MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा

नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।

MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा

विविधा अभ्यास - बोध प्रश्न

विविधा अति लघु उत्तरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. आसमान में किस तरह के बादल उड़ रहे थे?

उत्तर: आसमान में झीने-झीने, कजरारे एवं चंचल बादल उड़ रहे थे।

प्रश्न 2. रिमझिम-रिमझिम पानी बरसने के बाद क्या हुआ?

उत्तर: रिमझिम-रिमझिम पानी बरसने के बाद आकाश खुल गया और धूप-निकल आयी।

प्रश्न 3. कवि के अनुसार हवा बार-बार क्या कर रही है?

उत्तर: कवि के अनुसार हवा बार-बार उनकी पत्नी का आँचल खींच रही है।

प्रश्न 4. कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप कैसा बतलाया

उत्तर: कवि ने नई सभ्यता का स्वरूप इस प्रकार बतलाया है कि पूर्व में तो हमारी कुटियों में तूफान बिना पूछे ही घुस जाया करते थे, लेकिन नई सभ्यता में वे बिना दरवाजे खटखटाए ही घरों में चले आते हैं।

प्रश्न 5.आक्रोश में आकर मजदूरों ने क्या किया?

उत्तर: आक्रोश में आकर मजदूरों ने सूरज को निगल लिया।

प्रश्न 6. ‘खाली पेट से कवि का क्या आशय है?

उत्तर:खाली पेट से कवि का आशय भूखे-नंगे लोगों से है।

विविधा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. बादलों के हटने पर तारे कैसे दिखलाई पड़ते हैं?

उत्तर: बादलों के हटने पर तारे जब-तब उज्ज्वल एवं झलमल दिखाई पड़ते हैं।

प्रश्न 2. कवि के अनुसार सम्पूर्ण दिन में किस तरह के बादल दिखाई पड़ रहे थे?

उत्तर: कवि के अनुसार सम्पूर्ण दिन में कपसीले, ऊदे, लाल, पीले और मटमैले बादल दिखाई पड़ रहे थे।

प्रश्न 3. कवि ने हरे खेतों के बारे में क्या कल्पना की हैं?

उत्तर: कवि ने हरे खेतों के बारे में यह कल्पना की है कि हम दोनों ने इनको जोता और बोया है; अब इनमें धीरे-धीरे अंकुर निकल आये हैं और इनकी हरियाली ने धरती माता का रूप सजा दिया है।

प्रश्न 4. कवि के अनुसार मेहनत से कमाई हुई फसल का वास्तविक लाभ किसे प्राप्त होता है?

उत्तर: कवि के अनुसार मेहनत से कमाई हुई फसल का वास्तविक लाभ बिचौलियों को प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 5. कवि नियति से क्या प्रश्न करते हैं?

उत्तर: कवि नियति से एक प्रश्न करता है कि तुमने खाली पेट वालों को घुटने क्यों दिए।

प्रश्न 6.बुनियाद चरमराने से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर: बुनियाद चरमराने से कवि का तात्पर्य यह है कि नयी सभ्यता ने हमारे प्राचीन ढंग एवं आदर्शों को पूरी तरह नकार दिया है।

विविधा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.त्रिलोचन की कविता में प्रस्तुत शरद ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।

उत्तर:शरद ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कविवर त्रिलोचन कहते हैं कि नवमी की तिथि है और इस समय रात बड़ी ही मधुरं एवं शीतल है। अभी पूरी तरह जाड़ा नहीं पड़ा है। हाँ, हल्का गुलाबी जाड़ा अवश्य शुरू हो गया। इस गुलाबी जाड़े में कभी-कभी शरीर के रोएँ काँप जाया करते हैं। कभी-कभी रिमझिम पानी की बरसात होती है तो कभी आकाश साफ खुल जाता है। कभी-कभी कपसीले, ऊदे, लाल और पीले तथा मटमैले बादल आकाश में घूमते दिखाई दे जाते हैं।

प्रश्न 2.पठित पाठ के आधार पर त्रिलोचन की कविता के कलापक्ष पर अपना मन्तव्य दीजिए।

उत्तर:

पठित पाठ के आधार पर हम देखते हैं कि त्रिलोचन की कविता में भावपक्ष के साथ ही साथ कलापक्ष भी सुन्दर बन पड़ा है। कवि ने धीरे-धीरे, सीरी-सीरी, झीने-झीने, रिमझिम-रिमझिम, उजला-उजला, बार-बार, धीरे-धीरे आदि शब्दों का प्रयोग से काव्य में पुनरूक्तिप्रकाश अलंकार के द्वारा काव्य के सौन्दर्य को कई गुना बढ़ा दिया है। इसी प्रकार कवि ने जब-तब, तन-मन, काला-हल्का, सुनती हो-गुनती हो आदि में पद मैत्री का सुन्दर प्रयोग किया है। यह पवन आज ……….. छोटा देवर में 

उदाहरण अलंकार जिनको नहलाते हैं बादल, जिनको बहलाती है बयार में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ। सम्पूर्ण कविता में अनुप्रास की छटा। भाषा कोमलकान्त पदावली है। कहीं-कहीं भाषा में लाक्षणिकता भी आ गयी है।

प्रश्न 3.त्रिलोचन शास्त्री ने पवन के माध्यम से क्या संकेत किया है, भाव व्यंजना कीजिए।

उत्तर:

त्रिलोचन शास्त्री ने पवन के माध्यम से यह संकेत किया है कि यह पवन आज बार-बार तुम्हारे आँचल को वैसे ही खींच रहा है जैसे कोई देवर अपनी भाभी के आँचल को खींचता हो।

प्रश्न 4.नई और पुरानी सभ्यता में कवि ने क्या अन्तर बतलाया है?

उत्तर:

नई और पुरानी सभ्यता में कवि ने यह अन्तर बताया है कि प्राचीन समय में तो हमारी कुटियों में बिना पूछे ही तूफान प्रवेश पा जाते थे, पर इस नई सभ्यता में तो सब कुछ बदल गया है। आज तो लोग हमारे घरों में बिना दरवाजा खटखटाए ही घुस आते हैं। शिष्टाचार, शालीनता का कहीं कोई पता नहीं है। इस परिवर्तन ने हमारी बुनियाद की चूलें ही हिला दी हैं।

प्रश्न 5. ‘खाली पेट कविता में निहित व्यंग्य को समझाइए।

उत्तर:

खाली पेट कविता में निहित व्यंग्य यह है कि नियति ने किसी को कष्ट देने के लिए भोजन की व्यवस्था न की हो, यह बात तो ठीक है पर खाली पेट के साथ उसको चलने-फिरने के लिए घुटने क्यों दिए? कहने का भाव यह है कि नियति ने जिसको खाली पेट रखा है उसे वह घुटने भी प्रदान न करे तो अच्छा है क्योंकि बिना घुटने के वह चल फिर नहीं सकेगा और न वह समाज को अपना खाली पेट दिखा सकेगा।

प्रश्न 6.तृप्ति कविता के माध्यम से कवि ने किस विसंगति को उजागर किया है?

उत्तर:

तृप्ति कविता के माध्यम से कवि ने समाज की उस विसंगति को उजागर किया है जिसमें मेहनतकश तो दो जून की रोटी भी प्राप्त नहीं कर पाता है और उसकी मेहनत का फल बिचौलिए या मध्यस्थ ले जाते हैं। वह बेचारा श्रमिक या मजदूर भूखा का भूखा रह जाता है। लेकिन जब मजदूर से ये अत्याचार सहन नहीं होते हैं तो उसका गुस्सा लावा बनकर फूट पड़ता है और तब वह सूरज तक को निगल जाता है।

प्रश्न 7.निम्नलिखितं काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

(क) हाँ दिन भी अजीब रहा ………….. आए बादल।

उत्तर:

कविवर त्रिलोचन कहते हैं कि यह शरद ऋतु की नवमी तिथि का दिन है। ये रात कितनी मधुर है, यह कहते नहीं बनता। इन रातों में हमारे मन में शीतलता बस जाती है। यद्यपि अभी कोई जाड़ा नहीं आया है। हाँ, कभी-कभी थोड़े-थोड़े रोएँ काँप जाया करते हैं। ऐसे सुन्दर वातावरण को देखकर तन और मन में उत्साह भर आया। इस समय का दिन भी बड़ा विचित्र रहा। आज रिमझिम-रिमझिम करता हुआ पानी बरसा, इसके बाद आकाश खुल गया और चारों ओर धूप छा गयी। पूरे दिन इसी प्रकार का क्रम बना रहा। आकाश में भिन्न-भिन्न रंगों के बादल यथा-कपसीले, ऊदे, लाल, पीले, मटमैले झुण्ड के रूप में तैर रहे थे। फिर रात आ गयी लेकिन उस रात में पहले जैसा न तो काला, हल्का या गहरा या धुएँ जैसा रंग दिखाई देता था। फिर आकाश कुछ उजला-उजला सा दिखाई दिया। न मालूम इस रम्य वातावरण को किसके प्यासे नेत्र देख पायेंगे। चाँदनी चमक रही है और गंगा बहती जा रही है।

(ख) यह पवन आज यों ………… जिधर वे हरे खेत।

उत्तर:

कविवर त्रिलोचन अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि क्या तुम कुछ सुन रही हो, या कुछ गुनगुना रही हो। यह हवा आज तुम्हारे आँचल को वैसे ही बार-बार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर जब कभी हठ करके तुमसे कोई बात कहना चाह रहा हो।

आगे कवि अपनी पत्नी से कहता है कि तुम उधर चलो जहाँ हरे खेत खड़े हुए हैं। फिर वह कहता है कि शायद तुम्हें यह बात याद है या नहीं, इन खेतों को हम दोनों ने एक साथ मिलकर जोता तथा बोया था। समय के अनुसार इन खेतों में बीज से नये अंकुर निकल आये और बड़े होते गये। इसके बाद हम दोनों ने उन्हें मिलकर सींचा था। आज हमारे परिश्रम के फलस्वरूप ही मनमोहन हरियाली चारों ओर फैल रही है। इस हरियाली से धरती माता का रूप सज गया है। खेत के इन परम सलौने पौधों को हम दोनों ने मिलकर ही बड़ा किया है। आज उन पौधों को बादल नहला रहे हैं और बयार (हवा) उनको बहला रही है। वे हरे खेत कैसे लग रहे हैं और इस समय उनकी दशा क्या होगी? वे इस समय सचेत होंगे या खोये हुए से होंगे।

(ग) कल हमारी कुटियों ………… चरमरा रही है।

उत्तर:

कवि श्री अभिमन्यु कहते हैं कि कल तक तो हमारी कुटियों में बिना पूछे ही तूफान चले आते थे, किन्तु नयी सभ्यता की चकाचौंध में आज हमारे मेहमान हमारे ही घरों में बिना दरवाजा खटखटाए घुसे चले आ रहे हैं। उनके इस बदले हुए व्यवहार से हमारे घर की दीवारें और छतें ही नहीं, अपितु उनसे तो हमारी बुनियाद ही चरमरा रही है।

विविधा काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(अ) इसलिए आक्रोश में आकर, मजदूर सूरज को निगल गया में निहित अलंकार को पहचानकर उसके लक्षण लिखिए।

उत्तर: इसमें रूपकातिशयोक्ति अलंकार है जिसका लक्षण इस प्रकार है-

रूपकातिशयोक्ति :

जहाँ उपमान द्वारा उपमेय का वर्णन किया जाये वहाँ रूपकातिशयोक्ति अलंकार होता है।


(ब) माथे की श्रम बूंदों को खेत में पहुँचाकर बो दिया पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

इस पंक्ति का भाव है कि मजदूर ने परिश्रम करके खेत की जुताई, गुड़ाई की। उसने अपना पसीना बहाकर फसल के लिए खेत तैयार किये। खेत तैयार होने पर उसने श्रम के द्वारा बीज बो दिए ताकि अच्छी पैदावार हो सके।

प्रश्न 2.खाली पेट वालों को तुमने घुटने क्यों दिए? फैलाने वाले हाथ क्यों दिए?” इन पंक्तियों के प्रश्नों का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:

जब व्यक्ति का पेट खाली होता है तो वह अपने घुटनों से पेट को दबा लेता है ताकि भूख का दबाव कम हो जाय या फिर अपनी भूख शान्त करने के लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाता है। ये दोनों ही स्थितियाँ हीनता की परिचायक हैं। इन प्रश्नों का भाव है कि घुटने और हाथ न होते तो खाली पेट व्यक्ति अपनी हीनता नहीं दर्शा पाता, भले वह भूख के कारण मर जाता।

प्रश्न 3.भयानक रस को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।

उत्तर:

भयानक रस :

किसी भयंकर व्यक्ति, वस्तु के कारण जाग्रत भय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से भयानक रस रूप में परिणत होता है। जैसे-

एक ओर अजगर सिंह लखि,एक ओर मृगराय।
विकल वटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय॥

यहाँ आश्रय वटोही तथा आलम्बन अजगर और सिंह हैं। अजगर एवं सिंह की डरावनी चेष्टाएँ उद्दीपन हैं। बटोही (राहगीर) का मूच्छित होना अनुभाव तथा स्वेद, कम्पन, रोमांच आदि संचारी भाव हैं।

प्रश्न 4. वीभत्स रस और भयानक रस में अन्तर बताइए।

उत्तर :

वीभत्स रस का स्थायी भाव जुगुप्सा (घृणा) होता है, जबकि भयानक रस का स्थायी भाव भय होता है। विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में भिन्नता होती है। स्पष्ट है कि वीभत्स में घृणा का भाव जाग्रत होता है परन्तु भयानक में भय उत्पन्न होता है।

प्रश्न 5.अद्भुत रस की परिभाषा एवं उदाहरण, रस के विभिन्न अंगों सहित दीजिए।

उत्तर:

अद्भुत रस-किसी असाधारण या अलौकिक वस्तु के देखने में जाग्रत विस्मय स्थायी भाव विभावादि के संयोग से अद्भुत रस में परिणत होता है। जैसे-

अखिल भुवनचर-अचरसब, हरिमुख मेंलखि मातु।

चकित भई गद्-गद् वचन, विकसित दृग पुलकातु ॥

यहाँ माँ यशोदा आश्रय तथा श्रीकृष्ण के मुख में विद्यमान सब लोक आलम्बन हैं। चर-अचर आदि उद्दीपन हैं। आँख फाड़ना, गद-गद स्वर, रोमांच अनुभाव तथा दैन्य, त्रास आदि संचारी भाव हैं।

विविधा महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न विविधा

प्रश्न 1.आसमान में किस तरह के बादल उड़ रहे थे?

(क) लाल

(ख) मटमैले

(ग) पीले

(घ) उपर्युक्त सभी।

उत्तर:

(घ) उपर्युक्त सभी।


प्रश्न 2.त्रिलोचन कवि ने शरद ऋतु की किस तिथि का वर्णन किया है?

(क) द्वितीया

(ख) चतुर्थी

(ग) नवमी

(घ) इनमें से कोई नहीं।

उत्तर:

(ग) नवमी


प्रश्न 3.बादलों के हटने पर तारे कैसे दिखलाई पड़ते हैं?

(क) नहीं दिखाई दे रहे हैं

(ख) उज्ज्वल झलमल

(ग) जगमगा रहे हैं

(घ) छिपते-छिपते।

उत्तर:

(ख) उज्ज्वल झलमल


प्रश्न 4.बुनियाद चरमराने से कवि का क्या आशय है?

(क) छत टूटना

(ख) जमीन टूटना

(ग) जड़ से नष्ट होना

(घ) उपर्युक्त सभी।

उत्तर:

(ग) जड़ से नष्ट होना

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है कविता के रचयिता ………….. हैं।
  2. यह पवन आज यों बार-बार खींचता तुम्हारा …………… है।
  3. इसीलिए आक्रोश में आकर मजदूर ……………. को निगल गया।
  4. उनसे हमारी दीवारें और छतें नहीं हमारी ………… चरमरा रही है।

उत्तर:

  1. त्रिलोचन शास्त्री
  2. आँचल
  3. सूरज
  4. बुनियाद।

सत्य/असत्य

  1. चाँदनी चमकती है गंगा बहती है कविता के रचयिता अप्रवासी भारतीय अभिमन्यु अनन्त हैं।
  2. कवि त्रिलोचन ने हरी-भरी धरती को माता के सदृश सम्मान दिया है।
  3. चाँदनी चमकती है गंगा बहती है कविता ने कृषकों की दयनीय दशा का वर्णन किया है।
  4. कवि अभिमन्यु अनंत नियति से प्रश्न करते हैं। (2016)

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

(i)

(ii)

1.कितनी, कितनी मधुर रात मन में

2. रिमझिम-रिमझिम पानी बरसा फिर खुला

3. 'भाभी का आँचल खींच रहा है' पंक्ति में

4. 'तृप्ति' कविता में मानवीय श्रम के

(क) प्रेम और वात्सल्य की अनुभूति है

(ख) शोषण की चर्चा है

(ग) बस जाती शीतलता

(घ) गगन हो गयी धूप

 उत्तर:

1. → (ग)

2. → (घ)

3. → (क)

4. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

  1. चाँदनी चमकती है गंगा बहती है कविता में कवि ने मानवीय व्यवहार का चित्रण किस माध्यम से किया है?
  2. दिनभर ऐसा ही रहा तार कपसीले,ऊदे लाल और पीले मटमैले दल के दल पंक्ति का प्रयोग किसके लिये किया है?
  3. कल हमारी कुटियों में बिन पूछे तूफान दाखिल हो जाते थे कविता का शीर्षक लिखिए।
  4. तुमने खाली पेट दिया ठीक किया यह पंक्ति किसकी ओर संकेत करती है?
  5. आक्रोश में आकर मजदूरों ने क्या किया? (2014)

उत्तर:

  1. हवा
  2. बादलों के लिए
  3. नयी सभ्यता
  4. निर्धनता एवं भुखमरी
  5. सूरज को निगल लिया।

चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है भाव सारांश 

चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है कविता में त्रिलोचन कवि ने गंगा नदी के किनारे चाँदनी रात का वर्णन किया है।

कवि का कथन है कि गंगा नदी के किनारे चाँदनी रात का वातावरण अत्यन्त सुन्दर दिखाई देता है। इस समय आकाश में काले-काले बादल काजल की भाँति इधर-उधर घूम रहे हैं। बादलों में छिपते और चमकते तारे शोभा को बढ़ा रहे हैं। चाँदनी रात्रि में गंगा की लहरें तरंगित होती हुई सुशोभित हो रही हैं।

शरद काल का समय है और नवमी तिथि की मनोहर रात है। शीतल ठंडी रात मन में रोमांच का अनुभव कराती है। शीत ऋतु यद्यपि अभी नहीं है,किन्तु शरदकालीन शीतलता से तन के रोंये कम्पन कर रहे हैं अर्थात् शरीर रोमांचित हो रहा है।

रात में आसमान स्वच्छ था लेकिन यकायक वर्षा होने लगी है। इसके बाद आकाश स्वच्छ हो गया और पुनः धूप खिल उठी। देखते-देखते बादल इकट्ठे हो गये हैं। कवि अपनी पत्नी से कहता है कि यह हवा बार-बार तुम्हारा आँचल इस प्रकार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर बचपन में आँचल खींचता और हठ करता था।

कवि पत्नी से कहता है कि खेतों की ओर चलो और देखो हम दोनों ने जो बीज बोये थे वे अब अंकुरित तथा बड़े होकर वायु वेग से लहलहा रहे हैं। वास्तव में खेतों की हरियाली के कारण गंगा तट का सौन्दर्य दुगना हो गया है।

चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) चल रही हवा

धीरे-धीरे

सीरी-सीरी;

उड़ रहे गगन में

झीने-झीने

कजरारे

चंचल बादल!

छिपते-छिपते

जब-तब

तारे,

उज्ज्वल, झलमल

चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।

शब्दार्थ :

सीरी-सीरी= ठण्डी-ठण्डी। गगन = आकाश। झीने-झीने = पतले-पतले। कजरारे = काले।

सन्दर्भ :

प्रस्तुत कविता चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।

प्रसंग :

इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।

व्याख्या :

कवि त्रिलोचन कहते हैं कि ठण्डी-ठण्डी हवा धीरे-धीरे बह रही है और आकाश में झीने-झीने तथा काले एवं चंचल बादल उमड़ रहे हैं। इसी समय आकाश में उज्ज्वल एवं झिलमिलाते हुए जब कभी तारे भी छिपते-छिपते दिखाई दे जाते हैं। चाँदनी चमक रही है और गंगा की धारा बहती जा रही है।

विशेष :

प्रकृति की सुन्दरता का चाँदनी रात में कवि ने वर्णन किया है।

पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास अलंकार।


(2) ऋतु शरद और

नवमी तिथि है

है कितनी, कितनी मधुर रात

मन में बस जाती शीतलता है

अभी नहीं जाड़ा कोई

बस जरा-जरा रोएँ काँपे

तन-मन में भर आया उछाह

हाँ, दिन भी आज अजीब रहा

रिमझिम रिमझिम पानी बरसा

फिर खुला गगन

हो गयी धूप

दिन भर ऐसा ही रहा तार

कपसीले, ऊदे, लाल और

पहले, मटमैले-दल के दल

आये बादल

अब रात

न उतना रंग रहा

काला-हलका या गहरा

या धुएँ-सा

कुछ उजला-उजला

किसके अतृप्त दृग देखेंगे

चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।

शब्दार्थ :

उछाह = उत्साह। तार = क्रम। दल के दल = झुण्ड के झुण्ड। अतृप्त = प्यार से। दृग = नेत्र।

सन्दर्भ :

प्रस्तुत कविता चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है’ शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।

प्रसंग :

इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।

व्याख्या :

कविवर त्रिलोचन कहते हैं कि यह शरद ऋतु की नवमी तिथि का दिन है। ये रात कितनी मधुर है, यह कहते नहीं बनता। इन रातों में हमारे मन में शीतलता बस जाती है। यद्यपि अभी कोई जाड़ा नहीं आया है। हाँ, कभी-कभी थोड़े-थोड़े रोएँ काँप जाया करते हैं। ऐसे सुन्दर वातावरण को देखकर तन और मन में उत्साह भर आया। इस समय का दिन भी बड़ा विचित्र रहा। आज रिमझिम-रिमझिम करता हुआ पानी बरसा, इसके बाद आकाश खुल गया और चारों ओर धूप छा गयी। पूरे दिन इसी प्रकार का क्रम बना रहा। आकाश में भिन्न-भिन्न रंगों के बादल यथा-कपसीले, ऊदे, लाल, पीले, मटमैले झुण्ड के रूप में तैर रहे थे। फिर रात आ गयी लेकिन उस रात में पहले जैसा न तो काला, हल्का या गहरा या धुएँ जैसा रंग दिखाई देता था। फिर आकाश कुछ उजला-उजला सा दिखाई दिया। न मालूम इस रम्य वातावरण को किसके प्यासे नेत्र देख पायेंगे। चाँदनी चमक रही है और गंगा बहती जा रही है।

विशेष :

शरद ऋतु का कवि ने मनोरम वर्णन किया है।

पुनरुक्तिप्रकाश एवं अनुप्रास की छटा।


(3) कुछ सुनती हो

कुछ गुनती हो

यह पवन, आज यों बार-बार

खींचता तुम्हारा आँचल है

जैसे जब तब छोटा देवर

तुमसे हठ करता है जैसे

तुम चलो जिधर वे हरे खेत

वे हरे खेत

हैं याद तुम्हें?

मैंने जोता तुमने बोया

धीरे-धीरे अंकुर आये

फिर और बढ़े

हमने तुमने मिलकर सींचा

फैली मनमोहन हरियाली

धरती माता का रूप सजा

उन परम सलौने पौधों को

हम दोनों ने मिल बड़ा किया

जिनको नहलाते हैं बादल

जिनको बहलाती है बयार

वे हरे खेत कैसे होंगे

कैसा होगा इस समय ढंग

होंगे सचेत या सोये से

वे हरे खेत

चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है।

शब्दार्थ :

मनमोहन = मन को मोहने वाली। ढंग = रूप, स्थिति। सचेत = जागते हुए से।

सन्दर्भ :

प्रस्तुत कविता चाँदनी चमकती है गंगा बहती जाती है’ शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि श्री त्रिलोचन हैं।

प्रसंग :

इस कविता में कवि ने प्रकृति के मादक रूप का वर्णन किया है।

व्याख्या :

कविवर त्रिलोचन अपनी पत्नी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि क्या तुम कुछ सुन रही हो, या कुछ गुनगुना रही हो। यह हवा आज तुम्हारे आँचल को वैसे ही बार-बार खींच रही है जैसे तुम्हारा देवर जब कभी हठ करके तुमसे कोई बात कहना चाह रहा हो।

आगे कवि अपनी पत्नी से कहता है कि तुम उधर चलो जहाँ हरे खेत खड़े हुए हैं। फिर वह कहता है कि शायद तुम्हें यह बात याद है या नहीं, इन खेतों को हम दोनों ने एक साथ मिलकर जोता तथा बोया था। समय के अनुसार इन खेतों में बीज से नये अंकुर निकल आये और बड़े होते गये। इसके बाद हम दोनों ने उन्हें मिलकर सींचा था। आज हमारे परिश्रम के फलस्वरूप ही मनमोहन हरियाली चारों ओर फैल रही है। इस हरियाली से धरती माता का रूप सज गया है। खेत के इन परम सलौने पौधों को हम दोनों ने मिलकर ही बड़ा किया है। आज उन पौधों को बादल नहला रहे हैं और बयार (हवा) उनको बहला रही है। वे हरे खेत कैसे लग रहे हैं और इस समय उनकी दशा क्या होगी? वे इस समय सचेत होंगे या खोये हुए से होंगे। चाँदनी चमक रही है और गंगा बहती जा रही है।

विशेष :

जैसे जब तब …………. छोटा देवर’-में उदाहरण अलंकार।

अन्यत्र उपमा और अनुप्रास की छटा।

भाव सारांश कुछ कविताएँ

नयी सभ्यता-अभिमन्यु अनन्त अप्रवासी भारतीय हैं। उन्हें भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम है। वे अपनी सभ्यता की बुनियाद को चरमराते हुए देखकर अत्यन्त व्यथित होते हैं।

उनका कथन है कि आज पाश्चात्य सभ्यता अनजाने अतिथि की भाँति बिना दरवाजा खटखटाये हमारे घरों में प्रवेश कर रही है। इसके परिणामस्वरूप हम अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से पृथक् होते जा रहे हैं।

तृप्ति इन पंक्तियों में कवि ने मजदूरों की दयनीय दशा का वर्णन किया है। शोषणवादी नीति के विरुद्ध अपना आक्रोश व्यक्त किया है।

मजदूर दिन-रात खून-पसीना बहाकर खेतों में लहलहाती फसल उगाते हैं लेकिन फसल तैयार होने पर उससे प्राप्त धन से पूँजीपति अपनी तिजोरी से भर लेते हैं। इसी कारण मजदूर ने सूरज को निगलने अथवा विद्रोह करने का झंडा गाढ़ दिया।

खाली पेट’ – कवि ने नियति से प्रश्न किया है कि तुम्हें खाली पेट क्यों दिया? यदि पेट दिया तो उसमें टेकने के लिए घुटने भी दिये हैं जिसकी सहायता से श्रमिक अपनी क्षुधा को शान्त करने का कोरा प्रयास करता है। हाथ भी व्यर्थ ही दिये क्योंकि वे दूसरों के समक्ष हाथ फैलाकर याचना करते हैं।

कुछ कविताएँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

(1) नयी सभ्यता

कल हमारी कुटियों में बिन पूछे

तूफान दाखिल हो जाते थे

आज हमारे घरों में बिन दरवाजे खटखटाये

जो चले आ रहे हैं।

उनसे हमारी दीवारें और छतें नहीं

हमारी बुनियाद चरमरा रही है।

शब्दार्थ :

दाखिल = प्रवेश। बुनियाद = नींव, मूल।

सन्दर्भ :

प्रस्तुत कविता कुछ कविताएँ शीर्षक के अन्तर्गत नयी सभ्यता शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि अभिमन्यु अनन्त हैं।

प्रसंग :

इस कविता में कवि ने नयी सभ्यता के रूपक को प्रस्तुत किया है।

व्याख्या :

कवि श्री अभिमन्यु कहते हैं कि कल तक तो हमारी कुटियों में बिना पूछे ही तूफान चले आते थे, किन्तु नयी सभ्यता की चकाचौंध में आज हमारे मेहमान हमारे ही घरों में बिना दरवाजा खटखटाए घुसे चले आ रहे हैं। उनके इस बदले हुए व्यवहार से हमारे घर की दीवारें और छतें ही नहीं, अपितु उनसे तो हमारी बुनियाद ही चरमरा रही है।

 विशेष:

कवि ने नयी सभ्यता पर व्यंग्य कसा है।

अनुप्रास की छटा।

भाषा लाक्षणिक।


(2) तृप्ति

माथे की श्रम बूंदों को

खेत में पहुँचाकर मजदूर ने बो दिया।

लहलहाती फसल जब तैयार हुई

उन हरे-भरे दानों को किसी और ने

तिजोरी के लिए बटोर लिया

इसीलिए आक्रोश में आकर

मजदूर सूरज को निगल गया।

शब्दार्थ :

आक्रोश = क्रोध में।

सन्दर्भ :

यह कतिवा तृप्ति शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि अभिमन्यु अनन्त हैं।

प्रसंग :

इस कविता में बिचौलियों (व्यापारियों) पर सटीक व्यंग्य किया गया है।

व्याख्या :

कवि श्री अभिमन्यु अनन्त कहते हैं कि मजदूर ने अपने खून-पसीने को एक करके खेतों में बीज को बो दिया। कुछ अन्तराल के बाद जब खेत में लहलहाती फसल पक कर तैयार हुई तो मध्यस्थ व्यापारियों या बिचौलिओं ने उस सम्पूर्ण फसल को इकट्ठा करके अपने कब्जे में ले लिया और उसे बाजार में बेचकर अपनी तिजोरियों को भर लिया। बिचौलियों के इस व्यवहार से दु:खी होकर किसान क्रोधित हो उठा और उसने सूरज को निगल लिया। कहने का भाव यह है कि जब किसी व्यक्ति को उसका वाजिब हक (उचित अधिकार) नहीं मिलता है तब वह विद्रोह कर उठता है और उस विद्रोह के फलस्वरूप वह होनी-अनहोनी सभी कर डालता है।

विशेष :

मध्यस्थों एवं बिचौलियों पर व्यंग्य।

मजदूर किसान की बेवसी का वर्णन।

भाषा लाक्षणिक शैली में।


(3) खाली पेट

तुमने आदमी को खाली पेट दिया

ठीक किया।

पर एक प्रश्न है रे नियति!

खाली पेट वालों को

तुमने घुटने क्यों दिए?

फैलने वाला हाथ क्यों दिया?

शब्दार्थ :

नियति = प्रकृति, भाग्य।

सन्दर्भ :

प्रस्तुत कविता खाली पेट शीर्षक से ली गयी है। इसके कवि अभिमन्यु अनन्त हैं।

प्रसंग :

कवि ने भूखे लोगों की नियति का वर्णन किया है।

व्याख्या :

कविवर श्री अभिमन्यु अनन्त कहते हैं कि हे भाग्य! तेरी लीला बड़ी विचित्र है। तुमने आदमी को खाली पेट दिया यह तो ठीक है पर प्रश्न यह है कि खाली पेट वालों को तुमने चलने के लिए घुटने क्यों दिये, साथ ही इन्हें भीख माँगने के लिए फैलाने वाले हाथ क्यों दिये।

विशेष :

कवि ने नियति (भाग्य) पर व्यंग्य किया है।

भाषा लाक्षणिक।

तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, Sharing Button पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो Comment Box में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। धन्यवाद !

0 Response to "MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा"

Post a Comment

Ads on article

Advertise in articles 1

advertising articles 2

Advertise under the article