुधा = अमृत। विधु = चन्द्रमा। रक्त किसलय = लाल कोंपल। अरुण = सूर्य। अम्लान = कान्तिमान। अभिराम = सुन्दर।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा के मुख के पास उसके कंधे पर धुंघराले बाल बिखरे हुए थे। उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था मानो मेघों के बालक अर्थात् छोटे बादल चन्द्रमा के पास अमृत भरने को आये हों और श्रद्धा के मुख पर मुस्कराहट ऐसी शोभा दे रही थी मानो कोई सूर्य की कान्तिमान किरण लाल कोंपलों पर विश्राम करके अलसा रही हो।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्रद्धा के बाल नीले मेघों के समान हैं और मुख = चन्द्रमा के समान</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अतः उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li><li><span lang="HI"> श्रद्धा के ओंठ लाल कोंपल के समान हैं और मुस्कराहट सूर्य की किरण के समान। अतः उत्प्रेक्षा।</span></li><li><span lang="HI"> श्रृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (7) नित्य-यौवन छवि से ही दीप्त विश्व की करुण कामना मूर्ति</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> स्पर्श के आकर्षण से पूर्ण प्रकट करती ज्यों जड़ में स्फूर्ति।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> उषा की पहिली लेखा कांत</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> माधुरी से भींगी भर मोद</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> मद भरी जैसे उठे सलज्ज भोर की तारक-द्युति की गोद॥</span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> यौवन की छवि = यौवन की शोभा। दीप्ति = शोभित। करुण = दयावान। कामना मूर्ति = इच्छा की मूर्ति। स्पर्श-पूर्ण = श्रद्धा को देखकर उसे स्पर्श करने की इच्छा होती थी। स्फूर्ति = चेतना। लेखा कांत = सुन्दर किरण। माधुरी = सुषमा। मोद = हर्ष। मदभरी = मस्ती से भरी हुई। भोर = प्रात:काल। तारक द्युति की गोद = तारों की शोभा की छाया में।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि श्रद्धा अनन्त यौवन की शोभा से दीप्त थी। वह संसार भर की सदय इच्छा की मूर्ति थी। उसे देखकर उसे स्पर्श करने की तीव्र इच्छा उत्पन्न होती थी। ऐसा लगता था मानो उसका सौन्दर्य जड़ वस्तुओं में भी चेतना भर देता था।</span></p> <p> <span lang="HI"> श्रद्धा उषा की पहली सुन्दर किरण के समान है। उसमें माधुर्य</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> आनन्द</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> मस्ती एवं लज्जा है। जिस प्रकार उषा की प्रथम किरण अन्धकार को दूर करती हुई निकल जाती है उसी प्रकार श्रद्धा के दर्शन से मनु के हृदय में छाया निराशा का अंधकार भी दूर होने लगा।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> उषा की प्रथम किरण का मानवीकरण है।</span></li><li><span lang="HI"> श्रद्धा को पाकर मनु की निराशा कुछ कम होने लगी है।</span></li><li><span lang="HI"> उपमा एवं उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></li></ol> <p></p> <p><span lang="HI"><br /></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> (8) कुसुम कानन अंचल में मंद-पवन प्रेरित सौरभ साकार</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> रचित-परमाणु-पराग-शरीर</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> खड़ा हो</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> ले मधु का आधार।</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> और पड़ती हो उस पर शुभ्र नवल मधु राका मन की साथ</span><span style="font-family: Mangal;">,</span></span></p> <p><span style="color: red;"> <span lang="HI"> हँसी का मद विह्वल प्रतिबिम्ब मधुरिमा खेला सदृश अबाध।</span></span></p><p><span style="color: red;"><span lang="HI"><br /></span></span></p> <p> <span lang="HI"> शब्दार्थ :</span></p> <p> <span lang="HI"> कानन-अंचल = जंगल के बीच। मंद-पवन = धीरे-धीरे चलने वाली वायु। सौरभ साकार = सुगन्धि की साकार मूर्ति। परमाणु </span><span style="font-family: Mangal;">– </span> <span lang="HI"> पराग = पराग के परमाणु। मधु = पुष्प रस। शुभ्र = स्वच्छ। नवल = नवीन। मधु राका = बसन्त की पूर्णिमा। मद विह्वल = मस्ती से भरी हुई। मधुरिमा खेला सदृश अबाध = हँसी में अक्षय माधुर्य भरा है।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b></span></p> <p> <span lang="HI"> पूर्ववत्।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> व्याख्या</b> :</span></p> <p> <span lang="HI"> कवि कहता है कि श्रद्धा फूलों से भरे हुए वन के बीच सौरभ की मूर्ति के समान दिखाई देती है</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> जिससे मन्द पवन खेल रहा है। वह सौरभ की मूर्ति फलों के पराग के परमाणुओं से बनी है। इस पराग निर्मित मूर्ति पर मन की कामना रूपी नवीन बसन्त की पूर्णिमा की चाँदनी पड़ रही हो तो जैसी शोभा होगी</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> वैसी ही शोभा श्रद्धा की हो रही थी। उस समय श्रद्धा की मस्त हँसी निरन्तर माधुर्य से खेला करती थी।</span></p> <p> <span lang="HI"><b> विशेष</b> :</span></p> <p></p><ol style="text-align: left;"><li><span lang="HI"> श्रद्धा को पराग के परमाणुओं से निर्मित मूर्ति के समान दिखाकर उसके अनुपम सौन्दर्य का वर्णन किया है।</span></li><li><span lang="HI"> उपमा अलंकार</span><span style="font-family: Mangal;">, </span> <span lang="HI"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span lang="HI"> शृंगार रस।</span></li></ol> <p></p> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-39439496252472678552021-11-02T17:00:00.002-07:002021-11-13T03:07:50.350-08:00MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions पद्य खंड Chapter 2 वात्सल्य भाव<p>नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने <span style="font-size: medium;"><b style="color: navy;">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b>पद्य खंड Chapter 2 वात्सल्य भाव </span><span style="font-size: medium;">के प्रश्न उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span></p><p></p><h2>MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions Chapter 2 in hindi</h2><p><b><span style="color: navy; font-size: medium;">अति लघु उत्तरीय प्रश्न</span></b></p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. सखी प्रातः काल किसके द्वार पर जाती है?</span></h4> उत्तर: सखी प्रातःकाल अयोध्या नरेश राजा दशरथ के द्वार पर जाती है।<br /> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. बालक राम किस वस्तु को माँगने का हठ करते हैं?</span></h4> उत्तर: बालक राम, चन्द्रमा को माँगने का हठ करते हैं।<br /> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. बच्चे की आँखों की तुलना किससे की गई है?</span></h4> उत्तर: बच्चे की आँखों की तुलना तितली के पंखों से की गई है।<br /> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 4. तुलसीदास जी के मन-मन्दिर में सदैव कौन विहार करता रहता है?</span></h4> उत्तर: तुलसीदास जी के मन-मन्दिर में अयोध्या नरेश दशरथ के चारों पुत्र विहार करते रहते हैं।<br /> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 5. ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को क्या दिया?</span></h4> उत्तर: ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को औषधियाँ दी हैं।<p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">लघु उत्तरीय प्रश्न </span></b></p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. सखी ठगी-सी क्यों रह गई?</span></h4> उत्तर: अयोध्या नरेश राजा दशरथ की गोद में भगवान श्रीराम को देखकर सखी ठगी-सी रह गई।<div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. माताएँ बालक राम की कौन-कौनसी चेष्टाओं से प्रसन्न होती हैं?</span></h4> उत्तर: माताएँ बालक राम की चन्द्रमा की माँग करने की, कभी अपनी परछाईं से डरने की और कभी करताल बजाकर नाचने की चेष्टाओं से प्रसन्न होती हैं।</div><div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. बालक राम का मुख सौन्दर्य कैसा है?</span></h4> उत्तर: बालक राम का मुख सौन्दर्य अरविन्द पुष्प जैसा शोभित हो रहा है।</div><div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 4. बच्चे के रेशमी बालों को कवि अपनी हथेलियों से क्यों स्पर्श करना नहीं चाहता?</span></h4> उत्तर: बच्चे के रेशमी बालों को कवि अपनी बिवाईं वाली पथरीली हथेलियों से इसलिए स्पर्श नहीं करना चाहता है क्योंकि उससे बालक को जीवन की कठोरताओं एवं संघर्षों का ज्ञान हो जायेगा और उससे नन्हें शिशु का कोमल मन खिन्न हो जायेगा।<p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">दीर्घ उत्तरीय प्रश्न </span></b></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. तुलसीदास ने बालक राम के किस स्वभाव का चित्रण किया है?</span></h3> उत्तर: तुलसीदास ने बालक राम के स्वभाव की विभिन्न चेष्टाओं का चित्रण किया है। कभी तो राम चन्द्रमा को पाने की हठ करते हैं, कभी अपनी ही परछाईं को देखकर डर जाते हैं, कभी करताल बजाकर नाचते हैं, कभी गुस्सा करके एवं किसी वस्तु को पाने की जिद्द पर अड़ जाते हैं।</div><div><span style="color: red;"><br /></span></div><div><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. ‘तुलसी ने बालहठ’ का स्वाभाविक चित्रण किया है? इस उक्ति को पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।</span></h3> उत्तर: संसार में तीन हठ प्रसिद्ध हैं-बालहठ, त्रियाहठ और राजहठ। बालहठ से अभिप्राय है कि बालक के मुख से जो बात निकल जाती है उसे ही वह पूरा करना चाहता है चाहे वह सम्भव हो या असम्भव। तुलसीदास ने राम की इस हठ को कि मैं तो आकाश में दिखाई देने वाला चन्द्रमा लूँगा। इसी श्रेणी में लिया है। तुलसी ने यह भी वर्णन किया है कि जिसके लिए वे अड़ जाते हैं, उसी को लेकर ही मानते हैं।</div><div><span style="color: red;"><br /></span></div><div><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. हरिनारायण व्यास ने अपने ‘ख्यालों’ की किन कमियों की ओर संकेत किया है?</span></h3> उत्तर: हरिनारायण व्यास ने अपने ख्यालों की इन कमियों की ओर संकेत किया है कि उसके ख्याल दुनियादारी की लपटों से झुलस गए हैं। जैसे कोई नाव पहाड़ों से टकराती है, उसी प्रकार उसके ख्याल भी संघर्ष करते हुए लहूलुहान हो गए हैं।</div><div><span style="color: red;"><br /></span></div><div><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 4. निम्नांकित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए</span></h3> <h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">(अ) पग नूपुर औ पहुँची कर कंजनि ………. तुलसी जग में फलु कौन जिएँ।</span></h4> उत्तर: एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि बालक राम के पैरों में घुघरू हैं और हाथों में पहुँची पहने हुए हैं तथा उन्होंने सुन्दर कमलों से बनी हुई तथा मणियों की माला अपने वक्ष स्थल पर पहन रखी है। उन्होंने शरीर पर नीला वस्त्र तथा पीला अँगा पहन रखा है जो अत्यधिक झलक मार रहा है। ऐसे वेशभूषा वाले बालक को गोद में लेकर राजा दशरथ बहुत आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। उनका मुख कमल जैसा है तथा रूप मकरंद जैसा और उनके आनन्दित नेत्र रस पान करने वाले भौरे जैसे दिखाई दे रहे हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसे बालक राम की रूप छवि यदि किसी संसारी मनुष्य के मन में नहीं बसती है तो उसका संसार में जीना व्यर्थ है।</div><div><br /><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">कबहूँ ससि माँगत आरि करें …………. तुलसी मन-मन्दिर में विहरैं।</span></h4> उत्तर: हे सखी! बालक राम कभी चन्द्रमा को माँगते हुए – उसे लेने की हठ पकड़ जाते हैं और कभी धरती पर पड़ते अपने ही प्रतिबिम्ब (परछाईं) को देखकर डरने लगते हैं। कभी ताली बजा-बजाकर नाचते हैं। सारी अर्थात् तीनों माताएँ-कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा- उनकी इन बाल-क्रीड़ाओं को देख-देख मन ही मन आनन्द से भर उठती हैं। कभी राम गुस्सा होकर हठ करके कोई चीज माँग बैठते हैं और फिर जिस वस्तु के लिए हठ पकड़ जाते हैं, उसे लेकर ही मानते हैं।<br /> तुलसीदास जी कहते हैं कि राजा दशरथ के ये चारों बालक तुलसी के मनरूपी मन्दिर में सदैव विहार करते रहें। कहने का भाव यह है कि तुलसी सदैव उनका ही स्मरण करते रहें।</div><div><span style="color: red;"><br /></span></div><div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">(ब) ये ख्याल इन दुनियादारी की/लपटों से झुलस गए हैं, पहाड़ों से टकराती नाव हैं, नाकामयाबी की चोट से/ये लहूलुहान हैं।</span></h4> उत्तर: कविवर हरिनारायण व्यास कहते हैं कि मेरे विचार आज सांसारिकता की लपटों से बुरी तरह झुलस गए हैं। मेरे विचारों की श्रृंखला पहाड़ों से संघर्ष करती हुई नाव की तरह है तथा जीवन में निरन्तर मिल रही असफलता की चोट से ये खून से लथपथ हो रहे हैं। यदि इन भीषण संघर्षों की गाथा को मैंने तुम पर रोपित करने की चेष्टा की, तो तितली की पंखुड़ियों जैसी तुम्हारी आँखों में उगते हुए उजाले के ये सतरंगी सपने इनमें फँसकर बिखर जाएँगे। उन पर मेरे संघर्षशील विचारों का कोई भी अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अतः मैंने यह निश्चय कर लिया है कि मैं अपनी बिवाईं से कटी-फटी तथा पत्थर जैसी कठोर हथेलियों से तुम्हारे रेशमी बालों की शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूँगा। कहने का भाव यह है कि कवि अपने जीवन के संघर्षों की कटु अनुभूतियों को शैशव अवस्था के बालकों की भावना पर थोपना नहीं चाहता है। वह तो यह चाहता है कि ये नये शिशु जीवन में कुछ नया भोगें, नया अनुभव करें ताकि उनका जीवन संघर्ष की कठोर यातनाओं की गाथा बनकर न रह जाए।</div><div><br /><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">फटी हुई चमड़ी में उलझकर/कोई बाल, कोई रंगीन मनसूबा, कोई कामयाब भविष्य/टूट जायेगा/आने वाला जमाना/मुझे दोषी ठहराएगा।</span></h4> उत्तर: कवि कहता है कि फटी हुई चमड़ी में उलझकर किसी बच्चे के रंगीन भविष्य की कोई अभिलाषा अधूरी रह जाएगी अथवा उसके अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न टूट जाएगा और इस घटना के पश्चात् आने वाला युग उसे दोषी सिद्ध करेगा। उस समय जीवन का स्वर्णिम भविष्य बच्चे की अलसाई पुतलियों और पलकों पर तैरता हुआ दिखाई देगा।<p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">काव्य सौन्दर्</span><span style="color: navy; font-size: medium;">य <br /> </span></b></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. रस की परिभाषा देते हुए रस के अंगों को उदाहरण सहित समझाइए।</span></h3> उत्तर: </div><div><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. वात्सल्य रस को परिभाषित करते हुए एक उदाहरण दीजिए।</span></h3><b> उत्तर: वात्सल्य रस परिभाषा</b> : सन्तान के प्रति होने वाला माता-पिता का स्नेह ही वत्सलता कहलाता है। यह वत्सल स्थायी भावही विभाव, अनुभाव तथा संचारी भाव के संयोग से वात्सल्य रस रूप में परिणत होता है। उसमें सन्तान आलम्बन, उनके मोहक क्रियाकलाप आदि उद्दीपन, गाना, पुचकारना, हँसना आदि। अनुभाव तथा हर्ष, गर्व, उत्सुकता आदि संचारी भाव होते हैं।<p> <b><span style="color: red;">उदाहरण : </span></b> <br /> जसोदा हरि पालने झुलावैं।<br /> हलरावैं दुलराइ मल्हावै जोइ सोइ कछु गावें।<br /> मेरे लाल को आव री निंदरिया, काहे न आन सुवावैं।<br /> तू काहे नहिं बेगिहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै।<br /> कबहुँ पलक हरि नूदि लेत हैं, कबहुँ अधर फरकावै।<br /> सोवत जानि मौन द्वै रहि, करि करि सैन बतावै।<br /> इति अन्तर अकुलाइ उठे हरि, जसुमति मधुरै गावै।<br /> जो सुख ‘सूर’ अमर मुनि दुर्लभ, सो नँद-भामिनी पावै।</p><span style="color: red;"><b>स्पष्टीकरण :</b></span><br /> इसमें वत्सल स्थायी भाव है। यशोदा आश्रय और कृष्ण आलम्बन हैं। कृष्ण का पलक झपकाना, होंठ फरकाना उद्दीपन हैं। यशोदा का गीत गाना आदि अनुभाव हैं। इन सबसे पुष्ट वत्सल स्थायी भाव वात्सल्य रस दशा को प्राप्त हुआ है।<p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">MCQ</span></b></p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. सखी प्रात:काल किसके द्वार पर जाती है?</span></h4> (क) कृष्ण (ख) राम (ग) राजा दशरथ (घ) नन्द।<br /> उत्तर: (ग) राजा दशरथ</div><div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. सोए हुए बालक को कौन जगाएगा?</span></h4> (क) सूरज का प्रकाश (ख) चिड़ियों की चहचहाहट (ग) बालक की माँ (घ) वायु के झोंके।<br /> उत्तर: (क) सूरज का प्रकाश</div><div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. बालक राम के दाँतों का सौन्दर्य कैसा है?</span></h4> (क) बिजली (ख) पीत वर्ण (ग) श्वेत वर्ण (घ) कुंदकली।<br /> उत्तर: (घ) कुंदकली।</div><div><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 4. बच्चे के रेशमी बालों को कवि अपनी हथेलियों से स्पर्श नहीं करना चाहता है, क्योंकि</span></h4> (क) हथेलियाँ कठोर थीं (ख) रंगीन सपने देख रहा था (ग) फटी हुई चमड़ी थी (घ) उपर्युक्त सभी।<br /> उत्तर:(घ) उपर्युक्त सभी।<p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">रिक्त स्थानों की पूर्ति</span></b></p><span style="color: red;">(I) लोकनायक तुलसीदास जी ………… के प्रतिनिधि कवि हैं। <br /> (ii) तुलसीदास जी ने ‘कवितावली’ में राम की …………. व बाललीला का वर्णन किया है।<br /> (iii) ‘रामचरितमानस’ युग-युगान्तर तक समाज को …………. प्रदान करने में सक्षम है।<br /> (iv) हरिनारायण व्यास ने बच्चे की आँखों की तुलना ………….. से की है।</span><br /> उत्तर: <br /> (i) भक्ति काल<br /> (ii) बाल छवि<br /> (iii) नवजीवन<br /> (iv) तितली के पंखों।<p></p> <p> <span style="font-family: Mangal;"><b><span style="color: navy; font-size: medium;"><br /> सत्य/असत्य</span></b> <br /> <span style="color: red;">(i) कवि ने सपनों की तुलना इन्द्रधनुष से की है।<br /> (ii) तुलसीदास ने सूरदास और रसखान की भाँति वात्सल्य भाव की कविताओं की रचना की।<br /> (iii) राम के गले में मूल्यवान मोतियों की माला सुशोभित हो रही थी।<br /> (iv) कवि ने सोए हुए बच्चे को सहलाकर जगा दिया।<br /> (v) बालक राम चन्द्रमा को माँगने की हठ करते हैं। </span><br /> उत्तर:<br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> सत्य</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> सत्य</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> सत्य</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> असत्य</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> सत्य।</span></span></li></ol><p></p><p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">सही जोड़ी मिलाइए</span></b></p><span style="color: red;">(i) (ii)<br /> १ तुलसीदास रामभक्ति शाखा के प्रमुख क) डर जाते हैं <br /> २. रामचरितमानस तुलसीदास का प्रसिद्ध ख) कवियों में श्रेष्ठ थे <br /> ३. बालक राम का सौंदर्य धुल में सने होने पर भी ग) महाकाव्य है <br /> ४, राम अपना प्रतिबिम्ब निहारकर घ) कामदेव से अधिक सुन्दर था </span> <br /> उत्तर:<br /> 1. → (ख)<br /> 2. → (ग)<br /> 3. → (घ)<br /> 4. → (क)<p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">एक शब्द/वाक्य में उत्तर</span></b></p><span style="color: red;"><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;">तुलसीदास ने मूल रूप में किस प्रकार की भक्ति को स्वीकार किया है?</span></li><li><span style="color: red;"> राम की बाल क्रीड़ा को देखकर कौन प्रसन्न होता है?</span></li><li><span style="color: red;"> कवि सोए हुए बच्चे को स्पर्श नहीं करना चाहता क्योंकि उसकी हथेलियाँ थीं।</span></li><li><span style="color: red;"> हरिनारायण व्यास की शिक्षा कहाँ सम्पन्न हुई?</span></li></ol></span> उत्तर:<br /><ol style="text-align: left;"><li> दास्य भाव</li><li> राम की माताएँ</li><li> खुरदरी-पथरीली</li><li> उज्जैन,बड़ौदा।</li></ol><p></p> <p> <span style="font-family: Mangal;"><br /> <b><span style="color: navy; font-size: medium;">कवितावली भाव सारांश</span></b></span></p><p> प्रस्तुत पंक्तियों में तुलसीदास ने बालक राम की मनोहारी छवि का अत्यन्त हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। अयोध्या के राजा दशरथ प्रातः बालक श्रीराम को अपनी गोद में लेकर बाहर निकले तो सभी बालक राम का अप्रतिम सौन्दर्य देखकर ठगे से रह गये। उनके काजल लगे नेत्र नीलकमल की शोभा का हरण कर रहे थे। उनके पैरों में पायजनिया और हाथों में कंगन तथा गले में मणियों की माला सुशोभित हो रही थी। उन्होंने सुन्दर पीला झबला पहन रखा था। उनके श्याम शरीर की कान्ति नीलकमलों की और नेत्र कमलों की-सी सुन्दरता को प्राप्त कर रहे थे। उनको दन्तावली उनके सुन्दर श्याम मुख पर दिखलाई देती हुई काले बादलों में विद्युत रेखा की जैसी उपमा प्राप्त कर रही थी। राम कभी माता से चन्द्रमा पाने का हठ करते हैं तो कभी ताली बजाकर नृत्य करते हैं। उनके गालों में लटकती हुई घुघराली लटें उनकी शोभा को इतना अधिक बढ़ा रही थीं कि कवि का मन उन पर न्योछावर हो जाने को चाहता है।</p><p> <b><span style="color: red;">कवितावली संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या<br /> </span></b></p><span style="color: red;">(1) अवधेस के द्वारें सकारें गई सुत गोद कै भूपति लै निकसे।<br /> अवलोकि हौं सोच विमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥ <br /> तुलसी मन-रंजन रंजित-अंजन, नैनसुखंजन-जातकसे। <br /> सजनी ससि में समसील उभै नवलील सरोरूह-से बिकसे॥</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> अवधेस = अवध अर्थात् अयोध्या के राजा दशरथ। सकारें = सबेरे। सुत= पुत्र। भूपति= राजा। अवलोकि = देखकर। सोच-विमोचन = चिन्ता दूर करना। धिक = धिक्कार। मनरंजन = मन को प्रसन्न करने वाले। रंजित-अंजन = काजल लगाये हुए। सुखंजन-जातक = सुन्दर खंजन पक्षी के बच्चे जैसे। सजनी = सखि। ससि = चन्द्रमा। समसील = एक जैसे। उभै = दोनों। सरोरुह – कमल। विकसे = खिले।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> प्रस्तुत पद गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ से लिया गया है।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> प्रस्तुत पद में एक सखी दूसरी सखी से राजा दशरथ द्वारा गोद में लिए गए राम के बाल रूप का वर्णन करती हुई कह रही है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> आज सबेरे जैसे ही मैं अवध नरेश राजा दशरथ के द्वार पर गयी तो उसी समय राजा दशरथ अपने पुत्र राम को गोद में लिए राजमहल से बाहर निकले। मैं समस्त चिन्ताओं को दूर करने वाले राम के उस रूप को देख ठगी-सी, मन्त्रमुग्ध-सी खड़ी रह गयी। ऐसे रूप को देखकर जो न ठगे गये अर्थात् मन्त्रमुग्ध नहीं हुए, उनका जीवन धिक्कार योग्य है। तुलसीदास<br /> जी कहते हैं कि सखी कह रही है-उस बालक के अंजन लगे हुए सुन्दर नेत्र मन को आनन्द देने वाले और सुन्दर खंजन पक्षी के बच्चे के समान मनोहर थे। हे सखी! उन नेत्रों को देखकर ऐसा लग रहा था मानो चन्द्रमा में समान रूप वाले वे नये नील कमल खिल उठे हों।<br /> <b>विशेष :</b><br /><ol style="text-align: left;"><li> इस पद में राम का मुख चन्द्रमा के समान और उनके दोनों नीले नेत्र दो नये खिले कमलों के समान बताये गये हैं।</li><li> पद में छेकानुप्रास, उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार।</li><li> वात्सल्य रस का वर्णन।</li></ol><p></p> <p> <span style="font-family: Mangal;"><span style="color: red;"><br /> (2) पग नूपुर औ पहुँची कर कंजनि भंजु बनी मनिमाल हिएँ।<br /> नवनील कलेवर पीत सँगा झलकै पुलकैं नृपु गोद लिएँ। <br /> अरविन्दु सो आननु रूप मरंदु अनंदित लोचन भंग पिएँ। <br /> मनमो न बस्यौ अस बालकु जौं तुलसी जग में फल कौन जिएँ।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> पग = पैरों में। नूपुर = धुंघरू। औ = और। पहुँची = हाथ में पहनने वाला कड़ा। कंजनि = कमल। मनिमाल = मणियों की माला। पीत = पीला। पुल = पुलकित होकर। अरविन्दु = कमल। लोचन = नेत्र। भुंग = भौंरा। मनमो = मन में। अस = ऐसा। जिएँ = जीने का। कलेवर = शरीर।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> इस पद में कविवर तुलसी बालक राम की वेशभूषा और साज-सज्जा का वर्णन कर रहे हैं।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> एक सखी दूसरी सखी से कह रही है कि बालक राम के पैरों में घुघरू हैं और हाथों में पहुँची पहने हुए हैं तथा उन्होंने सुन्दर कमलों से बनी हुई तथा मणियों की माला अपने वक्ष स्थल पर पहन रखी है। उन्होंने शरीर पर नीला वस्त्र तथा पीला अँगा पहन रखा है जो अत्यधिक झलक मार रहा है। ऐसे वेशभूषा वाले बालक को गोद में लेकर राजा दशरथ बहुत आनन्द का अनुभव कर रहे हैं। उनका मुख कमल जैसा है तथा रूप मकरंद जैसा और उनके आनन्दित नेत्र रस पान करने वाले भौरे जैसे दिखाई दे रहे हैं। तुलसीदास जी कहते हैं कि ऐसे बालक राम की रूप छवि यदि किसी संसारी मनुष्य के मन में नहीं बसती है तो उसका संसार में जीना व्यर्थ है।<br /> <b>विशेष :</b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> बालक राम की मनोहारी छवि का वर्णन हुआ</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> अनुप्रास, उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> वात्सल्य रस का वर्णन।</span></span></li></ol><p></p> <p> <span style="font-family: Mangal;"><br /> <span style="color: red;">(3) तनकी,दुति स्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं। <br /> अति सुन्दर सोहत धूरि भरे छवि भूरि अनंग की दूरि धरैं। <br /> दमकैं दतियाँ दुति दामिनि ज्यौं किलक कल बाल विनोद करें। <br /> अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन-मन्दिर में बिहरैं।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> दुति = आभा। सरोरूह = कमल। कंज = कमल। मंजुलताई = सुन्दरता। हरै = हरण करते हैं। अनंग = कामदेव। दतियाँ = दाँतों की पंक्ति। दामिनि = बिजली। मन-मन्दिर = मनरूपी मन्दिर में। बिहरै = विचरण करते हैं।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> राम के बाल रूप का वर्णन करती हुई एक सखी दूसरी सखी से कह रही है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> हे सखी! राम के शरीर की कान्ति नीले कमल के समान मनोहर है और उनके नेत्र कमल के कोमल सौन्दर्य को भी हर लेने वाले अर्थात् कमल से भी अधिक सुन्दर हैं। धूल में लिपटे हुए राम अत्यन्त सुन्दर और मन को मोह लेने वाले लगते हैं। उनके शरीर की छवि अनेक कामदेवों की शोभा को भी दूर करने वाली है अर्थात् उससे भी बढ़कर है। राम की दंत पंक्ति बिजली की चमक के समान चमकती है। कहने का भाव यह है कि जैसे श्याम मेघ में बिजली चमक उठती है, उसी प्रकार राम के हँसने पर उनके श्यामल मुख में उनके सफेद दाँत बिजली के समान चमकते हुए शोभा देते हैं। राम किलकारी मारते हुए सुन्दर। बाल-क्रीड़ाएँ कर रहे हैं। तुलसीदास कहते हैं कि राजा दशरथ के चारों पुत्र मेरे मन-मन्दिर में विहार करते रहते हैं।<br /> <b>विशेष :</b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> राम की सुन्दर रूप छवि का वर्णन किया गया।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> उपमा, प्रतीप और रूपक अलंकार।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> वात्सल्य भाव का सुन्दर चित्रण।</span></span></li></ol><p></p><p><span style="font-family: Mangal;"><span style="color: red;"><br /></span></span></p><p><span style="font-family: Mangal;"><span style="color: red;">(4) कबहूँससि माँगत आरिकरैं कबहूँप्रतिबिम्ब निहारि डरैं।<br /> कबहूँ कर ताल बजाइ कैं नाचत मातु सबै मन मोद भरें। <br /> कबहूँ रिसिआई कहैं हठिकै पुनिलेत सोई जेहिलागि अरैं। <br /> अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन-मन्दिर में बिहरैं।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> आरि = हठ, जिद्द। निहारि = देखकर। मोद = आनन्द रिसिआई = खिसियाकर। लागि अ = जिस बात की जिद्द पर अड़ जाता है।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> इस पद में एक सखी दूसरी सखी से बालक राम की सुन्दर बाल-क्रीड़ाओं का वर्णन करती हुई कह रही है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> हे सखी! बालक राम कभी चन्द्रमा को माँगते हुए – उसे लेने की हठ पकड़ जाते हैं और कभी धरती पर पड़ते अपने ही प्रतिबिम्ब (परछाईं) को देखकर डरने लगते हैं। कभी ताली बजा-बजाकर नाचते हैं। सारी अर्थात् तीनों माताएँ-कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा- उनकी इन बाल-क्रीड़ाओं को देख-देख मन ही मन आनन्द से भर उठती हैं। कभी राम गुस्सा होकर हठ करके कोई चीज माँग बैठते हैं और फिर जिस वस्तु के लिए हठ पकड़ जाते हैं, उसे लेकर ही मानते हैं।<br /> तुलसीदास जी कहते हैं कि राजा दशरथ के ये चारों बालक तुलसी के मनरूपी मन्दिर में सदैव विहार करते रहें। कहने का भाव यह है कि तुलसी सदैव उनका ही स्मरण करते रहें।<br /> <b>विशेष :</b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> इस पद में कवि ने राम की बालकोचित चेष्टाओं को बड़े ही स्वाभाविक रूप में वर्णित किया है।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> अनुप्रास एवं रूपक अलंकार।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> वात्सल्य रस का वर्णन।</span></span></li></ol><p></p> <p> <span style="font-family: Mangal;"><br /> <span style="color: red;">(5) वर दंत की पंगति कुंदकली अधराधर पल्लव खोलन की। <br /> चपला चमकैंघन बीच जगै छवि मोतिन माल अमोलन की। <br /> घुघरारि लटैं लटकै मुख ऊपर कुंडल लोल कपोलन की। <br /> नेवछावरि प्रान करें तुलसी बलि जाऊँलला इन बोलन की।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> वर = श्रेष्ठ। पंगति = पंक्ति। अधराधर = दोनों ओंठ। पल्लव = पत्ते। चपला = बिजली घन = बादल। लोल = सुन्दर। कपोलन = गालों। ल₹ = केश पाश।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> प्रस्तुत पद में बालक राम के दाँतों और धुंघराले केशों के सौन्दर्य का वर्णन किया गया है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> एक सखी दूसरी सखी से बालक राम के दाँतों और धुंघराले केशों के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहती है कि हे सखी! राम के सुन्दर दाँतों की पंक्तियाँ कुन्द नामक श्वेत रंग के फूल की कलियों के समान सुन्दर हैं। उनके दोनों ओंठ ऐसे लगते हैं मानो लता के कोमल चिकने पत्ते हिल रहे हों अथवा प्रस्फुटित हो रहे हों। जब राम हँसते हैं तो उनकी दाँतों की पंक्तियाँ ऐसी चमक उठती हैं जैसे बादलों के बीच बिजली चमक रही हो। उन दाँतों की छवि अमूल्य मोतियाँ की माला के समान सुन्दर लगती है। उनके मुख के ऊपर घराली लटें लटकती रहती हैं और कपोलों पर (कान पर पड़े हुए) चंचल कुंडल लहराते रहते हैं।<br /> तुलसीदास जी कहते हैं कि राम के इस सौन्दर्य पर वह अपने प्राण न्योछावर करते हैं और उनकी बातों पर बलिहारी जाते हैं तथा वे उनकी बलैया लेते हैं।<br /> <b>विशेष :</b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> प्रस्तुत पद में बाल स्वभाव की सुन्दर चेष्टाओं का वर्णन किया गया है।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> अनुप्रास एवं उत्प्रेक्षा अलंकार।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> वात्सल्य रस का वर्णन।</span></span></li></ol><p></p><p> <b><span style="color: red;">सोए हुए बच्चे से भाव सारांश</span></b><br /> प्रस्तुत कविता में कवि एक छोटे बालक को सोते हुए देखता है। वह उसे अपने विचारों का आशीर्वाद देना चाहता है किन्तु तभी वह सोचता है कि उसके विचार उतने पवित्र, उतने निष्कलंक नहीं रह गये हैं जितना यह सोता हुआ बालक है। यह बालक इस दुनियादारी से पूर्णतया अनभिज्ञ, अबोध और मासूम है। मैं अपने सपने देकर इस पर दुनियादारी का कोई दाग नहीं लगाना चाहता। वह बालक से कहता है कि वह तो अभी तितली की भाँति खुले आकाश में उड़ना चाहेगा इसलिए मैं उसके रेशमी बालों को अपनी पथरीली हथेलियों से सहलाकर उसकी निद्रा को खोलना नहीं चाहता हूँ। बालक की नींद सपनों से भरी सेमल के फूलों सी कोमल है किन्तु लेखक संसार के थपेड़े खा-खाकर लहूलुहान हो चुका है अतः वह उसे छूकर अपावन नहीं करना चाहता। बालक का निष्कलंक सौन्दर्य और पवित्र मुस्कराहट उसे जीवन जीने की प्रेरणा देता है। इसलिए वह कहता है कि जब सूर्योदय होगा तो वह तुम्हें स्वयं ही जगा देगा।<br /> सोए हुए बच्चे से संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या</p><span style="color: red;">(1) मेरे ख्याल इतने खूबसूरत नहीं हैं,<br /> जिनको मैं फलों-सी खूबसूरत तुम्हारी पलकों को <br /> छुआ दूँ और ये तुम्हारे लिए, <br /> खूबसूरत सपने बन जाएँ।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> ख्याल = विचार। खूबसूरत = सुन्दर।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> प्रस्तुत पद श्री हरिनारायण व्यास द्वारा रचित ‘सोए हुए बच्चे से’ शीर्षक कविता से लिया गया है।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> इस कविता में कवि ने शिशु की सुन्दरता पर संघर्षों की कठोर छाया न डालने की प्रतिज्ञा की है, उसी का यहाँ वर्णन है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> आधुनिक कवि श्री हरिनारायण व्यास जीवन की कठोरता का अनुभव करते हुए कहते हैं कि मेरे विचार इतने सुन्दर नहीं हैं कि मैं इन्हें फूलों-सी खूबसूरत नव पीढ़ी के बालकों की पलकों से छुआ हूँ और मेरे द्वारा ऐसा करने पर मेरे विचार इन बच्चों के लिए मात्र एक खूबसूरत सपना बनकर रह जाएँ। कहने का भाव यह है कि कवि अपने विचारों को, जीवन की कठोरता भोग रहे बच्चों पर लादना नहीं चाहता है।<br /> <b>विशेष :</b><br /><ol style="text-align: left;"><li> अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।</li><li> खड़ी बोली का प्रयोग।</li><li> वात्सल्य भाव।</li></ol><p></p> <p> <span style="font-family: Mangal;"><span style="color: red;"><br /> (2) ये ख्याल इन दुनियादारी की<br /> लपटों से झुलस गए हैं <br /> पहाड़ों से टकराती नाव हैं, <br /> नाकामयाबी की चोट से, <br /> ये लहूलुहान है। <br /> तितली की पाँखों-सी <br /> तुम्हारी आँखों से उगते हुए उजाले के इन्द्रधनुष सपने <br /> इनमें फंसकर बिखर जाएँगे। <br /> बिवाई वाली इन पथरीली हथेलियों से <br /> तुम्हारे रेशमी बालों की <br /> शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूंगा।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> दुनियादारी = सांसारिकता। नाकामयाबी = असफलता। लहूलुहान = खून से लथपथ। बिवाई वाली = फटी हुईं। इन्द्रधनुष सपने = सतरंगी सपने।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> कवि संघर्षपूर्ण एवं विपदाग्रस्त विचारों को सुन्दर शिशु के ऊपर नहीं डालना चाहता है, इसी भावना का वर्णन यहाँ किया गया है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> कविवर हरिनारायण व्यास कहते हैं कि मेरे विचार आज सांसारिकता की लपटों से बुरी तरह झुलस गए हैं। मेरे विचारों की श्रृंखला पहाड़ों से संघर्ष करती हुई नाव की तरह है तथा जीवन में निरन्तर मिल रही असफलता की चोट से ये खून से लथपथ हो रहे हैं। यदि इन भीषण संघर्षों की गाथा को मैंने तुम पर रोपित करने की चेष्टा की, तो तितली की पंखुड़ियों जैसी तुम्हारी आँखों में उगते हुए उजाले के ये सतरंगी सपने इनमें फँसकर बिखर जाएँगे। उन पर मेरे संघर्षशील विचारों का कोई भी अनुकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। अतः मैंने यह निश्चय कर लिया है कि मैं अपनी बिवाईं से कटी-फटी तथा पत्थर जैसी कठोर हथेलियों से तुम्हारे रेशमी बालों की शैशवी लापरवाही को स्पर्श नहीं करूँगा। कहने का भाव यह है कि कवि अपने जीवन के संघर्षों की कटु अनुभूतियों को शैशव अवस्था के बालकों की भावना पर थोपना नहीं चाहता है। वह तो यह चाहता है कि ये नये शिशु जीवन में कुछ नया भोगें, नया अनुभव करें ताकि उनका जीवन संघर्ष की कठोर यातनाओं की गाथा बनकर न रह जाए।<br /> <b>विशेष :</b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> कवि ने तितली की पाँखों, इन्द्रधनुष सपने, बिवाईं वाली हथेली आदि नये-नये प्रतीक एवं उपमानों का प्रयोग किया</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> खड़ी बोली का प्रयोग।</span></span></li></ol><span style="font-family: Mangal;"> <span style="color: red;"> <br /> (3) फटी हुई चमड़ी में उलझकर<br /> कोई बाल कोई रंगीन मनसूबा कोई <br /> कामयाब भविष्य <br /> टूट जाएगा<br /> आने वाला जमाना, <br /> मुझे दोषी ठहराएगा। <br /> तुम्हारी पलकों में तैरती <br /> उनींदी पुतलियों पर।</span><br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> बाल = बच्चा। मनसूबा = अभिलाषा। कामयाब = सफल। उनींदी = अलसाई।<br /> <b>सन्दर्भ एवं प्रसंग :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> कवि कहता है कि फटी हुई चमड़ी में उलझकर किसी बच्चे के रंगीन भविष्य की कोई अभिलाषा अधूरी रह जाएगी अथवा उसके अपने उज्ज्वल भविष्य का स्वप्न टूट जाएगा और इस घटना के पश्चात् आने वाला युग उसे दोषी सिद्ध करेगा। उस समय जीवन का स्वर्णिम भविष्य बच्चे की अलसाई पुतलियों और पलकों पर तैरता हुआ दिखाई देगा।<br /> <b>विशेष :</b><br /><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"> अनुप्रास की छटा।</span></li><li><span style="font-family: Mangal;"> खड़ी बोली का प्रयोग।</span></li></ol></span><p></p><p><span style="font-family: Mangal;"><span style="color: red;"><br /></span></span></p><p><span style="font-family: Mangal;"><span style="color: red;">(4) सेमल की रूई-सी<br /> सुबह की नींद <br /> जागने से पहले की खुमारी <br /> मँडरा रही है<br /> और तुम्हारा मन <br /> आतुर है कुलाँचें भरने। <br /> हम, तुम ही से तो अपनी अहमियत पहचानते हैं <br /> तुम हो, इसीलिए तो हमारी भूख-प्यास <br /> मकसद रखती है। <br /> मैं तुम्हारे गालों को <br /> बीमार आठों की छुअन से नहीं जलाऊँगा <br /> तुम इसी तरह मुस्कुराते सोये रहो <br /> सूरज खुद तुमको जगाएगा।<br /> </span> <br /> <b>शब्दार्थ :</b><br /> रूई-सी = रूई जैसी। कलाँचें भरने = उछल-कूद करने को। अहमियत = महत्ता। मकसद = मतलब। छुअन = स्पर्श से।<br /> <b>सन्दर्भ :</b><br /> पूर्ववत्।<br /> <b>प्रसंग :</b><br /> कवि अपने जीवन के कठोर संघर्षों की परछाईं शिशुओं के मन पर नहीं छोड़ना चाहता है, इसी भाव का इस अंश में अंकन हुआ है।<br /> <b>व्याख्या :</b><br /> कवि कहता है कि हे शिशुओ! सेमल की रूई जैसी कोमल तुम्हारी सुबह की नींद है, लेकिन तुम्हारे ऊपर जागने से पूर्व की खुमारी मँडरा रही है और तुम्हारा मन वास्तविकताओं से अनजान बनकर कुलाँचें भरने को व्याकुल हो रहा है।<br /> आगे कवि कहता है कि बच्चे ही प्रत्येक समाज के भविष्य हुआ करते हैं। अतः कवि इन बच्चों में ही अपना बड़प्पन देखता है। तुम्हारे भविष्य की उन्नति की आशा में ही तो हम आज अपनी भूख और प्यास की चिन्ता करते हैं।<br /> कवि कहता है कि मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं अपने बालकों के कोमल गालों को अपने बीमार ओठों का स्पर्श नहीं करने दूंगा अर्थात् उनके खुशहाल जीवन को मैं कष्टों में नहीं पड़ने दूंगा।<br /> अंत में कवि कामना करता है कि मेरे देश के भोले-भाले शिशु इसी प्रकार मुस्कराते हुए सोते रहें और समय आने पर स्वयं सूरज ही उन्हें जगाने के लिए आएगा।<br /> <b>विशेष :</b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> कवि शिशुओं का जीवन संघर्षों की कठोरता से बचाये रखना चाहता है।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> अनुप्रास एवं उपमा अलंकार।</span></span></li><li><span style="font-family: Mangal;"><span style="font-family: Mangal;"> सेमल की रूई-सी, जागने से पहले की खुमारी, कुलाँचें भरना, बीमार ओठों की छुअन से बचाना आदि का बड़ा ही सटीक एवं प्रभावशाली प्रयोग किया है।</span></span></li></ol> <p></p> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p></div>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-78866127421051610812021-11-02T16:30:00.002-07:002021-11-13T03:07:50.464-08:00MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions पद्य Chapter 1 भक्ति धारानमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने <span style="font-size: medium;"><b style="color: navy;">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions </b>पद्य खंड Chapter 1 भक्ति धारा </span><span style="font-size: medium;">के प्रश्न उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।</span><p></p><h2 style="text-align: left;">MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions in hindi</h2><p><b><span style="color: navy; font-size: medium;">अति लघु उत्तरीय प्रश्न </span></b></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. पद में मीठे फल का आनन्द लेने वाला कौन है?</span></p>उत्तर: पद में मीठे फल का आनन्द लेने वाला गूंगा है।<p></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. अवगुणों पर ध्यान न देने के लिए सूरदास ने किससे प्रार्थना की है?</span></p>उत्तर: अवगुणों पर ध्यान न देने के लिए सूरदास ने प्रभु श्रीकृष्ण से प्रार्थना की है।<p></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. पारस में कौन-सा गुण पाया जाता है?</span></p>उत्तर: पारस एक प्रकार का पत्थर होता है जिसमें यह गुण पाया जाता है कि इसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है।<p></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 4. जायसी के अनुसार संसार की सृष्टि किसने की है?</span></p>उत्तर: जायसी के अनुसार संसार की सृष्टि आदि कर्तार (भगवान) ने की है।<p></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 5. ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को क्या दिया?</span></p>उत्तर: ईश्वर ने रोगों को दूर करने के लिए मनुष्य को औषधियाँ प्रदान की हैं।<p></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 6. ‘स्तुति खंड’ में जायसी ने कितने द्वीपों और भुवनों की चर्चा की है?</span></p>उत्तर: स्तुति खंड में जायसी ने सात द्वीपों और चौदह भुवनों की चर्चा की है।<p></p><p></p><p style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 7. जायसी ने कथा किसका स्मरण करते हुए लिखी है?</span></p>उत्तर: जायसी ने आदि एक कर्त्तार (भगवान) का स्मरण करते हुए कथा लिखी है जिसने जायसी को जीवन दिया और संसार का निर्माण किया।<span><a name='more'></a></span><p></p><div><p><b><span style="color: navy; font-size: medium;"><span style="color: red;">लघु उत्तरीय प्रश्न </span></span></b></p><p></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण को श्रेयस्कर क्यों माना है?</span></h3>उत्तर: सूरदास ने निर्गुण की अपेक्षा सगुण को श्रेयस्कर इसलिए माना है कि निर्गुण तो रूप रेख गुन जाति से रहित होता है अतः उसका कोई आधार नहीं होता है जबकि सगुण का आधार होता है।<p></p><p></p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. गूंगा, फल के स्वाद का अनुभव किस तरह करता है?</span></h3>उत्तर: गूंगा व्यक्ति फल का स्वाद अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है वह उसे किसी को बता नहीं सकता है।<p></p></div> <p><br /> </p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. कुब्जा कौन थी? उसका उद्धार कैसे हुआ?</span></h3>उत्तर: कुब्जा कंस की नौकरानी थी। उसका काम कंस को नित्य माथे पर चन्दन लगाना होता था। जब कृष्ण मथुरा में। पहुँचे तो सबसे पहले उनसे कुब्जा का ही सामना हुआ। भगवान। कृष्ण ने कुब्जा के कुब्ब पर हाथ रखा, तो वह अनुपम सुन्दरी बनकर उद्धार पा गई।<p></p> <p><br /> </p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 4. सूरदास ने स्वयं को ‘कुटिल खल कामी’ क्यों कहा है?</span></h3>उत्तर: सूरदास ने स्वयं को कुटिल, खल और कामी इसलिए कहा है कि जिसने उसे जीवन दिया उसी भगवान को वह भूल गया और काम वासनाओं में डूब गया।<p></p> <p><br /> </p><h3 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 5. जायसी के अनुसार परमात्मा ने किस-किस तरह के मनुष्य बनाए हैं?</span></h3>उत्तर: जायसी के अनुसार परमात्मा ने साधारण मनुष्य। बनाये तथा उनकी बढ़ाई की, उनके लिए अन्न एवं भोजन का प्रबन्ध किया। उसने राजा लोगों को बनाया एवं उनके भोग-विलास की व्यवस्था की तथा उनकी शोभा बढ़ाने के लिए हाथी, घोड़े आदि प्रदान किए। उसने किसी को ठाकुर तथा किसी को दास। बनाया। कोई भिखारी बनाया तो कोई धनी बनाया।<span><a name='more'></a></span><p></p> <div><p> <b><span style="color: navy; font-size: medium;"><span style="color: #ff00fe;">दीर्घ उत्तरीय प्रश्न </span></span></b></p><p></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 1. सूरदास ने किस आधार पर ईश्वर को समदर्शी कहा है?</span></h2>उत्तर: सूरदास ने पारस पत्थर के आधार पर ईश्वर को समदर्शी कहा है। जिस प्रकार पारस पत्थर प्रत्येक लोहे को सोना बना देता है चाहे वह लोहा पूजा के काम में आता हो चाहे बधिक। के घर पशुओं की हत्या के काम आता हो। उसी आधार पर भगवान भी सभी का उद्धार कर देते हैं। चाहे वह व्यक्ति पुण्यात्मा हो अथवा पापात्मा हो।<p></p><p></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 2. निर्गुण और सगुण भक्ति में क्या अन्तर है?</span></h2>उत्तर: निर्गुण भक्ति में भगवान का न तो कोई रूप-रंग होता है और न कोई आकार-प्रकार। इस भक्ति में तो भक्त भगवान को अनन्य भाव से उसी में डूबकर भजता है। सगुण भक्ति में भक्त को आधार मिल जाता है। जिस पर वह अपना लक्ष्य निर्धारित कर भगवान की शरण में जाता है।<p></p><p></p><h2 style="text-align: left;"><span style="color: red;">प्रश्न 3. ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण कितने रूपों में किया है? वर्णन कीजिए।</span></h2>उत्तर: ईश्वर ने प्रकृति का निर्माण विविध रूपों में किया है। उसने हिम बनाया है तो अपार समुद्र भी। उसने सुमेरू और किष्किन्धा जैसे विशाल पर्वत बनाये हैं। उसने नदी, नाला और झरने बनाये हैं। उसने मगर, मछली आदि बनाये हैं। उसने सीप मोती और अनेक नगों का निर्माण किया है। उसने वनखंड और जड़-मूल, तरुवर, ताड़ और खजूर का निर्माण किया है। उसने जंगली पशु और उड़ने वाले पक्षी बनाये हैं। उसने पान, फूल एवं औषधियों का भी निर्माण किया है।<p></p><p><br /></p><p><span style="color: red;"><span style="color: #38761d;">प्रश्न 4. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रंसग व्याख्या कीजिए</span></span></p></div><p> </p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">(अ) अविगत गति ……………. जो पावै।।</span></h4><p></p> <div><p>उत्तर: उस अज्ञात निर्गुण ब्रह्म की गति अर्थात् लीला कुछ कहते नहीं बनती है अर्थात् वह निर्गुण ब्रह्म वर्णन से परे है। जिस प्रकार गँगा व्यक्ति मीठा फल खाता है और उसके रस के आनन्द का अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है। वह आनन्द उसे अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है लेकिन उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार वह निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है। उसे तो जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उस निर्गुण ब्रह्म की न कोई रूपरेखा एवं आकति होती है न उसमें कोई गुण होता है और न उसे प्राप्त करने का कोई उपाय है। ऐसी दशा में उस परमात्मा को प्राप्त करने हेतु यह आलम्बन चाहने वाला मन बिना सहारे के कहाँ दौड़े? वास्तव में इस मन को तो कोई न कोई आधार चाहिए ही, तभी वह उसको पाने के लिए प्रयास कर सकता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैंने यह बात भली-भाँति जान ली है कि वह निर्गुण ब्रह्म अगम्य अर्थात् हमारी पहुँच से परे है। इसी कारण मैंने सगुण लीला के पदों का गान किया है।</p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">(ब) अधिक कुरूप कौन …………. फिरि-फिरि जठर जरै।</span></h4></div> <div><p>उत्तर: सूरदास जी कहते हैं कि जिस किसी पर दीनानाथ कृपा कर देते हैं वही व्यक्ति इस संसार में कुलीन, बड़ा और सुन्दर हो जाता है।<br />आगे इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए वे अनेक दृष्टान्त और अन्तर्कथाएँ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि विभीषण रंक एवं निशाचर था पर भगवान ने कृपा करके रावण वध के पश्चात् उसी के सिर छत्र धारण कराया अर्थात् लंका का राजा बनाया। रावण से बड़ा शूरवीर योद्धा संसार में कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन चूँकि उस पर भगवान की कृपा नहीं थी। इस कारण वह मिथ्या गर्व में ही जीवन भर जलता रहा। सुदामा से बड़ा दरिद्र कौन था, जिसे भगवान ने कृपा करके अपने समान दो लोकों का पति अर्थात् स्वामी बना दिया।<br />अजामील से बड़ा अधम कौन था अर्थात् कोई नहीं। वह इतना बड़ा दुष्ट था कि उसके पास जाने में मृत्यु के देवता यमराज को भी डर लगता था, पर भगवान ने कृपा करके उस पापी का भी उद्धार कर दिया। नारद मुनि से बढ़ा वैरागी संसार में कोई नहीं हुआ लेकिन प्रभु कृपा के अभाव में वह रात-दिन इधर-उधर चक्कर लगाया करते हैं। शंकर से बड़ा योगी कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में वह भी कामदेव द्वारा छले गये। कुब्जा से अधिक कुरूप स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा से उसने स्वयं भगवान को पति रूप में प्राप्त कर अपना उद्धार किया। सीता के समान संसार में सुन्दर स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में उन्हें भी जीवन भर वियोग सहना पड़ा।<br />अंत में कवि कहता है कि भगवान की इस माया को कोई नहीं जान सकता है। न मालूम वे किस रस के रसिक होकर भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा कर दें। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना मनुष्य को बार-बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के कारण उसे अपनी माता की कोख की अग्नि में बार-बार जलना पड़ता है।</p><h4 style="text-align: left;"><span style="color: red;">(स) कीन्हेसि मानुस दिहिस ……….. अघाइ न कोई।</span></h4></div><p>उत्तर: कविवर जायसी कहते हैं कि उसी सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को निर्मित किया तथा सृष्टि के अन्य सभी पदार्थों में उसे बड़प्पन प्रदान किया। उसने उसे अन्न और भोजन प्रदान किया। उसी ने राजाओं को बनाया जो राज्यों का भोग करते हैं, हाथियों और घोड़ों को उनके साज के रूप में बनाया। उनके मनोरंजन के लिए उसने अनेक विलास की सामग्री बनाईं और किसी को उसने स्वामी बनाया तो किसी को दास। उसने द्रव्य बनाए जिनके कारण मनुष्यों को गर्व होता है। उसने लोभ को बनाया जिसके कारण कोई मनुष्य उन द्रव्यों से तृप्त नहीं होता है, उनकी निरन्तर भूख बनी रहती है। उसी ने जीव का निर्माण किया जिसे सब लोग चाहते हैं और उसी ने मृत्यु का निर्माण किया जिसके कारण कोई भी सदैव जीवित नहीं रह सका है। उसने सुख, कौतुक और आनन्द का निर्माण किया है। साथ ही उसने दुःख, चिन्ता और द्वन्द्व की भी रचना की है। किसी को उसने भिखारी बनाया तो किसी को धनी बनाया। उसने सम्पत्ति बनाई तो बहुत प्रकार की विपत्तियाँ भी बनाईं। किसी को उसने निराश्रित बनाया तो किसी को बलशाली। छार (मिट्टी) से ही उसने सब कुछ बनाया और पुनः सबको उसने छार (मिट्टी) कर दिया।<br /> </p> <p><br /> <b><span style="color: red; font-size: medium;"> <span style="color: red;">वस्तुनिष्ठ प्रश्न (MCQ)</span></span></b></p> <div> <p><span style="color: red;">प्रश्न 1. सूरदास ने अविगत गति किसकी बतलाई है?<br />(क) सगुण उपासक की (ख) निर्गुण उपासक की (ग) सगुण ब्रह्म की (घ) निर्गुण ब्रह्म की।</span><br />उत्तर: (घ) निर्गुण ब्रह्म की।</p><p><span style="color: red;">प्रश्न 2. ‘अधम उधारन’ का अर्थ है-<br />(क) पापियों का संहार करने वाला<br />(ख) पापियों का उद्धार करने वाला<br />(ग) पापियों को शरण देने वाला<br />(घ) पापियों की रक्षा करने वाला।</span><br />उत्तर: (ख) पापियों का उद्धार करने वाला</p><p><span style="color: red;">प्रश्न 3. ईश्वर अपनी कृपा किस पर करता है?<br />(क) जिसको वह अपना कृपापात्र बनाना चाहता है<br />(ख) सुन्दर पर<br />(ग) कुरूप पर<br />(घ) पापी पर।</span><br />उत्तर: (क) जिसको वह अपना कृपापात्र बनाना चाहता है</p><p><span style="color: red;">प्रश्न 4. मीठे फल का आनन्द लेने वाला कौन है?<br />(क) बहरा (ख) गूंगा (ग) अन्धा (घ) अपाहिज।</span><br />उत्तर: (ख) गूंगा</p><p><span style="color: red;"><b><span style="font-size: medium;"><span style="color: red;">रिक्त स्थानों की पूर्ति-</span></span></b><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;">सूरदास जी ने ………… भक्ति को श्रेष्ठ माना है।</span></li><li><span style="color: red;">गूंगे के लिए मीठे फल का रस ……….. ही होता है।</span></li><li><span style="color: red;">‘मधुप की मधुर गुनगुन’ से आशय …………. है।</span></li><li><span style="color: red;">ईश्वर छार में से सब कुछ बनाकर सबको पुनः ………….. कर देता है।</span></li></ol><b>उत्तर</b>: <br /><ol style="text-align: left;"><li>सगुण</li><li>अन्तर्गत</li><li>भौंरों के मधुर गान से</li><li>छार।</li></ol><p></p></div> <p><br /> <span style="color: red; font-size: medium;"><b>सत्य/असत्य </b></span> <span style="color: red;"><br /></span></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;">सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट हैं।</span></li><li><span style="color: red;">लोकायतन के रचयिता सूरदास हैं।</span></li><li><span style="color: red;">मलिक मोहम्मद जायसी सूफी कवि थे।</span></li><li><span style="color: red;">शंकर जी को भी कामदेव ने छलने का प्रयास किया।</span></li></ol><p></p> <p><br />उत्तर:<br /></p><ol style="text-align: left;"><li>सत्य</li><li>असत्य</li><li>सत्य</li><li>सत्य </li></ol> <p></p> <p><span style="color: red;"><b><span style="font-size: medium;">सही जोड़ी मिलाइए</span></b><br /> (i) (ii)<br />1. 'सूरसागर' के रचनाकार हैं (क) निर्गुण ब्रह्म<br />2. निर्गुण ब्रह्म के सूफी उपासक का नाम है (ख) सूर<br />3. रूपरेखा, आकार-प्रकार तथा आलम्बन रहित है (ग) जायसी<br />4. कुलीन वही है जिस पर कृपा करते हैं (घ) दीनानाथ</span></p> <div><p>उत्तर:<br />1. → (ख)<br />2. → (ग)<br />3. → (क)<br />4. → (घ)</p><p><span style="color: red;"><b>एक शब्द/वाक्य में उत्तर</b></span></p><p></p><ol style="text-align: left;"><li><span style="color: red;">मनवाणी के लिए अगम और अगोचर क्या है?</span></li><li><span style="color: red;">पूजाघर में रखे हुए लोहे में और बहेलिए के घर में रखे लोहे में कौन भेद नहीं करता?</span></li><li><span style="color: red;">सूरदास जी के अनुसार ईश्वर का भजन न करने से क्या होता है? (2009)</span></li><li><span style="color: red;">जायसी के अनुसार ईश्वर की प्रकृति कैसी है?</span></li></ol>उत्तर:<br /><ol style="text-align: left;"><li>निर्गुण ब्रह्म</li><li>पारस पत्थर</li><li>प्राणी को पुनः पुनः माँ के उदर में आकर जन्म लेना पड़ता है</li><li>अनेक वर्ण वाली।</li></ol><p></p></div> <p><br /> <span style="color: red;"><b>विनय के पद भाव सारांश </b></span><br />प्रस्तुत विनय के पदों में सूरदास जी ने कहा है कि निर्गुण ब्रह्म की उपासना दुरूह होने के कारण वे सगुण की उपासना करते हैं। निर्गुणोपासक योगी ब्रह्म का अनुभव मन ही मन करके आनन्द प्राप्त कर सकता है किन्तु उसे अभिव्यक्त नहीं कर सकता। जैसे एक मूक व्यक्ति मधुर फल का रसास्वादन मन ही मन करता है किन्तु उसकी अभिव्यक्ति नहीं कर पाता, उसी प्रकार से निर्गुण ब्रह्म रूप व आकार से परे है। इसीलिए सूरदास जी सगुणोपासना को अत्यन्त सरल बताते हैं।<br />सूरदास जी के अनुसार परमात्मा अत्यन्त दयालु और समदर्शी हैं। वह सभी का कल्याण करते हैं। हम ही उनकी भक्ति से दूर होकर विषय-भोगों की मरीचिका में भटकते फिरते हैं। यदि हम उनकी शरण में जायें तो वह हमारा क्षण भर में उद्धार कर सकते हैं। वह बड़े-बड़े पापियों का उद्धार करने वाले हैं। जिस पर उनकी कृपादृष्टि पड़ती है, वह इस संसार सागर को पार कर जाता है।<br /> </p> <div><p><b><span style="color: red;">विनय के पद संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या</span></b><br /> <span style="color: red;">(1) अविगत-गति कछु कहत न आवै।<br />ज्यों गूंगे मीठे फल को रस, अन्तरगत ही भावै।<br />परम स्वाद सबही सुनिरन्तर, अमित तोष उपजावै।<br />मन-बानी को अगम अगोचर, सो जानै जो पावै।<br />रूप-रेख-गुन-जात जुगति-बिनु, निरालंब कित धावै।<br />सब विधि अगम विचारहि तातें, सूर सगुन पद गावै।।</span></p><p> <b><span style="color: red;">शब्दार्थ :</span></b><br />अविगत = अज्ञात ईश्वर। गति = दशा। अन्तरगत = हृदय में। अमित = अत्यधिक। तोष = सन्तोष। उपजावै = पैदा करता है। अगोचर = अदृश्य। गुन = गुण। जुगति = मुक्ति। निरालंब = बिना आश्रय के। कित = किधर। धावै = दौड़े। अगम = पहुँच के बाहर। ता” = इस कारण से। सगुन = सगुण भक्ति के।</p><p> <b><span style="color: red;">सन्दर्भ :</span></b><br />प्रस्तुत पद ‘भक्तिधारा’ पाठ के अन्तर्गत ‘विनय के पद’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता महाकवि सूरदास हैं।</p></div> <p><br /> <b><span style="color: red;">प्रसंग :</span></b><br />इस पद में निर्गुण-निराकार ब्रह्म को अगम्य बताकर विवशता की स्थिति में सूरदास सगुण लीला का वर्णन कर रहे हैं।</p> <p><br /> <b><span style="color: red;">व्याख्या :</span></b><br />उस अज्ञात निर्गुण ब्रह्म की गति अर्थात् लीला कुछ कहते नहीं बनती है अर्थात् वह निर्गुण ब्रह्म वर्णन से परे है। जिस प्रकार गँगा व्यक्ति मीठा फल खाता है और उसके रस के आनन्द का अन्दर ही अन्दर अनुभव करता है। वह आनन्द उसे अत्यधिक सन्तोष प्रदान करता है लेकिन उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता उसी प्रकार वह निर्गुण ब्रह्म मन और वाणी से परे है। उसे तो जानकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उस निर्गुण ब्रह्म की न कोई रूपरेखा एवं आकति होती है न उसमें कोई गुण होता है और न उसे प्राप्त करने का कोई उपाय है। ऐसी दशा में उस परमात्मा को प्राप्त करने हेतु यह आलम्बन चाहने वाला मन बिना सहारे के कहाँ दौड़े? वास्तव में इस मन को तो कोई न कोई आधार चाहिए ही, तभी वह उसको पाने के लिए प्रयास कर सकता है। सूरदास जी कहते हैं कि मैंने यह बात भली-भाँति जान ली है कि वह निर्गुण ब्रह्म अगम्य अर्थात् हमारी पहुँच से परे है। इसी कारण मैंने सगुण लीला के पदों का गान किया है।</p> <p><br /> <b><span style="color: red;">विशेष :</span></b><br /></p><ol style="text-align: left;"><li>इस पद में निर्गुण ब्रह्म को अगम्य और सगुण ब्रह्म को सुगम माना गया है।</li><li>‘ज्यों गूंगे …………… भाव’ में उदाहरण अलंकार, </li><li>‘रूप-रेख-गुन ………….. धावै’ में विनोक्ति तथा </li><li>सम्पूर्ण में अनुप्रास अलंकार।</li><li>शान्त रस।</li></ol><p></p> <p><br /> <span style="color: red;">(2) हमारे प्रभु औगुन चित न धरौ।<br />समदरसी है नाम तुम्हारौ, सोई पार करौ।<br />इक लोहा पूजा मैं राखत, इक घर बधिक परौ।<br />सो दुविधा पारस नहिं जानत, कंचन करत खरौ।<br />इक नदिया, इक नार कहावत, मैलौ नीर भरौ।<br />जब दोऊ मिलि एक बरन गए, सुरसरि नाम परौ।<br />तन माया ज्यों ब्रह्म कहावत सूर सुमिलि बिगरौ।<br />कै इनको निरधार कीजिए, कै प्रन जात टरौ॥</span></p> <p><br /> <b><span style="color: red;">शब्दार्थ :</span></b><br />औगुन = अवगुण, दोष। समदरसी = सबको समान समझने वाला। तिहारो = तुम्हारा, आपका। राखत = रखते हैं। बधिक = कसाई। पारस = एक प्रकार का पत्थर जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है। कंचन = सोना। नार = नाला। बरन = वर्ण, रंग। सुरसरि = देवनदी गंगा। बिगरौ = बिगड़ गया। निरधार = निर्धारण करना, अलग-अलग। प्रन = प्रण, प्रतिज्ञा।</p> <p><br /> <b><span style="color: red;">सन्दर्भ :</span></b><br />पूर्ववत्।<br /> <b><span style="color: red;">प्रसंग :</span></b><br />इस पद में सूर ने भगवान से प्रार्थना की है कि वे उसके अवगुणों पर ध्यान न दें।<br /> <b><span style="color: red;">व्याख्या :</span></b><br />सूरदास जी भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं कि हे प्रभु! आप हमारे अवगुणों को अपने मन में मत लाओ। आपका नाम तो समदर्शी है अर्थात् आप सभी मनुष्यों के लिए एक-सा देखने वाले हो। आप यदि चाहें तो मेरा भी उद्धार कर दें। एक लोहा पूजा में रखा जाता है और एक कसाई के घर माँस काटने के काम आता है। पारस पत्थर इस दुविधा को नहीं देखता है कि यह पूजा का लोहा है या कसाई के घर का लोहा है। वह तो दोनों प्रकार के लोहे को खरा सोना बना देता है। इसी प्रकार एक नदी का पानी होता है और एक नाले का पानी होता है लेकिन जब ये दोनों मिलकर एक रंग के हो जाते हैं तो इनका नाम देवनदी गंगा पड़ जाता है। यह शरीर माया है और जीव ब्रह्म का अंश कहलाता है। यह जीवात्मा माया से मिलकर बिगड़ गयी है। हे भगवान्! या तो इनका निर्धारण करके अलग-अलग कर दीजिए, नहीं तो आपकी पतित पावन और समदर्शी होने की प्रतिज्ञा समाप्त हुई जा रही है।</p> <div> <p><b><span style="color: red;">विशेष :</span></b></p><p style="text-align: left;"></p><ol style="text-align: left;"><li>भगवान के समदर्शी नाम का लाभ उठाते हुए सूरदास अपने पापी मन के उद्धार की प्रार्थना करते हैं।</li><li>‘इक लोहा ………… बधिक परौ’-में उदाहरण अलंकार।</li><li>सम्पूर्ण में अनुप्रास की छटा।</li></ol><p></p></div> <p><br /> <span style="color: red;">(3) मो सम कौन कुटिल खल कामी।<br />तुम सौं कहा छिपी करुनामय, सबके अन्तरजामी।<br />जो तन दियौ ताहि बिसरायौ, ऐसौ नोन-हरामी।<br />भरि-भरि द्रोह विर्षे कौं धावत, जैसे सूकर ग्रामी।<br />सुनि सतसंग होत जिय आलस, विषयिनि संग बिसरामी।<br />श्री हरि-चरन छाँड़ि बिमुखनि की, निसि-दिन करत गुलामी।<br />पापी परम, अधम अपराधी, सब पतितनि मैं नामी।<br />सूरदास प्रभु अधम-उधारन, सुनियै श्रीपति स्वामी।।<br /><b>शब्दार्थ</b> :</span><br />सम = समान। कुटिल = टेढ़ा। खल = दुष्ट। कामी = विषयभोग में डूबा हुआ। करुनामय = भगवान। अन्तरजामी = हृदय की बात जानने वाले। ताहि = उसी को। बिसरायौ = भूल गया। नोन-हरामी = नमक हरामी। वि. कौं धावत = विषय वासनाओं की ओर दौड़ता है। सूकर ग्रामी = गाँव का सूअर। विषयनि संग विसरामी = विषय वासनाओं में डूब जाता है। विमुखिनि = दुष्टों की। नामी = प्रसिद्ध। अधम-उधारन = नीच व्यक्तियों का उद्धार करने वाले। श्री पति स्वामी = भगवान श्रीकृष्ण।</p><p> <span style="color: red;">सन्दर्भ :</span><br />पूर्ववत्।</p><p> <span style="color: red;">प्रसंग :</span><br />इस पद में सूर ने अपने आपको कुटिल, खल एवं कामी बताते हुए संसार के सभी पापियों में सबसे बड़ा पापी बताते हुए अपने उद्धार की प्रार्थना की है।</p> <div> <p><span style="color: red;"><b>व्याख्या</b> :</span><br />सूरदास जी कहते हैं कि हे भगवान! मेरे समान कोई भी कुटिल, खल और कामी नहीं है अर्थात् मैं सबसे बड़ा पापी एवं कामी हूँ। हे भगवान! आप करुणामय हैं तथा सबके हृदय की बात जानते हैं, इसलिए आपसे मेरा क्या छिपा हुआ है? अर्थात् आप मेरे पापों को भली-भाँति जानते हैं। मेरे समान नमक हराम इस संसार में कोई नहीं है जिसने अर्थात् आपने मुझे यह नर शरीर दिया, मैं आपको ही भूल गया और माया, मोह तथा विषय-वासनाओं में डूब गया अत: मुझसे बड़ा नमक हराम अर्थात् कृतघ्न कोई नहीं हो सकता। मैं काम वासनाओं में इतना अंधा हो गया कि बार-बार उन्हीं की ओर मैं दौड़ता रहता हूँ जिस प्रकार कि गाँव का सूअर गन्दगी या विष्टा की ओर बार-बार दौड़ा करता है। मैं कितना गिरा हुआ व्यक्ति हूँ कि सत्संग की जब भी चर्चा होती है तो उसे सुनकर मुझे आलस्य आने लगता है तथा विषय-वासनाओं में मेरा मन आनन्द का अनुभव किया करता है।</p><p> मैं भगवान के चरणों को छोड़कर रात-दिन दुष्ट लोगों की गुलामी करता रहता हूँ। मैं महान् पापी हूँ तथा अधम अपराधी हूँ और सब पतितों में बड़ा हूँ। हे करुणामय भगवान श्री कृष्ण! आप तो अधम अर्थात् पतित लोगों का उद्धार करने वाले हैं, अतः हे श्रीपति स्वामी भगवान! मेरी टेर अर्थात् पुकार को सुन लीजिए और मुझ दुष्ट का उद्धार कर दीजिए।<br /><b>विशेष</b> :<br /></p><ol style="text-align: left;"><li>कवि आत्मग्लानि वश अपने सभी पापों को स्वीकारता है तथा भगवान से उद्धार की विनती करता है।</li><li>उपमा एवं अनुप्रास की छटा।</li><li>नोन हरामी, गुलामी आदि उर्दू फारसी शब्दों का प्रयोग किया है।</li></ol><div><br /></div><p></p></div> <div> <p><span style="color: red;">(4) जापर दीनानाथ ढरैं।<br />सोइ कुलीन बड़ौ सुन्दर सोई, जिहि पर कृपा करे।<br />कौन विभीषन रंक-निसाचर, हरि हँसि छत्र धरै।<br />राजा कौन बड़ौ रावन तैं, गर्बहि-गर्ब गरे।<br />रंकव कौन सुदामा हूँ तै, आप समान करै।<br />अधम कौन है अजामील तें, जम तँह जात डरै।<br />कौन विरक्त अधिक नारद तैं, निसि दिन भ्रमत फिरै।<br />जोगी कौन बड़ौ संकर तैं, ताको काम छरै।<br />अधिक कुरूप कौन कुबिजा तैं, हरिपति पाइ तरै।<br />अधिक सुरूप कौन सीता तै, जनक वियोग भरै।<br />यह गति-गति जानै नहि कोऊ, किहिं रस रसिक ढरै।<br />सूरदास भगवंत-भजन बिनु, फिरि-फिरि जठर जरै॥</span></p><p><b> शब्दार्थ</b> :</p>जापर = जिस किसी के ऊपर। दीनानाथ = भगवान। ढरें = कृपा करते हैं। सोई = वही व्यक्ति। रंक निसाचर = दरिद्र निशाचर। छत्र धरै = छत्र धारण कराया अर्थात् राजा बनाया। रंकव = दरिद्र। अधम = नीच। जम = यमराज। जात डरै = जाने में डरता था। विरक्त = वैरागी। काम छरै = कामदेव ने छल किया। किहिं रस रसिक ढरै = न मालूम किस रस में वे ढलने लगते हैं। जठर जरै = पेट की अग्नि में जलता है, अर्थात् बार-बार जन्म लेता है।<p></p><p><span style="color: red;">सन्दर्भ :</span><br />पूर्ववत्।</p><p><span style="color: red;">प्रसंग :</span><br />इस पद में सूरदास जी कहते हैं कि भगवान की माया बड़ी विचित्र है। जिस किसी. पर भगवान की कृपा हो जाती है; वही व्यक्ति कुलीन होता है, वही बड़ा होता है तथा वही सुन्दर होता है।</p><p><span style="color: red;">व्याख्या :</span><br />सूरदास जी कहते हैं कि जिस किसी पर दीनानाथ कृपा कर देते हैं वही व्यक्ति इस संसार में कुलीन, बड़ा और सुन्दर हो जाता है।</p><p> आगे इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए वे अनेक दृष्टान्त और अन्तर्कथाएँ प्रस्तुत करते हुए कहते हैं कि विभीषण रंक एवं निशाचर था पर भगवान ने कृपा करके रावण वध के पश्चात् उसी के सिर छत्र धारण कराया अर्थात् लंका का राजा बनाया। रावण से बड़ा शूरवीर योद्धा संसार में कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन चूँकि उस पर भगवान की कृपा नहीं थी। इस कारण वह मिथ्या गर्व में ही जीवन भर जलता रहा। सुदामा से बड़ा दरिद्र कौन था, जिसे भगवान ने कृपा करके अपने समान दो लोकों का पति अर्थात् स्वामी बना दिया।</p><p> अजामील से बड़ा अधम कौन था अर्थात् कोई नहीं। वह इतना बड़ा दुष्ट था कि उसके पास जाने में मृत्यु के देवता यमराज को भी डर लगता था, पर भगवान ने कृपा करके उस पापी का भी उद्धार कर दिया। नारद मुनि से बढ़ा वैरागी संसार में कोई नहीं हुआ लेकिन प्रभु कृपा के अभाव में वह रात-दिन इधर-उधर चक्कर लगाया करते हैं। शंकर से बड़ा योगी कौन था अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में वह भी कामदेव द्वारा छले गये। कुब्जा से अधिक कुरूप स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा से उसने स्वयं भगवान को पति रूप में प्राप्त कर अपना उद्धार किया। सीता के समान संसार में सुन्दर स्त्री कौन थी अर्थात् कोई नहीं, लेकिन भगवान की कृपा के अभाव में उन्हें भी जीवन भर वियोग सहना पड़ा।</p><p> अंत में कवि कहता है कि भगवान की इस माया को कोई नहीं जान सकता है। न मालूम वे किस रस के रसिक होकर भक्त पर अपनी कृपा की वर्षा कर दें। सूरदास जी कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना मनुष्य को बार-बार इस पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ता है और जन्म लेने के कारण उसे अपनी माता की कोख की अग्नि में बार-बार जलना पड़ता है।</p><p><span style="color: red;">विशेष :</span></p><p></p><ol style="text-align: left;"><li> कवि का मानना है कि भगवत् कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है।</li><li>इस बात को सिद्ध करने के लिए कवि ने विभीषण, रावण, सुदामा, अजामील, नारद, शंकर, कुब्जा, सीता आदि के जीवन से सम्बन्धित अन्तर्कथाओं की ओर संकेत किया है।</li><li>उदाहरण तथा उपमा अलंकारों का सुन्दर प्रयोग।</li></ol><p></p><p><br /><b>स्तुति खण्ड भाव सारांश</b></p><p> निर्गुण भक्ति धारा के प्रेममार्गी सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने ग्रन्थ ‘पद्मावत’ में लौकिक दाम्पत्य-प्रेम के माध्यम से अलौकिक सत्ता के प्रति प्रेम भावना व्यक्त की है। पाठ्य-पुस्तक के स्तुति खण्ड’ में कवि ने उस करतार’ का स्मरण करते हुए कहा है कि वह उसने प्रकृति को अनेक रूपों में सृजित किया है। अग्नि, जल, गगन, पृथ्वी,वायु आदि सब उसी से उत्पन्न हुए। उसने संसार में वृक्ष, नदी, सागर, पशु-पक्षी और मनुष्य आदि अनेक प्रकार के जीवों की संरचना की। उसने इनके लिए भोजन बनाया। उसने रोग, औषधियाँ, जीवन, मृत्यु, सुख,दुःख,आनन्द, चिन्ता और द्वन्द्व आदि बनाये तथा संसार में उसने किसी को राजा,किसी को सेवक, किसी को भिखारी और किसी को धनी बनाया।</p><p><span style="color: red;"><b><span style="font-size: medium;">स्तुति खण्ड संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या</span></b></span></p><p> (1) सँवरौं आदि एक करतारू। जेहँ जिउदीन्ह कीन्ह संसारू॥<br />कीन्हेसि प्रथम जोति परगासू। कीन्हेसि तेहिं पिरीति कवितासू॥<br />कीन्हेसि अगिनि पवन जल खेहा। कीन्हेसि बहुतइ रंग उरेहा॥<br />कीन्हेसि धरती सरग पतारू। कीन्हेसि बरन-बरन अवतारू॥<br />कीन्हेसि सात दीप ब्रह्मडा। कीन्हेसि भुवन-चौदहउ खंडा।<br />कीन्हेसि दिन दिनअर ससि राती। कीन्हेसि नखत तराइन पाँती॥<br />कीन्हेंसि धूप सीउ और छाहाँ। कीन्हेसि मेघ बिजु तेहि माहाँ॥<br />कीन्ह सबइ अस जाकर दोसरहि छाज न काहु।<br />पहिलेहिं तेहिक नाउँलइ, कथा कहौं अवगाहुँ।</p><p></p><p><span style="color: red;">शब्दार्थ :</span><br />सँवरौं = स्मरण करता हूँ। आदि = आरम्भ में। करतारू = कर्त्तार (सृष्टिकर्ता)। जिउ = जीवन। कीन्ह संसारू = संसार की रचना की। परगास = प्रकट किया। पिरीति = प्रीति के लिए। खेहा = मिट्टी। उरेहा = रेखांकन। सरग = स्वर्ग। पतारू = पाताल। बरन-बरन अवतारू = नाना प्रकार के वर्णों के प्राणी बनाए। दीप = द्वीप। दिनअर = सूर्य। ससि = चन्द्रमा। नखत = नक्षत्र। तराइन = तारागणों की। पाँती = पंक्ति। सीउ = शीत। बीजु = बिजली। भाहाँ = मध्य में। दोसरहि = दूसरे को। छाज = शोभा। तेहिक = उसी का। अवगाहु = अवगाहन करता हूँ, वर्णन करता हूँ।</p><p><span style="color: red;">सन्दर्भ :</span><br />प्रस्तुत छन्द मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित ‘पद्मावत’ महाकाव्य के ‘स्तुति खण्ड’ से लिया गया है।</p><p><span style="color: red;">प्रसंग :</span><br />इस पद में कवि ने ग्रन्थ की रचना में सृष्टि के निर्माता आदि ईश्वर का स्मरण करते हुए कहा है।</p><p><span style="color: red;">व्याख्या :</span><br />महाकवि जायसी कहते हैं कि मैं आदि में उस एक कर्ता (सृष्टिकर्ता) का स्मरण करता हूँ, जिसने हमें जीवन दिया और जिसने संसार की रचना की। जिसने आदि ज्योति अर्थात् मुहम्मद के नूर का प्रकाश किया और उसी की प्रीति के लिए कैलास की रचना की। जिसने अग्नि, वायु, जल और मिट्टी का निर्माण किया और जिसने अनेक प्रकार के रंगों में तरह-तरह के चित्रांकन (रेखांकन) किए। जिसने धरती, आकाश और पाताल की रचना की और जिसने नाना वर्ण के प्राणियों को अवतरित किया, जिसने सात द्वीप और ब्रह्माण्ड की रचना की और जिसने चौदह खण्ड भुवनों की रचना की। जिसने दिन, दिनकर, चन्द्रमा और रात्रि की रचना की तथा जिसने नक्षत्रों और तारागणों की पंक्ति की रचना की। जिसने धूप, शीत और छाया का निर्माण किया और ऐसे मेघों का निर्माण किया जिनमें बिजली निवास करती है। उसने ऐसी सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है जो दूसरे किसी को भी शोभा नहीं दे सकी।</p><p> अतः सर्वप्रथम मैं उसी कर्ता का नाम लेकर अपनी विस्तृत कथा की रचना कर रहा हूँ।</p><p><span style="color: red;">विशेष :</span></p><p></p><ol style="text-align: left;"><li> यह छन्द ईश स्तुति के रूप में जाना जाता है।</li><li>स्मरण की यह शैली सूफी प्रभाव से प्रभावित है।</li><li>अनुप्रास की छटा।</li><li>चौपाई दोहा छन्द है।</li><li>अवधी भाषा का प्रयोग।</li></ol><div><br /></div><p></p></div> <div> <p><span style="color: red;">(2) कीन्हेसि हेवँ समुंद्र अपारा। कीन्हेसि मेरु खिखिंद पहारा॥<br />कीन्हेसि नदी नार औझारा। कीन्हेसि मगर मछं बहुबरना॥<br />कीन्हेसि सीप मोंति बहुभरे। कीन्हेसि बहुतइ नग निरमरे॥<br />कीन्हेसि वनखंड औ जरि मूरी। कीन्हेसि तरिवर तार खजूरी॥<br />कीन्हेसि साऊन आरन रहहीं। कीन्हेसि पंखि उड़हि जहँ चहहीं॥<br />कीन्हेसि बरन सेत औ स्यामा। कीन्हेसि भूख नींद बिसरामा॥<br />कीन्हेसिपान फूल बहुभोगू। कीन्हेसि बहुओषद बहुरोगू॥<br />निमिख न लाग कर, ओहि सबइ कीन्ह पल एक।<br />गगन अंतरिख राखा बाज खंभ, बिनु टेक॥</span></p><p> शब्दार्थ :</p><br />कीन्हेसि = निर्माण किया। हेरौं = हिम। मेरु = रेगिस्तान। खिखिंद = किष्किन्धा पर्वत। नार = नाला। झारा = झरना। मछ = मछली। सीप = शुक्ति। निरभरे = निर्मल। जरिमूरी = जड़ और मूल। तखिर = श्रेष्ठ वृक्ष। तार = ताड़ वृक्ष। साउज = जंगली जानवर। आरन = अरण्य में। सेत = श्वेत। बरन = वर्ण। पान = ताम्बूल। ओषद = औषधि। निमिख = पलभर। अंतरिख = अंतरिक्ष। बाज = बिना। खंभ = स्तम्भ। टेक = सहारा।<p></p><p><span style="color: red;">सन्दर्भ एवं प्रसंग :</span><br />पूर्ववत्।</p><p><span style="color: red;">व्याख्या :</span><br />कविवर जायसी कहते हैं कि उसी परमात्मा ने हिम तथा अपार समुद्रों की रचना की है। उसी ने सुमेरू तथा किष्किन्धा पर्वतों की रचना की है। उसी ने नदियों, नालों एवं झरनों की रचना की है। उसी ने सीपियों और बहुत प्रकार के मोतियों तथा निर्मल नगों का निर्माण किया है। उसी ने वन खण्ड और जड़ों तथा मूलों का निर्माण किया है। उसी ने ताड़, खजूर आदि तरुवरों का निर्माण किया है। उसी ने जंगली जानवरों का निर्माण किया जो जंगल में रहते हैं। उसी ने पक्षियों का निर्माण किया जो जहाँ चाहते हैं, उड़ जाते हैं। उसी ने श्वेत और श्याम वर्णों का निर्माण किया और उसी ने भूख, नींद तथा विश्राम का निर्माण किया। इन सबकी रचना करने में उसे एक पल भी नहीं लगा और उसने यह सब कुछ पलक झपकते ही कर दिया। पुनः उसी ने आकाश को भी बिना किसी खम्भे और टेक के अन्तरिक्ष में रख दिया।</p><p><span style="color: red;">विशेष :</span></p><p></p><ol style="text-align: left;"><li> इस्लाम धर्म के मतानुसार समस्त सृष्टि का निर्माण उसी आदि शक्ति (नूर) ने किया है।</li><li>अनुप्रास की छटा।</li><li>अवधी भाषा का प्रयोग।</li></ol><div><br /></div><p></p></div> <div> <p><span style="color: red;">(3) कीन्हेसि मानुस दिहिस बड़ाई। कीन्हेसि अन्न भुगुति तेंहि पाई॥<br />कीन्हेसि राजा पूँजहि राजू। कीन्हेसि हस्ति घोर तिन्ह साजू॥<br />कीन्हेसि तिन्ह कहँ बहुत बेरासू। कीन्हेसि कोई ठाकुर कोइ दासू॥<br />कीन्हेसि दरब गरब जेहिं होई। कीन्हेसि लोभ अघाइन कोई॥<br />कीन्हेसि जिअन सदा सब चाहा। कीन्हेसि मीच न कोई राहा॥<br />कीन्हेसि सुख औ कोड अनंदू। कीन्हेसि दुख चिंता औ दंदू॥<br />कीन्हेसि कोई भिखारि कोई धनी। कीन्हेसि संपति विपति पुनि घनी॥<br />कीन्हेसि कोई निभरोसी, कीन्हेसि कोई बरिआर।<br />छार हुते सब कीन्हेसि, पुनि कीन्हेसि सब छार॥</span></p><p> शब्दार्थ :</p><br />कीन्हेसि = किया है। मानुस = मनुष्य। दिहिसि बड़ाई = बड़प्पन प्रदान किया। भुगुति = भुक्ति या भोजन। पूँजहि राजू = जो राज का भोग करते हैं। हस्ति = हाथी। घोर = घोड़ा। बेरासू = विलास की सामग्री। ठाकुर = स्वामी। दासू = दास। दरब = द्रव्य। गरब = गर्व। अघाइ न कोई = कोई तृप्त नहीं होता। जिअन = जीवन। मीचु – मृत्यु। कोड= कौतुक। दंदू = द्वन्द्व। संपति = सम्पत्ति। घनी = बहुत। निभरोसी = निराश्रित। बरिआर = बलशाली। छार = राख, धूल।,<p></p><p><span style="color: red;">सन्दर्भ :</span><br />पूर्ववत्।</p><p><span style="color: red;">प्रसंग :</span><br />इस पद में कविवर जायसी ने ईश्वर द्वारा निर्मित सृष्टि का वर्णन किया है।</p><p><span style="color: red;">व्याख्या :</span><br />कविवर जायसी कहते हैं कि उसी सृष्टिकर्ता ने मनुष्य को निर्मित किया तथा सृष्टि के अन्य सभी पदार्थों में उसे बड़प्पन प्रदान किया। उसने उसे अन्न और भोजन प्रदान किया। उसी ने राजाओं को बनाया जो राज्यों का भोग करते हैं, हाथियों और घोड़ों को उनके साज के रूप में बनाया। उनके मनोरंजन के लिए उसने अनेक विलास की सामग्री बनाईं और किसी को उसने स्वामी बनाया तो किसी को दास। उसने द्रव्य बनाए जिनके कारण मनुष्यों को गर्व होता है। उसने लोभ को बनाया जिसके कारण कोई मनुष्य उन द्रव्यों से तृप्त नहीं होता है, उनकी निरन्तर भूख बनी रहती है। उसी ने जीव का निर्माण किया जिसे सब लोग चाहते हैं और उसी ने मृत्यु का निर्माण किया जिसके कारण कोई भी सदैव जीवित नहीं रह सका है। उसने सुख, कौतुक और आनन्द का निर्माण किया है। साथ ही उसने दुःख, चिन्ता और द्वन्द्व की भी रचना की है। किसी को उसने भिखारी बनाया तो किसी को धनी बनाया। उसने सम्पत्ति बनाई तो बहुत प्रकार की विपत्तियाँ भी बनाईं। किसी को उसने निराश्रित बनाया तो किसी को बलशाली। छार (मिट्टी) से ही उसने सब कुछ बनाया और पुनः सबको उसने छार (मिट्टी) कर दिया।</p><p><span style="color: red;"><b>विशेष</b> :</span><br /></p><ol style="text-align: left;"><li>अनुप्रास की छटा।</li><li>शान्त रस।</li><li>अवधी भाषा का प्रयोग।</li> </ol></div> <p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5436310188028737045.post-36445626311864764792021-11-02T04:35:00.002-07:002021-11-13T03:07:50.576-08:00Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।<p><b>Ampacity क्या है</b> जब किसी चालक ( conductor ) में करंट का प्रवाह होता है तो इसमें ऊष्मा उत्पन्न होती है। करंट प्रवाह की मात्रा जितनी बड़ी होगी, एक कंडक्टर तार या धातु उतनी ही गर्म होगी। अत्यधिक गर्मी विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक घटकों को नुकसान पहुंचाती है। इस कारण से तारों को उनकी करंट वहन करने की क्षमता के अनुसार रेट किया जाता है। इस करंट ले जाने की क्षमता को <b>ampacity</b> कहा जाता है। नीचे चित्र में तारों के विभिन्न गेज को दर्शाया गया है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3I6SAtBjj-Y_vKasyygNm_rCjWM6BXdunrpKG8JRaUs7s2GljgjcAR_z159f3ty3LIoMvfOWg3e6mPexG7wlLWK8sj4AxWbQz8uC8Ot83lw5Fq-OhPKyI-zDHTXNzGiccY7G4zurQeko/s480/ncert+solution+various+info+%25284%2529.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" border="0" data-original-height="358" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi3I6SAtBjj-Y_vKasyygNm_rCjWM6BXdunrpKG8JRaUs7s2GljgjcAR_z159f3ty3LIoMvfOWg3e6mPexG7wlLWK8sj4AxWbQz8uC8Ot83lw5Fq-OhPKyI-zDHTXNzGiccY7G4zurQeko/s16000/ncert+solution+various+info+%25284%2529.webp" title="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" /></a></div><p>सर्किट ब्रेकर , फ़्यूज़ जैसे ओवर करंट प्रोटेक्शन डिवाइसेस का उपयोग सर्किट एलिमेंट में करंट के अत्यधिक प्रवाह से बचाने के लिए किया जाता है। इन उपकरणों को एक सर्किट में करंट के प्रवाह को सुरक्षित स्तर पर रखने के लिए डिज़ाइन किया गया है, इससे सर्किट एलिमेंट को ओवरहीटिंग से बचाया जा सकेगा।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1wH7u4L814PuNGeK1L3pyAfKM-9r2U-PE6AD7jILVbqvIOzXI7khzYX8Gg69Xsuk5hUse6Ixm0b-06VcYmPMoq1VtpiFFXRZYbNDutch_fXnf_Bj-ItdG9dI0Pn5ZTsq0nkUMNPWHuy0/s480/ncert+solution+various+info+%25283%2529.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" border="0" data-original-height="337" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh1wH7u4L814PuNGeK1L3pyAfKM-9r2U-PE6AD7jILVbqvIOzXI7khzYX8Gg69Xsuk5hUse6Ixm0b-06VcYmPMoq1VtpiFFXRZYbNDutch_fXnf_Bj-ItdG9dI0Pn5ZTsq0nkUMNPWHuy0/s16000/ncert+solution+various+info+%25283%2529.webp" title="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" /></a></div><br /><p></p><p>अतिरिक्त करंट को ओवर करंट के रूप में परिभाषित किया जाता है। ओवर करंट को उपकरणों की रेटेड बिजली की करंट या कंडक्टर की ampacity से अधिक की करंट के रूप में परिभाषित किया जाता है । इसके परिणाम के तौर पर ओवरलोड, शॉर्ट सर्किट या ग्राउंड फॉल्ट हो सकता है। "<b>ओवर करंट प्रोटेक्शन</b>" अतिरिक्त करंट से सुरक्षा को "ओवर करंट प्रोटेक्शन" कहा जाता है। </p><h2 style="text-align: left;">ओवर करंट होने के कारण - Over current ke karan</h2><p>ओवर करंट होने के अधिकतर निम्नलिखित कारण होते हैं : </p><p>1. ओवरलोड </p><p>2. शॉर्ट सर्किट </p><p>3. अर्थिंग फॉल्ट</p><h3 style="text-align: left;">अधिभार क्या होता है - Overload kya hai</h3><p>एक अधिभार या ओवरलोड तब होता है जब बहुत सारे उपकरणों को एकत पावर सॉकेट का उपयोग करके चलाया जाता है, या विद्युत उपकरण को जिस काम के लिए डिज़ाइन किया गया है उससे अधिक काम लिया जाता है। </p><p>उदाहरण के लिए, 10 एम्पीयर के लिए रेट की गई मोटर ओवरलोड होने की स्थिति में 20 , 30 या अधिक एम्पीयर को खींच सकती है। यदि अलग - अलग लोड के उपकरण , जैसे वॉशिंग मशीन , दीपक , रेफ्रिजरेटर , इलेक्ट्रिक केतली , माइक्रोवेव ओवन , जूसर और कई और उपकरण बिजली के एक ही मीटर से जुड़े हैं, नीचे चित्र में बिजली के मीटर पर अधिभार को दिखाया गया है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDX-QoAG-Mn4SW5BVIoS8bcKglIXjr1qR7zHIWUmUq9KSwkR5Oe3s4pU6Eyk11Kgx3Qsz37ugajuz8p6fAHtnVSw1xCKzAeeznR-tK1-kg12JtiBevVwUhJ49-57NS55IZZSkE29YvNyM/s747/ncert+solution+various+info+%25282%2529.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" border="0" data-original-height="747" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgDX-QoAG-Mn4SW5BVIoS8bcKglIXjr1qR7zHIWUmUq9KSwkR5Oe3s4pU6Eyk11Kgx3Qsz37ugajuz8p6fAHtnVSw1xCKzAeeznR-tK1-kg12JtiBevVwUhJ49-57NS55IZZSkE29YvNyM/s16000/ncert+solution+various+info+%25282%2529.webp" title="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" /></a></div><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">शॉर्ट सर्किट क्या होता है - Short circuit kya hai</h3><p>एक शॉर्ट सर्किट तब होता है जब लाइन - टू - लाइन या लाइन - टू - न्यूट्रल कंडक्टर के बीच एक सीधा लेकिन अनजाने कनेक्शन बना होता है। शॉर्ट सर्किट से बहुत अधिक करंट उत्पन्न हो सकता है और तापमान में वृद्धि के कारण परिभाषित रेटिंग से हजारों डिग्री ऊपर हो सकती हैं। </p><p>नीचे चित्र से पता चलता है कि बल्ब में लाइव तार और उदासीन neutral तार हैं, इन्सुलेशन में खराबी के कारण लाइव सर्किट और उदासीन तार के बीच शॉर्ट सर्किट होगा। </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxT-aHtZ_3fCxkU_ojVXA-xoMVAKbqx_TXO_zV4gp-VIW_euqQRzCM0mf79UOnfUhxmd4U9tdYGYMlmMk3aVNdtN8pa3ODS1uZL4MwOZdrdHRU18DKfodqRMoLj6edKewiVkc5oSf6QsI/s799/ncert+solution+various+info+%25281%2529.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" border="0" data-original-height="799" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxT-aHtZ_3fCxkU_ojVXA-xoMVAKbqx_TXO_zV4gp-VIW_euqQRzCM0mf79UOnfUhxmd4U9tdYGYMlmMk3aVNdtN8pa3ODS1uZL4MwOZdrdHRU18DKfodqRMoLj6edKewiVkc5oSf6QsI/s16000/ncert+solution+various+info+%25281%2529.webp" title="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" /></a></div><p></p><p>तार में कट लगने या खराबी आने के कारण, जैसे कि इन्सुलेशन अनजाने में हटा जाने से ऐसा हो सकता है, तारों के इंसुलेशन रहित भाग एक दूसरे को छूते हैं, इसके परिणाम स्वरूप कम से कम प्रतिरोधकता पथ या शॉर्ट सर्किट पथ बनेगा। </p><p>शॉर्ट सर्किट के दौरान नगण्य Negligible प्रतिरोध होने से यह स्रोत से उपकरण में करंट प्रवाह की बड़ी मात्रा का कारण बनता है, जो अत्यधिक गर्मी के कारण तारों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। शॉर्ट सर्किट बल्ब के मामले में कोई करंट नहीं मिलेगा। </p><p><br /></p><h3 style="text-align: left;">अर्थिग फॉल्ट क्या होता है - Earthy fault kya hai</h3><p>एक अर्थिंग फॉल्ट तब होता है जब विद्युत करंट एक चालक से विद्युत करंट का प्रवाह के पथ में प्रवाहित होती है। नीचे चित्र में, एक व्यक्ति इलेक्ट्रिक ड्रिल मशीन का उपयोग करके दीवार पर छेद बना रहा है । </p><p>एक आकृति में, धरती की सतह पर रखी इलेक्ट्रिक ड्रिल मशीन और धातु की वस्तु के बीच एक संवाहक पथ बनता है। </p><p>जैसा कि हम जानते हैं , मानव शरीर बिजली के एक अच्छे संकैरियर के रूप में कार्य करता है, यदि व्यक्ति एक इन्सुलेशन ड्रिल मशीन को एक हाथ से और दूसरे हाथ से धातु की वस्तु को छूता है ।</p><p>तो यह एक संकैरियर मार्ग बन जाएगा और सभी चार्ज व्यक्ति के शरीर से गुजरेंगे। इससे बिजली का झटका लगेगा। इसे पावर सॉकेट में उचित अर्थिग करके ठीक किया जा सकता है।</p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEH9ul_StiUocRLVllipP2hOVDx_XER1Blzp4BA8Rj0RJ09iiQSBwpVCZ7w0AW4LkY2I0Q1pfUrzK5Cg-fGfMK6CaZrF7nR44pUtiVvBCEKujx5B-NO0jFItCRTuXyHsGSy9wQ8S-ktqM/s534/ncert+solution+various+info.webp" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" border="0" data-original-height="534" data-original-width="480" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiEH9ul_StiUocRLVllipP2hOVDx_XER1Blzp4BA8Rj0RJ09iiQSBwpVCZ7w0AW4LkY2I0Q1pfUrzK5Cg-fGfMK6CaZrF7nR44pUtiVvBCEKujx5B-NO0jFItCRTuXyHsGSy9wQ8S-ktqM/s16000/ncert+solution+various+info.webp" title="Ampacity क्या है Over current protection device के बारे में जानिए।" /></a></div><br /><p></p><p><br /></p><h2 style="background: rgb(255, 87, 51); box-sizing: border-box; line-height: 1.3; margin: 20px 0px 10px; padding: 5px; text-align: center;"><span style="color: white; font-family: eczar;">NCERT Solution Variousinfo</span></h2><div><p>तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, <b><span style="color: red;">Sharing Button</span></b> पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो <b>Comment Box</b> में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल <b>Personal Contact 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है ? साइंस शब्द की खोज कैसे हुई, सिद्धांत तथा प्रेक्षण अथवा प्रयोग क्या होते हैं?<p><b></b></p><p class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgatRBXBTY8r5nQhbYbYUZy5MsaixTGx1jy3rqnPG-hJtOCXSUOkE8QsedTMhUy0go-D2O49ePwIj7No5PrTxPsbmzrBRwtwW3i2MszSNEQOC2RrNqjm7zoZf7uSsZMffkExbJTiVsBjUY7AA8tqGfQDckBjJRftHIT6mxDYqzfGvetX42CAo3GiIA=s1155" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="[What Is Physics] भौतिकी क्या है ? साइंस शब्द की खोज कैसे हुई, सिद्धांत तथा प्रेक्षण अथवा प्रयोग क्या होते हैं?" border="0" data-original-height="781" data-original-width="1155" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgatRBXBTY8r5nQhbYbYUZy5MsaixTGx1jy3rqnPG-hJtOCXSUOkE8QsedTMhUy0go-D2O49ePwIj7No5PrTxPsbmzrBRwtwW3i2MszSNEQOC2RrNqjm7zoZf7uSsZMffkExbJTiVsBjUY7AA8tqGfQDckBjJRftHIT6mxDYqzfGvetX42CAo3GiIA=s16000" title="[What Is Physics] भौतिकी क्या है ? साइंस शब्द की खोज कैसे हुई, सिद्धांत तथा प्रेक्षण अथवा प्रयोग क्या होते हैं?" /></a></p><br /><p class="separator" style="clear: both; text-align: left;"><br /></p><b><br />भौतिकी (Physics):</b> मानव की सदैव अपने चारों ओर फैले विश्व के बारे में जानने की जिज्ञासा रही है। अनादि काल से ही रात्रि के आकाश में चमकने वाले खगोलीय पिण्ड उसे सम्मोहित करते रहे हैं। <b>दिन - रात की सतत पुनरावृत्ति, ऋतुओं के वार्षिक चक्र, ग्रहण, ज्वार भाटे, ज्वालामुखी, इन्द्रधनुष</b> सदैव ही उसके कौतूहल के स्रोत रहे हैं। <p></p><p>संसार में पदार्थों के आश्चर्यचकित करने वाले प्रकार तथा जीवन एवं व्यवहार की विस्मयकारी विभिन्नताएँ हैं। प्रकृति के ऐसे आश्चर्यों एवं विस्मयों के प्रति मानव का कल्पनाशील तथा अन्वेषी मस्तिष्क विभिन्न प्रकार से अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करता रहा है। </p><p>आदि काल से मानव की एक प्रकार की प्रतिक्रिया यह रही है कि उसने अपने <b>भौतिक पर्यावरण</b> का सावधानीपूर्वक प्रेक्षण किया है, प्राकृतिक परिघटनाओं में अर्थपूर्ण पैटर्न तथा संबंध खोजे हैं, तथा प्रकृति के साथ प्रतिक्रिया कर सकने के लिए नए औजारों को बनाया तथा उनका उपयोग किया है। कालान्तर में मानव के इन्हीं प्रयासों से <b>आधुनिक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी</b> का मार्ग प्रशस्त हुआ है।</p><p><strike>Table of content(TOC)</strike></p><p dir="ltr"></p><h2 style="text-align: left;">SCIENCE साइंस शब्द की खोज कैसे हुई? </h2><p>अंग्रेजी भाषा के <b>शब्द साईंस ( Science ) का उद्भव लैटिन भाषा के शब्द सिंटिया ( Scientia ) से हुआ है, जिसका अर्थ है ' जानना '।</b> संस्कृत भाषा का<b> शब्द ' विज्ञान ' </b>तथा अरबी भाषा का शब्द ' <b>इल्म</b> ' भी यही अर्थ व्यक्त करता है जिसका तात्पर्य है " <b>ज्ञान</b> "।<p></p><p dir="ltr"> विस्तृत रूप में विज्ञान उतना ही प्राचीन है जितनी कि मानव जाति है। मिस्र, भारत, चीन, यूनान, मैसोपोटामिया तथा संसार के अन्य देशों की प्राचीन सभ्यताओं ने विज्ञान की प्रगति में अत्यावश्यक योगदान दिया है। </p><p dir="ltr">सोलहवीं शताब्दी से यूरोप में विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई। <b>बीसवीं शताब्दी के मध्य तक विज्ञान</b>, वास्तविक रूप में, एक महान द्रुत कार्य बन गया, जिसके अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए अनेक सभ्यताओं एवं देशों ने अपना योगदान दिया। </p><p style="text-align: left;"></p><h2 style="text-align: left;">विज्ञान क्या है, एवं तथाकथित वैज्ञानिक विधि क्या होती है ?</h2><p style="text-align: left;"><b>विज्ञान</b> प्राकृतिक परिघटनाओं को यथासंभव विस्तृत एवं गहनता से समझने के लिए किए जाने वाला सुव्यवस्थित प्रयास है, जिसमें इस प्रकार अर्जित ज्ञान का उपयोग परिघटनाओं के भविष्य कथन, संशोधन, एवं नियंत्रण के लिए किया जाता है। जो कुछ भी हम अपने चारों ओर देखते हैं उसी के आधार पर अन्वेषण करना, प्रयोग करना तथा भविष्यवाणी करना विज्ञान है। </p><p style="text-align: left;">संसार के बारे में सीखने की जिज्ञासा, प्रकृति के रहस्यों को सुलझाना विज्ञान की खोज की ओर पहला चरण है। <b>वैज्ञानिक विधि '</b> में बहुत से अंत : संबंध- पद : व्यवस्थित प्रेक्षण, नियंत्रित प्रयोग, गुणात्मक तथा मात्रात्मक विवेचना, गणितीय प्रतिरूपण, भविष्य कथन, सिद्धांतों का सत्यापन अथवा अन्यथाकरण सम्मिलित होते हैं निराधार कल्पना तथा अनुमान लगाने का भी विज्ञान में स्थान है। </p><p style="text-align: left;">परन्तु, अंततः, किसी वैज्ञानिक सिद्धांत को स्वीकार्य योग्य बनाने के लिए, उसे प्रासंगिक प्रेक्षणों अथवा प्रयोगों द्वारा सत्यापित किया जाना भी आवश्यक होता है। <b>विज्ञान की प्रकृति तथा विधियों </b>के बारे में काफी दार्शनिक विवाद हैं जिनके विषय में यहाँ चर्चा करना आवश्यक नहीं है।</p><p><p></p><p dir="ltr"></p><h3 style="text-align: left;">सिद्धांत तथा प्रेक्षण अथवा प्रयोग क्या होते हैं?</h3><p style="text-align: left;"><b>सिद्धांत तथा प्रेक्षण ( अथवा प्रयोग ) </b>का पारस्परिक प्रभाव विज्ञान की प्रगति का मूल आधार है। विज्ञान सदैव गतिशील है विज्ञान में कोई भी सिद्धांत अंतिम नहीं है तथा वैज्ञानिकों में कोई निर्विवाद विशेषज्ञ अथवा सत्ता नहीं है जैसे - जैसे प्रेक्षणों के विस्तृत विवरण तथा परिशुद्धता में संशोधन होते जाते हैं, अथवा प्रयोगों द्वारा नए परिणाम प्राप्त होते जाते हैं, वैसे यदि आवश्यक हो तो उन संशोधनों को सन्निविष्ट करके सिद्धांतों में उनका स्पष्टीकरण किया जाना चाहिए। </p><p style="text-align: left;">कभी - कभी ये संशोधन प्रबल न होकर सुप्रचलित सिद्धांतों के ढांचे में भी हो सकते उदाहरण के लिए, जब जोहानेस केप्लर ( 1571-1630 ) ने टाइको ब्राह ( 1546-1601 ) द्वारा ग्रह गति से संबंधित संगृहीत किए गए विस्तृत आंकड़ों का परीक्षण किया, तो निकोलस कोपरनिकस ( 1473-1543 ) द्वारा कल्पित सूर्य केन्द्री सिद्धांत ( जिसके अनुसार सूर्य सौर - परिवार के केन्द्र पर स्थित है ) की वृत्ताकार कक्षाओं को दीर्घवृत्तीय कक्षाओं द्वारा प्रतिस्थापित करना पड़ा, ताकि संगृहीत आंकड़ों तथा दीर्घवृत्तीय कक्षाओं में अनुरूपता हो सके। </p><p style="text-align: left;">तथापि, यदा कदा सुप्रचलित सिद्धांत नए प्रेक्षणों का स्पष्टीकरण करने में असमर्थ होते हैं ये <b>प्रेक्षण ही विज्ञान में महान क्रांति का कारण बनते हैं </b>बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यह अनुभव किया गया कि उस समय का सर्वाधिक सफल <b>न्यूटनी यांत्रिकी सिद्धांत</b> परमाण्वीय परिघटनाओं के कुछ मूल विशिष्ट लक्षणों की व्याख्या करने में असमर्थ है। </p><p style="text-align: left;">इसी प्रकार उस समय तक मान्य " <b>प्रकाश का तरंग सिद्धांत</b> " भी <b>प्रकाश विद्युत प्रभाव</b> को स्पष्ट करने में असफल रहा। इससे परमाण्वीय तथा आण्विक परिघटनाओं पर विचार करने के लिए मूलत : नए सिद्धांत (<b> क्वान्टम यांत्रिकी</b> ) के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। </p><p></p><p dir="ltr">जिस प्रकार कोई नया प्रयोग किसी वैकल्पिक सैद्धांतिक निदर्श ( मॉडल ) को प्रस्तावित कर सकता है, ठीक उसी प्रकार किसी सैद्धांतिक प्रगति से यह भी सुझाव मिल सकता है कि कुछ प्रयोगों में क्या प्रेक्षण किए जाने हैं। </p><p dir="ltr"><b>अर्नेस्ट रदरफोर्ड ( 1871-1937 ) </b>द्वारा वर्ष 1911 में स्वर्ण पर्णिका पर किए गए ऐल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग के परिणाम ने <b>परमाणु के नाभिकीय मॉडल</b> को स्थापित किया, जो फिर नौल बोर ( 1885-1962 ) द्वारा वर्ष 1913 में प्रतिपादित <b>हाइड्रोजन परमाणु के सिद्धांत</b> का आधार बना दूसरी ओर पॉल डिरेक ( 1902-1984 ) द्वारा वर्ष 1930 में सर्वप्रथम सैद्धांतिक रूप से प्रतिकण की संकल्पना प्रतिपादित की गई जिसे दो वर्ष पश्चात् काल एन्डरसन ने <b>पॉजीट्रॉन ( प्रति इलेक्ट्रॉन</b> ) की प्रायोगिक खोज द्वारा प्रमाणित किया। </p><p dir="ltr">प्राकृतिक विज्ञानों की श्रेणी का एक मूल विषय भौतिकी है। इसी श्रेणी में अन्य विषय जैसे <b>रसायन विज्ञान</b> तथा जीव विज्ञान भी सम्मिलित हैं भौतिकी को अंग्रेजी में<b> Physics कहते हैं </b>जो भाषा के एक शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ ' <b>प्रकृति</b> "। </p><p dir="ltr">इसका तुल्य संस्कृत शब्द ' <b>भौतिकी</b> ' है जिसका उपयोग भौतिक जगत के अध्ययन से संबंधित है इस विषय को यथार्थ परिभाषा देना न तो संभव है और न ही आवश्यक। </p><p dir="ltr">मोटे तौर पर हम भौतिकी का वर्णन प्रकृति के मूलभूत नियमों का अध्ययन तथा विभिन्न प्राकृतिक परिघटनाओं में इनकी अभिव्यक्ति के रूप में कर सकते हैं। </p><p dir="ltr">अगले अनुभाग में भौतिकी के कार्यक्षेत्र विस्तार का संक्षिप्त वर्णन दिया गया है .</p><p dir="ltr"><b>भौतिकी</b> के अंतर्गत हम विविध भौतिक परिघटनाओं की व्याख्या कुछ संकल्पनाओं एवं नियमों के पदों में करने का प्रवास करते हैं। इसका उद्देश्य विभिन्न प्रभाव क्षेत्रों तथा परिस्थितियों में भौतिक जगत को कुछ <b>सार्वत्रिक नियमों</b> की अभिव्यक्ति के रूप में देखने का प्रयास है। </p><p dir="ltr">उदाहरण के लिए, <b>समान गुरुत्वाकर्षण का नियम ( जिसे न्यूटन ने प्रतिपदित किया ) पृथ्वी पर किसी सेब का गिरना, पृथ्वी के परित : चन्द्रमा की परिक्रमा तथा सूर्य के परितः ग्रहों की गति </b>जैसी परिघटनाओं की व्याख्या करता है। </p><p dir="ltr">इसी प्रकार <b>विद्युत चुम्बकत्व के मूलभूत सिद्धांत ( मैक्सवेल - समीकरण )</b> सभी विद्युतीय तथा चुम्बकीय परिघटनाओं को नियंत्रित करते हैं। प्रकृति के मूल बलों को एकीकृत करने के प्रयास एकीकरण के इसी अन्वेषण को प्रतिबिम्बित करते हैं।</p><p dir="ltr"><br />किसी अपेक्षाकृत बड़े, अधिक जटिल निकाय के गुणों को इसके अवयवी सरल भागों की पारस्परिक क्रियाओं तथा गुणों से व्युत्पन्न करना एक संबद्ध प्रयास होता है इस उपगमन को <b>न्यूनीकरण कहते हैं</b> तथा यह भौतिकी के मर्म में है उदाहरण के लिए . उन्नीसवीं शताब्दी में विकसित विषय ऊष्मा गतिकी बृहदाकार निकायों के साथ ताप, <b>आंतरिक ऊर्जा, एन्ट्रापी </b>आदि जैसी स्थूल राशियों के पदों में व्यवहार करता है।</p><p dir="ltr"> तत्पश्चात् <b>अणुगति सिद्धांत</b> तथा <b>सांख्यिकीय यांत्रिकी</b> विषयों के अंतर्गत इन्हीं राशियों की व्याख्या वृहदाकार निकायों के आण्विक अवयवों के गुणों के पदों में की गई। विशेष रूप से ताप को निकाय के अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा से संबंधित पाया गया।</p><p dir="ltr"><b>Other</b></p><h2 style="text-align: left;">जीव विज्ञान और भौतिक विज्ञान में समानता</h2><p dir="ltr">भौतिक विज्ञान जीव विज्ञान के लिए आधार प्रदान करती है। अंतरिक्ष, पदार्थ, ऊर्जा और समय के बिना - ऐसे घटक जो ब्रह्मांड बनाते हैं - जीवित जीव मौजूद नहीं होंगे। </p><p dir="ltr">भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन ने कहा कि पृथ्वी पर सब कुछ परमाणुओं से बना है, पदार्थ की बुनियादी इकाइयाँ, जो लगातार चलती हैं। चूंकि जीव विज्ञान भौतिक विज्ञान में अपनी नींव रखता है, इसलिए यह मस्केगॉन कम्युनिटी कॉलेज के अनुसार, जीवों के अध्ययन के लिए भौतिक प्राकृतिक नियम लागू करता है। </p><p dir="ltr">उदाहरण के लिए, भौतिक विज्ञान यह समझाने में मदद करती है कि चमगादड़ अंधेरे में नेविगेट करने के लिए कैसे ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हैं और कैसे पंख हवा के माध्यम से जाने की क्षमता देते हैं। </p><p dir="ltr">अमेरिकन फिजिकल सोसाइटी ने कहा कि कई फूल अपने बीज या पंखुड़ियों को प्रकाश और पोषक तत्वों के संपर्क में लाने के लिए फाइबोनैचि जैसे अनुक्रम में व्यवस्थित करते हैं। </p><p dir="ltr">कुछ मामलों में, जीवविज्ञान भौतिक कानूनों और सिद्धांतों को साबित करने में मदद करता है। फेनमैन ने कहा कि जीव विज्ञान ने ऊर्जा के संरक्षण के कानून के साथ वैज्ञानिकों को आने में मदद की।</p>Ashok Nayakhttp://www.blogger.com/profile/08039039967202116754noreply@blogger.com0